महा सम्मेलन
उठो! वह आप को पुकारता है
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11:22

उठो! वह आपको पुकारता है

सुसमाचार चुनौतियों और समस्याओं से बचने का उपाय नहीं है बल्कि हमारे विश्वास को बढ़ाने और उनसे उबरने का तरीका सीखने का एक समाधान है।

कुछ समय पहले मैंने अपनी पत्नी से पूछा था, “क्या आप मुझे बता सकती हैं, जहां तक मुझे याद है, हमारे जीवन में कभी कोई बड़ी समस्याएं क्यों नहीं हुई हैं?

उसने मेरी ओर देखा, मुस्कुराई, और कहा, “अवश्य। मैं आपको बताऊंगी कि हमारे बीच कोई बड़ी समस्या इसलिए नहीं हुई है; क्योंकि आपकी याददाश्त बहुत कमजोर है!”

उसके तुरंत और समझदार जवाब ने मुझे एक बार फिर एहसास दिलाया कि यीशु मसीह के सुसमाचार को जीने से दुख और परीक्षाएं दूर नहीं होती, जोकि विकास के लिए आवश्यक हैं।

सुसमाचार चुनौतियों और समस्याओं से बचने का उपाय नहीं है बल्कि हमारे विश्वास को बढ़ाने और उनसे उबरने का तरीका सीखने का एक समाधान है।

कुछ महीने पहले ही मुझे इस सच्चाई का एहसास हुआ था, जब चलते हुए अचानक मेरी दृष्टि धुंधली, अंधकारमय और डगमगाने लगी थी। मैं डर गया था। फिर डॉक्टरों ने मुझसे कहा था: “यदि आप तुरंत इलाज शुरू नहीं करते हैं, तो आप कुछ ही हफ्तों में अपनी दृष्टि खो सकते हैं।” मैं और भी डर गया था।

और फिर उन्होंने कहा: “आपको अपने शेष जीवन के लिए हर चार सप्ताह में आंखों में—सीधा खुली आंखों की नसों में इंजेक्शन लगाना पड़ेगा।”

यह एक पीड़ा-दायक चेतावनी थी।

फिर प्रश्न के रूप में एक विचार मन में आया। मैंने स्वयं से कहा: “ठीक है! बेशक मेरी शारीरिक दृष्टि अच्छी नहीं है, लेकिन मेरी आत्मिक दृष्टि कैसी है? क्या मुझे इसके लिए किसी उपचार की आवश्यकता है? और स्पष्ट आत्मिक दृष्टि होने का क्या अर्थ होता है?”

मैंने उस अंधे व्यक्ति, बरतिमाई, की कहानी पर मनन किया, जिसका वर्णन मरकुस के सुसमाचार में है। पवित्र शास्त्र बताता है, “वह यह सुनकर कि यीशु नासरी है, पुकार पुकार कर कहने लगा; कि हे दाऊद की सन्तान, यीशु मुझ पर दया कर।”

तकनीकी रूप से, कई लोगों की दृष्टि में, यीशु सिर्फ यूसुफ का पुत्र था, तो बरतिमाई ने उसे “दाऊद की सन्तान” क्यों कहा था? क्योंकि उसने पहचान लिया था कि यीशु ही वास्तव में मसीहा था, जिस के बारे में दाऊद के वंशज के रूप में जन्म लेने की भविष्यवाणी की गई थी।

यह दिलचस्प है कि इस अंधे व्यक्ति ने, जिसके पास शारीरिक दृष्टि नहीं थी, यीशु को पहचान लिया था। उसने आत्मिक रूप से उसे देखा जिसे वह शारीरिक रूप से नहीं देख सकता था, जबकि कई लोग यीशु को शारीरिक रूप से देख सकते थे लेकिन आत्मिक रूप से पूरी तरह से अंधे थे।

इस कहानी से हम स्पष्ट आत्मिक दृष्टि के बारे में सीखते हैं।

हम आगे पढ़ते हैं, “बहुतों ने उसे डांटा कि चुप रहे, पर वह और भी पुकारने लगा, कि हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर।”

आस-पास के लोग उसे चुप कर रहे थे, लेकिन वह और भी जोर से पुकारने लगा क्योंकि वह जानता था कि यीशु वास्तव में कौन था। उसने उन आवाजों को नजरअंदाज किया और भी जोर से पुकारने लगा।

उसने स्वयं की अनुभूति पर कार्य किया न कि किसी के कहे अनुसार। अपनी सीमित परिस्थितियों के बावजूद, उसने अपनी सीमाओं को पार कर अपने विश्वास का उपयोग किया था।

इसलिए, पहला सिद्धांत जो हम सीखते हैं कि जब हम यीशु मसीह पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो हमारे पास एक स्पष्ट आत्मिक दृष्टि होती है और जो हम सच जानते हैं उसके प्रति सच्चे रहते हैं।

