खंड 88
भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ द्वारा, कर्टलैंड, ओहायो में, 27 और 28 दिसंबर 1832, और 3 जनवरी 1833 में, दिया गया प्रकटीकरण । इसे भविष्यवक्ता द्वारा “‘जलपाई पत्ते’ के रूप में नामजद किया गया था … स्वर्गलोक के वृक्ष से तोड़ा गया, और हमारे लिए प्रभु का शांति का संदेश ।” यह प्रकटीकरण उच्च याजकों द्वारा सम्मेलन में “अलग-अलग और ऊंचे स्वर में प्रभु से सिय्योन का निर्माण के संबंध में उसकी इच्छा हम पर प्रकट करने के लिए प्रार्थना की थी ।”
1–5, विश्वासी संत उस सहायक को प्राप्त करते हैं, जो अनंत जीवन की प्रतिज्ञा है; 6–13, सब बातें मसीह की शक्ति द्वारा नियंत्रित और शासित की जाती हैं; 14–16, पुनरूत्थान मुक्ति के द्वारा आता है; 17–31, सिलेस्टियल, टैरेस्ट्रियल, या टेलिस्टियल व्यवस्था के प्रति आज्ञाकारिता लोगों को विभिन्न राज्यों और महिमाओं के लिए तैयार करती है; 32–35, वे जो पाप में कायम रहेंगे अपवित्र बने रहते हैं; 36–41, सभी राज्य व्यवस्था द्वारा शासित होते हैं; 42–45, परमेश्वर ने सब बातों के लिए व्यवस्था दी है; 46–50, व्यक्ति परमेश्वर को भी समझेगा; 51–61, उस व्यक्ति का दृष्टांत जो अपने सेवकों को खेत में भेजता है और एक-एक कर उनसे मिलता है; 62–73, प्रभु के निकट आओ, और तुम उसका चेहरा देखोगे; 74–80, अपने आपको पवित्र करो और एक दूसरे को राज्य के सिद्धांतों को सीखाओ; 81–85, प्रत्येक व्यक्ति जिसे सावधान किया गया है उसे अपने पड़ोसी को सावधान करना चाहिए; 86–94, चिन्ह, विनाश के तत्व, और स्वर्गदूत प्रभु के आगमन का मार्ग तैयार करते हैं; 95–102, स्वर्गदूतों की तुरहियां मृतक को उनके क्रमानुसार जी उठने के लिए पुकारती हैं; 103–116, स्वर्गदूतों की तुरहियां सुसमाचार की पुनःस्थापना, बाबुल का पतन, और महान परमेश्वर के युद्ध की घोषणा करती हैं; 117–126, ज्ञान पाने का प्रयास करो, परमेश्वर का घर (मंदिर) स्थापित करो, और स्वयं को उदारता के बंधन से ढक लो; 127–141, भविष्यवक्ताओं का विद्यालय की व्यवस्था प्रस्तुत की जाती है, पैरों को धोने की विधि सहित ।
1 सच में, प्रभु तुम से इस प्रकार कहता है जिन्होंने अपने संबंध में उसकी इच्छा प्राप्त करने के लिए स्वयं को एकत्रित किया है:
2 देखो, यह तुम्हारे प्रभु को प्रसन्न करता है, और स्वर्गदूत तुम पर आनंदित होते हैं; तुम्हारी प्रार्थनाओं की याचनाएं सेनाओं के प्रभु के कानों तक पहूंची हैं, और पवित्र किए नामों की पुस्तक में लिखी गई हैं, अर्थात वे सिलेस्टियल संसार के ।
3 इसलिए, मैं अब तुम पर अन्य सहायक भेजता हूं, असल में मेरे मित्रों तुम पर, ताकि यह तुम्हारे हृदयों में बनी रहे, अर्थात प्रतिज्ञा की पवित्र आत्मा; यह अन्य पवित्र आत्मा वही है जिसकी मैंने अपने शिष्यों से प्रतिज्ञा की थी, जैसे यूहन्ना की गवाही में लिखी हुई है ।
4 यह सहायक वह प्रतिज्ञा है जो मैं तुम्हें अनंत जीवन के रूप में देता हूं, अर्थात सिलेस्टियल राज्य की महिमा;
5 यह महिमा पहलौठे के गिरजे की है, अर्थात परमेश्वर के, सब में से पवित्र, उसके पुत्र यीशु मसीह के द्वारा—
6 वह जो ऊपर स्वर्ग में उठाया गया था, जैसे वह सब बातों में नीचे भी उतरा था, इतना कि उसने सब बातों को समझा, ताकि वह सब में और सब बातों से हो, सच्चाई का ज्ञान;
7 सच्चाई जो चमकती है । यह मसीह की शक्ति है । जैसे वह सूर्य भी है, और सूर्य की रोशनी भी, और उसकी उर्जा भी जिसके द्वारा इसे बनाया गया था ।
