मूसा की पुस्तक
से चुने गए पद
बाइबिल के अनुवाद के अंश जो भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ को जून 1830–फरवरी 1831 प्रकट किए गए थे ।
अध्याय 1
(जून 1830)
परमेश्वर स्वयं को मूसा को प्रकट करते हैं—मूसा का रूपांतरण हो जाता है—उसका सामना शैतान से होता है—मूसा कई बसे हुए संसारों को देखता है—अनगिनत संसारों की सृष्टि पुत्र द्वारा की गई थी—परमेश्वर का कार्य और महिमा मनुष्य के अमरत्व और अनंत जीवन को कार्यान्वित करना है ।
1 परमेश्वर के वचन, जो उसने मूसा से बोले थे उस समय जब मूसा अत्यधिक ऊंचे पहाड़ पर उठा लिया गया था ।
2 और उसने परमेश्वर को आमने-सामने देखा और उससे बातें की, और परमेश्वर की महिमा मूसा के साथ थी; इसलिए मूसा उसकी उपस्थिति को सहन कर पाया था ।
3 और परमेश्वर ने मूसा से बोला, कहते हुए: देखो, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूं, और मेरा नाम अनंत है; क्योंकि मैं दिनों के आरंभ या वर्षों के अंत के बिना हूं; और क्या यह अनंत नहीं है?
4 और, देखो, तुम मेरे बेटे हो; इसलिए नजर उठाओ, और मैं तुम्हें अपने हाथों की कारीगरी दिखाऊंगा; लेकिन सब नहीं, क्योंकि मेरे कार्य अंत के बिना हैं, और मेरे वचन भी, क्योंकि वे कभी समाप्त नहीं होते ।
5 इसलिए, कोई मनुष्य मेरे कार्यों को नहीं देख सकता, सिवाय वह जो मेरी सारी महिमा को देख सकता है; और ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो मेरी महिमा को देखे, और इसके पश्चात पृथ्वी पर शरीर में रहे ।
6 और मेरे पास तुम्हारे लिए एक कार्य है, मूसा, मेरे बेटे; और तुम मेरे एकलौते की समानता में हो; और मेरा एकलौता उद्धारकर्ता है और रहेगा, क्योंकि वह महिमा और सच्चाई से परिपूर्ण है; लेकिन मेरे सिवाय अन्य कोई परमेश्वर नहीं है, और हर वस्तु मेरी उपस्थिति में है, क्योंकि मैं उन सभी को जानता हूं ।
7 और अब, देखो, इस एक वस्तु को जो मैं तुम्हें दिखाता हूं, मूसा, मेरे बेटे, क्योंकि तुम पृथ्वी में हो, और अब मैं इसे तुम्हें दिखाता हूं ।
8 और ऐसा हुआ कि मूसा ने नजर उठाई, और उस पृथ्वी को देखा जिस पर उसकी सृष्टि हुई थी; और मूसा ने संसार देखा और इसके आखिरी सिरों को, और सब मनुष्य की संतानों को जो हैं, और जिनकी सृष्टि हुई थी; जिससे वह अत्यधिक आश्चर्यचकित और अचंभित हुआ ।
9 और परमेश्वर की उपस्थिति मूसा से अलग हो गई, क्योंकि उसकी महिमा मूसा पर नहीं थी; और मूसा को अकेला छोड़ दिया गया था । और क्योंकि उसे अकेला छोड़ दिया गया था, वह पृथ्वी पर आ गिरा ।
10 और ऐसा हुआ कि कई घंटों के पश्चात मूसा ने मनुष्य के समान अपनी स्वाभाविक शक्ति को फिर से प्राप्त किया; और उसने स्वयं से कहा: अब, इस कारण मैं जानता हूं कि मनुष्य कुछ नहीं है, इस बात को मैंने कभी नहीं समझा था ।
11 लेकिन अब मेरी स्वयं की आंखों ने परमेश्वर को देखा है; लेकिन अपनी प्राकृतिक नहीं, बल्कि मेरी आत्मिक आंखों से, क्योंकि मेरी प्राकृतिक आंखें देख नहीं सकती थी; क्योंकि मैं उसकी उपस्थिति में नष्ट और मर गया होता; लेकिन उसकी महिमा मुझ पर थी; और मैंने उसके चेहरे को देखा था, क्योंकि उसके सम्मुख मेरा रूपांतरण हो गया था ।
12 और ऐसा हुआ कि जब मूसा इन शब्दों को बोल चुका था, देखो, शैतान उसे प्रलोभन देते हुए आया, कहते हुए: मूसा, मानव पुत्र, मेरी आराधना कर ।
13 और ऐसा हुआ कि मूसा ने शैतान को देखा और कहा: तुम कौन हो? क्योंकि देखो, मैं परमेश्वर का पुत्र हूं, उसके एकलौते पुत्र की समानता में; और तुम्हारी महिमा कहां है, जिससे कि मैं तुम्हारी आराधना करूं?
