2000–2009
परन्तु यदि नहीं …
अप्रैल 2004


परन्तु यदि नहीं …

लोग प्रभु पर भरोसा करके और उसकी आज्ञाओं का पालन करके अद्भुत कार्यों को करते हैं—विश्वास का उपयोग करके भी जब वे नहीं जानते कि प्रभु उनका कैसे विकास कर रहा है।

एक युवक के रूप में, मैं एक आठवीं-कक्षा बास्केटबॉल टूर्नामेंट से घर लौटा था उदास, निराश, और उलझन भरा। मैंने अपनी मां से कहा, “मैं नहीं जानता कि हम क्यों हार गए—मुझे विश्वास था कि हम जीतेगें!”

अब मुझे एहसास हुआ है कि मुझे तब नहीं पता था कि विश्वास क्या है।

विश्वास डींग मारना नहीं है, न ही कोई इच्छा, न ही कोई आशा है। सच्चा विश्वास प्रभु यीशु मसीह में विश्वास रखना है—यीशु मसीह में आत्मविश्वास और भरोसा है जो किसी व्यक्ति को उसका अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है।1

सदियों पहले, दानिय्यल और उसके युवा साथियों को मातृभूमि की सुरक्षा से ऐसी दुनिया में धकेल दिया गया था—जो उनके लिए अनजान और भयानक थी। जब शद्रक, मेशक, और अबेदनगो ने राजा द्वारा स्थापित सोने की मूरत को दंडवत और उपासना करने से इनकार कर दिया, तो क्रोधी नबुकदनेस्सर ने उनसे कहा कि यदि वे आज्ञानुसार उपासना नहीं करेंगे, तो उन्हें तुरंत एक जलती हुई आग की भट्ठी में डाल दिया जाएगा। “फिर ऐसा कौन देवता है, जो तुम को मेरे हाथ से छुड़ा सके?”2

तीनों युवकों ने तुरंत और आत्मविश्वास से जवाब दिया, “यदि ऐसा होता है तो हमारा परमेश्वर, जिसकी हम उपासना करते हैं वह हम को उस धधकती हुई भट्ठी की आग से बचाने की शक्ति रखता है; वरन हे राजा, वह हमें तेरे हाथ से भी छुड़ा सकता है।” यह मेरे आठवीं-कक्षा के विश्वास की तरह लगता है। लेकिन फिर उन्होंने दिखा दिया जिसे वे पूरी तरह से जानते थे कि विश्वास क्या है। उन्होंने आगे कहा, “परन्तु, यदि नहीं, … हम लोग तेरे देवता की उपासना नहीं करेंगे, और न तेरी खड़ी कराई हुई सोने की मूरत को दण्डवत करेंगे।3 यह सच्चे विश्वास की अभिव्यक्ति है।

वे जानते थे कि वे परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं—भले ही परिणाम वैसे न हों जैसी वे आशा करते थे।4 वे जानते थे कि विश्वास मानसिक स्वीकृति से अधिक है, यह मात्र स्वीकार करने से अधिक है कि परमेश्वर जीवित है। विश्वास उस में संपूर्ण भरोसा करना है।

इसका मतलब यह विश्वास करना है कि भले ही हम सभी बातों को नहीं जानते, लेकिन वह जानता है। विश्वास यह जानना है कि बेशक हमारी शक्ति सीमित है, लेकिन उसकी शक्ति सीमित नहीं है। यीशु मसीह में विश्वास उस पर संपूर्ण निर्भरता शामिल है।

शद्रक, मेशक, और अबेदनगो जानते थे कि वे हमेशा उस पर भरोसा कर सकते थे क्योंकि वे उसकी योजना जानते थे, और वे जानते थे कि वह बदलता नहीं है।5 जैसा हम जानते हैं, वे भी जानते थे कि नश्वरता प्रकृति की कोई दुर्घटना नहीं है। यह स्वर्ग में हमारे प्यारे पिता की महान योजना6 का एक छोटा हिस्सा है ताकि हम, उसके बेटे और बेटियों के लिए यह संभव हो सके कि हम उन्हीं आशीषों को प्राप्त करें जो उसे प्राप्त हैं, यदि हम इच्छुक हैं।