8 जैसे वह चांद भी है, और चांद की रोशनी भी, और उसकी उर्जा भी जिसके द्वारा इसे बनाया गया था;
9 जैसे तारों की रोशनी भी, और इनकी उर्जा भी जिसके द्वारा इन्हें बनाया गया था;
10 और पृथ्वी भीऔर इसकी शक्ति भीवास्तव में वह पृथ्वी जिस पर तुम खड़े होते हो ।
11 और वह रोशनी जो चमकती है, जो तुम्हें प्रकाश देती है, उसके द्वारा है जिसने तुम्हारी आंखों को ज्ञान दिया है, यह वही रोशनी है जो तुम्हारी समझ को सजीव करती है;
12 यह शक्ति परमेश्वर की उपस्थिति से आती है विशाल रिक्त स्थान को भरने को—
13 यह शक्ति सब प्राणियों में है, जो सब प्राणियों को जीवन देती है, जोकि व्यवस्था जिसके द्वारा सब बातें शासित होती हैं, अर्थात परमेश्वर की शक्ति जो अपने सिंहासन पर बैठा है, जो अनंतता की छाती में है, जो सब बातों के मध्य में है ।
14 अब, मैं तुम से सच कहता हूं, कि मुक्ति के द्वारा जोकि तुम्हारे लिए बनाई गई है मरे हुओं में से जी उठना संभव हुआ है ।
15 और आत्मा और शरीर मनुष्य के प्राण हैं ।
16 और मरे हुओं से जी उठना प्राण की मुक्ति है ।
17 और प्राण की मुक्ति उसके द्वारा है जो सब बातों को सजीव करती है, जिसकी छाती में यह अधिकार है कि पृथ्वी के गरीब और विनम्र इसके अधिकारी होंगे ।
18 इसलिए, इसे अवश्य ही सब अधर्म से शुद्ध किया जाए ताकि इसे सिलेस्टियल महिमा के लिए तैयार किया जा सके;
19 क्योंकि इस की सृष्टि के उद्देश्य के पूरा होने के पश्चात, इसे महिमा का मुकुट पहनाया जाएगा, वास्तव में परमेश्वर पिता की उपस्थिति से;
20 ताकि वे शरीर जो सिलेस्टियल राज्य के हैं इसे हमेशा और सदैव के लिए प्राप्त करें; क्योंकि, इसी उद्देश्य के लिए इसे बनाया और रचा गया था, और इसी उद्देश्य के लिए वे शुद्ध किए गए थे ।
21 और वे जो शुद्ध नहीं किए गए हैं उस व्यवस्था के द्वारा जो मैंने तुम्हें दी है, अर्थात मसीह की व्यवस्था, अन्य राज्य के अधिकारी होने चाहिए, अर्थात टैरेस्टियल राज्य के, या टेलेस्टियल राज्य के ।
22 क्योंकि वह जो सिलेस्टियल राज्य की व्यवस्था का पालन करने योग्य नहीं है सिलेस्टियल महिमा में बना नहीं रहा सकता ।
23 और वह जो टैरेस्टियल राज्य की व्यवस्था का पालन नहीं कर सकता टैरेस्टियल महिमा में बना नहीं रह सकता ।
24 और वह जो टेलेस्टियल राज्य की व्यवस्था का पालन नहीं कर सकता टेलेस्टियल महिमा में बना नहीं रह सकता; इसलिए वह महिमा के राज्य के योग्य नहीं है । इसलिए उसे उस राज्य का पालन करना चाहिए जो महिमा का राज्य नहीं है ।
25 और फिर, मैं तुम से सच कहता हूं, पृथ्वी सिलेस्टियल राज्य की व्यवस्था का पालन करती है, क्योंकि यह इसकी सृष्टि के उद्देश्य को पूरा करती है, और व्यवस्था का उल्लंघन नहीं करती—
26 इसलिए, यह शुद्ध की जाएगी; हां, यद्यपि यह मरेगी, यह फिर से सजीव होगी, और उस शक्ति में बने रहेगी जिसके द्वारा यह जीवित होगी, और धर्मी इसके अधिकारी होंगे ।
27 क्योंकि यद्यपि वे मरते हैं, वे फिर से जी उठेंगे, आत्मिक शरीर के रूप में ।
28 वे जो सिलेस्टियल आत्मा के हैं उसी शरीर को प्राप्त करेंगे जोकि प्राकृतिक शरीर था; वास्तव में तुम अपने शरीर प्राप्त करोगे, और तुम्हारी महिमा वही महिमा होगी जिसे द्वारा तुम्हारे शरीर सजीव होते हैं ।
29 तुम जो सिलेस्टियल महिमा के एक भाग द्वारा सजीव होते हो तब उसी को प्राप्त करोगे, असल में उसकी परिपूर्णता ।
30 और वे जो टैरेस्टियल महिमा के एक भाग द्वारा सजीव होते हैं तब उसी को प्राप्त करोगे, असल में उसकी परिपूर्णता ।