14 क्योंकि देखो, मैं नजर उठाकर परमेश्वर को नहीं देख सका, सिवाय उसकी महिमा के जो मुझ में आई थी, और उसके सम्मुख मेरा रूपांतरण हो गया था । लेकिन मैं तुम्हें देख सकता हूं प्राकृतिक मनुष्य के रूप में । क्या ऐसा नहीं है, अवश्य ही?
15 मेरे परमेश्वर का नाम आशीषित हो, क्योंकि उसकी आत्मा पूर्णरूप से मुझ से अलग नहीं हुई है, या वरना तुम्हारी महिमा कहां है, क्योंकि मुझ में यह अंधकार है? और मैं तुम्हारे और परमेश्वर के बीच के अंतर को समझ सकता हूं; क्योंकि परमेश्वर ने मुझ से कहा था: परमेश्वर की आराधना करो, क्योंकि केवल उसकी ही तुम सेवा करोगे ।
16 यहां से चला जा, शैतान; मुझे धोखा मत दे; क्योंकि परमेश्वर ने मुझ से कहा था: तुम मेरे एकलौते की समानता में हो ।
17 और उसने मुझे आज्ञाएं भी दी थी जब उसने मुझ से जलती झाड़ी में से बात की थी, कहते हुए: मेरे एकलौते के नाम में परमेश्वर को पुकारो, और मेरी आराधना करो ।
18 और मूसा ने फिर कहा: मैं परमेश्वर को पुकारना बंद नहीं करूंगा, मेरे पास उसके विषय में जानने के लिए अन्य बातें हैं: क्योंकि उसकी महिमा मुझ पर रही है, इसलिए मैं उसमें और तुम्हारी बीच में अंतर समझ सकता हूं । शैतान, यहां से चला जा ।
19 और अब, जब मूसा ने इन शब्दों को कहा, शैतान ऊंची आवाज में चिल्लाया, और पृथ्वी पर शोर मचाने लगा, और आज्ञा दी, कहते हुए: मैं एकलौता हूं, मेरी आराधना करो ।
20 और ऐसा हुआ कि मूसा अत्यधिक भयभीत होने लगा; और जब वह भयभीत होने लगा, उसने नरक के कष्ट को देखा । फिर भी, परमेश्वर को पुकारने पर, उसने शक्ति प्राप्त की, और आदेश दिया, कहते हुए: मुझ से दूर चला जा, शैतान, क्योंकि केवल इस एकमात्र परमेश्वर की आराधना मैं करूंगा, जोकि महिमा का परमेश्वर है ।
21 और अब शैतान कांपने लगा, और पृथ्वी कांपी; और मूसा ने शक्ति प्राप्त की, और परमेश्वर को पुकारा, कहते हुए: एकलौते के नाम में, यहां से चला जा, शैतान ।
22 और ऐसा हुआ कि शैतान ऊंची आवाज में चिल्लाया, रोने, और करहाने, दांतों के पीसने के साथ; और वह वहां से चला गया, अर्थात मूसा के सामने से, कि उसने उसे नहीं देखा ।
23 और अब मूसा ने यह गवाही दी थी; लेकिन दुष्टता के कारण यह मानव संतान के बीच नहीं पहुंची ।
24 और ऐसा हुआ कि जब शैतान मूसा की उपस्थिति से चला गया, कि मूसा ने अपनी आंखों को आकाश की ओर उठाया, पवित्र आत्मा से भरे हुए, जिसने पिता और पुत्र की गवाही दी;
25 और परमेश्वर के नाम को पुकारते हुए, उसने उसकी महिमा को फिर से देखा, क्योंकि यह उस पर थी; और उसने एक वाणी सुनी, कहते हुए: तुम आशीषित हो, मूसा, क्योंकि मैं, सर्वशक्तिमान ने, तुम्हें चुना है, और तुम कई सागरों से अधिक शक्तिशाली हो; क्योंकि वे तुम्हारी आज्ञा का पालन करेंगे मानो तुम परमेश्वर हो ।
26 और देखो, मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम्हारे जीवन के अंतिम दिनों तक भी; क्योंकि तुम मेरे लोगों को गुलामी से मुक्त करोगे, अर्थात इस्राएल मेरे चुने हुओं को ।
27 और ऐसा हुआ, जब वाणी अभी बोल ही रही थी, मूसा ने अपनी आंखें उठाई और पृथ्वी को देखा, हां, इसकी संपूर्णता को; और उसका कोई भी अंश ऐसा न था जिसे उसने न देखा हो, परमेश्वर की आत्मा के द्वारा इसे समझते हुए ।
28 और उसने देखा इसके निवासियों को भी, और कोई ऐसा प्राणी न था जिसे उसने न देखा हो; और उसने परमेश्वर की आत्मा के द्वारा उन्हें समझा; और इनकी संख्या विशाल थी, यहां तक की अनगिनत जैसे समुद्र तट पर रेत ।
29 और उसने बहुत से प्रदेशों को देखा; और प्रत्येक प्रदेश भूमि कहलाया, और उन पर निवासी थे ।
30 और ऐसा हुआ कि मूसा ने परमेश्वर को पुकारा, कहते हुए: मुझे बताओ, मैं आप से प्रार्थना करता हूं, ये वस्तुएं ऐसी क्यों हैं, और किस के द्वारा आपने इन्हें बनाया है?
