2010–2019
क्या हम उस पर भरोसा करते हैं ? कठिन अच्छा है
अक्टूबर 2017


2:3

क्या हम उस पर भरोसा करते हैं ? कठिन अच्छा है

कारण कुछ भी हो, कठिन उनके लिये अच्छा होता है जो विश्वास से आगे बढ़ेंगे और प्रभु और उसकी योजना पर भरोसा रखते हैं ।

शुरू होने से पहले, जैसा कि हम सभी ने हाल ही में तूफान और भूकंप के तबाही के कारण प्रभावित हुए हैं , मैं सभी मददगार हाथों और उनके सहयोगियों के लिए अपनी हार्दिक सराहना व्यक्त करता हूं, जिन्होंने हमें मदद और आशा दी।

अक्टूबर 2006 में, मैंने अपनी पहली महा सम्मेलन वार्ता दी थी । मैंने विश्वव्यापी गिरजे के लिये एक महत्वपूर्ण संदेश देना सोचा था जिसमें दावा था “प्रभु हम पर भरोसा करता है !”

वह सच मे हम पर बहुत तरह से भरोसा करता है । उसने हमें यीशु मसीह का सुसमाचार दिया, और इस प्रबंध में, इसकी परिपूर्णता । हमें अपने पौरोहित्य अधिकार को उचित रूप से उपयोग करने के लिये संपूर्ण कुंजियों सहित देकर वह हम पर भरोसा करता है । इस शक्ति के साथ, हम आशीष दे सकते हैं, सेवा कर सकते हैं, विधियों को प्राप्त कर सकते हैं, और अनुबंधों को बना सकते हैं । वह हमें पुनास्थापित गिरजा देकर हम पर भरोसा करता है, पवित्र मंदिर सहित । वह मुहरबंदी के अधिकार के साथ अपने सेवकों पर भरोसा करता है -- पृथ्वी और स्वर्ग में बांधने के लिये ! वह अपने बच्चों को देकर हमें संसारिक माता-पिता, शिक्षक होने, और देख-भाल करने के लिये हम पर भरोसा करता है ।

इन वर्षों में विश्व के बहुत से हिस्सों में महा अधिकारियों की सेवा के बाद, मैं अधिक निश्चितरूप से कहता हूं: वह हम पर भरोसा करता है ।

अब, इस महा सम्मेलन का प्रश्न है, क्या हम उस पर भरोसा करते हैं ?

क्या हम उस पर भरोसा करते हैं ?

अध्यक्ष थॉमस एस. मॉनसन अक्सर हमें याद दिलाते हैं, “अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन संपूर्ण मन से प्रभु पर भरोसा रखना ।

उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वे तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा ।

अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना” ( नीतिवचन 3:5–7) ।

क्या हम भरोसा करते हैं कि उसकी आज्ञाएं हमारे भले के लिये हैं ? उसके मार्गदर्शक, यद्यपि अपरिपूर्ण, उचित मार्गदर्शन करते हैं ? उसकी प्रतिज्ञाएं दृढ़ हैं ? क्या हम भरोसा करते हैं कि स्वर्गीय पिता और यीशु मसीह हमें जानते हैं और हमारी मदद करना चाहते हैं ? यहां तक कि परिक्षाओं, चुनौतियों, कठिन परिस्थितियों में, और कठिन समयों में क्या हम उस पर फिर भी भरोसा करते हैं ?

पीछे देखते हुए, मैंने कुछ सबसे अच्छे पाठ कठिन समयों में सीखे हैं--चाहे युवा के रूप में, मिशन पर, नया रोजगार आरंभ करते समय, बुलाहटों को पूरा करते समय, बड़े परिवार को पालते हुए, या आत्म-निर्भर होने के लिये संघर्ष करते हुए । ऐसा लगता है कि कठिन अच्छा है !

कठिन अच्छा है

कठिन हमें अधिक मजबूत, विनम्र बनाता, और हमें स्वयं को साबित करने का मौका देता है । हमारे प्रिय हाथ-गाड़ी पथप्रदर्शकों ने परमेश्वर को अपनी कठिनाइयों में जाना था । नफी और उसके भाइयों को पीतल की पट्टियों को प्राप्त करने में दो अध्याय क्यों लगे और उन्हें निर्जन प्रदेश में उनके साथ शामिल होकर उन्हें सहयोग देने में इश्माएल के परिवार को केवल तीन आयतें क्यों लगी ?( देखें1 नेफी 34; 7:3–5) ऐसा लगता है प्रभु पट्टियां प्राप्त करने के लिये संघर्ष के द्वारा नफी को मजबूत करना चाहता था ।

