पवित्रशास्त्र
याकूब 5


अध्याय 5

याकूब पालतू और जंगली जैतून के संबंध में जीनस का उद्धरण करता है—वे इस्राएल और अन्यजातियों के समान हैं—इस्राएल का बिखरना और एकत्रित होने को पहले से प्रकट किया गया है—नफाइयों और लमनाइयों और इस्राएल के सभी घराने के बारे में संकेत दिए जाते हैं—अन्यजातियों की इस्राएल में कलम लगाई जाएगी—अंततः बगीचे को जला दिया जाएगा । लगभग 544–421 ई.पू.

1 देखो मेरे भाइयों, क्या तुम्हें याद नहीं कि तुमने भविष्यवकता जीनस के शब्दों को पढ़ा है, जो उसने इस्राएल के घराने से इस प्रकार कहे थेः

2 हे इस्राएल के घराने, मुझ, प्रभु के भविष्यवक्ता के शब्दों को सुनो ।

3 क्योंकि सुनो, प्रभु इस प्रकार कहता है, हे इस्राएल के घराने मैं तुम्हें पालतू जैतून के वृक्ष की तरह पसंद करता हूं, जिसे एक मनुष्य ने अपने बगीचे में बोया और उसकी देखभाल की; और बड़ा हुआ, और बुढ़ा हुआ और सड़ना शुरू हो गया ।

4 और ऐसा हुआ कि बगीचे का स्वामी बगीचे में आया, और उसने देखा कि उसका जैतून का वृक्ष सड़ना शुरू हो गया है; और वह बोला: मैं इसकी छंटाई करूंगा, और इसके आस-पास खोदूंगा, और इसमें खाद डालूंगा, तो शायद हो सकता है इसमें से नई और कोमल शाखाएं फूट निकलें, और यह सड़े नहीं ।

5 और ऐसा हुआ कि उसने अपने कहे अनुसार इसकी छटाई की, और इसके आस-पास खुदाई की, और इसमें खाद डाली ।

6 और ऐसा हुआ कि कई दिनों के बाद इस में से कुछ छोटी, नई और कोमल शाखाएं निकलनी शुरू हो गई; लेकिन देखो, इसका ऊपर की मुख्य शाखा सड़ने लगी थी ।

7 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने देखा, और अपने नौकर से बोला: मुझे दुख है कि मैं इस वृक्ष को खो दूंगा; इसलिए, जाओ और एक जंगली जैतून के वृक्ष की शाखाएं तोड़ो, और यहां मेरे पास लाओ; और हम उन मुख्य शाखाओं को तोड़ देगें जो सड़ रही है, और हम उन्हें आग में फेंक देगें ताकि वे जल जाएं ।

8 और देखो, बगीचे का स्वामी कहता है, मैं इन कई नई और कोमल शाखाओं को लेता हूं, और मैं जहां चाहूंगा वहां मैं इनकी कलम लगाऊंगा; और इस बात का महत्व नहीं कि इस वृक्ष की जड़ सड़ जाए, मैं इसके फलों को अपने पास सुरक्षित रखूंगा; इसलिए, मैं इन नई और कोमल शाखाओं की कलम मैं जहां चाहूंगा वहां लगाऊंगा ।

9 तुम जंगली जैतून के वृक्ष की शाखाएं लो, और सड़ी हुई शाखाओं के स्थान पर इनकी कलम लगाओ; और जिन्हें मैंने तोड़ा है मैं इन्हें आग में डालूंगा और जला दूंगा, ताकि वे मेरे बगीचे में स्थान न घेरें ।

10 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी के नौकर ने बगीचे के स्वामी के शब्दों के अनुसार किया, और जंगली जैतून के वृक्ष की शाखाओं की कलम लगा दी ।

11 और बगीचे के स्वामी ने वृक्ष के आस-पास खुदाई, और इसकी छटाई करवाई, और खाद डलवाई, अपने नौकर से कहा: मुझे दुख है कि मैं इस वृक्ष को खो दूंगा; इसलिए हो सकता है मैं इसकी जड़ों को सुरक्षित रख सकूं ताकि वे नष्ट न हों, ताकि मैं उन्हें अपने लिए सुरक्षित रख सकूं, इसलिए मैंने यह किया है ।

