अपना क्रूस उठाओ
स्वयं का क्रूस उठाना और उद्धारकर्ता का अनुसरण करना प्रभु के मार्ग पर विश्वास के साथ चलना और सांसारिक आदतों में शामिल होना नहीं है ।
प्रिय भाइयों और बहनों, हमें अपने मार्गदर्शकों से इन दो दिनों के दौरान अद्भुत शिक्षाएं मिली हैं । मैं आपको गवाही देता हूं कि यदि हम अपने जीवन में इन प्रेरित और सामयिक शिक्षाओं को लागू करने का प्रयास करते हैं, तो प्रभु, अपने अनुग्रह के द्वारा, हम में से प्रत्येक को अपना क्रूस उठाने और हमारे बोझ को हल्का करने में मदद करेगा ।
कैसरिया फिलिप्पी के आसपास के क्षेत्र में, उद्धारकर्ता ने अपने शिष्यों को बताया था कि उसे यरूशलेम में एल्डरों, मुख्य पुजारियों और शास्त्रियों के हाथों दुख उठाना पड़ेगा । उसने विशेष रूप से उन्हें अपनी मृत्यु और शानदार पुनरुत्थान के बारे में सिखाया था । उस समय, उसके शिष्यों ने पृथ्वी पर उसके दिव्य मिशन को पूरी तरह से नहीं समझा था । जब पतरस ने सुना, जो उद्धारकर्ता ने कहा था, तो उसे अलग ले जाकर उसे झिड़कने लगा कि हे प्रभु, परमेश्वर न करे; तुझ पर कभी ऐसा होगा ।”
अपने शिष्यों को यह समझने में मदद करने के लिए कि उसके काम के प्रति समर्पण में समर्पण और दुख शामिल है, उद्धारकर्ता को सशक्त रूप से घोषित किया गया था:
“यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपका इंकार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले ।
“क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा ।
“यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा या मनुष्य अपने प्राण के बदले में क्या देगा ?”
इस घोषणा के द्वारा, उद्धारकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि वे सभी जो उसका अनुसरण करने के लिए तैयार हैं, उन्हें स्वयं का इंकार करने और अपनी इच्छाओं, भूख, और जुनून को नियंत्रित करने, सब कुछ बलिदान करने की आवश्यकता है, यहां तक कि यदि आवश्यक हो, तो स्वयं का जीवन भी, पिता की इच्छा के प्रति पूर्णरूप से समर्पित होने के लिए—जैसा कि उसने किया था । यह असल में, आत्मा के उद्धार के लिए चुकाया जाना वाला मूल्य है । यीशु ने क्रूस के प्रतीक का जानबूझकर उपयोग किया था ताकि उसके शिष्य अच्छी तरह समझ सकें कि प्रभु के लिए बलिदान और समपर्ण का सही अर्थ क्या है । एक क्रूस की प्रतिमा उसके शिष्यों और रोमन साम्राज्य के निवासियों के बीच अच्छी तरह से पहचानी जाती थी क्योंकि रोमन लोग क्रूस के दंड पाए व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपने क्रूस या शहतीरों को उस स्थान पर ले जाने के लिए मजबूर करते थे जहां उसको मृत्यु दंड दिया जाता था ।
यह केवल उद्धारकर्ता के पुनरुत्थान के बाद ही था कि शिष्यों के दिमाग को वह सब समझने के लिए खुल गए थे जो उसके बारे में लिखा गया था और उस समय बाद से उन्हें क्या करने की आवश्यकता होगी ।
उसी तरह से, हम सभी, भाइयों और बहनों, को अपने मनों और अपने हृदयों को खोलने की जरूरत है ताकि हम अपनी क्रूस को ले जाने और उसका अनुसरण करने की प्रासंगिकता को पूरी तरह से समझ सकें । हम धर्मशास्त्रों के माध्यम से सीखते हैं कि जो लोग अपना क्रूस उठाना चाहते हैं वे इस प्रकर यीशु मसीह से प्रेम करते हैं कि वे स्वयं को सभी सांसारिक बुराइयों से दूर रखते और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं ।