31 और देखो, प्रभु की महिमा मूसा पर थी, जिसके कारण मूसा परमेश्वर की उपस्थिति में खड़ा हो पाया, और उससे आमने-सामने बात की थी । और प्रभु ने मूसा से कहा: अपने स्वयं के उद्देश्य के लिए मैंने इन वस्तुओं को बनाया है । इसमें ज्ञान है और यह मुझ में सीमित है ।
32 और मेरे वचन की शक्ति के द्वारा, मैंने इनकी सृष्टि की थी, जोकि मेरा एकलौता पुत्र है, जो कि अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण है ।
33 और अनगिनत संसारों की सृष्टि मैंने की है; और मैंने उनकी अपने स्वयं के उद्देश्य के लिए सृष्टि की है; और पुत्र के द्वारा मैंने उनकी सृष्टि की है, जोकि मेरा एकलौता है ।
34 और मनुष्यों में सर्वप्रथम मनुष्य को मैंने आदम कहा, जोकि बहुत है ।
35 लेकिन केवल इस पृथ्वी के बारे में, और इसके निवासियों के, मैं तुम्हें बताता हूं । क्योंकि देखो, बहुत से संसार हैं जोकि मेरे वचन की शक्ति के द्वारा गुजर चुके हैं । और बहुत से हैं जो अभी कायम हैं, और मनुष्य के लिए वे अनगिनत हैं; लेकिन सब वस्तुएं मेरे लिए सीमित हैं, क्योंकि वे मेरी हैं और मैं उन्हें जानता हूं ।
36 और ऐसा हुआ कि मूसा ने प्रभु से बोला, कहते हुए: अपने सेवक पर दयापूर्ण रहो, ओ परमेश्वर, और मुझे इस पृथ्वी के विषय में बताओ, और इस पर रहने वाले निवासियों, और आकाशों के विषय में भी, और तब आपका सेवक संतुष्ट होगा ।
37 और प्रभु परमेश्वर ने मूसा से कहा: आकाश, वे बहुत सारे हैं, और वे मनुष्य से गिने नहीं जा सकते; लेकिन मैं उन्हें गिन सकता हूं, क्योंकि वे मेरे हैं ।
38 और जब एक पृथ्वी गुजर जाएगी, और उसके आकाश भी तो उसी प्रकार दूसरी आएगी; और मेरे कार्यों का कोई अंत नहीं है, न ही मेरे वचनों का ।
39 क्योंकि देखो, यह मेरा कार्य और मेरी महिमा है—मनुष्य के अमरत्व और अनंत जीवन को कार्यान्वित करना है ।
40 और अब, मूसा, मेरे बेटे, मैं तुम्हें इस पृथ्वी के विषय में बोलूंगा जिस पर तुम खड़े हो; और तुम उन बातों को लिखोगे जो मैं तुम्हें बोलूंगा ।
41 और उस दिन जब मानव संतान मेरे वचनों को कुछ नहीं समझेंगे और उन में से बहुत सी बातों को उस पुस्तक से निकाल देंगे जो तुम लिखोगे, देखो, मैं एक अन्य को तुम्हारे समान खड़ा करूंगा; और वे बातें फिर से मानव संतान के बीच होंगी—उनके बीच में जितने अधिक विश्वास करेंगे ।
42 (ये वचन मूसा से बोले गए थे पहाड़ पर, जिसका नाम मानव संतान के बीच नहीं जाना जाएगा । और अब इन्हें तुम्हें बोला जाता है । इन्हें किसी अन्य को न दिखाना सिवाय उनके जो विश्वास करते हैं । तो भी । आमीन ।)