12 इसलिए, तुम जाओ; मेरे कहे अनुसार, वृक्ष की देखभाल करो, और इसमें खाद डालो ।

13 और मैं इन्हें अपने बगीचे के बीचों-बीच जहां मैं चाहूंगा वहां लगाऊंगा, इससे तुम्हारा कोई संबंध नहीं; और मैं ऐसा इसलिए करूंगा ताकि मैं वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं को अपने लिए सुरक्षित रख सकूं; और इसके फल को भी मैं अपने उस समय के लिए जमा करके रख सकूं जब इनका मौसम नहीं होता; क्योंकि मुझे दुख है कि मैं इस वृक्ष और इसके फल को खो दूंगा ।

14 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने अपने कहे अनुसार काम किया, और पालतू जैतून के वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं को बगीचे के बीचों-बीच, किसी को यहां और किसी को वहां अपनी इच्छा और मर्जी के अनुसार छिपा दिया ।

15 और ऐसा हुआ कि बहुत दिन गुजर गए, और बगीचे के स्वामी ने अपने नौकर से कहा: आओ, हम नीचे बगीचे में जाएं, ताकि हम बगीचे में काम करें ।

16 और ऐसा हुआ कि बगीचे का स्वामी, और उसका नौकर भी, नीचे बगीचे में काम करने गए । और ऐसा हुआ कि नौकर ने अपने स्वामी से कहा: यहां देखो; इस वृक्ष को देखो ।

17 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने उस वृक्ष को देखा जिसमें जंगली जैतून की शाखाएं कलम लगाई गई थी; और वह विकसित हो गई थी और फल निकलने लगे थे । और उसने देखा कि वे अच्छे थे; और उसके फल प्राकृतिक फल के समान थे ।

18 और उसने नौकर से कहा: देखो, जंगली वृक्ष की शाखाओं ने इसकी जड़ के जल को प्राप्त कर लिया है, इसकी जड़ ने बहुत शक्ति प्राप्त कर ली है; और इसकी जड़ की अधिक शक्ति के कारण जंगली शाखाओं ने पालतू फल पैदा किये हैं । अब, यदि हमने इन शाखाओं की कलम न लगाई होती, तो यह वृक्ष नष्ट हो जाता; और इसके फल को मैं अपने उस समय के लिए जमा करके रखूंगा जब इनका मौसम नहीं होता ।

19 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने नौकर से कहा: आओ, हम बगीचे के बीचों-बीच जाएं, और देखें क्या उस वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं में भी इतने फल निकले हैं या नहीं; कि मैं उन्हें अपने उस समय के लिए जमा करके रख सकूं जब इनका मौसम नहीं होता ।

20 और ऐसा हुआ कि वे वहां गए जहां स्वामी ने वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं को छिपाया था, और उसने नौकर से कहा: इन्हें देखो; और उसने देखा कि पहली शाखा में बहुत से फल लगे थे; और उसने देखा कि वे अच्छे थे । और उसने नौकर से कहा: इसके फलों को लो, और इन्हें उस समय के लिए जमा कर लो जब इनका मौसम नहीं होता, ताकि मैं इन्हें अपने लिए सुरक्षित रख सकूं; क्योंकि देखो, उसने कहा, मैंने इतने दिनों तक इसकी देखभाल की है, और इसमें बहुत फल निकले हैं ।

21 और ऐसा हुआ कि नौकर ने स्वामी से कहा: आपने इस वृक्ष को या इसकी शाखा को यहां क्यों लगाया ? क्योंकि देखो, यह आपके बगीचे की सारी भूमि की सबसे खराब जगह है ।

22 और बगीचे के स्वामी ने उससे कहा: मुझे सलाह मत दो; मैं जानता था कि यह जमीन का खराब स्थान था; इसलिए, मैंने तुम से कहा था, मैंने इतने दिनों तक इसकी देखभाल की है, और तुम देख रहे हो कि इसमें बहुत फल लगे हैं ।

