अध्याय 9
याकूब समझाता है कि यहूदियों को उनके प्रतिज्ञा के प्रदेश में एकत्रित किया जाएगा—प्रायश्चित मनुष्य को पतन से बचाएगा—मृतकों के शरीर कब्र से, और उनकी आत्माएं नरक और आनंदधाम से बाहर आ जाएंगी—उनका न्याय होगा—प्रायश्चित मृत्यु, नरक, शैतान, और अंतहीन यंत्रणा से बचाता है—धार्मियों को परमेश्वर के राज्य में बचाया जाता है—पापों की सजा नियत की जाती है—इस्राएल का एकमेव परमेश्वर द्वार का रक्षक है । लगभग 559–545 ई.पू.
1 और अब, मेरे प्रिय भाइयों, मैंने इन बातों को पढ़ा है ताकि तुम प्रभु के अनुबंधों के संबंध में जान सको कि उसने संपूर्ण इस्राएल के घराने के साथ अनुबंध किया है—
2 कि उसने आरंभ से ही, यहूदियों से अपने पवित्र भविष्यवक्ताओं के मुंह द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी बोला है, और जब तक परमेश्वर का सच्चा गिरजा और लोगों की पुनःस्थापना का समय नहीं आता तब तक बोलता रहेगा; जब वे अपने पैतृक संपत्ति वाले प्रदेश में एकत्रित किये जाएंगे, और सभी अपने प्रतिज्ञा के प्रदेश में स्थापित किये जाएंगे ।
3 देखो, मेरे प्रिय भाइयों, मैं तुम से इन बातों को बोल रहा हूं ताकि तुम आनंदित हो सको, और अपने सिरों को उन आशीषों के कारण हमेशा के लिए उठा सको जिन्हें प्रभु तुम्हारे परमेश्वर तुम्हारे बच्चों को देगा ।
4 क्योंकि मैं जानता हूं कि तुमने आने वाली बातों को जानने के लिए काफी खोज की है; इसलिए मैं जानता हूं कि तुम जानो कि तुम्हारा शरीर मर कर नष्ट हो जाएगा; फिर भी, हम अपने शरीरों में परमेश्वर को देखेंगे ।
5 हां, मैं जानता हूं कि तुम्हें यह मालूम है कि यरूशलेम जहां से हम आए हैं, वहां के लोगों को वह शरीर में अपने आपको दिखाएगा; क्योंकि यह आवश्यक है कि यह उनके बीच हो; क्योंकि उस महान रचयिता का शरीर में मनुष्य के लिए कष्ट झेलना और मनुष्य के लिए मरना आवश्यक होगा जिससे कि सब मनुष्य उसके अधीन हो जाएं ।
6 उस महान रचयिता का दयापूर्ण योजना को पूरा करने के लिए हर एक को मरना पड़ेगा, क्योंकि पुनरुत्थान की शक्ति चाहिए; और पतन के कारण मनुष्य का पुनरुत्थान जरूरी है; और मनुष्य का पतन उसके नियमों के उल्लघंन के कारण हुआ; क्योंकि मनुष्य पतित हो गया, इसलिए उन्हें परमेश्वर की उपस्थिति से अलग कर दिया गया ।
7 इसलिए, असीम प्रायश्चित की आवश्यकता है—बिना असीम प्रायश्चित के इस भ्रष्टाचार को सदाचार में बदला नहीं जा सकता । इसलिए, मनुष्य का जो प्रथम न्याय हुआ, वह उस पर अंतहीन अवधि के लिए बना रहता । और यदि ऐसा होता तो, इस शरीर को धरती माता में सड़ने, घुलने और कभी भी वहां से न उठने के लिए सुला दिया जाता ।
8 ओह प्रभु की बुद्धि, उसकी दया और अनुग्रह ! क्योंकि देखो, यदि हमारा शरीर पुनर्जीवित नहीं होता तब हमारी आत्मा उस स्वर्गदूत के अधीन हो जाती है जो अनंत परमेश्वर की उपस्थिति से नीचे गिर गया था, और जो शैतान बन गया, और जिसका कभी भी उत्थान नहीं होगा ।
