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संदेश, अर्थ, और समूह
हमारे समय के शोर-शराब और कोलाहल के बीच, हम यीशु को अपने जीवन, अपने विश्वास, और अपनी सेवा के केंद्र में देखने का प्रयास कर सकते हैं ।
बहनों और भाइयों, यह सात महिने का सैमी हो चिंग है, पिछले अप्रैल अपने घर में टेलिविज़न पर महा सम्मेलन देखते हुए ।
जिस समय अध्यक्ष नेलसन और अन्य जनरल अधिकारियों का समर्थन करने का समय आया तो सैमी के हाथों में उसकी बोतल थी । इसलिये उसने वही किया जो वह कर सकता था ।
सैमी अपने पैरों से समर्थन करने को पूर्णरूप से नया अर्थ देता है ।
अतिंम-दिनों के संतों के यीशु मसीह के गिरजे के इस अर्धवार्षिक सम्मेलन में स्वागत । साल की इन दो एकत्रित होने के अर्थ पर अपनी चर्चा का मंच तैयार करने के लिये, मैं नये नियम के इस दृश्य का उपयोग करूंगा:1
“जब [यीशु] यरीहो के निकट पहुंचा, तो एक अंधा सड़क के किनारे बैठा हुआ भीख मांग रहा था ।
“… भीड़ के चलने की आहट सुनकर पूछने लगा, यह क्या हो रहा है ।
“… उन्होंने उसको बताया, कि यीशु नासरी जा रहा है ।
“तब उसने पुकार के कहा, हे यीशु दाऊद की संतान, मुझ पर दया कर ।”
उसके साहस पर चकित होते हुए, भीड़ ने उसे शांत करने की कोशिश की, लेकिन “वह और भी चिल्लाने लगा ।” उसकी ज़िद के कारण, उसे यीशु के निकट लाया गया, जिसने उसकी विश्वास-भरी उसे दृष्टि देने की याचना को सुना और चंगा किया ।2
हर बार जब मैं इस छोटे सजीव चित्रण को पढ़ता हूं तो मैं इस से प्रभावित होता हूं । हम इस व्यक्ति के कष्ट को समझ सकते हैं । हम उसे उद्धारकर्ता का ध्यान आर्कषण करने लिये चिल्लाते हुए लगभग सुन सकते हैं । हम उसके शांत होने से मना करने पर मुस्कराते हैं—अवश्य ही, ऊंची आवाज में पुकारने उसकी दृढ़ता पर जब हर कोई उसके शांत होने को कह रहा था । यह स्वाभाविकरूप से, एक दृढ़ विश्वास की एक सुदंर कहानी है । लेकिन सभी धर्मशास्त्र के समान, जितना हम इसे पढ़ते हैं, उतना अधिक हमें यह समझ आता है ।
अभी हाल ही में एक विचार मेरे मन में आया कि इस व्यक्ति के आस-पास आत्मिकरूप से संवेदनशील लोग थे । इस कहानी का पूरा महत्व उन कुछ अंजान महिलाओं और पुरूषों पर टिका है जिनके पास दृष्टि थी, उनसे जब उनके साथी द्वारा पूछा गया, “यह शोर-शराबा क्यों हो रहा है?” यदि आप, उस शोर-शराबे के लिये मसीह को कारण के रूप में पहचानोगे; तो वही इसका “साक्षात कारण” था । इस छोटी सी बातचीत में हमारे लिये एक सबक है । विश्वास और आस्था के विषयों में, जांच-पड़ताल उनसे करनी चाहिए जिनके पास वास्तव में इस विषय में कुछ ज्ञान है ! “क्या अंधा अंधे को मार्ग दिखा सकता है ?” यीशु ने एक बार पूछा था । “[यदि ऐसा हो,] तो वे दोनों गड्डे में गिरेंगे ?”3
इन सम्मेलनों में हमारा उद्देश्य इस प्रकार के विश्वास और आस्था की तलाश करना है, और आज हमारे साथ जुड़ने से आप महसूस करेंगे कि यह तलाश एक व्यापकरूप से साझा प्रयास है । अपने आसपास देखो। इन आधारों पर आप हर दिशा से आए सभी आकार के परिवारों को देखेंगे । पुराने मित्र आनंददायक मिलन पर गले लगते हैं, शानदार गायक मंडली तैयार हो रही है, और प्रदर्शनकारी अपने पसंदीदा मंच से चिल्लाते हैं । प्रचारक रह चुके लोग पुराने साथियों की तलाश करते हैं, जबकि हाल ही में लौटे प्रचारक बिलकुल नए साथियों की तलाश करते हैं (आप समझ सकते हैं मैं क्या कहना चाहता हूं !) । और तस्वीरें ? ऊपर वाला हमें बचाए ! हर हाथ में फोन होने से “प्रत्येक सदस्य प्रचारक है” से हम “प्रत्येक सदस्य फोटोग्राफर है” हो गए हैं । इस खुशी भरे माहोल में, कोई उचितरूप से पूछ सकता है, “इन सब का क्या मतलब है ?”