भाइयों और बहनों, अपनी आत्मिक दृष्टि को कायम रखने के लिए, हमें अपने आसपास के संसार की बातों पर ध्यान न देने का निर्णय लेने की आवश्यकता है। इस भ्रमित संसार में, जो हम जानते हैं उसके प्रति विश्वासी रहना चाहिए, अपने अनुबंधों के प्रति विश्वासी रहना चाहिए, आज्ञाओं का पालन करने में विश्वासी रहना चाहिए, और अपने विश्वास पर अधिक मजबूती से कायम रहना चाहिए, जैसा यह व्यक्ति था। हमें संसार के सामने प्रभु की अपनी गवाही को और भी दृढ़ता से कहना चाहिए। यह व्यक्ति यीशु को जानता था, जो कुछ वह विश्वास करता था उसके प्रति विश्वासी रहा, और अपने आसपास की आवाजों से विचलित नहीं हुआ था।

आज भी कई आवाजें यीशु मसीह के शिष्यों के रूप में हमारी आवाज को कम करने का प्रयास करती हैं। संसार की आवाजें हमें चुप कराने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन फिर भी हमें उद्धारकर्ता की अपनी गवाही अधिक दृढ़ता से देनी चाहिए। संसार की सभी आवाजों के बीच, प्रभु मुझ पर और आप पर भरोसा करता है कि हम अपनी गवाहियां देंगे, अपनी आवाज उठाएंगे, और उसकी आवाज बनेंगे। यदि हम नहीं देंगे, तो यीशु मसीह की गवाही कौन देगा? कौन उसका नाम लेगा और उसके दिव्य मिशन की घोषणा करेगा?

हमारे पास एक आत्मिक जिम्मेदारी है जो यीशु मसीह के बारे में हमारे ज्ञान से आती है।

लेकिन उसके बाद बरतिमाई ने क्या किया था?

प्रभु के उठने के आदेश पर, उसने फिर से विश्वास में कार्य किया था।

पवित्र शास्त्र में लिखा है, “वह अपना वस्त्र फेंककर शीघ्र उठा, और यीशु के पास आया।”

यह विनम्र और विश्वासी व्यक्ति समझ गया था कि वह यीशु के आदेश पर एक बेहतर जीवन जी सकता है। वह जानता था कि वह उसकी परिस्थितियों से बेहतर था, और जब उसने यीशु को उसे पुकारते हुए सुना तो सबसे पहला काम उसने किया कि उसने अपना भिखारी का वस्त्र फेंक दिया।

फिर से उसने स्वयं की अनुभूति पर कार्य किया न कि किसी के कहे अनुसार।

उसने सोचा होगा, “अब जबकि यीशु मेरे जीवन में आ गया है तो मुझे अब इसकी आवश्यकता नहीं है। यह एक नया दिन है। मुझे इस दुखी जीवन से मुक्ति मिल गई है। यीशु के साथ मैं सुख और आनंद का नया जीवन शुरू कर सकता हूं, उसके साथ, और उसके द्वारा। और मुझे परवाह नहीं है कि संसार मेरे बारे में क्या सोचता है। यीशु मुझे पुकार रहा है, और वह मुझे एक नया जीवन जीने में मदद करेगा।

बहुत ही बेहतरीन परिवर्तन है!

जैसे ही उसने अपने भिखारी के वस्त्र फेंके, उसने पुराने जीवन का त्याग कर दिया था।

और यह दूसरा सिद्धांत है—हम एक स्पष्ट आत्मिक दृष्टि रखते हुए हम अपनी स्वाभाविक प्रकृति का त्याग और पश्चाताप करते हैं, और मसीह में एक नया जीवन शुरू करते हैं।

ऐसा करने का तरीका यीशु मसीह के द्वारा बेहतर जीवन जीने के लिए अनुबंध बनाना और उनका पालन करना है।

जब तक हम स्वयं के लिए, हमारी परिस्थितियों और समस्याओं के लिए और हमारे जीवन में होने वाली सभी बुरी बातों के लिए दुखी होने के बहाने बनाते रहते हैं, और यहां तक कि उन सभी बुरे लोगों के लिए भी जिन्हें हम सोचते हैं कि वे हमें दुखी करते हैं, हम तब तक भिखारी के वस्त्र पहने रहते हैं। यह सच है कि कई बार लोग, जानबूझकर या अन्यथा, हमें दुख पहुंचाते हैं। लेकिन हमें उस मानसिक और भावनात्मक वस्त्र को उतारकर मसीह में विश्वास से कार्य करने की आवश्यकता है जिसे शायद हम अभी भी बहाने या पाप को छिपाने के लिए पहने हुए हैं, इसे उतार फेंको, यह जानते हुए कि वह हमें चंगा कर सकता है और करेगा।

यह कहने का इससे अच्छा कोई बहाना नहीं है, “अपनी दुर्भाग्यपूर्ण और अप्रिय परिस्थितियों के कारण मैं जैसा हूं वैसा ही हूं। और मैं बदल नहीं सकता, और मैं ऐसा ही ठीक हूं।”