31 और वे भी जो टेलिस्टियल महिमा के एक भाग द्वारा सजीव होते हैं तब उसी को प्राप्त करेंगे, असल में उसकी परिपूर्णता ।
32 और जो शेष रह जाते हैं वे भी सजीव होंगे; फिर भी, वे अपने स्वयं के स्थान को दुबारा लौटेंगे, उनका आनंद लेने के लिए जिसे वे प्राप्त करना चाहते हैं, क्योंकि वे उसका आनंद नहीं लेना चाहते जो वे शायद प्राप्त कर सकते हैं ।
33 क्योंकि मनुष्य को उस उपहार से क्या लाभ है जो उसे दिया जाता है, और वह उस उपहार को स्वीकार नहीं करता? देखो, वह उसका आनंद नहीं लेता जो उसे दिया जाता है, और न ही उसमें आनंदित होता है जो उस उपहार का देनेवाला है ।
34 और फिर, मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो व्यवस्था द्वारा शासित होता है व्यवस्था द्वारा बचाया भी जाता है और उसी के द्वारा परिपूर्ण और पवित्र किया जाता है ।
35 वह जो व्यवस्था तोड़ता है, और व्यवस्था का पालन नहीं करता, लेकिन स्वयं व्यवस्था बनने का प्रयास करता है, और पाप में बने रहने की इच्छा करता है, और पूर्णरूप से पाप में बना रहता है, व्यवस्था के द्वारा पवित्र नहीं किया जा सकता है, और न ही दया, न्याय, द्वारा, न ही दंड द्वारा । इसलिए, वे फिर भी भ्रष्ट बने रहते हैं ।
36 सब राज्यों को व्यवस्था दी गई है;
37 और बहुत से राज्य हैं; क्योंकि ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां कोई राज्य नहीं है; और कोई राज्य नहीं है जहां कोई स्थान नहीं है, चाहे अधिक महत्वपूर्ण या कम महत्वपूर्ण राज्य ।
38 और प्रत्येक राज्य को व्यवस्था दी गई है; और प्रत्येक व्यवस्था के साथ निश्चित बंधन और परिस्थितियां भी हैं ।
39 सभी प्राणी जो उन परिस्थितयों में बने नहीं रहते हैं निर्दोष नहीं ठहराए जाते ।
40 क्योंकि समझ से समझ जुड़ी रहती है; ज्ञान को ज्ञान स्वीकार करता है; सच्चाई को सच्चाई गले लगती है; गुण से गुण प्रेम करता है; ज्योति से ज्योति जुड़ती है; दया को दया से करूणा होती है और अपनों को ग्रहण करती है; न्याय अपने मार्ग में जारी रहता है और अपनों को ग्रहण करता है; दंड उसके उसके आगे चलता है जो सिंहासन पर बैठता और सब बातों को शासित और पूरा करता है ।
41 वह सब बातों को जानता है, और सब बातें उसके सम्मुख हैं, और सब बातें उसके आस-पास हैं; और वह सब बातों से बढ़कर है, और सब बातों में है, और सब बातों के द्वारा है, और सब बातों के आस-पास है; और सब बातें उसके द्वारा हैं, और उसके विषय में हैं, अर्थात परमेश्वर, हमेशा और सदैव ।
42 और फिर, मैं तुम से सच कहता हूं, उसने सब बातों को व्यवस्था दी है, जिसके द्वारा वे अपने समयों में और अपनी ऋतुओं में चलते हैं;
43 और उनके मार्ग स्थिर हैं, अर्थात आकाश और पृथ्वी के मार्ग, जो पृथ्वी और सब गृहों को सम्मिलित करता है ।
44 और वे अपने समयों में और अपनी ऋतुओं में एक दूसरे को प्रकाश देते हैं, अपने मिनटों में, अपने घंटों में, अपने दिनों में, अपने सप्ताहों में, अपने महिनों में, अपने वर्षों में—ये सब परमेश्वर के लिए एक वर्ष है, लेकिन मनुष्य के लिए नहीं ।
45 पृथ्वी अपने पंखों पर घूमती है, और सूर्य दिन में अपना प्रकाश देता है, और चांद रात में अपना प्रकाश देता है, और तारे भी अपना प्रकाश देते हैं, जब वे अपने पंखों पर अपनी महिमा में घूमते हैं, परमेश्वर की शक्ति के मध्य ।
46 इन राज्यों को तुलना में किसके साथ करूं, ताकि तुम समझ सको?