23 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने नौकर से कहा: यहां देखो; मैंने इस वृक्ष की अन्य शाखा को भी लगाया था; और तुम जानते हो कि यह जगह पहले वाले से अधिक खराब थी । लेकिन, इस वृक्ष को देखो । मैंने इसकी इतने समय तक देखभाल की है, और इसमें बहुत फल लगे हैं; इसलिए इन्हें एकत्रित करो, और उस समय के लिए जमा करो जब इनका मौसम नहीं होता, ताकि मैं इन्हें अपने लिए सुरक्षित रख सकूं ।

24 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने अपने नौकर से फिर कहा: यहां देखो; मैंने इस वृक्ष की अन्य शाखा को भी लगाया था; देखो मैंने इसकी भी देखभाल की थी, और इसमें फल लगे हैं ।

25 और उसने अपने नौकर से कहा: यहां इस अंतिम शाखा को देखो, इसे मैंने अच्छी जगह पर लगाया था; और मैंने इसकी लंबे समय तक देखभाल की थी, और वृक्ष का केवल के एक हिस्से में ही पालतू जैतून निकले हैं, और वृक्ष के अन्य भाग में जंगली फल निकले हैं; देखो, इस वृक्ष की देखभाल मैंने अन्य वृक्षों के समान की थी ।

26 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने नौकर से कहा: उन शाखाओं को उखाड़ दो जिनमें अच्छे फल नहीं निकले हैं, और इन्हें आग में फेंक दो ।

27 लेकिन देखो, नौकर ने उससे कहा: आओ हम इसकी छंटाई कर दें, और इसके आस-पास खोदें, और इसकी थोड़ी और देखभाल करते हैं, हो सकता है यह आपको अच्छे फल दे, जिसे आप उस समय के लिए रख सकें जब इनका मौसम नहीं होता ।

28 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी और बगीचे के स्वामी के नौकर ने बगीचे के फलों की देखभाल की ।

29 और ऐसा हुआ कि लंबा समय बीत चुका था, और बगीचे के स्वामी ने अपने नौकर से कहा: आओ, हम नीचे बगीचे में चलते हैं, कि हम बगीचे में फिर से काम करें । क्योंकि देखो, समय निकट आ रहा है, और जल्द ही समय समाप्त हो जाएगा; इसलिए, मुझे अपने लिए फलों को उस समय के लिए रख लेना चाहिए जब इनका मौसम नहीं होता ।

30 और ऐसा हुआ कि बगीचे का स्वामी और नौकर नीचे बगीचे में गए; और वे उस वृक्ष के पास आए जिसकी शाखाएं तोड़ दी गई थी, और जंगली शाखाओं की कलम लगाई गयी थी; और देखा उस वृक्ष में सब प्रकार के फल लगे हुए थे ।

31 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने सब प्रकार के फलों को एक-एक करके चखा । और बगीचे के स्वामी ने कहा: देखो, हमने इतने लंबे समय तक इस वृक्ष की देखभाल की है, और मैंने अपने लिए बहुत से फलों को उस समय के लिए रख लिया है जब इनका मौसम नहीं होता ।

32 लेकिन देखो, इस समय इसमें बहुत से फल निकले हैं, और कोई भी फल अच्छा नहीं है । और देखो, सभी प्रकार के बुरे फल हैं; और हमारी इतनी मेहनत करने से भी इनसे मुझे कुछ लाभ नहीं; और अब मुझे दुख है कि मैं इस वृक्ष को खो दूंगा ।

33 और बगीचे के स्वामी ने नौकर से कहा: हम इस वृक्ष के साथ क्या करें, कि जिससे मैं अपने लिए इसके अच्छे फलों को फिर से जमा कर सकूं ?