वे जानते थे, जैसा कि हम जानते हैं, कि हमारे पृथ्वी-पूर्व जीवन में, हमें उसके द्वारा नश्वरता के उद्देश्य बताए गए थे: “हम पृथ्वी बनाएंगे जिस पर ये निवास कर सकें; और हम उन्हें इनके द्वारा साबित करने देंगे, यह देखने के लिये कि वे उन सब कार्यों को करते हैं जिसकी प्रभु उनका परमेश्वर उन्हें आज्ञा देता है।”7

तो इसलिए हम यहां है—यह एक परीक्षा का समय है। यह संसार नश्वर पुरुषों और महिलाओं के लिए एक परीक्षा स्थल है। जब हम समझते हैं कि यह सब एक परीक्षा है, जो हमारे स्वर्गीय पिता द्वारा प्रशासित है, जो चाहता है कि हम उस पर भरोसा करें और उसे हमारी मदद करने की अनुमति दें, तो हम सब कुछ अधिक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।

उसने हमें बताया था कि उसका कार्य और उसकी महिमा, “मनुष्य के अमरत्व और अनंत जीवन को कार्यान्वित करना है।”8 वह पहले ही परमेश्वरत्व प्राप्त कर चुका है। अब उसका एकमात्र उद्देश्य हमारी मदद करना है—ताकि हम उसके पास लौट सकें और उसके समान बन सकें और अनंतरूप से उसके समान जीवन जी सकें।

यह सब जानते हुए, उन तीन युवा यहुदियों के लिए अपना निर्णय लेना कठीन नहीं था। वे परमेश्वर का अनुसरण करेंगे; वे उस पर विश्वास करेंगे। वह उन्हें बचाएगा, परन्तु यदि नहीं—और हम आगे की कहानी जानते हैं।

प्रभु ने हमें स्वतंत्रता दी है, निर्णय लेने का अधिकार और जिम्मेदारी।9 वह हमें चुनौती देकर हमारी परीक्षा लेता है। वह हमें विश्वास दिलाता है कि वह हमारी क्षमता से अधिक परीक्षा नहीं लेगा।10 लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि बड़ी चुनौतियों से महापुरुष बनते हैं। हम पीड़ा नहीं चाहते, लेकिन यदि हम विश्वास में बने रहते हैं तो प्रभु हमें मजबूत करता है। परन्तु यदि नहीं असाधारण आशीषें बन सकती हैं।

प्रेरित पौलुस ने दशकों के समर्पित प्रचारक कार्य के बाद यह महत्वपूर्ण सबक सीखा और घोषणा की थी, “ … हम पीड़ा में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि पीड़ा से धीरज; और धीरज से अनुभव, और अनुभव से आशा उत्पन्न होती है; और आशा से लज्जा नहीं होती।”11

उसे उद्धारकर्ता द्वारा आश्वासन दिया गया था, “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है।”12

पौलुस ने उत्तर दिया था: “इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे। … मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।”13 जब पौलुस ने अपनी चुनौतियों का सामना प्रभु के तरीके से किया, तो उसका विश्वास बढ़ा था।

विश्वास द्वारा ही इब्राहीम ने, परीक्षा के समय में, इसहाक की भेंट दी थी।”14 इब्राहीम, को उसके महान विश्वास के कारण, उससे आकाश में तारों से अधिक भावी पीढ़ी की प्रतिज्ञा की गई थी, और यह भावी पीढ़ी इसहाक के माध्यम से आने थी। लेकिन इब्राहीम ने तुरंत प्रभु की आज्ञा का पालन किया। परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करता, परन्तु यदि इब्राहीम की आशा के अनुरूप नहीं, तो भी उसने उस पर पूरी तरह से भरोसा किया था।

लोग प्रभु पर भरोसा करके और उसकी आज्ञाओं का पालन करके अद्भुत कार्यों को करते हैं—विश्वास का उपयोग करके भी जब वे नहीं जानते कि प्रभु उनका कैसे विकास कर रहा है।

विश्वास द्वारा मूसा ने … फिरौन की बेटी का बेटा कहलाने से इनकार कर दिया था;