47 देखो, ये सब राज्य हैं, और कोई भी मनुष्य जिसने इन्हें या इन में से किसी छोटे से छोटे को देखा है उसने परमेश्वर को उसके प्रताप और शक्ति में कार्य करते देखा है ।
48 मैं तुम से कहता हूं, उसने उसे देखा है; फिर भी, वह अपनों के बीच आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया ।
49 प्रकाश अंधकार में चमकता है, और अंधकार इसे ग्रहण नहीं करता; फिर भी, दिन आएगा जब तुम परमेश्वर को भी ग्रहण करोगे, उसमें और उसके द्वारा सजीव होकर ।
50 तब तुम जानोगे कि तुमने मुझे देखा है, कि मैं हूं, और कि मैं सच्ची ज्योति हूं जो तुम में है, और कि तुम मुझ में हो; वरना तुम प्रगति नहीं कर सकते हो ।
51 देखो, मैं इन राज्यों की तुलना उस व्यक्ति से करता हूं जिसके पास खेत है, और वह अपने नौकरों को खेत में खुदाई करने भेजता है ।
52 और वह पहले से कहता है: तुम खेत में जाओ और परिश्रम करो, और पहले घंटे में मैं तुम्हारे पास आऊंगा, और तुम मेरे चेहरे का आनंद देखोगे ।
53 और वह दूसरे से कहता है: तुम भी खेत में जाओ, और दूसरे घंटे मैं तुम से अपने चेहरे के आनंद के साथ मिलूगा ।
54 और तीसरे से भी, कहा: मैं तुम से मिलूंगा;
55 और चौथे से, और इस प्रकार बारहवें से ।
56 और खेत का स्वामी पहले के पास पहले घंटे में गया, और उस घंटे उसके साथ रहा, और वह अपने स्वामी के चेहरे की ज्योति से खुश हुआ ।
57 और फिर वह पहले के पास चला गया ताकि वह दूसरे से भी मिल सके, और तीसरे, और चौथे, और इस प्रकार बारहवें से ।
58 और इस प्रकार उन सबों ने उनके स्वामी के चेहरे की ज्योति को प्राप्त किया, प्रत्येक व्यक्ति ने अपने घंटे में, अपने समय में, और अपनी ऋतु में—
59 पहले से आरंभ करके, और इस प्रकार अंतिम तक, और अंतिम से पहले तक, और पहले से अंतिम तक;
60 प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं के क्रम में, जब तक घंटा समाप्त नहीं हुआ, उसी प्रकार जैसा उनके स्वामी ने उसे आदेश दिया था, ताकि उसके स्वामी की महिमा उसमें हो सके, और उसकी उसके स्वामी में, ताकि वे सब महिमा प्राप्त कर सकें ।
61 इसलिए, इस दृष्टांत में मैं इन सब राज्यों, और इनके निवासियों—प्रत्येक राज्य की उसके घंटे में, और उसके समय में, और उसकी ऋतु में, की तुलना उस आदेश के अनुसार करूंगा जो परमेश्वर ने दिया है ।
62 और फिर, मैं तुम से सच कहता हूं, मेरे मित्रों, मैं इन बातों को तुम्हारे साथ छोड़ता हूं तुम्हारे हृदयों में मनन करने के लिए, इस आज्ञा के साथ जो मैं तुम्हें देता हूं, कि तुम मुझे पूकारोगे जब मैं निकट हूं—
63 मेरे निकट आओ और मैं तुम्हारे निकट आऊंगा; मुझे परिश्रम से खोजो और तुम मुझे पा सकोगे; मांगो और तुम पाओगे; खटखटाओ, और तुम्हारे लिए खोला जाएगा ।
64 जो कुछ तुम मेरे नाम में पिता से मांगते हो वह तुम्हें दिया जाएगा, जो तुम्हारे लिए उचित है;
65 और यदि तुम ऐसा कुछ मांगते हो जो तुम्हारे लिए उचित नहीं है, यह तुम्हारे दंड का कारण बनेगा ।
66 देखो, जिसे तुम सुनते हो उस आवाज के समान है जो निर्जन प्रदेश में पुकार रहा है—निर्जन प्रदेश में, क्योंकि तुम उसे देख नहीं सकते—मेरी वाणी, क्योंकि मेरी वाणी आत्मा है; मेरी आत्मा सच्चाई है; सच्चाई जारी रहती है और इसका कोई अंत नहीं है; और यदि यह तुम में होती तो यह बढ़ेगी ।
67 और यदि तुम्हारी आंख मेरी महिमा पर एकचित हो जाए, तो तुम्हारे संपूर्ण शरीर उजियाले होंगे, और तुम में कोई अंधकार न रहेगा; और वह शरीर जो उजियाले से परिपूर्ण होता है सब बातों को समझता है ।
68 इसलिए, अपने आप को पवित्र करो कि तुम्हारे मन परमेश्वर पर एकचित हो जाएं, और समय आने वाला है जब तुम उसे देखोगे; क्योंकि वह अपने चेहरे को तुम्हें दिखाएगा, और यह उसके स्वयं के समय में होगा, और उसके स्वयं के तरीके में, और उसकी स्वयं की इच्छा के अनुसार ।
69 उस महान और अंतिम प्रतिज्ञा को याद करो जो मैंने तुम्हारे साथ बनाई है; अपने बेकार के विचारों को बाहर फेंक दो और तुच्छ बातों की अधिकता अपने से दूर रखो ।