परमेश्वर की इच्छा के विपरीत जो कुछ है हमें उन सभी का बलिदान करने के लिए कहा जाता है और उसकी शिक्षाओं का पालन करने का प्रयास करने का हमारा दृढ़ संकल्प यीशु मसीह के सुसमाचार के मार्ग पर चलने में हमारी मदद करेगा—यहां तक कि परिक्षा की घड़ी, हमारी आत्माओं की कमजोरी, या सामाजिक दबाव और सांसारिक बातें में भी जो उसकी शिक्षाओं का विरोध करती हैं ।
उदाहरण के लिए, उन लोगों के लिए जिन्होंने अभी तक अनंत साथी नहीं पाया है और वे अकेला और निराश महसूस कर रहे हैं, या उन लोगों के लिए जो तलाकशुदा हैं और त्याग कर दिए और भुला दिए गए महसूस कर रहे हैं, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि उद्धारकर्ता के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए अपना क्रूस उठाने और अनुसरण करने का अर्थ है, प्रभु के मार्ग पर विश्वास के साथ जारी रहना, गरिमा का एक आदर्श बनाए रखना, और सांसारिक बातों में लिप्त न होना जो अंततः परमेश्वर के प्रेम और दया में हमारी आशा को नष्ट करते हैं ।
वही सिद्धांत उन पर भी लागू होते हैं जो समान-लिंग आकर्षण का अनुभव कर रहे हैं और हतोत्साहित और असहाय महसूस करते हैं । और शायद इसी कारण से आपमें से कुछ लोग महसूस करते हैं कि यीशु मसीह का सुसमाचार अब आपके लिए नहीं है । अगर ऐसा है, तो मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि परमेश्वर पिता और उसकी प्रसन्नता की योजना में, यीशु मसीह और उसके प्रायश्चित्त बलिदान में, और उसकी प्रेमी आज्ञाओं का पालन करने में हमेशा आशा है । उसके पूर्ण ज्ञान, शक्ति, न्याय और दया में, प्रभु हमें मुहरबंद कर सकता है, ताकि हम उसकी उपस्थिति में लाए जा सकें और हमेशा के लिए मुक्ति पा सकें, यदि हम आज्ञाओं का पालन करने में अटल और अचल रहते हुए सदैव भले कार्य करते जाते हैं ।
उन लोगों के लिए, जिन्होंने गंभीर पाप किए हैं, इसी निमंत्रण को स्वीकार करते हुए, अन्य बातों के अलावा, परमेश्वर के सामने स्वयं को विनम्र करना, उचित गिरजे के मार्गदर्शकों के साथ परामर्श करना, और अपने पापों का पश्चाताप करना और त्याग करना है । यह प्रक्रिया उन सभी को भी आशीष देगी जो कमजोर करने वाली आदतों से लड़ रहे हैं, जिसमें नशीले पदार्थ, ड्रग्स, शराब और पोर्नोग्राफी शामिल हैं । इन कदमों को उठाने से आप उद्धारकर्ता के निकट आते हैं, जो अंततः आपको अपराध, दुःख और आत्मिक और शारीरिक गुलामी से मुक्त कर सकता है इसके अतिरिक्त, आप अपने परिवार, दोस्तों, और सक्षम डॉक्टर और सलाहकार की सहायता लेने की इच्छा भी कर सकते हो ।
कृपया बारबार की असफलताओं से कभी हार न मानें और स्वयं को पापों को छोड़ने और नशे पर काबू पाने में असमर्थ न समझें । आप कोशिश करना बंद न करें और इसके बाद कमजोरी और पाप जारी न रहें ! हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करते रहें, अपने कार्यों के द्वारा प्रकट करते हुए आंतरिक मन को साफ करने की इच्छा रखें, जैसा कि उद्धारकर्ता द्वारा सिखाया जाता है । कभी-कभी कुछ चुनौतियों के समाधान महीनों और महीनों के निरंतर प्रयास के बाद आते हैं । मॉरमन की पुस्तक में यह वादा किया गया था कि “हम जो कर सकते हैं, उन सब को करने के पश्चात भी हम उसके अनुग्रह द्वारा बचाए गए हैं” इन परिस्थितियों में लागू होती है । कृपया याद रखें कि उद्धारकर्ता की कृपा का उपहार “जरूरी नहीं कि ‘जो हम कर सकते हैं’ तक सीमित रहे । जब हम अपने स्वयं के प्रयासों का उपयोग करते रहते हैं, तो उस समय से पहले और बाद भी हम उसका अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं ।”
