पवित्रशास्त्र
मूसा 2


अध्याय 2

(जून–अक्टूबर 1830)

परमेश्वर आकाशों और पृथ्वी की सृष्टि करता है—सब प्रकार के जीवन की सृष्टि की जाती है—परमेश्वर मनुष्य को बनाता है और उसे अन्य सब के ऊपर प्रभुता देता है ।

1 और ऐसा हुआ कि प्रभु ने मूसा से बोला, कहते हुए: देखो, मैं तुम्हें इस आकाश, और इस पृथ्वी के विषय में प्रकट करूंगा; उन शब्दों को लिखो जो मैं बोलता हूं । मैं ही आरंभ और अंत हूं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर; मेरे एकलौते द्वारा मैंने इन वस्तुओं की सृष्टि की है; हां, आरंभ में मैंने आकाश, और पृथ्वी की सृष्टि की जिस पर तुम खड़े हो ।

2 और पृथ्वी बिना किसी स्वरूप के, और खाली थी; और मैंने अंधकार को सागर पर फैला दिया; और मेरी आत्मा पानी की सतह पर मंडराती थी; क्योंकि मैं परमेश्वर हूं ।

3 और मैं, परमेश्वर ने, कहा: उजियाला हो; और उजियाला हो गया ।

4 और मैं, परमेश्वर ने, उजियाला देखा और कि उजियाला अच्छा था । और मैं, परमेश्वर ने, अंधकार से उजियाले को अलग किया ।

5 और मैं, परमेश्वर ने, उजियाले को दिन कहा; और अंधकार को, मैंने रात कहा; और मैंने यह अपने वचन की शक्ति से किया, और यह हो गया जैसा मैंने बोला था; और शाम हुई और फिर सुबह हुई इस प्रकार पहला दिन हो गया ।

6 और फिर, मैं, परमेश्वर ने, कहा: सागर के बीच गगन बन जाए, और वैसा हो गया, जैसा मैंने कहा था; और मैंने कहा: जल से जल अलग हो जाए; और वैसा हो गया;

7 और मैं, परमेश्वर ने, गगन बनाया और जल को अलग किया, हां, गगन के नीचे विशाल जल को उस जल से जो गगन के ऊपर था, और वैसा हो गया जैसा मैंने बोला था ।

8 और मैं, परमेश्वर ने, गगन को आकाश कहा; और शाम हुई और फिर सुबह हुई इस प्रकार दूसरा दिन हो गया ।

9 और मैं, परमेश्वर ने, कहा: आकाश के नीचे का जल मिल कर एक स्थान पर एकत्रित हो जाए, और वैसा हो गया; और मैं, परमेश्वर ने, कहा: सूखी भूमि बन जाए; और वैसा हो गया ।

10 और मैं, परमेश्वर ने, सूखी भूमि को जमीन कहा; और सागरों के मिलकर एकत्रित होने को, मैंने समुद्र कहा; और मैं, परमेश्वर ने, देखा कि सब वस्तुएं जो मैंने बनाई थी अच्छी थी ।

11 और मैं, परमेश्वर ने, कहा: जमीन घास, बीज वाले छोटे पौधे, फल देने वाले फलदार वृक्ष, उनकी जाति के अनुसार, और फल देने वाले वृक्ष, जिनके बीज उनके भीतर हों पृथ्वी पर उत्पन्न हों, और वैसा हो गया जैसा मैंने बोला था ।

12 और जमीन ने घास को उत्पन्न किया, प्रत्येक प्रकार के बीज वाले छोटे पौधे उनकी जाति के अनुसार, और फल देने वाले वृक्ष, जिनके बीज उनके भीतर हों, उनकी जाति के अनुसार; और मैं, परमेश्वर ने, देखा, सब वस्तुएं जो मैंने बनाई थी अच्छी थी;

13 और शाम हुई और फिर सुबह हुई इस प्रकार तीसरा दिन हुआ ।

14 और मैं, परमेश्वर ने, कहा: आकाश के गगन में ज्योतियां हों, दिन को रात से अलग करने के लिए, और वे चिन्हों के लिए, और ऋतुओं के लिए, और दिनों के लिए, और वर्षों के लिए प्रतीक हों;

15 और वे आकाश के गगन में ज्योतियां हों पृथ्वी पर प्रकाश देने के लिए; और वैसा हो गया ।

16 और मैं, परमेश्वर ने, दो विशाल ज्योतियांबनाई; बड़ी ज्योति को दिन पर शासन करने के लिए, और छोटी ज्योति को रात पर शासन करने के लिए, बड़ी ज्योतिसूर्य थी, और छोटी ज्योति चांद थी; और तारे भी मेरे वचन के अनुसार बनाए गए ।