“कुछ समय के लिए पाप के सुख का आनंद लेने की बजाए, उसने परमेश्वर के लोगों के साथ दुख सहना चुना था;

“मिस्र में खजाने की तुलना में मसीह के कारण निंदित होने को बड़ा धन समझा था। …

विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डर कर उस ने मिसर को छोड़ दिया। …

विश्वास ही से वे लाल समुद्र के पार ऐसे उतर गए, जैसे सूखी भूमि पर से। …

विश्वास ही से यरीहो की शहरपनाह गिर पड़ी थी।”15

विश्वास ही के द्वारा राज्य जीते; धर्म के काम किए; प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं प्राप्त की, सिंहों के मुंह बन्द किए थे,

“आग की ज्वाला को ठंडा किया; तलवार की धार से बच निकले, निर्बलता में बलवन्त हुए; लड़ाई में वीर निकले; विदेशियों की फौजों को मार भगाया था।”16

लेकिन प्रतिभागियों द्वारा व्यक्त आशा और अपेक्षा के उन सभी शानदार परिणामों के बीच, हमेशा परन्तु यदि नहीं थे:

“कई एक ठट्ठों में उड़ाए जाने; और कोड़े खाने; वरन बान्धे जाने; और कैद में पड़ने के द्वारा परखे गए:

“पत्थरवाह किए गए; आरे से चीरे गए; उन की परीक्षा की गई; तलवार से मारे गए; … दुख भोगते हुए भेड़ों और बकिरयों की खालें ओढ़े हुए, … 17

“परमेश्वर ने उनके कष्टों के द्वारा उनके लिए कुछ बेहतर वस्तुएं प्रदान की हैं, क्योंकि बिना कष्टों के उन्हें परिपूर्ण नहीं बनाया जा सकता था”18

हमारे धर्मशास्त्र और हमारा इतिहास परमेश्वर के महान पुरुषों और महिलाओं के वर्णनों से परिपूर्ण हैं, जो मानते थे कि वह उन्हें मुक्ति देगा, परन्तु यदि नहीं, तो उन्होंने यह प्रदशित किया था कि वे विश्वास करेंगे और सच्चे रहेंगे।

उसके पास शक्ति है, लेकिन यह हमारी परीक्षा है।

प्रभु हमारी चुनौतियों के संबंध में हमसे क्या आशा करता है? वह आशा करता है कि हम वे सब करें जो हम कर सकते हैं। शेष वह करता है। नफी ने कहा था, “क्योंकि हम जानते हैं कि हम जो कर सकते हैं, उन सब को करने के पश्चात भी हम उसके अनुग्रह द्वारा बचाए जा सकते हैं।”19

हमारे पास शद्रक, मेशक, और अबेदनेगो के समान विश्वास होना चाहिए।

हमारा परमेश्वर हमें उपहास और उत्पीड़न से बचाएगा, परन्तु यदि नहीं। … हमारा परमेश्वर हमें बीमारी और रोगों से बचाएगा, परन्तु यदि नहीं … । वह हमें अकेलेपन, अवसाद या भय से बचाएगा, परन्तु यदि नहीं। … हमारा परमेश्वर हमें धमकियों, आरोपों और असुरक्षा से बचाएगा, परन्तु यदि नहीं। … वह हमें प्रियजनों की मृत्यु या हानि से मुक्त करेगा परन्तु यदि नहीं, … हम प्रभु में विश्वास करेंगे।

हमारा परमेश्वर सुनिश्चित करेगा कि हमें न्याय और निष्पक्षता प्राप्त हो, परन्तु यदि नहीं। … वह यह सुनिश्चित करेगा कि हमें प्रेम किया जाए और पहचाना जाए, परन्तु यदि नहीं। … हम एक आदर्श साथी और धर्मी और आज्ञाकारी संतान को प्राप्त करेंगे, परन्तु यदि नहीं, … हम प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करेंगे, यह जानते हुए कि यदि हम जो कुछ हम कर सकते हैं उसे करते हैं, तो हम उसके समय और उसके तरीके से, बचाए जाएंगे और वह सब कुछ प्राप्त करेंगे जो उसके पास है20 मैं यह गवाही यीशु मसीह के नाम में देता हूं, आमीन ।