34 और नौकर ने स्वामी से कहा: देखो, क्योंकि आपने जंगली जैतून की शाखाओं की कलम लगाई थी उन्होंने जड़ों का पोषण किया है, कि वे जीवित हैं और वे नष्ट नहीं हुई; इसलिए आप देखते हो कि वे अभी भी अच्छी हैं ।

35 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने नौकर से कहा: इस वृक्ष से मुझे कोई लाभ नहीं है, और इसकी जड़ों से मुझे कुछ लाभ नहीं है जब तक इसमें बुरे फल लगते हैं ।

36 फिर भी, मैं जानता हूं कि इसकी जड़ें अच्छी हैं, और अपने स्वयं के उद्देश्य के लिए मैंने इन्हें सुरक्षित रखा है; और इनकी अधिक शक्ति के कारण इन, जंगली शाखाओं में से अच्छे फल निकले हैं

37 लेकिन देखो, जंगली शाखाएं बड़ी हो गई हैं और इसकी जड़ों को जकड़ लिया है; और क्योंकि जंगली शाखाओं ने इसकी जड़ों को जकड़ लिया है इसलिए इसमें अधिक बुरे फल निकले हैं; और क्योंकि इसमें इतने अधिक बुरे फल निकले हैं कि तुम देख सकते हो ये नष्ट होना शुरू हो गए हैं; और ये शीघ्र पक जाएंगे, यदि हमने इन्हें सुरक्षित रखने के लिए कुछ नहीं किया तो हमें इन्हें आग में फेंकना पड़ सकता है ।

38 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने अपने नौकर से कहा: आओ हम बगीचे के सबसे निचले हिस्सों में जाएं, और देखें कि क्या प्राकृतिक शाखाओं में बुरे फल निकले हैं ।

39 और ऐसा हुआ कि वे बगीचे के सबसे निचले हिस्सों में गए । और ऐसा हुआ कि उन्होंने देखा कि प्राकृतिक शाखाओं के फल भी भ्रष्ट हो गए थे; हां, पहली और दूसरी और अंतिम शाखा के भी; और वे सबके सब भ्रष्ट हो गए थे ।

40 और अंतिम शाखा के जंगली फलों ने वृक्ष के उस हिस्से को भी जकड़ लिया था जिसमें अच्छे फल निकले थे, यहां तक कि वह शाखा मुरझा कर मर गई थी ।

41 और ऐसा हुआ कि बगीचे का स्वामी रोया, और अपने नौकर से कहा: मैं अपने बगीचे के लिए इससे अधिक क्या कर सकता था ?

42 देखो, मैं जानता था कि इन फलों के सिवाय सारे बगीचे के फल भ्रष्ट हो गए थे । और ये भी भ्रष्ट हो गए हैं जो कभी अच्छे फल हुआ करते थे; और मेरे बगीचे के ये सब वृक्ष अब किसी काम के नहीं सिवाय इसके कि इन्हें काट डाला जाए और आग में फेंका जाए ।

43 और देखो इस अंतिम को देखो, जिसकी शाखा मुरझा गई है, मैंने इसे अच्छी जगह में लगाया था; हां, जो मुझे अपने बगीचे की सारी भूमि में सबसे अधिक पसंद थी ।

44 और तुम देखते हो कि मैंने उनको भी काट डाला था जो इस जगह को घेरे हुए थे, ताकि मैं इस वृक्ष को उनके स्थान पर लगा सकूं ।

45 और तुम देखते हो कि इसके एक हिस्से में अच्छे फल निकले हैं, और दूसरे हिस्से में जंगली फल निकले हैं; और क्योंकि मैंने इसकी शाखाओं को नहीं काटा और इन्हें आग में नहीं फेंका, इसलिए देखो, इन्होंने अच्छी शाखा को इतना जकड़ लिया है कि वह मुरझा गई है ।

46 और अब, देखो, हमने इतनी देखभाल जो मेरे बगीचे की है उसके बावजूद, इसके वृक्ष इतने भ्रष्ट हो गए हैं, कि इनमें अच्छे फल नहीं निकले हैं; और मैंने सोचा था कि इसके फल को मैं अपने उस समय के लिए जमा करके रखूंगा जब इनका मौसम नहीं होता । लेकिन, देखो ये जंगली जैतून के वृक्ष के समान बन गए हैं, और ये किसी काम के नहीं सिवाय इसके कि इन्हें काट डाला जाए और आग में फेंक दिया जाए; और मुझे दुख है कि मैं इन्हें खो दूंगा ।

47 लेकिन अपने बगीचे में इससे अधिक मैं क्या कर सकता था ? क्या इसकी देखभाल करने में मैंने अपने हाथ शिथिल किये थे ? नहीं, मैंने इसकी देखभाल की थी, और मैंने इसके आसपास मिट्टी खोदी थी, और मैंने इसकी छंटाई की थी; और मैंने इसमें खाद डाली थी; और लगभग सारा दिन मैंने अपने हाथ से काम किया था, और अंत निकट आ गया है । और मुझे दुख है कि मैं अपने बगीचे के सारे वृक्षों को काट डालूंगा, और इन्हें आग में फेंक दूंगा कि ये जलाएं जाएं । कौन है जिसने मेरे बगीचे को भ्रष्ट किया है ?