17 और मैं, परमेश्वर ने, उन्हें आकाश के गगन में रखा पृथ्वी पर प्रकाश देने के लिए ।

18 और सूर्य दिन पर नियंत्रण करने के लिए, और चांद रात पर नियंत्रण करने के लिए, और उजियाले को अंधकार से अलग करने के लिए; और मैं, परमेश्वर ने, देखा कि सब वस्तुएं जो मैंने बनाई थी अच्छी थी;

19 और शाम हुई और फिर सुबह हुई इस प्रकार चौथा दिन हो गया ।

20 और मैं, परमेश्वर ने, कहा: जल बहुतायत से चलते-फिरते प्राणियों को पैदा करे जिनमें जीवन हो, और पक्षी जो पृथ्वी के ऊपर आकाश के गगन में उड़ें ।

21 और मैं, परमेश्वर ने, विशाल व्हेलों, और प्रत्येक जीवित प्राणियों की सृष्टि की जो चलते-फिरते हैं, जिन्हें जल ने बहुतायत से पैदा किया था, उनकी जाति के अनुसार, और प्रत्येक उड़ने वाले पक्षी उसकी जाति के अनुसार; और मैं, परमेश्वर ने, देखा कि वे सब वस्तुएं जो मैंने बनाई थी अच्छी थी ।

22 और मैं, परमेश्वर ने, उन्हें आशीषित किया, कहते हुए: फलो-फूलो, और वृद्धि करो, और समुद्र के जल को भर दो; और पक्षी पृथ्वी पर वृद्धि करें;

23 और शाम हुई और फिर सुबह हुई इस प्रकार पांचवां दिन हुआ ।

24 और मैं, परमेश्वर ने, कहा: जमीन जीवित प्राणियों को पैदा करे उसकी जाति के अनुसार, पशु, रेंगने वाले जंतु, और जमीन के जानवर उनकी जाति के अनुसार, और ऐसा हो गया;

25 और मैं, परमेश्वर ने, पृथ्वी के जानवरों को बनाया उनकी जाति के अनुसार, और पशु को उनकी जाति के अनुसार, और प्रत्येक जंतु को जो पृथ्वी पर रेंगता है उसकी जाति के अनुसार; और मैं, परमेश्वर ने, देखा कि सब प्राणी अच्छे थे ।

26 और मैं, परमेश्वर ने, अपने एकलौते से कहा, जोकि आरंभ से मेरे साथ था: आओ हम अपने स्वरूप में मनुष्य बनाए, हमारी समानता में; और वैसा हो गया । और मैं, परमेश्वर ने, कहा: उन्हें समुद्र की मछलियों पर, हवा के पक्षियों पर, और पशुओं पर, और संपूर्ण पृथ्वी पर, और प्रत्येक प्राणी पर जो पृथ्वी पर रेंगती है प्रभुता करने दो ।

27 और मैं, परमेश्वर ने, मनुष्य की अपने स्वयं के स्वरूप में सृष्टि की, अपने एकलौते के स्वरूप में मैंने उसकी सृष्टि की; पुरुष और स्त्री मैंने उनकी सृष्टि की ।

28 और मैं, परमेश्वर ने, उन्हें आशीषित किया, और उनसे कहा: फलो-फूलो, और वृद्धि करो, और पृथ्वी को भर दो, और इसे अपने नियंत्रण में कर लो, और समुद्र की मछलियों, और हवा के पक्षियों, और पृथ्वी के प्रत्येक जीवित प्राणियों पर जो चलते-फिरते हैं प्रभुता करो ।

29 और मैं, परमेश्वर ने, मनुष्य से कहा: देखो, मैने तुम्हें प्रत्येक बीज वाला छोटा पौधा दिया है, जो संपूर्ण पृथ्वी पर है, और प्रत्येक वृक्ष जिसमें फल देने वाला वृक्ष होगा; यह तुम्हारे खाने के लिए होगा ।

30 और पृथ्वी के प्रत्येक जानवर को, और हवा के प्रत्येक पक्षी को, और प्रत्येक प्राणी जो पृथ्वी पर रेंगता है, जिसे मैं जीवन प्रदान करता हूं, खाने के लिए उपयुक्त प्रत्येक छोटा पौधा दिया जाएगा; और ऐसा हो गया, जैसा मैंने कहा था ।

31 और मैं, परमेश्वर ने, देखा प्रत्येक वस्तु जो मैंने बनाई थी, और, देखो, सब वस्तुएं जो मैंने बनाई थी बहुत अच्छी थी; और शाम हुई और फिर सुबह हुई इस प्रकार छठा दिन हो गया ।