हमारे नये नियम के वर्णन के समान, जिनके पास दृष्टि है पहचान जाएंगे कि, इस सम्मेलन की परंपरा में सब बातों के होते हुए भी, इसका अर्थ बहुत कम या कुछ नहीं होगा यदि हम इन सब के बीच यीशु को नहीं पाते हैं । उस दर्शन को प्राप्त करने के लिये जिसकी हमें तलाश है, उस चंगाई को प्राप्त करने के लिये जिसका वह वादा करता है, वह अर्थ हम जानते हैं कि यहां है, हमें शोर-शराबे को हटाना चाहिए—भले ही आनंदपूर्ण हो—और अपना ध्यान उस पर लगाना चाहिए । प्रत्येक बोली गई प्रार्थना, गीत गाने वालों की आशा, प्रत्येक मेहमान की श्रद्धा—सब उसकी आत्मा को निमंत्रण देने के लिये समर्पित हैं जिसका यह गिरजा है—जीवित मसीह, परमेश्वर का मेम्ना, शांति का राजकुमार ।
लेकिन उसे पाने के लिये हमें सम्मेलन केंद्र में होने की आवश्यकता नहीं है जब एक बच्चा मॉरमन की पुस्तक पहली बार पढ़ता है और अबिनादी के साहस या 2000 योद्धाओं से आकर्षित होता है, हम शिष्टता से जोड़ सकते हैं कि यीशु इस अद्भुत ग्रंथ में हर जगह मौजूद विशेष व्यक्ति है, जो लगभग इसके प्रत्येक पृष्ठ पर एक विशालकाय पुरूष की तरह खड़ा है और इसमें अन्य विश्वास को बढ़ावा देने वाले सभी व्यक्तियों को जोडने वाली की कड़ी का काम करता है ।
उसी प्रकार, जब एक मित्र हमारे विश्वास के बारे में सीखता है, वह कुछ अनोखी बातें और हमारी धार्मिक परंपराओं की अपरिचित शब्दावली से थोड़ा घबरा सकता या सकती है—जैसे खान-पान में प्रतिबंध, आत्म-निर्भरता सामग्रियां, पथ-प्रदर्शक मार्ग, और डिजिटल पारिवारिक वृक्ष और अगिनत स्टेक केंद्र जहां कोई भी जाकर स्टेक या शेयर खरीद सकता है । जब हमारे मित्र अगिनत नई बातों को अनुभव करते हैं, तो हमें उन्हें इन सब के अर्थ पर केंद्रित रहने को कहना चाहिए, जैसे जीवित अनंत सुसमाचार—स्वर्गीय माता-पिता का प्रेम, दिव्य पुत्र का प्रायश्चित उपहार, पवित्र आत्मा का दिलासा देने वाला मार्गदर्शन, अंतिम-दिनों में इन सब सच्चाइयों की पुनास्थापना और अन्य बातें ।
जब कोई पहली बार पवित्र मंदिर जाता है, वह उस अनुभव से अचंभित हो सकता है । हमारा काम यह सुनिश्चित करना है कि पवित्र चिन्ह और प्रकट की गई रीतियां, विशेष वस्त्र और दृश्य प्रस्तुतियां, उसके ध्यान को विचलित न करें बल्कि उद्धारकर्ता की ओर ले जाएं, जिसकी आराधना करने हम वहां गए हैं । मंदिर उसका घर है, और वह हमारे मनों और हृदयों में सब से ऊपर होना चाहिए—मसीह का शानदार सिद्धांत हमारे अस्तित्व का परिचय कराता है ठीक जैसे यह मंदिर विधियों का परिचय कराता है—जब हम इसके प्रवेश द्वार पर शिलालेख देखते हैं उस समय से लेकर भवन के भीतर बिताए अंतिम क्षण तक । इन सब अद्भुत दृश्य के बीच जिनका हम सामना करते हैं, हमें सब बातों से हटकर, यीशु वास्तव में क्या है, मंदिर में इसे देखना और समझना है ।
गिरजे में हाल के कुछ महिनों में हुए साहसिक बदलावों और नई घोषणाओं पर विचार करें । जब हम एक दूसरे की सेवकाई करते हैं, या अपने सब्त अनुभव में सुधार करते हैं, या बच्चों और युवाओं के लिये नये कार्यक्रमों को अपनाते हैं तो हमें इन भविष्यसूचक बदलावों के असली कारण को समझ नहीं पाएंगे यदि हम इन्हें अपने उद्धार की दृढ़ चट्टान पर मजबूती से निर्माण करने में मदद के लिये आपस में जोड़ने वाले प्रयासों की बजाए इन्हें बेमेल, असंबंधित तत्वों के रूप में देखते हैं । 