मैं इस बात की गवाही देता हूं कि जब हम लगातार अपनी चुनौतियों से उबरने का प्रयास करते हैं, परमेश्वर हमें विश्वास के उपहारों के साथ चंगा होने और चमत्कारों के काम करने की आशीष देगा । वह हमारे लिए वह सब करेगा जो हम अपने लिए करने में सक्षम नहीं हैं ।
इसके अतिरिक्त, उन लोगों के लिए जो दुःखी, क्रोधित, नाराज, या दुखी महसूस करते हैं, वे अवांछनीय हैं, किसी का अपना क्रूस उठाना और उद्धारकर्ता का अनुसरण करने का मतलब इन भावनाओं को अलग रखना और प्रभु की ओर मुड़ने का प्रयास करना है ताकि वह हमें मन की इस स्थिति से मुक्त कर सके और शांति पाने में हमारी मदद करे । दुर्भाग्य से, यदि हम इन नकारात्मक अनुभूतियों और भावनाओं को पकड़े रहते हैं, तो हम अपने जीवन में प्रभु की आत्मा के प्रभाव के बिना स्वयं को जीते हुए पा सकते हैं । हम अन्य लोगों के लिए पश्चाताप नहीं कर सकते हैं, लेकिन हम उन्हें क्षमा कर सकते हैं—उन लोगों द्वारा स्वयं को बंधक बनाए जाने से इनकार करने से जिन्होंने हमें नुकसान पहुंचाया है ।
धर्मशास्त्र सिखाते हैं कि इन स्थितियों से बाहर निकलने का एक मार्ग है—हमारे उद्धारकर्ता को हमारे हृदयों को नए हृदयों से बदलने में मदद करने के लिए आमंत्रित करने के द्वारा । ऐसा होने के लिए, हमें अपनी कमजोरियों के साथ प्रभु के निकट आने की जरूरत है, उससे पहले खुद को विनम्र बनाएं, और उसकी मदद और क्षमा के लिये प्रार्थना करें, उन पवित्र क्षणों के दौरान विशेष रूप से जब हम प्रत्येक रविवार को प्रभु भोज में भाग लेते हैं । मैं चाहता हूं कि हम उसकी क्षमा और उसकी सहायता लेना चुनें और उन लोगों को क्षमा करके एक महत्वपूर्ण और कठिन कदम उठाएं, जिन्होंने हमें चोट पहुंचाई है ताकि हमारे घाव ठीक होने लगें । मैं आपसे वादा करता हूं कि ऐसा करने में, आपकी रातें उस राहत से भरी होंगी जो प्रभु के साथ शांति से होती है ।
1839 में लिबर्टी जेल में कैद के दौरान, भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ ने गिरजे के सदस्यों को एक पत्र लिखा था जिसमें भविष्यवाणियां थीं जो इन परिस्थितियों में पूरी तरह लागू होती हैं । उन्होंने लिखा, “सारे सिंहासन और प्रभुताएं और शक्तियां, प्रकटी की जाएंगी और उन सबों को प्रदान की जाएंगी जो यीशु मसीह के सुसमाचार के लिये साहस से धीरज रखते हैं ।” इसलिए, जो लोग उद्धारकर्ता का नाम लेते हैं, उसकी प्रतिज्ञाओं में भरोसा करते और अंत तक दृढ़ रहते हुए, बचाए जाएगे और कभी न खत्म होने वाली प्रसन्नता की स्थिति में परमेश्वर के साथ निवास कर सकते है ।
हम सभी अपने जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हैं जो हमें दुखी, असहाय, निराश और कभी-कभी कमजोर भी महसूस कराती हैं । इन भावनाओं में से कुछ हमें प्रभु से प्रश्न करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं: “मैं इन परिस्थितियों का सामना क्यों कर रहा हूं?” या “मेरी आशाएं पूरी क्यों नहीं हुई हैं ?” आखिरकार, मैं अपना क्रूस उठाने और उद्धारकर्ता का पालन करने की अपनी शक्ति में सब कुछ कर रहा हूं !”