हमारे जीवन में कठिन बातें होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । सबसे पहले अनुबंध जो हम प्रभु के साथ बनाते हैं उनमें से एक है बलिदान के नियम का पालन करना । बलिदान की परिभाषा किसी प्रिय वस्तु का त्याग करना है । अनुभव से हम महसूस करते हैं कि जो आशीष हम प्राप्त करते हैं उसके मुकाबले यह एक छोटी कीमत है । जोसफ स्मिथ ने कहा था, “ऐसा धर्म जिसमें सब बातों का बलिदान करने की जरूरत नहीं होती, उसमें जीवन और उद्धार के लिये आवश्यक विश्वास उत्पन्न करने की शक्ति नहीं होती है ।”

परमेश्वरत्व के सदस्यों के लिये कठिन बातें आश्चर्य की बात नहीं है । पिता ने अपने एकलौते पुत्र को सलीब द्वारा मौत सहित प्रायश्चित की भंयकर पीड़ाओं के लिये बलिदान किया । धर्मशास्त्र बताते हैं यीशु मसीह ने “दुख उठाकर आज्ञा माननी सीखी” (इब्रानियों 5:8) । उसने स्वेच्छा से प्रायश्चित की पीड़ा को सहा । पवित्र आत्मा को हमें प्रेरणा देने, चेतावनी देने, और मार्गदर्शन करने में सहनशील होना पड़ता है, केवल कभी-कभी अनदेखा, गलत अर्थ देने, या भूलने के लिये ।

योजना का हिस्सा

कठिन, सुसमाचार की योजना का हिस्सा है । साबित किया जाना इस जीवन के उद्देश्यों में से एक (देखें इब्राही्म 3:25) । अलमा के लोगों के मुकाबले कुछ लोगों ने बिना कारण अधिक कष्ट सहे थे । वे दुष्ट राजा नूह से भाग कर लमनाइयों के गुलाम बनने के लिये ! उन परिक्षाओं के द्वारा परमेश्वर ने उन्हें सीखाया कि वह अपने लोगों को दंड देता और “उनके धैर्य और उनके विश्वास” की परिक्षा लेता है (मुसायाह 23:21) ।

लिब्रटी जेल में भंयकर दिनों के दौरान, प्रभु ने जोसफ स्मिथ को सीखाया “अंत तक सहो” (D&C 121:8)) और वादा किया यदि वह अंत तक सहता है तो “ये सब बातें तुम्हें अनुभव देंगी और तुम्हारी भलाई के लिये होंगी” (D&C 122:7) ।

अध्यक्ष थॉमस स. मॉनसन ने प्रार्थना की है, “हम आसन गलत के स्थान पर हमेशा कठिन सही का चुनाव करें ।” हमारे मंदिरों के संबंध में, उन्होंने कहा “मंदिर की आशीष प्राप्त करने के लिये कोई भी बलिदान बहुत बड़ा नहीं है, कोई भी कीमत बहुत अधिक नहीं है, कोई भी संघर्ष बहुत कठिन नहीं है ।”

प्राकृतिक संसार में, कठिन, जीवन का चक्र हिस्सा है । चूजे के लिये अंडे के खोल को तोड़ना कठिन है । लेकिन जब कोई अन्य इसे आसान बनाता है, तो चूजा जीवित रहने के लिये आवश्यक ताकत का विकास नहीं कर पाता । उसी तरह, तितली के लिये कोकून तोड़कर बाहर निकलने का संघर्ष उसे जीवन जीने के लिये मजबूत करेगा ।

इन उदाहरणों के द्वारा, हम देखते हैं कि कठिन स्थाई है ! हम सबों के पास चुनौतियां हैं । कठिन के प्रति हमारी प्रतिक्रिया परिवर्तनशील है ।

एक स्थान पर मॉरमन की पुस्तक के लोगों ने “अत्याधिक उत्पीड़न सहा और भारी कष्ट उठाया” (हिलामन 3:34) । उन्होंने कैसे प्रतिक्रिया की ? “उन्होंने उपवास और प्रार्थना की, और अपनी विनम्रता में मजबूत और मजबूत होते गए, और अपनी आत्माओं को आनंद और आश्वासन से भरते हुए मसीह के विश्वास में दृढ़ और दृढ़ होते गए” (हिलामन 3:35) । अन्य उदाहरण वर्षों के युद्ध के बाद हुआ । “नफाइयों और लमनाइयों के बीच के इस युद्ध के कारण कई लोग कठोर हो गए थे, … और कई लोग अपने कष्टों के कारण नरम हो गए थे, इतना अधिक कि उन्होंने विनम्रता की गहराई में परमेश्वर के समाने स्वयं को विनम्र कर लिया था” (अलमा 62:41) ।