70 तुम ठहरे रहो, तुम इस स्थान में ठहरे रहो, और एक महासभा बुलाओ, अर्थात उन लोगों की जो इस अंतिम राज्य में पहले मजदूर हैं ।
71 और वे जिन्हें उनकी यात्रा में चेतावनी दी गई है प्रभु को पूकारें, और अपने हृदयों में उस चेतावनी का मनन करें जिसे उन्होंने प्राप्त किया है, थोड़ी अवधि के लिए ।
72 देखो, और नजर उठाओ, मैं तुम्हारे झुंड की देख-भाल करूंगा, और एल्डरों को खड़ा करूंगा और उन्हें भेजूंगा ।
73 देखो, मैं अपने कार्य में शीघ्रता करूंगा इसके समय में ।
74 और मैं तुम्हें देता हूं, जो इस अंतिम राज्य में पहले मजदूर हैं, एक आज्ञा कि तुम मिलकर एकत्रित हो, और अपने आपको संगठित करो, और अपने आप को तैयार करो, और अपने आप को पवित्र करो; हां, अपने हृदयों को शुद्ध करो, और अपने हाथों और पैरों को मेरे सम्मुख स्वच्छ करो, ताकि मैं तुम्हें स्वच्छ करूं;
75 ताकि तुम्हारे पिता, और तुम्हारे परमेश्वर और मेरे परमेश्वर को प्रमाण दे सकूं, कि तुम इस भ्रष्ट पीढ़ी के लहू से निष्कलंक हो; कि मैं इस प्रतिज्ञा को पूर्ण कर सकूं, इस महान और अंतिम प्रतिज्ञा को, जो तुम्हारे साथ बनाई है, जब मैं चाहता हूं ।
76 मैं तुम्हें एक आज्ञा भी देता हूं, कि तुम प्रार्थना और उपवास रखना जारी रखोगे इस समय के बाद से ।
77 और मैं तुम्हें एक आज्ञा देता हूं कि तुम एक दूसरे को राज्य का सिद्धांत सीखाओगे ।
78 तुम परिश्रम से सीखाना और मेरा अनुभव तुम्हारे साथ रहेगा, कि तुम्हें अधिक परिपूर्णता से सीखाए जा सको, आचार में, नियम में, सिद्धांत में, सुसमाचार की व्यवस्था में, परमेश्वर के राज्य के संबंध में सब बातों में, जो तुम्हारे लिए समझना उचित है;
79 उन बातों के विषय में जो आकाश और पृथ्वी दोनों पर है, और जो पृथ्वी के नीचे; जो रही हैं, जो अभी हैं, जो बहुत शीघ्र होने वाली हैं; जो तुम्हारे अपने देश में हैं, जो अन्य देशों में हैं; युद्ध और राष्ट्रों की परेशानियां, और दंड जो प्रदेश पर हैं; और देशों और राज्यों का ज्ञान भी—
80 ताकि तुम सब बातों में तैयार हो सको जब मैं तुम्हें उस नियुक्ति को बढ़ाने के लिए फिर से भेजूंगा जिस पर मैंने तुम्हें नियुक्त किया है, और मिशन जिस पर मैंने तुम्हें अधिकार दिया है ।
81 देखो, मैंने तुम्हें लोगों को गवाही और चेतावनी देने भेजा, और यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी है जिसे चेतावनी दी गई है वह अपने पड़ोसी को चेतावनी दे ।
82 इसलिए, उनके पास कोई बहाना नहीं है, और उनके पाप उनके अपने सिरों पर हैं ।
83 वह जो परिश्रम से मुझे खोजता है मुझे पाएगा, और उसका परित्याग नहीं किया जाएगा ।
84 इसलिए, तुम ठहरे रहो, और मेहनत से परिश्रम करो, ताकि तुम अंतिम बार अन्यजातियों के बीच अपनी सेवकाई में जाने के लिए परिपूर्ण हो सको, जितनों के नाम प्रभु के मुंह से निकलेंगे, व्यवस्था को पूरा करने और गवाही को मुहर लगाने के लिए, और संतों को न्याय के समय के लिए तैयार करने जो आने को है;
85 ताकि उनकी आत्मा परमेश्वर के क्रोध से बच सके, उजाड़ने वाली घृणित वस्तु जो भ्रष्ट की प्रतिक्षा करती है, इस संसार और आने वाले संसार दोनों में । मैं तुम से, सच, कहता हूं, वे जो पहले एल्डर नहीं हैं दाख की बारी में निरंतर काम करते रहें जब तक प्रभु उन्हें नहीं बुलाता, क्योंकि उनका समय अभी नहीं आया है; उनके वस्त्र इस पीढ़ी के लहू से निष्कलंक नहीं हैं ।
86 तुम उस आजादी में बने रहो जिससे तुम्हें आजाद किया गया है; अपने आप को पापों में नहीं फंसाओ, लेकिन अपने हाथों को साफ रहो, प्रभु के आने तक ।
87 क्योंकि अब से अधिक दिन नहीं हैं और पृथ्वी के कांप उठेगी, और पियक्कड़ के समान इधर उधर लोटेगी; और सूर्य दिखाई नहीं देगा, और प्रकाश देने से मना कर देगा; और चांद लहू से नहाया होगा; और तारे अत्यधिक क्रोधित होगें, और अंजीर के वृक्ष से अंजीर के गिरने के समान स्वयं को नीचे गिराएंगे ।
88 और तुम्हारी गवाही के पश्चात लोगों पर क्रोध और प्रचंड रोष आता है ।