48 और ऐसा हुआ कि नौकर ने अपने स्वामी से कहा: क्या यह आपके बगीचे का अभिमान नहीं है—क्या शाखाओं ने ही उन जड़ों को नहीं जकड़ लिया था जो अच्छी थीं ? और क्योंकि शाखाओं ने अपनी ही जड़ों को जकड़ लिया था, देखो, वे जड़ों की शक्ति लेकर जड़ों की शक्ति से अधिक तेजी से विकसित हो गईं । देखो, मैं कहता हूं, क्या यह वह कारण नहीं है जिससे आपके बगीचे के वृक्ष भ्रष्ट हो गए ?

49 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने नौकर से कहा: आओ हम जाएं और बगीचे के वृक्षों को काट डालें और इन्हें आग में फेंक दें, ताकि वे मेरे बगीचे में जगह न घेरें, क्योंकि मैं सब कुछ कर चुका हूं । मैं अपने बगीचे के लिए इससे अधिक क्या कर सकता था ?

50 लेकिन, देखो, नौकर ने बगीचे के स्वामी से कहा: इन्हें थोड़ा समय और दे दो ।

51 और स्वामी ने कहा: हां, मैं इन्हें थोड़ा समय और दूंगा, क्योंकि मुझे दुख है कि मैं अपने बगीचे के वृक्षों को खो दूंगा ।

52 इसलिए, आओ हम उनकी शाखाओं को लें जिन्हें मैंने अपने बगीचे के बीचों-बीच लगाया है, और आओ इन्हें हम उन वृक्षों पर कलम लगाएं जहां से ये लाई गई थीं; और आओ वृक्ष से उन शाखाओं को उखाड़ दें जिसके फल बहुत कड़वे हैं, और इनके स्थान पर प्राकृतिक वृक्ष की शाखाओं की कलम लगाएं ।

53 और मैं ऐसा ही करूंगा ताकि वह वृक्ष नष्ट न हो, शायद मैं इसकी जड़ों को अपने स्वयं के उद्देश्य के लिए सुरक्षित रख सकूं ।

54 और, वृक्ष की उन प्राकृतिक शाखाओं को देखो जिन्हें मैंने जहां चाहा था वहां लगाया था वे अभी भी जीवित हैं; इसलिए, मैं इन्हें भी अपने स्वयं के उद्देश्य के लिए सुरक्षित रखूंगा, मैं इस वृक्ष की शाखाओं को लूंगा, और मैं इनकी उनमें कलम लगाऊंगा । हां, मैं इनके मूल वृक्ष में इनकी कलम लगाऊंगा, ताकि मैं इन जड़ों को भी अपने स्वयं के लिए सुरक्षित रख सकूं, कि जब वे काफी मजबूत हो जाएंगी वे मुझे अच्छे फल देगीं, और मैं अपने बगीचे के फल का आनंद ले सकूंगा ।

55 और ऐसा हुआ कि उन्होंने उस प्राकृतिक वृक्ष को लिया जो जंगली हो गया था, और प्राकृतिक वृक्षों में उसकी कलम लगा दी, जोकि जंगली हो गए थे ।

56 और उन्होंने प्राकृतिक वृक्षों को भी लिया जो जंगली हो गए थे, और उनकी कलम उनके मूल वृक्ष में लगा दी ।

57 और बगीचे के स्वामी ने नौकर से कहा: वृक्षों से जंगली शाखाओं को नहीं उखाड़ो, सिवाय उनके जो बहुत कड़वी हो गई हैं; और उनमें तुम वही कलम लगाना जैसे मैंने कहा है ।