4 अवश्य ही, अध्यक्ष रसल एम. नेलसन ने यही सोचा होगा जब वे हमें गिरजे के प्रकट किए गए नाम का उपयोग करने को कहते हैं ।5 यदि यीशु—उसका नाम, उसका सिद्धांत, उसका उदाहरण, उसकी दिव्यता—हमारी आराधना के केंद्र में हो सकती है, तो हम उस सच्चाई सुदृढ़ करेंगे जो अलमा ने एकबार सीखाई थी: “बहुत सी बातें होनेवाली हैं; [लेकिन] देखो, एक चीज है जो सब से अधिक महत्वपूर्ण है— … मुक्तिदाता [जो] अपने लोगों में आकर रहेगा ।”6
जोसफ स्मिथ का 19वीं शताब्दी का सीमांत वातावरण :मसीही गवाहों का प्रतिस्पर्धा करने वाली भीड़ से ज्वलंत था ।7 लेकिन उनके द्वारा किए गए कोलाहल में विडम्बना थी, कि ये जोशीले पुनरुत्थानवादी, उस असली उद्धारकर्ता की अनदेखी कर रहे थे जिसे युवा जोसेफ इतने उत्साह से खोजा था । उससे जूझते हुए, जिसे उसने “अंधकार और दुविधा“ कहा था,8 वह वृक्षों के उपवन में एकांत में गया था, जहां उसने हमारे द्वारा उल्लेखित उद्धारकर्ता का सुसमाचार के अनुरूप होने के बारे में अधिक महिमापूर्ण गवाही को देखा और सुना था । अकल्पनीय और अप्रत्याशित दृष्टि के उपहार से, जोसफ ने दिव्यदर्शन में अपने स्वर्गीय पिता, जगत के महान परमेश्वर, और उसके परिपूर्ण एकलौते पुत्र, यीशु मसीह को देखा था । फिर पिता ने उस उदाहरण को स्थापित किया था जिसका आज सुबह हम सराहना कर रहे हैं: उसने यीशु की ओर इशारा करते हुए कहा, “यह मेरा प्रिय पुत्र है । इसकी सुनो !” 9 यीशु की दिव्य पहचान, उद्धार की योजना में उसकी प्रमुखता, और परमेश्वर की दृष्टि में उसकी प्रतिष्ठा की अभिव्यक्ति उतनी महान नहीं हो सकती है जितनी इस सात-शब्दों के छोटे वाक्य में की गई है ।
शोर-शराबा और भ्रम ? समुह और विवाद ? यह सब हमारे संसार में बहुत है । असल में, संदेहवादी और विश्वासी इस दिव्यदर्शन और लगभग हर उस बात पर जिसे मैंने आज बताया है अभी भी विवाद करते हैं। हो सकता है कि विचारों की भीड़ के बीच आप अधिक स्पष्टता से देखने और अर्थ पाने का प्रयास कर रहे हों, मैं आपको उसी यीशु की ओर इशारा करता और जोसफ स्मिथ के अनुभव की प्रेरित गवाही देता हूं, जिस प्रकार लगभग 1800 वर्ष पूर्व प्राचीन यरीहो की सड़क पर हमारे अंधे मित्र ने दृष्टि प्राप्त की थी । मैं इन दोनों और अन्य बहुत सी अन्य बातों की गवाही देता हूं कि अवश्य ही जीवन में अत्याधिक रोमांचक दृष्टि और आवाज़ यीशु की है जो न केवल सामने से गुज़रता है 10बल्कि हमारे निकटआता है, हमारे समीप रूकता है, और हमारे साथ निवास करेगा ।11
बहनों और भाइयों, हमारे समय के शोर-शराब और कोलाहल के बीच, हम यीशु को अपने जीवन, अपने विश्वास, और अपनी सेवा के केंद्र में देखने का प्रयास कर सकते हैं । यहीं पर वास्तविक अर्थ प्राप्त होता है । और यदि कुछ समय हमारी दृष्टि सीमित हो जाती है, या हमारा आत्म-विश्वास कम हो जाता है, या हमारे विश्वास की परिक्षा और सुधार होता है—ऐसा अवश्य ही होगा—हम चिल्लाकर कर कह सकते हैं, “हे दाऊद की संतान, यीशु मुझ पर दया कर ।” 12 मैं प्रेरित उत्साह और भविष्यवक्तासूचक आस्था से वादा करता हूं कि वह आपको सुनेगा और कहेगा, अभी या बाद में, “देखने लग, तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है ।”13 महा सम्मेलन में आपका स्वागत है। यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।