महा सम्मेलन
आपार संपत्ति
अक्टूबर 2021 महा सम्मेलन


12:44

आपार संपत्ति

हम में से प्रत्येक को अपने सुसमाचार के लिए सुदृढ़ प्रतिबद्धता के साथ मसीह के पास आना है।

धर्मशास्त्र एक अमीर युवा शासक की बात करते हैं, जो यीशु के पास आया, उसके पैरों पर गिरा और गंभीरता से, पूछा, “मैं क्या करूं कि मैं अनन्त जीवन का वारिस हो सकूं?” इस युवा शासक की ईमानदारी पालन की गई आज्ञाओं की एक लंबी सूची की समीक्षा करने के बाद, यीशु ने उससे कहा कि वह अपना सबकुछ बेचकर गरीबों को दान दे दे, अपना क्रूस ले, और उसका अनुसरण करे। इस कठोर सलाह के कारण युवा शासक के पैर—महंगी जूतियां पहने होने के बावजूद—ठंड से अकड़ गए , और वह दुखी होकर चला गया क्योंकि, धर्मशास्त्र बताता है, “उसके पास आपार संपत्ति थी।”1

स्पष्ट है, यह धन के उपयोग और गरीबों की जरूरतों के बारे में एक चेतावनी-भरी महत्वपूर्ण कहानी है। लेकिन अंततः यह संपूर्ण दिल से, दिव्य जिम्मेदारी के प्रति निष्कपट समर्पण की कहानी है। धन के साथ या बिना धन के, हम में से प्रत्येक को मसीह के सुसमाचार के प्रति उसी प्रतिबद्धता के साथ उसके पास आना है जैसी इस युवक से अपेक्षा की गई थी। आज के युवाओं की विशेष बोलचाल में, हम “सभी को” इसके प्रति संपूर्ण रूप से समर्पित होना है।2

अपने विशेष स्मरणीय लेख में, सी. एस. लुईस कल्पना करता है कि प्रभु मानो हमें इस प्रकार कह रहा है: “मुझे न तो आपका समय चाहिए … [न ही] आपके पैसे … [न ही] आपका काम, मैं [केवल इतना] चाहता हूं कि आप मेरा अनुसरण करो और मेरे शिष्य बनो। [जिस व्यक्तित्व को आप सुधारना चाहते हैं।] मैं थोड़ा यहां और थोड़ा वहां सुधार नहीं करना चाहता, … मैं [इसे] संपूर्ण रूप से बदलना चाहता हूं । [और वह दोष।] मैं [इसे] छांटना, या इसे ढकना, या इसे [छिपाना] नहीं चाहता हूं। [मैं चाहता हूं] कि इसे पूरी तरह से दूर किया जाए। [असल में, मैं चाहता हूं] संपूर्णरूप से [आप] मेरे प्रति समर्पित हो जाएं। … [और] बदले में, मैं आपको आपका नया व्यक्तित्व प्रदान करूंगा। असल में, मैं स्वयं को आपको दे दूंगा। मेरी … इच्छा [आपकी इच्छा] बन जाएगी।’”3

वे सभी जो इस महा सम्मेलन में हमसे बात करेंगे, किसी न किसी प्रकार से वही कहेंगे, जो मसीह ने अमीर युवा शासक से कहा था: “अपने उद्धारकर्ता के पास आओ। संपूर्णरूप से और पूरे मन से आओ। अपना क्रूस उठाओ और उसका अनुसरण करो, चाहे यह कितना भी चुनौतीपूर्ण लगता हो।”4 वे यह सब इसलिए कहेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि परमेश्वर के राज्य में, थोड़ा प्रयास करना, अभी शुरु करना और फिर ठहर जाना, पीछे मुड़ना नहीं हो सकता है। उन लोगों के लिए जिन्होंने मृत माता-पिता को दफनाने या परिवार के अन्य सदस्यों से विदा लेने के लिए समय मांगा था, यीशु का जवाब चुनौतीपूर्ण और स्पष्ट था। “उसे दूसरों के लिए छोड़ दें” उसने कहा था। “जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।”5 जब हमें कठिन कार्य करने के लिए कहे जाते हैं, बेशक ये हमारे दिल की अभिलाषा के विपरीत ही क्यों ने हों, तो याद रखें कि मसीह के कार्य के प्रति हम जिस वफादारी की प्रतिज्ञा करते हैं, उसे हमारे जीवन का सर्वोच्च समर्पण होना चाहिए है। यद्यपि यशायाह आश्वासन देता है कि यह हमें “बिन रूपए और बिन दाम के उपलब्ध है,”6—फिर भी—हमें टी. एस. एलियट की पंक्ति के अनुसार, इसके लिए हमें अपना “सबकुछ त्याग करने” के लिए तैयार रहना चाहिए।7