89 क्योंकि तुम्हारी गवाही के पश्चात भूकंप की गवाही आती है, इससे पृथ्वी पर कराहना होगा, और लोग भूमि पर गिरेंगे और खड़े होने योग्य न रहेंगे ।
90 और गर्जनाओं की आवाज की गवाही भी आती है, और बिजली की आवाज, और तूफानों की आवाज, और समुद्र की उन लहरों की आवाज जो अपनी सीमाओं से अधिक ऊपर उठती हैं ।
91 और सब बातें व्याकुलता में होगी, और अवश्य ही, लोगों के जी में जी न रहेगा; क्योंकि सब लोगों पर भय आएगा ।
92 और स्वर्गदूत आकाश के बीच में उड़ेंगे, ऊंचे शब्द से बोलते हुए, परमेश्वर की तुरही को फूंकते हुए और कहते हूए: तुम तैयार हो, तुम तैयार हो, ओ पृथ्वी के निवासियों; क्योंकि हमारे परमेश्वर का न्याय आने को है । देखो, और नजर उठाओ, दूल्हा आ रहा है; तुम उस से भेंट करने जाओ ।
93 और तुरंत आकाश में महान चिन्ह दिखाई देगा, और सब लोग इसे मिलकर देखेंगे ।
94 और दूसरा स्वर्गदूत अपनी तुरही को फूंकते हुए कहेगा: वह विशाल गिरजा, घृणित कार्यों की जननी, जिसने सब राष्ट्रों को उसके व्यभिचार के भयानक मदिरा के कारण गिराया था, जिसने परमेश्वर के संतों पर अत्याचार किया, जिसने उनका लहू बहाया—वह जो बहुत से जल, और समुद्र के तटों पर बैठती है—देखो, वह पृथ्वी की जंगली दानों का पौधा है; वह गट्ठों में बांधी गई है; उसके बंधन मजबूत किए गए हैं, कोई मनुष्य इन्हें खोल नहीं सकता; इसलिए, वह जलाए जाने के लिए तैयार है । और वह अपनी तुरही को लंबा और तेज दोनों प्रकार से फूंकेगा, और सब राष्ट्र इसे सुनेंगे ।
95 और आकाश में आधे घंटे के लिए सन्नाटा छा जाएगा; और तुंरत बाद आकाश का परदा खोला जाएगा, जैसे पत्र लपेटा जाता है जब इसे ऊपर लपेटा जाता है, और प्रभु का चेहरा दिखाया जाएगा;
96 और वे संत जो पृथ्वी पर हैं, जो जीवित हैं, सजीव किए जाएंगे और उससे भेंट करने के लिए उठा लिए जाएंगे ।
97 और वे जो अपनी कब्रों में सो गए हैं जीवित हो उठेंगे, क्योंकि उनकी कब्रें खुल जाएंगी; और वे भी उससे भेंट करने के लिए आकाश के खंभे के बीच ऊठाये जाएंगे—
98 वे मसीह के, पहले फल हैं, वे उसके साथ पहले नीचे उतरेंगे, और वे वो हैं जो पृथ्वी पर और अपनी कब्रों में हैं, जो उस से भेंट करने के लिए पहले उठाये जाते हैं; और यह सब परमेश्वर के स्वर्गदूत की तुरही के फूंके जाने से होगा ।
99 और इसके बाद अन्य स्वर्गदूत फूंकेगा, जोकि दूसरी तुरही है; और फिर उनकी मुक्ति आती है जो मसीह के आगमन पर उसके हैं; जिन्होंने अपने भाग को उस कैद में प्राप्त किया है जो उनके लिए तैयार की गई है, ताकि वे सुसमाचार को प्राप्त कर सके, और शरीर में मनुष्यों के अनुसार उन का न्याय हो सके ।
100 और फिर, अन्य तुरही फूंकी जाएगी, जोकि तीसरी तुरही है; और फिर उन मनुष्यों की आत्माएं आएंगी जिनका न्याय किया जाना है, और दंड के अधीन पाए जाते हैं;
101 और ये शेष मृतक हैं; और वे फिर से जी न उठेंगे जब तक हजार वर्ष पूरे नहीं हो जाते, और न ही फिर से, पृथ्वी के अंत तक ।
102 और अन्य तुरही फूंकी जाएगी, जोकि चौथी तुरही है, कहते हुए: उनके बीच वे पाए जाते हैं जो उस महान और अंतिम दिन तक रहेंगे, अर्थात अंत तक, जो भ्रष्ट बने रहेंगे ।
103 और अन्य तुरही फूंकी जाएगी, जोकि पांचवीं तुरही है, जोकि पांचवां स्वर्गदूत है जो अनंत सुसमाचार सौंपता है—आकाश के बीच से उड़ते हुए, सब राष्ट्रों, जातियों, भाषाओं, और लोगों के बीच;
104 और यह उसके तुरही की ध्वनि होगी, सब लोगों से कहते हुए, आकाश और पृथ्वी दोनों स्थानों में, और जो पृथ्वी के नीचे हैं—क्योंकि प्रत्येक कान इसे सुनेगा, और प्रत्येक घुटना झूकेगा, और प्रत्येक जबान अंगीकार करेगी, जब वे तुरही के फूंके जाने को सुनते हैं, कहते हुए: परमेश्वर से डरो, और उसको महिमा दो जो सिंहासन पर बैठा है, हमेशा और सदैव के लिए; क्योंकि उसके न्याय का समय आने को है ।
105 और फिर, अन्य स्वर्गदूत अपनी तुरही फूंकेगा, जोकि छठवां स्वर्गदूत है, कहते हुए: वह पतित है जिसने सब राष्ट्रों को उसके व्यभिचार के भयानक मदिरा के कारण गिराया था, जिसने परमेश्वर के संतों पर अत्याचार किया; वह पतित है, पतित है!
