“13–19 जून। 1 शमूएल 8–10; 13; 15–18: ‘संग्राम तो यहोवा का है’” आओ, मेरा अनुसरण करो—व्यक्तियों और परिवारों के लिए: पुराना नियम 2022 (2021)
“13–19 जून। 1 शमूएल 8–10; 13; 15–18,” आओ, मेरा अनुसरण करो—व्यक्तियों और परिवारों के लिए: 2022
13-19 जून
1 शमूएल 8–10; 13; 15–18
“संग्राम तो यहोवा का है”
इस रूपरेखा में दिए गए सुझावों से आपको इन अध्यायों में कुछ सबसे महत्वपूर्ण और प्रासंगिक नियमों की पहचान करने में मदद मिल सकती है। जब आप अध्ययन करते हैं, तो उस समय आपको दूसरे नियम भी मिल सकते हैं।
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जब से इस्राएल की जातियां, प्रतिज्ञा के देश में बस गई थीं, पलिश्तीन उनकी सुरक्षा के लिए लगातार खतरा बने हुए थे। पहले के समय में कई बार, प्रभु ने इस्राएलियों को उनके दुश्मनों से बचाया था। लेकिन अब इस्राएल के बुजुर्गों ने मांग की, कि “हमारा एक राजा होगा … [ताकि] वह हमसे आगे चल सके और हमारी लड़ाइयां लड़ सके” (1 शमूएल 8:19–20)। प्रभु ने यह विनती मान ली और शाऊल को राजा नियुक्त किया गया। और फिर भी जब डरावने गोलियत ने इस्राएल की सेनाओं को अपनी चुनौती दी, तो शाऊल, अपनी सेना के बाकी लोगों की तरह “बहुत अधिक डरा हुआ था” (1 शमूएल 17:11)। उस दिन, राजा शाऊल ने इस्राएल को नहीं बचाया बल्कि दाऊद नाम के एक दीन चरवाहे ने बचाया जिसके पास कोई हथियार नहीं था, बल्कि प्रभु के प्रति अटूट विश्वास था। इस लड़ाई में इस्राएल को और हर उस व्यक्ति को सिद्ध कर दिया जो आत्मिक लड़ाइयां लड़ता है, कि “यहोवा तलवार वा भाले के द्वारा जयवन्त नहीं करता” और यह कि “संग्राम तो यहोवा का है” (1 शमूएल 17:47)।
व्यक्तिगत धर्मशास्त्र अध्ययन के लिए विचार
यीशु मसीह मेरा राजा है।
जब आप 1 शमूएल 8 को पढ़ते हैं, तो ध्यान दें कि प्रभु ने स्वयं को छोड़कर किसी अन्य राजा के लिए इस्राएलियों की इच्छा पर क्या महसूस किया। “ [आप] पर शासन करने” के लिए प्रभु को चुनने का क्या मतलब है? 1 शमूएल 8:7)। आप उन तरीकों पर भी विचार कर सकते हैं, जिनसे आप प्रभु की आज्ञा का पालन करने के बजाय दुनिया के अधार्मिक तरीकों का पालन करने की ओर आकर्षित होते हैं। आप यह कैसे दिखा सकते हैं कि आप यीशु मसीह को अपने अनंत राजा के रूप में चाहते हैं?
यह भी देखें न्यायियों 8:22–23; मुसायाह 29:1–36; नील एल. एंडरसन, “Overcoming the World,” Liahona, मई 2017, 58–62।
1 शमूएल 9:15–17; 10:1–12; 16:1–13
परमेश्वर अपने राज्य में सेवा करने के लिए भविष्यवाणी करके लोगों को बुलाता है।
परमेश्वर ने भविष्यवाणी और प्रकटीकरण के माध्यम से शाऊल और दाऊद को राजा बनने के लिए चुना (देखें 1 शमूएल 9:15–17; 10:1–12; 16:1–13)। वह इसी तरीके से इस समय पुरुषों और महिलाओं को अपने गिरजा में सेवा करने के लिए बुलाता है। आप इन वर्णनों से “भविष्यवाणी करके परमेश्वर द्वारा बुलाया जाना” के बारे में क्या सीखते हैं? (विश्वास के अनुच्छेद 1:5)। बुलाए जाने पर प्रभु के अधिकार दिए गए सेवकों द्वारा अलग किए जाने से कौन से आशीष मिलते हैं?
“आज्ञा पालन करना, बलिदान देने से बेहतर है।”
हालांकि शाऊल, शारीरिक रूप से लंबा था, लेकिन जब वह राजा बना, तब उसे “[अपनी] स्वयं की नजरों में छोटा महसूस हुआ” (1 शमूएल 15:17)। हालांकि, जब वह सफलता से धन्य किया गया, तो उसने स्वयं पर ज्यादा विश्वास करना और प्रभु पर कम विश्वास करना शुरू कर दिया। आपको 1 शमूएल 13:5–14; 15 में इसके कौन से प्रमाण दिखाई देते हैं? अगर आप शाऊल के साथ होते, तो आप उससे ऐसा क्या कहते जिससे उसे अपने “विद्रोह” और “हठ” को नियंत्रित करने में मदद मिलती? 1 शमूएल 15:23)।
यह भी देखें 2 नफी 9:28–29; हिलामन 12:4–5; सिद्धांत और अनुबंध 121:39–40; थॉमस एस. मॉनसन, “Ponder the Path of Thy Feet,” Liahona, नवंबर 2014, 86–88।
“प्रभु की दृष्टि मन पर रहती है।”
वे कुछ तरीके कौन से हैं, जिनसे लोग “बाहरी स्वरूप को देख कर” दूसरों के साथ न्याय करते हैं? “मन” पर दृष्टि रखने का क्या अर्थ है, जैसा कि प्रभु करता है? (1 शमूएल 16:7)। विचार करें कि आप इस नियम को उस तरीके पर कैसे लागू कर सकते हैं, जिससे आप दूसरों को—और अपने आप को देखते हैं। ऐसा करने से दूसरों के साथ आपकी बातचीत और संबंध कैसे प्रभावित होते हैं?