बेशक, हम सभी की कुछ आदतें या कमियां या व्यक्तिगत अतीत होता है जो हमें इस काम में संपूर्ण आत्मिकता से तैयार नहीं होने देता है। लेकिन परमेश्वर हमारा पिता है और क्षमा करने और उन पापों को भूलने में असाधारण रूप से भला है जिनका हमने त्याग कर दिया है, शायद इसलिए क्योंकि हम बार-बार पाप करते हैं और परमेश्वर के पास हमें क्षमा करने और हमारे पापों को भूलने के बहुत अवसर होते हैं। चाहे कुछ भी हो, हम में से प्रत्येक के लिए दिव्य मदद हर समय उपलब्ध है जब भी हम अपने व्यवहार में परिवर्तन करना महसूस करते हैं। परमेश्वर ने शाउल का “मन परिवर्तन” किया था।8 यहजकेल ने प्राचीन इस्राएल को उसके पिछले इतिहास को भूल कर “नया हृदय और नई आत्मा पाने” की आज्ञा दी थी।9 अलमा ने “महान परिवर्तन” करने की आज्ञा दी थी10 जिससे आत्मा का विकास होगा, और यीशु ने स्वयं सीखाया था कि जबतक “कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।”11 स्पष्ट रूप से परिवर्तन करने और ऊंचे स्तर का जीवन जीने की संभावना हमेशा उन लोगों के लिए परमेश्वर के उपहारों में से एक रही है जो इसे चाहते हैं।

मित्रों, हमारे वर्तमान समय में हमें सभी तरीके की फूट और विभाजन, समूह और वर्ग, डिजिटल समाज और राजनीतिक व्यक्तित्व मिल जाएंगे, जिनमें आपस में जरूरत से अधिक शत्रुता मौजूद है। हमें स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या हम अध्यक्ष नेलसन के शब्दों के अनुसार, एक “उच्च और पवित्र”12 जीवन जीने का प्रयास कर सकते हैं? ऐसा करते समय, हम अच्छी तरह से याद कर सकते हैं कि मॉरमन की पुस्तक में है एक आश्चर्यजनक अवधि है जिसमें उन लोगों ने उस प्रश्न को पूछा और उसका स्वीकारात्मक रूप से जवाब दिया था:

“और ऐसा हुआ कि पूरे प्रदेश के सभी लोगों में कोई भी विवाद नहीं था; … परमेश्वर के उस प्रेम के कारण जो कि लोगों के हृदयों में बसा था

“और कोई शत्रुता नहीं थी, न ही झगड़ा, … और न ही किसी प्रकार की कामुकता थी; और जितने लोग परमेश्वर के हाथों द्वारा रचे गए थे, उन सारे लोगों में निश्चय ही इन लोगों से अधिक कोई भी आनंदमय नहीं था।

“कोई डाकू नहीं थे, न ही कोई हत्यारे, न ही लमनाई थे, न ही किसी प्रकार की कोई भिन्नता थी; परन्तु वे एक थे, मसीह के बच्चे, और परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी।

और वे कितने आशीषित थे!13

इस संतुष्ट, सुखी जीवन जीने का रहस्य क्या है? यह रहस्य इस एक वाक्य में छिपा है: “परमेश्वर के उस प्रेम के कारण जो कि लोगों के हृदयों में बसा था।”14 जब परमेश्वर का प्रेम हमारे अपने जीवन के लिए, एक दूसरे के प्रति हमारे संबंध के लिए और अंततः संपूर्ण मानव जाति के प्रति हमारी भावना को तैयार करता है, तो फिर पुराने मतभेद, गुटबाजी, और कृत्रिम बटवारा दूर होने लगता है, और शांति बढ़ जाती है। ठीक यही हमारी मॉरमन की पुस्तक के उदाहरण में हुआ था। अब वहां कोई लमानाई, या जैकोबाई, या जोसफाई, या जोरमाई नहीं थे। उन में कोई “भिन्नता” नहीं थी । उन लोगों ने सिर्फ एक नई उत्कृष्ट पहचान अपना ली थी। लिखा है, वे “मसीह के बच्चों के रूप में जाना जाते थे।”15