58 और हम बगीचे की फिर से देखभाल करेंगे, और हम शाखाओं की छटाई करेंगे; और वृक्ष की उन शाखाओं को उखाड़ देंगे जो पककर नष्ट हो जाएंगी, और इन्हें आग में फेंक देंगे ।

59 और मैं ऐसा करता हूं कि, शायद, इसकी जड़ें उनकी अच्छाई से शक्ति प्राप्त कर सके; और शाखाओं को बदलने के कारण, हो सकता है अच्छाई बुराई को पराजित कर दे ।

60 और क्योंकि मैंने प्राकृतिक शाखाओं और जडों को सुरक्षित रखा, और कि मैंने प्राकृतिक शाखाओं की कलम को उनके मूल वृक्ष में फिर से लगाई, और उनके मूल वृक्ष की जड़ों को सुरक्षित रखा, कि, शायद, मेरे बगीचे के वृक्ष फिर से अच्छे फल देंगे, और, शायद, कि मैं अत्याधिक आनंदित हो सकूं कि मैंने प्रथम फल की जड़ों और शाखाओं को सुरक्षित रखा—

61 इसलिए, जाओ, और नौकरों को बुलाओ, कि हम बगीचे में अपनी शक्ति से काम करें, कि हम मार्ग तैयार कर सकें, कि मैं फिर से प्राकृतिक फलों को उगा सकूं, जोकि अच्छे और सभी अन्य फलों से मूल्यवान हैं ।

62 इसलिए, आओ हम अंतिम बार अपनी शक्ति से काम करने चलें, क्योंकि देखो अंत निकट है, और यह अंतिम बार है कि मैं अपने बगीचे की छंटाई करूंगा ।

63 शाखाओं में कलम लगाओ; आखिर से शुरू करो कि वे पहले हो जाएं, और पहले आखिर हो जाएं, और वृक्षों के चारों ओर गड्डा खोदो, दोनों पुराने और नए, प्रथम और अंतिम, और अंतिम और प्रथम, कि सभी को आखिरी बार फिर से पोषण दिया जा सके ।

64 इसलिए, उनके चारों ओर गड्डा खोदो, और उनकी छंटाई करो, और उनको एक बार फिर खाद दो, अंतिम बार, क्योंकि अंत निकट है । और यदि ऐसा होता कि यह अंतिम कलम उगती है, और प्राकृतिक फल निकलते हैं, फिर तुम उनके मार्ग तैयार करना, कि वे विकसित हो सकें ।

65 और वे जब बढ़ने लगे तब जिन शाखाओं में कड़वे फल लगें, उन्हें काट कर अच्छी डालियों की शक्ति और आकार के अनुसार छोड़ दो, परन्तु सभी भ्रष्ट डालियों को एक साथ मत काटना वरना उनकी जड़ें कलम की गई शाखाओं के लिए अधिक शक्तिमान होंगी और वे नष्ट हो जाएंगी और मैं अपने बगीचे के वृक्षों को खो दूंगा ।

66 क्योंकि अपने वृक्षों को खोने का मुझे दुख होगा; इसलिए जैसे जैसे अच्छी शाखा बढ़े, वैसे वैसे बुरी शाखाओं को काट कर अलग करते जाओ जिससे कि जड़ और शाखाएं शक्ति में एक समान हों और यह तब तक करते जाओ जब तक कि अच्छी फल वाली शाखाएं बुरे फल वाली शाखाओं को वश में न कर लें, और बुरी शाखाओं को काटकर अग्नि में डाल दो जिससे कि उनसे मेरे बगीचे की भूमि पर विघ्न न पैदा हो; इस प्रकार मैं अपने बगीचे में से भ्रष्टता निकाल बाहर करूंगा ।

67 और मैं प्राकृतिक वृक्ष की शाखाओं में फिर से प्राकृतिक वृक्ष की कलम बाधूंगा;

68 और मैं प्राकृतिक वृक्ष की शाखाओं को, वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं में कलम बाधूंगा; और इस प्रकार मैं उन दोनों को पुन: निकट लाऊंगा, जिससे कि वे प्राकृतिक फल देंगे और वे दोनों एक हो जाएंगे ।

