प्रभु पर भरोसा रखें
हमारा रिश्ता परमेश्वर के साथ उसी हद तक बढ़ सकता है जिस हद तक हम उस पर भरोसा करने की इच्छा करते हैं।
हमारे परिवार में, हम कभी-कभी एक खेल खेलते हैं जिसे हम “The Crazy Trust Exercise” कहते हैं। आपने भी इसे खेला होगा। दो लोग कुछ फीट की दूरी पर खड़े होते हैं, एक की पीठ दूसरे की ओर होती है। पीछे वाले व्यक्ति के संकेत पर, सामने वाला व्यक्ति पीछे पीठ के बल अपने मित्र की बांहों में गिरता है।
भरोसा सभी रिश्तों की नींव है। किसी भी रिश्ते के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि “क्या मैं दूसरे व्यक्ति पर भरोसा कर सकता हूं?” कोई रिश्ता तभी बनता है जब लोग एक-दूसरे पर भरोसा करने को तैयार होते हैं। यह ऐसा रिश्ता नहीं है जिसमें एक व्यक्ति तो पूरी तरह से भरोसा करता है लेकिन दूसरा नहीं करता।
हममें से प्रत्येक प्यारे स्वर्गीय पिता का प्रिय आत्मिक बेटा या बेटी है। जबकि यह आत्मिक वंशावली नींव तो उपलब्ध कराती है, परंतु यह परमेश्वर के साथ स्वयं कोई अर्थपूर्ण रिश्ता नहीं बनाती है। कोई रिश्ता तभी बनता है जब लोग एक-दूसरे पर भरोसा करने का चुनाव करते हैं।
स्वर्गीय पिता अपने प्रत्येक आत्मिक बच्चे के साथ घनिष्ठ, व्यक्तिगत रिश्ता बनाना चाहता है। यीशु ने इस इच्छा को व्यक्त किया था जब उसने प्रार्थना की, “जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों।” प्रत्येक आत्मिक बच्चे के साथ परमेश्वर इतना घनिष्ठ और व्यक्तिगत रिश्ता बनाना चाहता है कि वह प्रत्येक के साथ अपना सब कुछ साझा कर सकता है। उस तरह का गहन, अनंतकाल रिश्ता तभी विकसित हो सकता है जब यह परिपूर्ण भरोसे पर आधारित हो।
अपनी ओर से, स्वर्गीय पिता ने आरंभ से ही अपने प्रत्येक बच्चे की दिव्य क्षमता में अपने पूर्ण भरोसे को व्यक्त करने के लिए काम किया है। भरोसा उस योजना का आधार है जो उसने हमारे पृथ्वी पर आने से पहले हमारे विकास और प्रगति के लिए प्रस्तुत की थी। वह हमें अनंत व्यवस्था सिखाएगा, पृथ्वी की रचना करेगा, हमें नश्वर शरीर प्रदान करेगा, हमें स्वयं चुनने का उपहार देगा, और हमें उसकी उपस्थिति से दूर अपने स्वयं के चुनाव करके सीखने और बढ़ने अनुमति देगा। वह चाहता है कि हम उसकी व्यवस्था का पालन करें और उसके और उसके पुत्र के साथ अनन्त जीवन का आनंद लेने के लिए लौटें।
यह जानते हुए कि हम हमेशा अच्छे चुनाव नहीं करेंगे, उसने हमारे लिए हमारे बुरे चुनावों के परिणामों से बचने का एक मार्ग भी तैयार किया था। उसने हमें हमारे पापों का प्रायश्चित करने और पश्चाताप की शर्त पर हमें फिर से शुद्ध करने के लिए एक उद्धारकर्ता—उसका पुत्र, यीशु मसीह—प्रदान किया। वह हमें नियमित रूप से पश्चाताप के अनमोल उपहार का उपयोग करने के लिए आमंत्रित करता है।
हर माता-पिता को पता है कि निर्णय लेने के लिए बच्चे पर भरोसा करना कितना मुश्किल है, खासकर जब माता-पिता को पता हो कि बच्चा गलतियां करेगा और जिसके परिणामस्वरूप उसे कष्ट उठाना पड़ेगा। फिर भी स्वर्गीय पिता हमें चुनाव करने की अनुमति देता है जो हमें हमारी दिव्य क्षमता तक पहुंचने में मदद करेगा! जैसा कि एल्डर डेल जी. रेनलैंड ने सिखाया, “पालन-पोषण करने का [उसका] लक्ष्य यह नहीं है कि उसके बच्चे सही काम करें बल्कि यह है कि उसके बच्चे सही काम करने का चुनाव करें और अंततः उसके समान बनें।”
हम पर परमेश्वर के भरोसे के बावजूद, उसके साथ हमारा रिश्ता केवल उसी हद तक बढ़ सकता है जिस हद तक हम उस पर भरोसा करने को तैयार हैं। चुनौती यह है कि हम एक पतित संसार में रहते हैं और हम सभी ने बेईमानी, चालाकी, जबरदस्ती से या अन्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप अपने भरोसे में विश्वासघात का अनुभव किया है। एकबार धोखा खाने के बाद, फिर से भरोसा करना कठिन हो सकता है। अपूर्ण नश्वर लोगों के साथ हुए ये नकारात्मक भरोसे के अनुभव परिपूर्ण स्वर्गीय पिता में भरोसा करने की हमारी इच्छा को भी प्रभावित कर सकते हैं।