बेशक, हम यहां मानव परिवार को दी गई पहली महान आज्ञा के बारे में बात कर रहे हैं—संपूर्ण दिल से परमेश्वर से प्रेम करना है, बिना शर्त या समझौते के, यानि, हमारे संपूर्ण दिल, शक्ति, मन, और ताकत से।16 जगत में परमेश्वर के इस प्रकार के प्यार की यह प्रथम महान आज्ञा है। लेकिन इस जगत में प्रथम महान सच्चाई यह है कि परमेश्वर हमें ठीक उसी प्रकार —संपूर्णरूप से, बिना शर्त या समझौते के, अपने हृदय, बल, मन, और शक्ति से प्यार करता है। और जब उसके और हमारे हृदय की तेजस्वी शक्तियां बिना किसी अवरोध के मिलती हैं, तो आत्मिक और नैतिक शक्ति में अत्यधिक वृद्धि होती है। जैसा कि तेलहार्ड डी चार्डिन ने लिखा था, फिर, “दुनिया के इतिहास में दूसरी बार, मनुष्य आग की खोज करेगा।”17

फिर तब, और वास्तव में तभी, हम सतही या मामूली रूप से नहीं बल्कि प्रभावी ढंग से दूसरी महान आज्ञा का पालन कर सकते हैं। यदि हम परमेश्वर से पर्याप्त प्रेम करते हैं कि हम उसके प्रति पूरी तरह से निष्ठावान होने का प्रयास करें, तो वह हमें हमारे पड़ोसी और स्वयं से प्रेम करने की योग्यता, क्षमता, इच्छाशक्ति और मार्ग प्रदान करेगा। शायद तब हम फिर से कह पाएंगे, “जितने लोग परमेश्वर के हाथों द्वारा रचे गए थे, उन सारे लोगों में निश्चय ही इन लोगों से अधिक आनंदमय कोई भी नहीं था।”18

भाइयों और बहनों, मैं प्रार्थना करता हूं कि हम उस कार्य में सफल होंगे, जिसमें वह अमीर युवा शासक विफल रहा था, कि हम मसीह का क्रूस उठाएंगे, चाहे यह कितना भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो, कठिनाइयों और बलिदान की परवाह किए बिना। मैं गवाही देता हूं कि जब हम उसका अनुसरण करने की प्रतिज्ञा करते हैं, तो मार्ग में, किसी न किसी प्रकार से, कठिन चुनौतियों और परीक्षाओं और रोमी सलीब का सामना करना पड़ सकता है। बेशक हमारा युवा शासक बहुत अमीर था, लेकिन वह इतना अमीर नहीं था कि वह उद्धारकर्ता के प्रायश्चित और पुनरुत्थान से बचने की कीमत चुका पाता, और न ही हम चुका सकते हैं। क्योंकि सभी उपहारों में महानत्तम—अनंत जीवन को प्राप्त करने की आशीष—की तुलना में यह बहुत कम है कि हमें हमारे महायाजक, भोर के तारे, मध्यस्थ, और राजा का अनुसरण करने के लिए कहा जाता है। मैं प्राचीन अमालेकी के साथ गवाही देता हूं कि हम में से प्रत्येक, “अपनी पूरी आत्मा को उसे भेंट चढ़ा दे।”19 इस तरह की दृढ़ भक्ति के प्रति, हम गाते हैं:

उस पर्वत की प्रशंसा हों; जिस पर मैं स्थिर हूं

आपका मुक्ति दिलाने वाले प्रेम का पर्वत। …

यह मेरा हृदय है, ओ इसे लो और मुहरबंद करो;

अपने स्वर्ग के राज्यों के लिए इसे मुहरबंद करो।20

यीशु मसीह के पवित्र नाम में, आमीन।