9 और हमारी आत्मा उसी की तरह हो जाती और हम शैतान बन कर शैतान के दूत हो जाते और हमें परमेश्वर की उपस्थिति से अलग कर झूठ के जन्मदाता के साथ उसी की तरह कष्ट में रहना पड़ता; हां, वह जिसने हमारे प्रथम माता-पिता को बहकाया था, जो ज्योति के स्वर्गदूत का भेष धारण कर लेता है और मानव संतान को गुप्त षड्यंत्र करके हत्या, और सभी प्रकार के अंधकार में किये जाने वाले कामों के लिए उकसाता है ।
10 ओह हमारे परमेश्वर की कृपा कितनी महान है, जो इस भयंकर राक्षस की पकड़ से हमारे बचने के लिए रास्ता तैयार करता है; हां, वह राक्षस मृत्यु और नरक, जिसे मैं शरीर की मृत्यु और आत्मा की मृत्यु भी कहता हूं ।
11 और हमारे, इस्राएल के एकमेव पवित्र परमेश्वर के द्वारा दिए गए बचने की राह के कारण, वह मृत्यु जिसके विषय में मैंने कहा है, जो कि पार्थिव है, उसके मृतक को मुक्त कर देगी; वह मृत्यु कब्र है ।
12 और यह मृत्यु, जिसके विषय में मैंने कहा है, यह आत्मिक मृत्यु है, उसके मृतक को मुक्त करेगी; यह आत्मिक मृत्यु नरक है; इसलिए मृत्यु और नरक को अपने मृतकों को मुक्त करना पड़ेगा, और नरक बंदी आत्माओं को मुक्त करना पड़ेगा, और कब्र को बंदी शरीरों को मुक्त करना पड़ेगा, और मनुष्यों के शरीर और आत्माओं को एक दूसरे के साथ पुनःस्थापित किया जाएगा; और यह इस्राएल के एकमेव परमेश्वर की पुनरुत्थान की शक्ति के द्वारा है ।
13 ओह हमारे परमेश्वर की योजना कितनी महान है ! क्योंकि दूसरी ओर स्वर्ग धर्मियों की आत्माओं को सौंप देंगे, और कब्र धर्मियों के शरीरों को मुक्त कर देंगी; और आत्मा और शरीर पुनःस्थापित हो जाएंगे और सभी मनुष्य भ्रष्टहीन, और अमर बन जाएंगे, और उनका हमारे समान परिपूर्ण ज्ञान सहित शरीर होगा, सिवाय इसके कि हमारा ज्ञान परिपूर्ण होगा ।
14 इसलिए, हमें अपने सब अपराधों, और अपनी अशुद्धता, और अपनी नग्नता का परिपूर्ण ज्ञान होगा; और धर्मियों को अपने आनंद, और अपनी धार्मिकता, पवित्रता से ढके होने का परिपूर्ण ज्ञान होगा, हां, यहां तक कि धार्मिकता के लबादे का भी ।
15 और ऐसा होगा कि हर एक मनुष्य अपनी इस प्रथम मृत्यु के पश्चात पुनर्जीवन धारण कर लेने पर अमर होकर इस्राएल के एकमेव परमेश्वर के न्यायसिंहासन के सामने उपस्थित होगा; और तब न्याय किया जाएगा और तब उनका न्याय परमेश्वर के पवित्र न्याय के अनुसार होगा ।
16 और निश्चय ही, जब तक प्रभु जीवित है, क्योंकि प्रभु परमेश्वर ने इसे कहा है, और यह उसका अनंत वचन है, जो कि टल नहीं सकता, कि जो धर्मी हैं धर्मी ही रहेंगे, और जो गंदे हैं वे गंदे ही रहेंगे; इसलिए, जो गंदे हैं वे शैतान और उसके दूत हैं; और वे अनंत आग में जाएंगे, जो उनके लिए तैयार की गई है; और उनका कष्ट वैसे ही होगा जैसे उस आग और गंधक की झील में होता है, जिसकी ज्वाला अनंत काल के लिए उठती ही रहती है और अंत नहीं होता ।
17 ओह, हमारे परमेश्वर का न्याय और महानता ! क्योंकि वह अपने वचनों को पूरा करता है, और ये उसके मुख से निकले हैं, और उसकी व्यवस्था अवश्य ही पूरी की जाएगी ।
18 लेकिन, इस्राएल के एकमेव पवित्र परमेश्वर के धर्मी, संतों को देखो, वे जो इस्राएल के एकमेव परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे जो संसार के अत्याचारों को सहते, और इसके तिरस्कार को अनदेखा करते, वे परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे, जो कि संसार की नींव से उनके लिए तैयार किया गया है, और उनका आनंद हमेशा के लिए होगा ।