मेरे प्यारे मित्रों, हमें यह याद रखना चाहिए कि अपने क्रूस को स्वयं उठाने के लिये परमेश्वर में और उसके असीम ज्ञान में विनम्र होना और विश्वास करना शामिल है । हमें स्वीकार करना चाहिए कि वह हम में से प्रत्येक और हमारी आवश्यकताओं से परिचित है । इस तथ्य को स्वीकार करना भी आवश्यक है कि प्रभु का समय हमसे भिन्न है । कभी-कभी हम आशीष की तलाश करते हैं और इसे पूरा करने के लिए प्रभु के लिए समय सीमा निर्धारित करते हैं । हम अपनी इच्छाओं को पूरा करने की समय सीमा पर उस पर लागू करके उस पर अपनी विश्वासनीयता की शर्त नहीं रख सकते । जब हम ऐसा करते हैं, तो हम प्राचीन काल में संदेह करने वाले नफाइयों के समान हैं, जिन्होंने यह कहकर अपने भाइयों का मजाक उड़ाया कि सेमुअल लामनाई द्वारा कहे गए शब्दों का पूरा होने का बीत चुका था, जो उन लोगों के बीच भ्रम पैदा करते थे । परमेश्वर अभी भी यह जानने के लिये पर्याप्त और जानता है कि वह परमेश्वर है, कि वह सभी बातों को जानता है, और वह हम में से प्रत्येक के बारे में जानता है ।
मुझे हाल ही में फ्रैंका कैलामासी नामक एक विधवा बहन की सेवकाई करने का अवसर मिला, जो एक दुर्बल करने वाली बीमारी से पीड़ित है । बहन कैलामासी अपने परिवार की पहली सदस्या थी जो यीशु मसीह के पुनास्थापित गिरजे में शामिल हुई थी । हालांकि उसके पति ने कभी बपतिस्मा नहीं लिया थे, लेकिन उसने प्रचारकों से मिलने के लिए सहमति जताई और अक्सर गिरजे की सभाओं में भाग लेता था । इन परिस्थितियों के बावजूद, बहन कैलामासी वफादार रही और अपने चार बच्चों का यीशु मसीह के सुसमाचार में पोषण किया । अपने पति के निधन के एक साल बाद, बहन कैलामासी अपने बच्चों को मंदिर ले गई, और उन्होंने पवित्र विधियों में भाग लिया और एक परिवार के रूप में एक साथ मुहरबंद हो गए थे । इन विधियों से जुड़ी प्रतिज्ञाओं से उसे बहुत आशा, आनंद और प्रसन्नता मिली, जिसने उसे जीवन में आगे बढ़ने में मदद की थी ।
जब बीमारी के पहले लक्षण दिखाई देने लगे, तो उसके धर्माध्यक्ष ने उसे आशीष दी । उस समय उसने अपने धर्माध्यक्ष को बताया कि वह परमेश्वर की इच्छा को स्वीकार करने के लिए तैयार थी, बीमारी से ठीक होने के लिये अपने विश्वास के साथ-साथ अंत तक बीमारी को सहने के विश्वास को भी व्यक्त किया था ।
उस समय उसने अपने धर्माध्यक्ष को बताया कि वह परमेश्वर की इच्छा को स्वीकार करने के लिए तैयार थी, बीमारी से ठीक होने के लिये अपने विश्वास के साथ-साथ अंत तक बीमारी को सहने के विश्वास को भी व्यक्त किया था । मैंने दृढ़ विश्वास के साथ अंत तक उसके विश्वास में अटल रहते हुए अपने क्रूस को उठाने का दृढ़ निश्चय उसमें महसूस किया, उन चुनौतियों का सामना करने के बावजूद भी जिसका सामना वह कर रही थी । इस बहन का जीवन मसीह की गवाही है, जो उसके विश्वास और उसके प्रति समर्पण की एक अभिव्यक्ति है ।
भाइयों और बहनों, मैं आपको इस बात की गवाही देना चाहता हूं कि हमें अपना क्रूस उठाने और उद्धारकर्ता का अनुसरण करने के लिए हमें उसका उदाहरण का पालन करना होगा और उसके जैसा बनने का प्रयास करना होगा, धैर्यपूर्वक जीवन की परिस्थितियों का सामना करना, प्राकृतिक मनुष्यों की लालसाओं से घृणा और इनकार करना होगा, और प्रभु की प्रतीक्षा करनी होगी । भजनकार ने लिखा था:
“यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बांद और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां यहोवा ही की बाट जोहता रहत ।”
“वह हमारा सहायक और हमारी ढाल ठहरा है ।”
मैं आपको इस बात की गवाही देता हूं कि हमारे स्वामी, के नक्शेकदम पर चलने और उसकी प्रतिक्षा करने से, जो हमारे जीवन का अंतिम उपचारक है, हमारी आत्मा को आराम प्रदान करेगा और हमारे बोझ को आसान और हल्का बना देगा । इन बातों की मैं यीशु मसीह के पवित्र नाम में गवाही देता हूं, आमीन ।