69 और जो भ्रष्ट हैं उनको मेरे बगीचे के बाहर फेंका जाएगा; क्योंकि देखो, इसी एक बार मैं अपने बगीचे को छाटूंगा ।

70 और ऐसा हुआ कि बगीचे के स्वामी ने अपने सेवकों को भेजा; और सेवक ने जाकर वैसा ही किया जैसा स्वामी ने कहा था, वह जाकर अन्य सेवकों को भी बुला लाया जो संख्या में कम थे ।

71 और ऐसा हुआ कि बगीचे का स्वामी उनसे बोला: जाओ और बगीचे में परिश्रम करो । क्योंकि देखो; अब अंतिम बार मैं अपने बगीचे की देख भाल करूंगा; क्योंकि अंत निकट है; और मौसम शीघ्रता के साथ बदल रहा है; और अगर तुमने मेरे साथ लगन के साथ परिश्रम किया तब जो फल मैं अपने भविष्य के लिए संचित करूंगा उससे तुमको भी आनंद प्राप्त होगा ।

72 और ऐसा हुआ कि सेवकों ने जाकर पूरी शक्ति से परिश्रम किया और उनके साथ बगीचे के स्वामी ने भी परिश्रम किया और सेवकों ने सभी बातों में बगीचे के स्वामी की आज्ञाओं का पालन किया ।

73 और बगीचे में पुन: प्राकृतिक फल लगने लगे; और प्राकृतिक शाखा अत्याधिक बढ़ने लगी; और जंगली शाखाओं को काट-काट कर फेंका जाने लगा और उन्होंने जड़ों और शाखाओं को उनकी शक्ति के अनुपात में बराबर किया ।

74 और इस प्रकार वे बगीचे के स्वामी की आज्ञानुसार तब तक परिश्रम के साथ काम करते रहे जब तक कि बगीचे में से सब भ्रष्ट शाखाओं को फेंका न गया और स्वामी ने अपने लिए वृक्षों को अच्छे प्राकृतिक फल देने वाला न बना लिया; और वे सब वृक्ष एक से हो गए; और उनके फल भी वैसे ही हो गए; और बगीचे के स्वामी ने अपने लिए पहले से भी अधिक बहुमूल्य प्राकृतिक फलों को संचित कर लिया ।

75 और ऐसा हुआ कि जब बगीचे के स्वामी ने देखा कि उसके फल अच्छे थे और उसका बगीचा भ्रष्ट नहीं रहा, तब उसने अपने सेवकों को बुला कर कहा: देखो, हमने इस अंतिम बार अपने बगीचे की देखभाल की, और तुमने देखा कि यह मैंने अपनी इच्छानुसार किया है; और मैंने प्राकृतिक फलों का संग्रह किया है जो कि पहले की तरह ही अच्छे हैं । आशीषित हो तुम क्योंकि तुमने मेरी आज्ञा को माना, और फिर से प्राकृतिक फलों को लाए जिससे कि मेरा बगीचा भ्रष्ट नहीं रहा, और जो बुरे थे उन्हें निकाल फेंका; देखो मेरे बगीचे के फलों के कारण तुम भी मेरे साथ आनंद मनाओ ।

76 क्योंकि देखो, जब फलों के लगने का मौसम नहीं रहेगा, जोकि शीघ्र आनेवाला है, तब बहुत दिनों तक के लिए मैंने फलों को सुरक्षित रख लिया है; और मैंने अपने बगीचे की देखभाल अंतिम बार की है, शाखाएं छांटी, जड़ के आस-पास मिट्टी खोदी, और खाद दी; इसलिए जैसा कि मैंने कहा वैसे ही अपने निमित्त बहुत दिनों तक के लिए फलों को संचित कर लिया है ।

77 और जब वह समय फिर से आएगा कि मेरे बगीचे में भ्रष्ट फल फिर से लगेंगे, तब मैं अच्छे और बुरे फलों को एकत्रित करूंगा; और अच्छे को अपने लिए सुरक्षित रखूंगा, और बुरों को उनके स्थान पर ही फेंक दूंगा । और तब मौसम और अंत समय आएगा; और मैं अपने बगीचे को आग से जलवा दूंगा ।