106 और फिर, अन्य स्वर्गदूत अपनी तुरही फूंकेगा, जोकि सातवां स्वर्गदूत है, कहते हुए: यह पूरा हो चुका है; यह पूरा हो चुका है! परमेश्वर के मेमने ने पराजित किया और अकेले ही हौद में दाखें रोंदी हैं, अर्थात सर्वशक्तिमान परमेश्वर के भयानक क्रोध की प्रचंडता की दाखें ।
107 और फिर स्वर्गदूतों को उसकी शक्ति की महिमा का मुकुट पहनाया जाएगा, और संत उसकी महिमा से परिपूर्ण होंगे, और अपनी विरासत को प्राप्त करेंगे और उसके समान बनाए जाएंगे ।
108 और फिर पहला स्वर्गदूत सब जीवितों के कानों में अपनी तुरही फूंकेगा, और मनुष्यों के गुप्त कार्यों, और परमेश्वर के महान कार्यों को प्रकट करेगा पहले हजार सालों में ।
109 और फिर दूसरा स्वर्गदूत अपनी तुरही फूंकेगा, और मनुष्यों के गुप्त कार्यों को, और उनके हृदयों के विचारों और इच्छाओं, और परमेश्वर के महान कार्यों को प्रकट करेगा दूसरे हजार सालों में—
110 और इसी प्रकार, सातवें स्वर्गदूत तक तुरही फूंकी जाएगी; और वह भूमि पर और समुद्र पर खड़ा होगा, और उसके नाम की शपथ लेगा जो सिंहासन पर बैठता है, कि अब देर नहीं होगी; और शैतान को बांध दिया जाएगा, वह पूराना सांप, जिसे शैतान कहा जाता है, और हजार सालों के लिए खुला नहीं छोड़ा जाएगा ।
111 और फिर कुछ समय के लिए वह खुला छोड़ा जाएगा, ताकि वह अपनी सेना को एकत्रित कर सके ।
112 और मीकाईल, सातवां स्वर्गदूत, अर्थात प्रधान स्वर्गदूत, अपनी सेना को एकत्रित करेगा, अर्थात स्वर्ग की सेना ।
113 और शैतान अपनी सेना को एकत्रित करेगा; अर्थात नरक की सेना, और प्रधान स्वर्गदूत और उसकी सेना के विरूद्ध युद्ध करने आएगा ।
114 और फिर महान परमेश्वर का युद्ध होगा; और शैतान और उसकी सेना को उनके स्थानों पर फैंका जाएगा, जिससे उनके पास संतों पर किसी पर प्रकार का नियंत्रण नहीं होगा ।
115 क्योंकि मीकाईल उनके युद्धों को लड़ेगा, और उन्हें पराजित करेगा जो उसके सिंहासन को पाने का प्रयास करता है जो सिंहासन पर बैठा है, अर्थात मेमना ।
116 यह परमेश्वर, और पवित्र किए हुओं की महिमा है; और वे मृत्यु को फिर नहीं देखेंगे ।
117 इसलिए, मैं तुम से सच कहता हूं, मेरे मित्रों, अपनी महासभा बुलाओ, जैसा मैंने तुम्हें आदेश दिया है ।
118 और जैसा सबको विश्वास नहीं है, तुम परिश्रम से खोजो और एक दूसरे को ज्ञान के शब्द सीखाओ; हां, ज्ञान की सर्वोत्तम पुस्तकों से खोजो; सीखने का प्रयास करो, अध्ययन के द्वारा और विश्वास के द्वारा भी ।
119 अपने आपको संगठित करो; प्रत्येक आवश्यक बात को तैयार करो; और एक घर स्थापित करो, अर्थात प्रार्थना का घर, उपवास का घर, विश्वास का घर, सीखने का घर, महिमा का घर, अनुशासन का घर, परमेश्वर का घर;
120 कि तुम्हारा प्रवेश करना प्रभु के नाम में हों; कि तुम्हारा बाहर आना प्रभु के नाम में हो; ताकि तुम्हारे सब अभिवादन प्रभु के नाम में हों, सर्वशक्तिमान के लिए हाथों को ऊपर उठाए हुए ।
121 इसलिए, अपनी सब तुच्छ वार्ताओं से, सब हंसी से, अपनी सब कामुक इच्छाओं से, अपने सब घमंड से और चंचलता से, और अपने सब भ्रष्ट कार्यों से दूर रहो ।
122 अपने बीच में एक शिक्षक नियुक्त करो, और सब एक समय पर न बोलें; लेकिन एक समय पर एक बोले और दूसरे उसकी बातों को सुनें, ताकि जब सब बोल चुकें ताकि सब ज्ञान प्राप्त कर सकें, और प्रत्येक व्यक्ति के पास एकसमान अवसर हो ।
123 देखो कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो; स्वार्थी होने से बचो; एक दूसरे से बांटना सीखो जैसा सुसमाचार अपेक्षा रखता है ।
124 आलसी होने से बचो; अशुद्ध होने से बचो; एक दूसरे में गलती खोजने से बचो; जरूरत से ज्यादा सोने से बचो; जल्दी सोओ, ताकि ताकि तुम सुस्त न रहो; जल्दी उठो, ताकि तुम्हारा शरीर और मन स्फूर्ति से भरे हों ।