कई साल पहले, मेरे दो सहयोगियों, लियोनिद और वेलेंटीना, ने गिरजे के सदस्य बनने की इच्छा व्यक्त की थी। जब लियोनिद ने सुसमाचार सीखना आरंभ किया, तो वह प्रार्थना नहीं कर पाता था। इससे पहले अपने जीवन में, लियोनिद ने वरिष्ठों द्वारा हेरफेरी और गलत नियंत्रण को अनुभव किया और अधिकार के प्रति अविश्वास पैदा हो गया था। इन अनुभवों ने उसके दिल की बात कहना और स्वर्गीय पिता के सामने अपनी भावनाओं को व्यक्त करना कठिन बना दिया था। समय और अध्ययन के साथ, उसे परमेश्वर के चरित्र की बेहतर समझ प्राप्त हुई और उसे परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम को महसूस करने का अनुभव होने लगा। अंतत:, प्रार्थना उसके लिए धन्यवाद और परमेश्वर के प्रति प्रेम व्यक्त करने का एक स्वाभाविक तरीका बन गई। परमेश्वर पर उसके भरोसे और रिश्ते में वृद्धि हुई, जिससे उसे और वेलेंटीना को परमेश्वर के साथ अनुबंध में प्रवेश करके उनके साथ अपने रिश्ते को मजबूत करने में मदद मिली।
यदि भरोसे की पूर्व हानि आपको परमेश्वर पर भरोसा करने से रोक रही है, तो कृपया लियोनिद के उदाहरण का अनुसरण करें। धैर्य से परमेश्वर, उसके चरित्र, उसके गुणों और उसके उद्देश्यों के बारे में और अधिक अध्ययन करना जारी रखें। अपने जीवन में उसके प्रेम और शक्ति को महसूस करने के अनुभवों को देखें और लिखें। हमारे जीवित भविष्यवक्ता, अध्यक्ष रसल एम. नेल्सन ने सिखाया है कि जितना अधिक हम परमेश्वर के बारे में जानेंगे, हमारे लिए उस पर भरोसा करना उतना ही आसान होगा।
कभी-कभी परमेश्वर पर भरोसा करना सीखने का सर्वोत्तम तरीका बस उस पर भरोसा करना है। “द क्रेजी ट्रस्ट एक्सरसाइज” खेल की तरह, कभी-कभी हमें भी पीछे की ओर गिरने के लिए तैयार रहना चाहिए ताकि पीछे खड़ा व्यक्ति हमें थाम ले। नश्वर जीवन एक परिक्षा है। चुनौतियां जो हमारी क्षमता से अधिक कठिन होती हैं, अक्सर आती रहती हैं। जब हमारा अपना ज्ञान और समझ अपर्याप्त होती है, तो हम स्वाभाविक रूप से अपनी मदद करने के लिए अन्य साधनों की खोज करते हैं। सूचना से भरपूर दुनिया में, ऐसे स्रोतों की कोई कमी नहीं है जो हमें उनके समाधान का उपयोग करने के लिए प्रेरित करेंगे। हालांकि, नीतिवचन में सरल, सामयिक सलाह हमें सबसे अच्छा स्रोत प्रदान करती है: “अपने संपूर्ण ह्रदय से प्रभु पर भरोसा रखें।” जीवन की चुनौतियों का सामना करने पर हम सबसे पहले परमेश्वर की ओर मुड़कर उस पर अपना भरोसा दिखाते हैं।
यूटाह में, कानून स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, हमारे परिवार को महत्वपूर्ण निर्णय लेना था कि हम कहां काम करेंगे और अपना घर बनाएंगे। एक-दूसरे और प्रभु के साथ सलाह करने के बाद, हमने निर्देश महसूस किया कि हमारे परिवार को माता-पिता और भाई-बहनों से दूर, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में जाना है। प्रारंभ में, सबकुछ ठीक रहा, और हमें लगा कि निर्देश परमेश्वर ने दिया था। लेकिन परिस्थितियां बदल गई। कानून फर्म की आर्थिक स्थिति खराब हो गई, और मुझे आय और बीमा दोनों का नुकसान उठाना पड़ा, हमारी बेटी डोरा के जन्म के समय गंभीर चिकित्सा चुनौतियों और दीर्घकालिक विशेष जरूरतों का सामना करना पड़ा था। इन चुनौतियों के दौरान, मुझे गिरजे की नियुक्ति दी गई जिसके लिए महत्वपूर्ण समय और प्रतिबद्धता की आवश्यकता थी।
मैंने कभी ऐसी चुनौती का सामना नहीं किया था और घबरा गया था। मैंने हमारे द्वारा लिए गए निर्णय और इसकी पुष्टि पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। हमने प्रभु पर भरोसा किया था, और सबकुछ ठीक होने वाला था। पीछे खड़े व्यक्ति पर भरोसा करके पीछे मैं गिरा था, पर लगता था कि थामने के लिए पीछे कोई नहीं था।