हम में से प्रत्येक कठिन की प्रतिक्रिया का चुनाव करता है ।

आसान से सतर्क रहो

इस नियुक्ति से पहले मैं ह्यूस्टन, टैक्सास में आर्थिक सलाहकार था । मेरा अधिकतर कार्य करोड़पतियों के साथ था जिनके पास स्वयं के व्यवसाय थे । लगभग सभी ने अपने अत्याधिक कठोर परिश्रम के द्वारा शून्य से अपना सफल व्यवसाय बनाया था । मेरे लिये यह सुनना दुख की बात थी कि उनमें से कुछ कहते थे कि वे अपने बच्चों के लिय इसे आसान बनाना चाहते हैं । वे नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे उनके समान कठोर परिश्रम करें । अन्य शब्दों में, वे अपने बच्चों को उस बात से दूर रखना चाहते हैं जिसने उन्हें सफल बनाया था ।

इसके विपरीत, हम एक ऐसे परिवार को जानते हैं जिसने अलग मार्ग अपनाया था । वे माता-पिता जे. सी. पेनी के अनुभव से प्रेरित थे जहां उसके पिता ने उसे कहा था जब वह आठ वर्ष का हुआ कि उसे आर्थिक रूप से स्वयं की मदद करनी है । उन्होंने अपना स्वयं का तरीका अपनाया: जब प्रत्येक बच्चा हाई स्कूल तक पढ़ा, वे आर्थिकरूप से स्वयं की मदद करने लगा--अपनी आगे पढ़ाई के लिये, अपनी आर्थिक जरूरतों के लिये (सच में आत्म-निर्भर) (देखें D&C 83:4). । सौभाग्य से, उनके बच्चों ने बुद्धिमानी से प्रतिक्रिया की । वे सभी कॉलेज स्नातक हैं, और बहुतों ने विद्यालय पूरा कर लिया---सबकुछ अपने द्वारा । यह आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने इसे किया । उन्होंने इसे कठिन परिश्रम और विश्वास से किया ।

उस में भरोसा करने के लिये विश्वास

प्रश्न, क्या हम उस पर भरोसा करते हैं ? बेहतर तरीके से कहा जा सकता है, क्या हमारे पास उस में भरोसा करने के लिये विश्वास है ?

क्या हमारे पास दसमांश के संबंध में उसके वादों पर भरोसा है कि हम अपनी आय के 90 प्रतिशत के साथ प्रभु की मदद, के मुकाबले अपनी आय का 100 प्रतिशत और अपनी मदद आप, में ठीक हैं ?

क्या हमारे पास पर्याप्त विश्वास है भरोसा करने के लिये कि वह हमारे कष्टों में हमारे पास आएगा (देखें मुसायाह 24:14), कि वह उनसे लड़ेगा जो हम से लड़ते हैं (देखें यशायाह 49:25; 2 नफी 6:17), और कि वह हमारे कष्टों को हमारे लाभ के लिये समर्पित करेगा (देखें 2 नफी 2:2) ?

क्या हम उसकी आज्ञाओं का पालन करने के लिये आवश्यक विश्वास का उपयोग करेंगे ताकि वह हमें संसारिक और आत्मिक दोनों तरह से आशीष कर सके ? क्या हम अंत तक विश्वसनीय बने रहेंगे ताकि वह हमें अपनी उपस्थिति में ग्रहण कर सके ? (देखें मुसायाह 2:41) ।

भाइयों और बहनों, हम उस पर भरोसा रखने के लिये विश्वास कर सकते हैं ! वह हमारे लिये सर्वोत्तम चाहता है (मूसा 1:39) । वह हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देगा (देखें सिऔरअ 112:10) । वह अपनी प्रतिज्ञाओं का पालन करेगा (देखें सिऔरअ 1:38) । उसके पास उन प्रतिज्ञाओं का पालन करने की शक्ति है (देखें अलमा 37:16) । वह सबकुछ जानता है ! और अधिक महत्वपूर्ण, वह जानता क्या उत्तम है (देखें यशायाह 55:8–9) ।

खतरनाक संसार

आज हमारा संसार मुश्किल है । हमारे पास अनियंत्रित बुराई, प्रत्येक राष्ट्र में भ्रष्टाचार, आंतकवाद सुरक्षित स्थानों तक पहुंच रहा है, अर्थव्यवस्था गिर रही है, बेरोजगारी, बीमारी, प्राकृतिक आपदाएं, ग्रहयुद्ध, उग्रवादी नेता, इत्यादि । हमें क्या करना चाहिए ? क्या हमें भागना है या लड़ना ? सही क्या है ? कोई भी चुनाव खतरनाक हो सकता है । यह जार्ज विशिंगटन और उसकी सेनाओं के लिये युद्ध करना खतरनाक था लेकिन हमारे पथप्रर्शक पूर्वजों के लिये भागना भी । नेल्सन मंडेला के लिये आजादी का संघर्ष करना खतरनाक था । ऐसा कहा जाता है कि बुराई को जीतने के लिये, अच्छे लोगों को कुछ भी करने की जरूरत नहीं है ।

डरे नहीं !