125 और सब बातों से बढ़कर, स्वयं को उदारता के बंधन से ढक लो, लबादे के समान, जोकि परिपूर्णता और शांति का बंधन है ।
126 हमेशा प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम हिम्मत न हारो, जब तक मैं आता हूं । देखो, और नजर उठाओ, मैं शीघ्र आता हूं, और तुम्हें स्वयं ले जाऊंगा । आमीन ।
127 और फिर, अनुशासन का घर जोकि भविष्यवक्ताओं के विद्यालय की अध्यक्षता के लिए तैयार किया गया, उन सब बातों में उनके निर्देश जोकि उनके लिए जरूरी हैं के लिए स्थापित किया गया, अर्थात गिरजे के सब अधिकारियों के लिए, या अन्य शब्दों में, जो गिरजे में सेवकाई के लिए नियुक्त किए जाते हैं, उच्च याजकों से आरंभ होकर, नीचे डीकनों तक—
128 और यह विद्यालय की अध्यक्षता के अनुशासन का घर होगा: वह जो अध्यक्ष, या शिक्षक नियुक्त किया जाता है, अपने स्थान में खड़ा पाया जाएगा, उस घर में जो उसके लिए तैयार किया जाएगा ।
129 इसलिए, वह परमेश्वर के घर में प्रथम होगा, ऐसे स्थान पर ताकि घर में लोगों का समूह उसके शब्दों को ध्यान से और स्पष्टता से सुन सके, ऊंची वार्ता से नहीं ।
130 और जब वह परमेश्वर के घर में आता है, क्योंकि उसे घर में सर्वप्रथम होना चाहिए—देखो, यह सुंदर है, कि वह एक उदाहरण बन सके—
131 वह स्वयं अपने घुटनों के बल परमेश्वर के सम्मुख प्रार्थना करे, अनंत अनुबंध के प्रतीक या निशानी के रूप में ।
132 और जब कोई उसके बाद आएगा, शिक्षक खड़ा हो जाए, और, हाथ को आकाश की ओर उठाए, हां, वास्तव में सीधा उठाकर, अपने भाई या भाइयों का इन शब्दों के साथ अभिवादन करे:
133 क्या आप भाई हैं? मैं प्रभु यीशु मसीह के नाम में आपका अभिवादन करता हूं, अनंत अनुबंध के प्रतीक या निशानी के रूप में, जिस अनुबंध से मैं आपको सदस्यता में स्वीकार करता हूं, उस संकल्प में जोकि स्थिर, अटल, और अपरिवर्तनीय है, परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा प्रेम के बधनों में आपका मित्र और भाई होने के लिए, परमेश्वर की सब आज्ञाओं का बिना दोष के पालन करने में, कृतज्ञता में, हमेशा और सदा के लिए । आमीन ।
134 और वह जो इस अभिवादन के लिए अयोग्य पाया जाता है उसके लिए तुम्हारे बीच स्थान नहीं है; क्योंकि तुम नहीं चाहोगे कि मेरा घर उसके द्वारा भ्रष्ट किया जाए ।
135 और वह जो प्रवेश करता है मेरे सम्मुख विश्वसनीय है, और भाई है, या यदि वे भाई हैं, वे अध्यक्ष या शिक्षक का हाथों को आकाश की ओर उठाए अभिवादन करेंगे, इसी प्रार्थना और अनुबंध के साथ, या आमीन कहकर, उसी तरह से ।
136 देखो, मैं तुम से सच कहता हूं, यह तुम्हारे लिए परमेश्वर के घर में, भविष्यवक्ताओं के विद्यालय में एक दूसरे का अभिवादन करने का एक उदाहरण है ।
137 और तुम्हें यह करने के लिए प्रार्थना और कृतज्ञता के द्वारा नियुक्त किया जाता है, जब आत्मा प्रभु के घर में, भविष्यवक्ताओं के विद्यालय में तुम्हारे सब कार्य करने के लिए प्रेरणा देती है, ताकि यह तुम्हारी आत्मिक प्रगति के लिए पवित्र आत्मा का शरण स्थल, मंडप बन जाए ।
138 और तुम इस विद्यालय में अपने बीच किसी को स्वीकार नहीं करोगे सिवाय उसके जो इस पीढ़ी के लहू से निष्कलंक हो;
139 और वह पैरों को धोये जाने की विधि द्वारा स्वीकार किया जाएगा, क्योंकि इसी उद्देश्य के लिए पैरों को धोने की विधि स्थापित की गई थी ।
140 और फिर, पैरों को धोने की विधि गिरजे के अध्यक्ष, या अधीक्षक एल्डर द्वारा की जाएगी ।
141 यह प्रार्थना के साथ आरंभ होती है; और रोटी और मदिरा लेने के पश्चात, मेरे संबंध में यूहन्ना की गवाही के तेरहवें अध्याय में दिए उदाहरण के अनुसार उसे स्वयं की कमर पर अंगोछा बांधना है ।