जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी है
यदि हम चाहते हैं हम में मसीह निवास करें और उसे हम में निवास करने दें, तो हमें पवित्रता को मांगना चाहिए ।
यीशु के चमत्कारिकरूप से गलील में 5000 को केवल “जव की पांच रोटी और दो छोटी मछलियां खिलाने के बाद,” उसने लोगों से फिर कफरनहूम में बातें की । उद्धारकर्ता जान गया था कि बहुत से उसकी शिक्षाओं में इतनी अधिक रूचि नहीं रखते थे जितने फिर से खिलाए जाने के लिये । इस कारण, उसने उन्हें अधिक मूल्यवान “भोजन के लिये” समझाने का प्रयास किया “जो अनंत जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा ।” यीशु ने घोषणा की:
“जीवन की रोटी मैं हूं ।
“तुम्हारे बापदादों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए ।
“यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उसमें से खाए और न मरे ।
“जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूं । यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूंगा, वह मेरा मांस है ।”
उद्धारकर्ता के प्रयोजन उसके सुनने वालों द्वारा बिलकुल ही गलत अर्थ में लिये गये थे जिन्होंने उसके कथन को केवल वस्तुत: लिया था । उस विचार से घबराते हुए, उन्होंने सोचा, “यह मनुष्य क्योंकर हमें अपना मांस खाने को दे सकता है ?” यीशु ने इस नियम को समझाया:
“मैं तुम से सच सच कहता हूं जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लहू न पीयो, तुम में जीवन नहीं ।
“जो मेरा मांस खाता, और मेरा लहू पीता है, अनंत जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिन्दा कर दूंगा ।
“क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है ।”
उसने फिर अपनी बात का गहरा अर्थ व्यक्त किया:
“वह जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उस में ।
“जैसा जीवित पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूं वैसा है वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा ।”
फिर भी उसके सुनने वाले समझ नहीं पाए कि यीशु क्या रह था, और “बहुतों … ने यह सुनकर कहा, कि यह बात नागवार है; इसे कौन सुन सकता है ? … इस पर उसके चेलों में से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले ।”
उसका मांस खाना और उसका लहू पीना यह इसे व्यक्त करने का एक असामान्य तरीका है कि हम कितने पूर्णरूप से उद्धारकर्ता को अपने जीवन में लाते हैं--अपने भीतर--ताकि हम एक हो सकें । यह कैसे होता है ?
सर्वप्रथम, हम समझते हैं कि अपने शरीर और लहू का बलिदान करने के द्वारा, यीशु मसीह ने हमारे पापों का प्रायश्चित और मृत्यु को पराजित किया, शारीरिक और आत्मिक दोनों तरह से । फिर स्पष्टरूप से, हम उसके शरीर में भाग लेते हैं और उसके लहू को पीते हैं जब उसके प्रायश्चित की शक्ति और आशीषों को प्राप्त करते हैं ।
मसीह का सिद्धांत व्यक्त करता है कि प्रायश्चित अनुग्रह प्राप्त करने के लिये हमें क्या करना चाहिए । यह भरोसा करना और मसीह में विश्वास करना, पश्चाताप करना और बपतिस्मा लेना और पवित्र आत्मा प्राप्त करना, “और फिर आता है आग और पवित्र आत्मा द्वारा तुम्हारे पापों का क्षमा किया जाना ।” यह वह द्वार है, जो उद्धारकर्ता के प्रायश्चित अनुग्रह और तंग और संकरे मार्ग में हमें प्रवेश कराके उसके राज्य को ले जाता है ।
“इसलिए, यदि तुम, मसीह की वाणी का प्याला पीते हुए, और अंत तक धीरज धरते हुए, आगे बढ़ते रहोगे, सुनो, पिता इस प्रकार कहता है: तुम्हें अनंत जीवन मिलेगा ।”