जब हम ऐसा सोचते हैं, तो हमारी परिस्थितियां हम पर हावी होती हैं।

हम भिखारी के वस्त्र पहने रहते हैं।

विश्वास में कार्य करने का अर्थ है अपने उद्धारकर्ता पर भरोसा करना, यह विश्वास करते हुए कि उसके प्रायश्चित के द्वारा, हम उसके आदेश से हर बात से ऊपर उठ सकते हैं।

तीसरा नियम अंतिम चार शब्दों में है, “[वह] यीशु के पास आया।”

वह यीशु के पास कैसे जा सकता था जबकि वह अंधा था? एकमात्र तरीका यीशु की आवाज सुनकर उसकी ओर जाना था।

और यह तीसरा नियम है—जब हम प्रभु की आवाज सुनते हैं तो हमारे पास स्पष्ट आत्मिक दृष्टि होती है और हम उसे अपना मार्गदर्शन करने देते हैं।

ठीक जैसे इस व्यक्ति ने अपने आस-पास की आवाजों से अधिक ऊंची आवाज में पुकारा था, वह अन्य सभी आवाजों के बीच प्रभु की आवाज सुनने में सक्षम था।

यह वही विश्वास है जिसने पतरस का पानी पर चलना तब तक संभव किया था जब तक उसने अपना आत्मिक ध्यान प्रभु पर रखा और अपने चारों ओर की हवाओं से विचलित नहीं हुआ था।

फिर इस अंधे व्यक्ति की कहानी इन शब्दों के साथ समाप्त होती है “और वह तुरन्त देखने लगा, और मार्ग में उसके पीछे हो लिया।”

इस कहानी में सबसे महत्वपूर्ण पाठों में से एक यह है कि इस व्यक्ति ने यीशु मसीह में सच्चा विश्वास करते हुए चमत्कार प्राप्त किया था क्योंकि उसने वास्तविक उद्देश्य से, उसका अनुसरण करने के वास्तविक उद्देश्य से पूछा था।

और यह हमारे जीवन में प्राप्त होने वाली आशीषों का असली कारण, अर्थात यीशु मसीह का अनुसरण करना है। यह उसे पहचानने, उसके कारण परमेश्वर के साथ अनुबंध बनाने और पालन करने, उसके माध्यम से हमारे स्वभाव को बदलने, और उसका अनुसरण करते हुए अंत तक धीरज धरने के बारे में है।

मेरे लिए, स्पष्ट आत्मिक दृष्टि रखना यीशु मसीह पर ध्यान केंद्रित करना है।

तो क्या आंखों में इंजेक्शन लगाने के बाद मेरी आत्मिक दृष्टि स्पष्ट हो गई है? मैं कहने वाला कौन होता हूं? लेकिन मैं जो देखता हूं उसके लिए मैं आभारी हूं।

मैं इस पवित्र कार्य में और अपने जीवन में प्रभु का हाथ स्पष्ट रूप से देखता हूं।

मैं जहां भी जाता हूं कई लोगों का विश्वास देखता हूं, जो मेरे स्वयं के विश्वास को मजबूत करते हैं।

मैं अपने चारों ओर स्वर्गदूतों को देखता हूं।

मैं कई लोगों के विश्वास को देखता हूं जो प्रभु को शारीरिक रूप से नहीं देखते हैं लेकिन उसे आत्मिक रूप से पहचानते हैं, क्योंकि वह उन्हें घनिष्ठता से जानता है।

मैं गवाही देता हूं कि यह सुसमाचार हर बात का जवाब है, क्योंकि यीशु मसीह सभी के लिए जवाब है। मैं अपने उद्धारकर्ता का अनुसरण करते हुए जो देख सकता हूं उसके लिए मैं आभारी हूं।

मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब हम प्रभु की आवाज सुनते हैं और उद्धारकर्ता के अनुबंध मार्ग पर हमारा मार्गदर्शन करने की उसे अनुमति देते हैं, तो हम जीवन भर स्पष्ट दृष्टि, आत्मिक समझ और हृदय और मन की शांति से आशीषित होंगे।

हम हमारे आस-पास की आवाजों की तुलना में ऊंची आवाज में उसकी गवाही दें, एक ऐसे संसार में जिसे यीशु मसीह के बारे में अधिक सुनने की जरूरत है न कि कम। हम भिखारी के वस्त्र उतार दें जिसे शायद हम अभी भी पहने हुए हैं और मसीह में और उसके द्वारा बेहतर जीवन के लिए संसार के स्तर से ऊपर उठें। हम यीशु मसीह का अनुसरण न करने के सभी बहानों से छुटकारा पाएं और उसका अनुसरण करने के सभी अच्छे कारणों को खोजें जब हम उसकी आवाज सुनते हैं। यह मेरी प्रार्थना है यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।