जोकुछ भी हम करते हैं, हमें निश्चय नहीं करना चाहिए और न ही डर की आत्मा से कार्य करना चाहिए, “परमेश्वर ने हमें डर की आत्मा नहीं दी है” (2 तीमुथियुस 1:7) । (क्या आप महसूस करते हैं कि संपूर्ण धर्मशास्त्र में “डरे नहीं” के विचार पर जोर डाला गया है ?) प्रभु ने मुझे सीखाया कि निराशा और डर शैतान के औजार हैं । कठिन समयों के लिये प्रभु का जवाब विश्वास के साथ आगे बढ़ना है ।

कठिन क्या है ?

कठिन क्या है के विषय में हम में से प्रत्येक पास भिन्न राय हो सकती है । कुछ सोचते हैं जब आर्थिक स्थिति तंग हो तो दसमांश देना कठिन है । कभी कभी मार्गदर्शक के लिये यह आशा करना कठिन होता है कि गरीब दसमांश दें । कुछ के लिये विश्वास से विवाह करना या परिवार पाना कठिन होता है । कुछ ऐसे होते हैं जिनके लिये उससे “संतुष्ट होना कठिन होता है जो परमेश्वर ने उन्हें दिया है” (अलमा 29:3) । अपनी वर्तमान नियुक्ति में संतुष्ट होना कठिन हो सकता है (देखें अलमा 29:3) । गिरजा का अनुशासन बहुत कठिन लग सकता है, लेकिन कुछ के लिये यह सच्चे पश्चाताप की प्रक्रिया आरंभ करना बताता है ।

कारण कुछ भी हो, कठिन उनके लिये अच्छा होता है जो विश्वास से आगे बढ़ेंगे और प्रभु और उसकी योजना पर भरोसा करते हैं ।

मेरी गवाही

मेरे भाइयों और बहनों, मैं गवाही देता हूं कि ये मार्गदर्शक जो मेरे पीछे बैठे हैं परमेश्वर द्वारा नियुक्त किये गये हैं । उनकी इच्छा प्रभु की अच्छी सेवा और हमारे हृदयों में सुसमाचार स्थापित करने में मदद करना है । मैं उनसे प्रेम और उनका समर्थन करता हूं ।

मैं हमारे उद्धारकर्ता, यीशु मसीह से प्रेम करता हूं । मुझे आश्चर्य होता है कि उसने पिता और हम से हमारा उद्धारकर्ता और मुक्तिदाता बनने के लिये पर्याप्त प्रेम किया, कि ऐसा करने के द्वारा उसे इतना कष्ट सहना पड़ा कि वह “दर्द के कारण थर्राने, और प्रत्येक रोम छिद्र से लहू बह निकलने, और शरीर और आत्मा दोनों कष्ट सहने के लिये मजबूर किया” (सिऔरअ 19:18) । फिर भी इस भयानक संभावना और इसकी जरूरत का सामना किया, उसने पिता से दृढ़ता पूर्वक कहा, “मेरी नहीं, अपितु, तेरी इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42) । मैं स्वर्गदूत के शब्दों में खुश होता हूं: “वह यहां नहीं है: परंतु जी उठा है” (मत्ती 28:6) ।

उसका उदाहरण वास्तव में “मार्ग और सच्चाई और जीवन है” (यूहन्ना 14:6) । केवल इस उदाहरण का अनुसरण करके हम “इस संसार में शांति, और आने वाले संसार में अनंत जीवन” पा सकते हैं । (सिऔरअ 59:23) । जैसा कि मैंने उनके उदाहरणों का पालन किया है और उनकी शिक्षाओं को लागू किया है, मैंने अपने लिए सीखा है कि उनके प्रत्येक “बहुत महान और बहुमूल्य वादों” (2 पीटर 1:4 )सही हैं।

मेरी महानत्तम इच्छाएं मॉरमन के साथ यीशु मसीह के सच्चे शिष्य के रूप में खड़े होना (3 नेफी 5:13) और एक दिन उसके होंठों से यह सुनना है, “धन्य है अच्छे और विश्वासयोग्य दास” () मत्ती 25:21)) । यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।

विवरण

  1. विश्वास पर व्याख्यान (1985), 69.

  2. थॉमस स. मोनसोन, “Choices,” Liahona, मई 2016, 86.

  3. थॉमस स. मोनसोन, “The Holy Temple—a Beacon to the World,” Liahona, मई 2011, 92.

  4. देखें जॉन स्तुयत मिल, Inaugural Address: Delivered to the University of St. Andrews, Feb. 1, 1867 (1867), 36.