“ … सुनो, यह मसीह का सिद्धांत है, और पिता का, और पुत्र का, और पवित्र आत्मा का, एकमात्र और सच्चा सिद्धांत है, जोकि एक परमेश्वर है, जिसका कोई अंत नहीं ।”
प्रभु-भोज का रीति का प्रतीकात्मकता विचार करने के लिये यह बहुत ही सुंदर है । रोटी और पानी उसके शरीर और लहू को दर्शाते हैं जो जीवन की रोटी और जीवन का जल है, कोमलता से हमें उस कीमत का स्मरण कराता है जिसका भुगतान उसने हमें मुक्त कराने के लिए किया था । जब रोटी तोड़ी जाती है हम उद्धारकर्ता के टुटे शरीर के कष्ट को स्मरण करते हैं । एल्डर डालिन एच. ओक्स ने एक बताया था कि “क्योंकि यह तोड़ा और फाड़ा गया था, रोटी का प्रत्येक टुकड़ा अनूठा है, ठीक जैसे वे लोग हैं जो भाग लेते हैं अनूठे हैं । पश्चाताप करने लिये हम सबों के पाप भिन्न हैं । प्रभु यीशु मसीह, जिसे हम इस विधि में स्मरण करते हैं, के प्रायश्चित के माध्यम से मजबूत करने के लिये हमारी जरूरतें भिन्न हैं ।” जब हम जल पीते हैं, हम उसके लहू का विचार करते हैं जो उसने गत्समनी और सलीब में बहाया गया था और उसकी पवित्र करने की शक्ति को । यह जानते हुए कि “कोई भी अशुद्ध वस्तु उसके राज्य में प्रवेश नहीं कर सकती है,” हम उनके साथ होने संकल्प लेते हैं “ जिन्होंने अपने विश्वास के कारण अपने वस्त्रों को उद्धारकर्ता के लहू से साफ किया है, और अपने सारे पापों का पश्चाताप किया है, और अपनी विश्वसनीयता को अंत तक बनाए रखा है ।”
मैंने हमारे पापों और उन पापों के दाग जो हम में दूर करने के लिये उद्धारकर्ता के प्रायश्चित अनुग्रह को प्राप्त करने की बात कही है । लेकिन प्रतीकात्मकरूप से उसका शरीर खाने और उसके लहू को पीने का अर्थ अधिक है, और यह है मसीह के गुणों और चरित्र का समावेश करना, प्राकृतिक मनुष्य को दूर करना और “प्रभु मसीह के प्रायश्चित के द्वारा संत बनना ।” जब हम विधि की रोटी और जल प्रत्येक सप्ताह लेते हैं, तो हम भली-भांति समझते हैं कि कैसे पूर्णरूप से और पूरी तरह से हम उसके चरित्र और उसके पाप रहित जीवन का नमूना हम अपने जीवन और अस्तित्व में समा सकते हैं । यीशु दूसरों के लिये प्रायश्चित नहीं कर पाता यदि वह स्वयं पाप रहित न होता । क्योंकि वह न्याय की मांग को नहीं ठुकरा सकता था, वह स्वयं को हमारे स्थान पर प्रस्तुत कर सकता था न्याय को पूरा करने और दया प्रदान करने के लिये । जब हम उसके प्रायश्चित बलिदान का स्मरण और सम्मान करते हैं, तो हमें उसके पाप रहित जीवन पर भी विचार करना चाहिए ।
यह सुझाव देता है कि हमें अपने हिस्से के रूप में प्रभावशाली प्रयास करने की जरूरत है । हम जैसे हैं उसमें हम संतुष्ट नहीं हो सकते लेकिन हमें “मसीह के पूरे डील डौल तक पहुंचने के लिये” निरंतर आगे बढ़ना चाहिए । मॉरमन की पुस्तक में राजा लोमनी के पिता के समान, हमें भी अपने सारे पापों का त्याग करना चाहिए और उन बातों पर ध्यान लगाना चाहिए जिसकी वह हम से आशा करता है, व्यक्तिगतरूप से और मिलकर ।
कुछ समय पहले एक मित्र ने मुझे एक अनुभव बताया जो उसे एक मिशन अध्यक्ष के रूप में सेवा करते समय हुआ था । उसका एक ऑपरेशन हुआ था जिसमें स्वस्थ होने में कई हफ्त लगने थे । अपने ठीक होने के दौरान, उसने अपना बहुत अधिक समय धर्मशास्त्र अध्ययन और मनन करने में लगाया था । एक दोपहर जब वह 3 नफी के 27 वें अध्याय में उद्धारकर्ता के वचनों पर मनन कर रहा था, उसकी आंख लग गी । फिर उसने सुनाया:
“मैं सपना देखने लगा जिसमें मैंने अपने जीवन का एक उज्जवल, मनोरम दृश्य देखा । मैंने अपने पापों, बुरे चुनावों, समयों को देखा … मैंने लोगों के साथ उतावलापन व्यवहार किया था, साथ में उन अच्छी बातों को न करना जो मुझे कहनी या करनी चाहिए थी । … मेरे जीवन की समीक्षा मुझे कुछ मिनटों में दिखाई गई थी, लेकिन यह बहुत लंबी लग रही थी । मैं जागा, चौंका और … तुरंत बिस्तर के बगल में अपने घुटने बल गिरा और प्रार्थना करना आरंभ किया, क्षमा के लिये याचना करने लगा, अपने हृदय की भावनाओं को बाहर निकालने लगा जैसे मैंने पहले कभी नहीं किया था ।
सपना देखने से पहले, मैं नहीं जानता था कि मुझे पश्चाताप करने की इतनी अधिक जरूरत है । मेरी गलतियां और कमजोरियां मुझे अचानक इतनी स्पष्ट हो गई थी कि वह व्यक्ति जो मैं था और परमेश्वर की पवित्रता और भलाई के बीच की दूरी ऐसे लग रही थी मानो लाखों किमी । उस दोपहर अपनी प्रार्थना में, स्वर्गीय पिता और उद्धारकर्ता को अपने संपूर्ण हृदय से मैंने अपनी सबसे गहरी कृतज्ञता को व्यक्त किया था जो उन्होंने मेरे लिये और उस संबंध के लिये, किया था, जो मैंने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ संजोये थे । अपने घुटनों पर होते हुए मैंने परमेश्वर के प्रेम और दया को भी महसूस किया था जोकि बहुत स्पष्ट थी, अयोग्यता की मेरी अनुभूति के बावजूद । …
“मैं कह सकता हूं कि उस दिन से मैं वैसा नहीं रहा हूं । … मेरा हृदय बदल गया । … इसके बाद ऐसा हुआ कि मैंने दूसरों के प्रति अधिक सहनभूति विकसित की, प्रेम करने की अधिक क्षमता, सुसमाचार प्रचार करने की भावना के साथ । … मैं मॉरमन की पुस्तक में पाए विश्वास, आशा, और पश्चाताप के उपहार को समझ सकता हूं जैसे पहले कभी नहीं था ।”
यह समझना आवश्यक है कि उसके पापों और कमियों के इस भव्य प्रकटीकरण ने इस अच्छे मनुष्य को निरूत्साहित या निराश नहीं किया । हां, उसे सदमा लगा और पछतावा महसूस किया । उसने पश्चाताप करने की अपनी जरूरत को महसूस किया । वह विनम्र हो गया था, फिर भी उसने आभार, शांति, और आशा … वास्तविक आशा को महसूस किया था, यीशु मसीह के कारण, जोकि “जीवित रोटी है जो स्वर्ग से नीचे आई है ।”
मेरे मित्र ने उस खाई के विषय में बोला था जो उसके सपने में उस क्षण उसके और परमेश्वर की पवित्रता के बीच में थी । पवित्रता सही शब्द है । मसीह का शरीर खाने और लहू पीने का अर्थ है पवित्रता । परमेश्वर आज्ञा देता है, “तुम पवित्र बनो; क्योंकि मैं पवित्र हूं ।”
हनोक हमें सलाह देता है, “इसलिये अपने बच्चों को इसे सीखाओ, कि सब मनुष्यों को, हर स्थान पर, पश्चाताप करना चाहिए, वरना वे किसी भी तरह परमेश्वर के राज्य की विरासत नहीं पा सकते, क्योंकि कोई अशुद्ध वस्तु वहां नहीं रह सकती, या उसकी उपस्थिति में; क्योंकि, आदम की भाषा में, पवित्रता का मनुष्य उसका नाम है, और उसके एकलौते का नाम मानव का पुत्र, अर्थात यीशु मसीह ।” जब मैं बालक था, मैं सोचता था क्यों नये नियम में यीशु को अक्सर मानव पुत्र क्यों सदंर्भ किया जाता है (और स्वयं को संदर्भ करता है) जबकि वह वास्तव में परमेश्वर का पुत्र है, लेकिन हनोक के कथन से स्पष्ट हो गया कि ये संदर्भ असल में उसकी दिव्यता और पवित्रता को समझने के लिये थे---वह पवित्रता अर्थात पिता परमेश्वर, का मानव पुत्र है ।
यदि हम चाहते हैं हम में मसीह निवास करें और उसे हम में निवास करने दें, तो हमें पवित्रता को मांगना चाहिए, शरीर और आत्मा दोनों में । हम इसे मंदिर में मांग सकते हैं जहां लिखा होता है “प्रभु के लिये पवित्रता ।” हम इसे अपने विवाहों, परिवारों, और घरों में मांग सकते हैं । हम इसे प्रत्येक सप्ताह मांग सकते हैं जब हम प्रभु के पवित्र दिन में आनंदित होते हैं इसे हम अपने प्रतिदिन के कार्यों में भी मांग सकते हैं: हमारी बातचीत, हमारी पोशाक, हमारे विचार । जैसा अध्यक्ष थॉमस एस. मॉनसन ने बोला है, “सब जो हम पढ़ते हैं, सब जो हम देखते हैं, सब जो हम सुनते हैं और सब जो हम सोचते हैं, हम वही बनते हैं ।” हम पवित्रता को मांगते हैं जब हम प्रतिदिन अपनी सलीब उठाते हैं ।