19 ओह, हमारे इस्राएल के एकमेव पवित्र परमेश्वर की दया की महानता ! क्योंकि वह अपने संतों को उस भयानक राक्षस शैतान से, और मृत्यु से, और नरक से और उस आग और गंधक की झील से मुक्त करता है, जोकि अंतहीन कष्ट है ।
20 ओह, हमारे परमेश्वर की पवित्रता कितनी महान है ! क्योंकि वह सब बातों को जानता है, और कोई ऐसी बात नहीं जो वह न जानता हो ।
21 और वह इस संसार में आता है ताकि वह मनुष्यों को बचा सके यदि वे उसकी बातों पर ध्यान देते हैं; क्योंकि वह सब मनुष्य के लिए कष्ट सहता, हां, हर एक जीवित प्राणी, पुरुष, स्त्री दोनों के लिए, और बच्चों के लिए, जो आदम के परिवार से संबंध रखते हैं ।
22 और वह इसे इसलिए सहता कि पुनरुत्थान सब मनुष्यों को उपलब्ध हो सके, ताकि सब मनुष्य उस महान और न्याय के दिन उसके सामने खड़े हो सकें ।
23 और वह हर एक को पश्चाताप करने, और इस्राएल के एकमेव पवित्र परमेश्वर में परिपूर्ण विश्वास रखते हुए उसके नाम में बपतिस्मा लेने की आज्ञा देता है, अन्यथा उनको परमेश्वर के राज्य में बचाया नहीं जाएगा ।
24 और यदि वे पश्चाताप और उसके नाम में विश्वास नहीं करेंगे, और उसके नाम में बपतिस्मा नहीं लेंगे, और अंत तक धीरज नहीं धरेंगे, तब वे अवश्य ही नरक में जाएंगे, क्योंकि प्रभु परमेश्वर, इस्राएल के एकमेव पवित्र परमेश्वर ने ऐसा कहा है ।
25 इसलिए उसने एक व्यवस्था दी है; और जहां कोई व्यवस्था नहीं दी जाती वहां कोई दंड नहीं होता है; और जहां कोई दंड नहीं होता वहां कोई दंड की आज्ञा भी नहीं होती; और जहां कोई दंड की आज्ञा नहीं होती उनके ऊपर इस्राएल के एकमेव पवित्र परमेश्वर की दया का अधिकार, प्रायश्चित के कारण होता है; क्योंकि वे उसकी शक्ति के द्वारा मुक्त किये जाते हैं ।
26 क्योंकि प्रायश्चित उन लोगों की आवश्यकता की पूर्ति करता है जिन्हें व्यवस्था नहीं दी गई है, ताकि उन लोगों को उस भयंकर राक्षस से मुक्त किया जा सके, जो कि मृत्यु, और नरक, शैतान और आग और गंधक की झील है, जिसका कष्ट अंतहीन है; और वे उस परमेश्वर के साथ पुनःस्थापित होते हैं जो उन्हें सांस देता है, जोकि इस्राएल का एकमेव पवित्र परमेश्वर है ।
27 लेकिन उस पर हाय जिसे व्यवस्था दी गई है, हां, जिसके पास परमेश्वर की सारी आज्ञाएं हैं, जैसी की हमारे पास हैं, और वह उनका उल्लघंन करता है, और अपने परीक्षा के दिनों को नष्ट करता है, क्योंकि उसकी दशा भयंकर है ।
28 ओह, उस शैतान की धूर्त योजना ! ओह, मनुष्यों की व्यर्थता, और दुर्बलता, और अज्ञानता ! जब वे ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तब वे अपने आपको बुद्धिमान समझते हैं, और वे परमेश्वर की सलाह की ओर ध्यान नहीं देते हैं, क्योंकि वे इसे अलग कर देते हैं, वे अपने आपको विद्धान समझते हैं, इसलिए उनका ज्ञान मूर्खतापूर्ण है और इससे उनको कोई लाभ नहीं होता । और वे नष्ट हो जाएंगे ।
29 लेकिन बुद्धिमान होना तब ठीक होता जब वे परमेश्वर की सलाह पर ध्यान देते हैं ।