प्रभु की मदद से, मैं किसी भी चुनौती को पार कर सकता हूं।
जब आप 1 शमूएल 17 पढ़ते हैं, तो इस अध्याय में दिए गए विभिन्न लोगों के वचनों पर मनन करें (सूची नीचे देखें)। उनके वचन उनके बारे में क्या प्रकट करते हैं? दाऊद के वचन उसके साहस और प्रभु में उसके विश्वास को कैसे दिखाते हैं?
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गोलियत: पद 8–10, 43–44
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एल्लियाह: पद 28
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शाऊल: पद 33
उन व्यक्तिगत संघर्षों के बारे में मनन करें, जिनका आप सामना कर रहे हैं। आपको 1 शमूएल 17 में ऐसा क्या मिलता है, जिससे आपके इस विश्वास को शक्ति मिलती है कि प्रभु आपकी सहायता कर सकता है?
यह भी देखें गॉर्डन बी. हिंकली, “Overpowering the Goliaths in Our Lives,” Ensign, मई 1983, 46, 51–52।
पारिवारिक धर्मशास्त्र अध्ययन और पारिवारिक घरेलू संध्या के लिए विचार
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1 शमूएल 9:15–21; 16:7।इन पदों को एल्डर डाइटर एफ. उक्डोर्फ के नीचे दिए गए शब्दों के साथ पढ़ने से इस बारे म चर्चा की प्रेरणा मिल सकती है कि प्रभु ने शाऊल और दाऊद को ही क्यों चुना: “अगर हम स्वयं को सिर्फ अपनी नाशमान आंखों से देखें, तो हम स्वयं को पर्याप्त रूप से नहीं देख सकते। लेकिन हमारा स्वर्गीय पिता हमें उस तरीके से देखता है, जैसे हम वास्तव में कौन हैं और हम क्या बन सकते हैं” (“It Works Wonderfully!” Liahona, नवंबर 2015, 23)। शायद परिवार के सदस्य बारी-बारी से इस बात की चर्चा कर सकते हैं कि वे एक दूसरे के हृदय में क्या अच्छे गुण देखते हैं (देखें 1 शमूएल 16:7)।
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1 शमूएल 10:6-12।हमने ऐसा कब देखा है जब परमेश्वर ने किसी व्यक्ति को आत्मिक शक्तियों से धन्य किया हो ताकि वह कोई सौंपा गया काम पूरा कर सके या उसे इस तरह कहा जा सके कि उसने शाऊल को धन्य किया? जब “परमेश्वर ने [हमें] दूसरे का हृदय दिया” या “परमेश्वर की आत्मा उसकी सेवा करने के लिए [हममें] आ गई” ऐसे कौन से अनुभव हम साझा कर सकते हैं? (पद 9–10)।
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1 शमूएल 17:20–54।आपका परिवार साथ मिलकर दाऊद और गोलियत (पुराने नियम की कहानियां में “दाऊद और गोलियत” से मदद मिल सकती है) या वीडियो “प्रभु मुझे बचाएगा” (ChurchofJesusChrist.org) देख सकता है। इससे उन चुनौतियों के बारे में चर्चा की जा सकती है जिनका सामना हम करते हैं और जो हमें “गोलियत” के समान लगती हैं। आप इन चुनौतियों में से कुछ को किसी प्रायोजित वस्तु पर या गोलियत के चित्र पर भी लिख सकते हैं और उन पर चीजें (जैसे कागज के गोले) फेंक कर नया तरीका खोज सकते हैं।
उस कवच और हथियारों के बारे में पढ़ना भी दिलचस्प हो सकता है, जो गोलियत के पास थे (देखें पद 4–7)। दाऊद के पास क्या था? (देखें पद 38–40, 45–47)। प्रभु ने गोलियत को हराने के लिए हमारी मदद के लिए हमें क्या दिया?
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1 शमूएल 18:1-4।दाऊद और योनातान एक दूसरे के अच्छे मित्र किस तरह थे? अच्छे मित्रों ने हमें किस तरह धन्य किया है? अच्छे मित्र बनने के लिए हम क्या कर सकते हैं—इसमें अपने परिवार के सदस्यों का मित्र बनना भी शामिल है?
बच्चों को सिखाने हेतु अधिक विचारों के लिये, आओ, मेरा अनुसरण करो—प्राथमिक के लिए में इस सप्ताह की रूपरेखा देखें।
प्रस्तावित गीत: “I Will Be Valiant,” Children’s Songbook, 162।