एक दिन ये शब्द “मत पूछो क्यों; पूछो मैं तुम्हें क्या सिखाना चाहता हूं” यह बात मेरे हृदय और मन में दृढ़ता से बस गए थ। अब मैं और भी उलझन में था। अपने पहले के भरोसे के बारे में मेरे भ्रम के दौरान, परमेश्वर मुझे उस पर और भी अधिक भरोसा करने के लिए कह रहा था। पीछे मुड़कर देखें, तो यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण बिंदु था —यही वह क्षण था जब मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर पर भरोसा करना सीखने का सबसे अच्छा तरीका केवल उस पर भरोसा करना है। बाद के हफ्तों में, मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि प्रभु ने चमत्कारिक तरीके से हमारे परिवार को आशीष देने की अपनी योजना प्रकट की थी।
अच्छे शिक्षक और प्रशिक्षक जानते हैं कि बौद्धिक और शारीरिक शक्ति का विकास केवल दिमाग और मांसपेशियों पर दबाव डालने से ही हो सकता है। इसी तरह, परमेश्वर हमें आत्मिक दबाव के अनुभवों के द्वारा उसकी आत्मिक शिक्षा पर भरोसा करके विकास के लिए आमंत्रित करता है। इसलिए, हम निश्चित हो सकते हैं कि अतीत में हमने चाहे जो भी भरोसा परमेश्वर में दिखाया हो, भरोसा बढ़ाने वाला एक और अनुभव अभी आने वाला है। परमेश्वर का ध्यान हमारे विकास और प्रगति पर होता है। वह महान शिक्षक, परिपूर्ण प्रशिक्षक है जो हमें हमारी दिव्य क्षमता का थोड़ा सा और अधिक एहसास कराने में मदद करने के लिए हमेशा काम करता रहता है। इसमें भविष्य में उस पर थोड़ा और अधिक भरोसा करने का आमंत्रण हमेशा शामिल होगा।
मॉरमन की पुस्तक उस उदाहरण की शिक्षा देती है जिसका उपयोग परमेश्वर हमारे साथ मजबूत रिश्ता बनाकर हमें आगे बढ़ाने के लिए करता है। आओ, मेरा अनुसरण करों, हमने हाल ही में अध्ययन किया कि कैसे नफी के परमेश्वर में भरोसे की परीक्षा हुई जब उसे और उसके भाइयों को पीतल की पट्टियां प्राप्त करने के लिए यरूशलेम लौटने का आदेश दिया गया। उनके शुरुआती प्रयास विफल होने के बाद, उसके भाइयों ने हार मान ली और पट्टियों के बिना लौटने के लिए तैयार हो गए। लेकिन नफी ने प्रभु पर पूरा भरोसा रखने का फैसला किया और पट्टियां प्राप्त करने में सफल रहा। उस अनुभव ने संभवतः नफी के परमेश्वर में भरोसे को मजबूत किया होगा जब उसका धनुष टूट गया और परिवार जंगल में भूख का सामना कर रहा था। फिर से, नफी ने परमेश्वर पर भरोसा करना चुना और परिवार बच गया। इन लगातार मिले अनुभवों ने नफी को जहाज बनाने के विशाल, विश्वास बढ़ाने वाले कार्य के लिए परमेश्वर पर और भी अधिक भरोसा दिलाया, जिसका सामना उसे जल्द ही करना था।
इन अनुभवों के माध्यम से, नफी ने लगातार और निरंतर उस पर भरोसा करके परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को मजबूत किया था। परमेश्वर हमारे साथ भी इसी स्वरूप का उपयोग करता हैं। वह अपने प्रति हमारे भरोसे को मजबूत और गहरा करने के लिए हमें व्यक्तिगत आमंत्रण देता है। हर बार जब हम आमंत्रण स्वीकार करते हैं और उस पर कार्य करते हैं, तो परमेश्वर पर हमारा भरोसा बढ़ता है। यदि हम आमंत्रण को अनदेखा या अस्वीकार करते हैं, तो हमारी प्रगति रूक जाती है जब तक हम नए आमंत्रण पर कार्य करने के लिए तैयार नहीं हो जाते।
अच्छी खबर यह है कि चाहे हमने अतीत में परमेश्वर पर भरोसा करना चुना हो या नहीं, हम आज और भविष्य में हर दिन परमेश्वर पर भरोसा करना चुन सकते हैं। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि हर बार जब हम ऐसा करते हैं, तो परमेश्वर हमें थामने के लिए पीछे खड़ा होगा, और भरोसे का हमारा रिश्ता उस दिन तक अधिक मजबूत होता जाएगा जब तक कि हम उसके और उसके पुत्र के साथ एक नहीं हो जाते। तब हम नफी की तरह कह सकते हैं, “ओह प्रभु, मैंने आप पर भरोसा किया और सदैव आप पर ही भरोसा करता रहूंगा।” यीशु मसीह के नाम में, आमीन।