30 लेकिन धनी पर हाय, जोकि संसार की बातों में धनी हैं । क्योंकि ऐसे लोग धनी होने के कारण गरीबों से घृणा करते और विनम्र को सताते हैं, और उनका मन अपने धन में लगा रहता है; इसलिए, उनका धन ही उनका परमेश्वर है । और देखो, उनका धन उनके साथ ही नष्ट हो जाएगा ।
31 और हाय उन बहरों पर जो नहीं सुनेंगे; क्योंकि वे नष्ट हो जाएंगे ।
32 हाय उन अंधों पर जो नहीं देखेंगे; क्योंकि वे भी नष्ट हो जाएंगे ।
33 हाय बिना संस्कार के हृदय वाले पर, क्योंकि उनके अधर्मों का ज्ञान अंतिम दिन उन्हें दंडित करेंगे ।
34 हाय झूठे पर, क्योंकि वह नरक में ढकेल दिया जाएगा ।
35 हाय हत्यारे पर जो जानबूझकर हत्या करता है, क्योंकि वह मरेगा ।
36 हाय, उन पर जो व्यभिचार करते हैं, क्योंकि उन्हें नरक में ढकेल दिया जाएगा ।
37 हां, हाय उन पर जो मूर्तियों की पूजा करते हैं, क्योंकि शैतानों का शैतान उनसे प्रसन्न होता है ।
38 और अंत में उन सब लोगों पर हाय, जो अपने पापों में मरते हैं; क्योंकि वे परमेश्वर के पास लौटेंगे और उसके चेहरे को देखेंगे और अपने पापों में ही रहेंगे ।
39 हे, मेरे प्रिय भाइयों, उस पवित्र परमेश्वर के विरूद्ध नियमों के उल्लंघन की भयानकता को याद रखो, और उस धूर्त के प्रलोभनों के आगे झुकने की भयानकता को भी याद रखो । याद रखो कि शारीरिक बातों में मन लगाना मृत्यु है, और आत्मिकता में मन लगाना अनंत जीवन है ।
40 हे, मेरे प्रिय भाइयों, मेरी बातों को ध्यान से सुनो । इस्राएल के एकमेव पवित्र परमेश्वर की महानता को याद रखो । यह मत कहो कि मैंने तुम्हारे विरूद्ध कठोर बातें कही हैं; यदि तुम ऐसा करते हो, तब तुम सच्चाई का विद्रोह करते हो; क्योंकि मैंने तुम्हारे रचयिता के वचनों को कहा है । मैं यह जानता हूं कि सच्चाई की बातें हर प्रकार की अशुद्धता के विरूद्ध कठोर होती हैं; लेकिन धर्मी उनसे भयभीत नहीं होते, क्योंकि उनको सत्य प्रिय होती है और वे कांपते नहीं ।
41 तब हे, मेरे प्रिय भाइयों, प्रभु के पास आओ, जो कि पवित्र जन है । याद रखो कि उसके मार्ग धर्मी हैं । देखो, मनुष्य के लिए रास्ता सकंरा है, लेकिन उसके सामने वह सीधा सरल है और द्वार का रक्षक इस्राएल का एकमेव पवित्र परमेश्वर है; और उसने वहां कोई अन्य सेवक नहीं रखा है; और उस द्वार के अलावा, अंदर आने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है; क्योंकि उसको धोखा भी नहीं दिया जा सकता, क्योंकि प्रभु परमेश्वर उसका नाम है ।
42 और जो कोई उसके द्वार को खटखटाएगा उसके लिए द्वार को खोलेगा; और जो अपने को समझदार और बुद्धिमान समझते हैं, जो धनी हैं, जो अपनी विद्या पर, अपनी बुद्धि पर और अपनी संपत्ति पर फूलते हैं—हां, यही हैं वे लोग जिनका वह तिरस्कार करता है; जब तक कि यह लोग इनको त्याग नहीं देते, और अपने आपको परमेश्वर के सामने अज्ञानी और अत्यंत दीन समझते हैं, वह उनके लिए द्वार नहीं खोलेगा ।
43 लेकिन बुद्धिमान और समझदार लोगों की बातें उनसे सदा के लिए छुपा ली जाएंगी—हां, वह आनंद जो संतों के लिए तैयार किया गया है ।
44 हे मेरे भाइयों, मेरी बातों को याद रखो । देखो, मैं अपने लबादे को उतार कर तुम्हारे सामने झाड़ रहा हूं; मैं अपने उद्धार के परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह मुझे अपनी सब कुछ खोजने वाली आंख से देखे; ताकि, अंतिम दिन जब सब मनुष्यों का उनके कर्मों के अनुसार न्याय होगा, तब तुम्हें यह ज्ञान रहेगा कि इस्राएल का परमेश्वर इस बात का साक्षी है कि मैंने अपनी आत्मा से तुम्हारे अधर्मों को झाड़ दिया है और मैं उसके सामने उज्जवल होकर तुम्हारे लहू से मुक्त खड़ा हूं ।
45 हे मेरे प्रिय भाइयों; अपने पापों से मुख मोड़ लो; उसकी जंजीर को उतार फेंको जो तुम्हें दृढ़ता से बांधता है; उस परमेश्वर के पास जाओ, जो तु्म्हारे उद्धार की दृढ़ चट्टान है ।
46 अपनी आत्मा को उस महिमापूर्ण दिन के लिए तैयार करो जब धर्मी लोगों का न्याय होगा, कहीं उस न्याय के दिन तुम्हें भयंकर भय से झिझकना न पड़े; कि तुम्हें अपना अपराध ठीक से याद न रहे और मजबूर होकर तुम्हें कहना पड़े: पवित्र, पवित्र हैं तुम्हारे न्याय, हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर—लेकिन मैं अपने अपराध को जानता हूं; मैंने आपकी व्यवस्था का उल्लंघन किया है, और मेरे उल्लंघन मेरे हैं: और शैतान ने मुझ पर कब्जा कर लिया था, और मैं उसके भयंकर दुख का शिकार हो गया था ।
47 लेकिन देखो मेरे भाइयों, क्या यह जरूरी है कि मैं इन भयानक वास्तविकताओं से तुम्हें जागृत कराऊं ? तुम्हारे मन यदि शुद्ध होते तो क्या मुझे आत्माओं को कष्ट देना पड़ता ? यदि तुम पाप से मुक्त होते तो क्या मुझे सच्चाई की स्पष्टता को तुम्हें इतना स्पष्ट करना पड़ता ?
48 देखो, यदि तुम पवित्र होते तो मैं तुम से पवित्रता के विषय में बोलता; लेकिन तुम पवित्र नहीं हो, और मुझे तुम एक शिक्षक की तरह देखते हो, इसलिए यह जरूरी है कि मैं तुम्हें पाप के परिणाम से अवगत कराऊं ।
49 देखो, पाप से मेरी आत्मा बहुत अधिक घृणा करती है, और धार्मिकता से मेरा हृदय आनंदित होता है; और मैं अपने परमेश्वर के पवित्र नाम की स्तुति करूंगा ।
50 आओ मेरे भाइयों हर एक जो प्यासा है, जल के पास आओ; और जिसके पास पैसे नहीं हैं, आओ खरीदो और खाओ; हां, मदिरा और दूध बिना पैसे और बिना कीमत के खरीद लो ।
51 इसलिए, जिसका कोई मूल्य नहीं उसके पीछे पैसे मत खर्च करो, और न ही जो संतुष्ट कर सकता है उसके लिए परिश्रम करो । ध्यानपूर्वक मुझे सुनो, और जिन बातों को मैंने कहा उनको याद रखो; और इस्राएल के एकमेव पवित्र परमेश्वर के पास आओ, और उसमें आनंदित रहो जो कभी नष्ट नहीं होता, और न ही भ्रष्ट होता है, और अपनी आत्मा को इस उत्कृष्टता में आनंद मनाने दो ।
52 देखो, मेरे प्रिय भाइयों; अपने परमेश्वर के वचनों को याद रखो; दिन में निरंतर उससे प्रार्थना करो, और रात को उसके पवित्र नाम का धन्यवाद दो । अपने हृदयों को आनंद मनाने दो ।
53 और देखो, प्रभु के अनुबंध कितने महान हैं, और मानव संतान पर कितनी महान है उसकी कृपा; और उसकी महानता, अनुग्रह और दया के कारण उसने हम से प्रतिज्ञा की है कि हमारे वंश, शरीर की तरह, संपूर्ण रूप से नष्ट नहीं होंगे, परन्तु वह उन्हें सुरक्षित रखेगा; और भविष्य की पीढ़ियों में वे इस्राएल के घराने की एक धार्मिक शाखा होंगे ।
54 और अब, मेरे भाइयों, मैं तुम से और बातें करता; लेकिन कल मैं तुम्हें अपने शेष वचनों की घोषणा करूंगा, आमीन ।