बहन कैरॉल एफ. मैककॉकी ने पाया है: “हम बहुत से परिक्षणों, प्रलोभनों, और कष्टों को पहचानते हैं जो हमें उन सब बातों से दूर ले जा सकते हैं जो परमेश्वर के सम्मुख सदाचारी और प्रशंसनीय हैं । लेकिन हमारे नश्वर अनुभव हमें पवित्रता चुनने का मौका देते हैं । बहुत बार यह वह बलिदान होते हैं जो हम अपने अनुबंधों का पालन करने के लिये करते हैं जो हमें शुद्ध करते और हमें पवित्र बनाते हैं ।” और जो बलिदान हम करते हैं, उसमें मैं उस सेवा को जोड़ूंगा जो हम देते हैं ।
हम जानते हैं कि “जब हम अपने साथियों की सेवा करते हैं, हम अपने परमेश्वर की सेवा करते हैं ।” और प्रभु हमें याद दिलाता है कि इस प्रकार की सेवा उसके जीवन और चरित्र में आवश्यक है --- “क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों को छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे ।” अध्यक्ष मैरियन जी. रोमनी ने बुद्धिमानी से समझाया: “सेवा ऐसा कुछ नहीं है जो हम इस पृथ्वी पर सहन करते हैं ताकि हम सिलेस्टियल राज्य में जीने का अधिकार प्राप्त कर सकें । सेवा वह मूल तत्व है जिससे सिलेस्टियल राज्य में एक उत्कर्ष जीवन बनाया जाता है ।”
जकर्याह ने भविष्यवाणी की थी कि प्रभु के हजार वर्षों के राज्य के दौरान, यहां तक की घोड़ों की घंटियों पर भी यह लिखा रहेगा, “प्रभु के लिये पवित्रता,” इस समझ के साथ, पथप्रदर्शक संतों ने इन घाटियों में इस चेतावनी को लगाया था, “प्रभु के लिये पवित्रता,” उन असमान्य या संसारिक लगने वाली वस्तुओं के साथ-साथ उन पर भी जो विश्वास और धर्म के साथ जुड़ी थी । इसे प्रभु-भोज प्यालों और प्लेटों पर, और सत्तरों के विधि प्रमाण पत्रों में छापा गया था, और सहायता संस्था के बैनर पर । “प्रभु के लिये पवित्रता” सिय्योन कोपरेटिव मर्केंटाइल इंस्टीट्यूशन, ZCMI विभाग भंडार की खिड़कियों पर भी लिखा दिखा था । यह वाक्य प्रोमोंट्री, यूटाह में उपयोग किए हथौड़े के सिरे और मार्चिंग बैंड के ड्रम पर पाया गया था । “प्रभु के लिये पवित्रता” अध्यक्ष ब्रिगम यंग के घर, बीहाइव हाउस के धातू के दरवाजे के दस्तों पर ढला था । पवित्रता के ये संदर्भ कुछ के लिये असामान्य या अप्रत्याशित स्थानों में विसंगत प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन वे सुझाव देते हैं कि पवित्रता पर हमारे ध्यान के लिये कितने संपूर्ण और निरंतर होने की जरूरत है ।
उद्धारकर्ता के शरीर का भाग लेने और उसके लहू को पीने का अर्थ हमारे जीवनों से उसे हटाना है जो मसीह समान चरित्र के साथ और उसके गुणों को अपना बनाने के लिये असंगत है । यह पश्चाताप का विशाल मतलब है, न केवल पिछले पाप से दूर हटना बल्कि “हृदय और इच्छा को परमेश्वर की ओर करते हुए” आगे बढ़ना । जैसा मेरे मित्र के साथ उसके सपने में हुआ था, परमेश्वर हमें हमारी कमियां और असफलताएं दिखाएगा, लेकिन वह कमजोरियों को ताकत में बदलने के लिये हमारी मदद भी करेगा । यदि हम गंभीरता से पूछते, “मुझे में क्या कमी है ?” तो वह हमें अटकल लगाने के लिये छोड़ेगा, बल्कि प्रेम से वह हमारी खुशी के लिये उत्तर देगा, और वह हमें आशा देगा ।
यह एक कठोर प्रयास है, और यह अत्याधिक कठिन होता यदि पवित्रता के अपने प्रयास में हम अकेले होते । गौरवशाली सच्चाई यह है कि हम अकेले नहीं हैं । हमारे पास परमेश्वर का असीम प्रेम, मसीह का अनुग्रह, पवित्र आत्मा की दिलासा और मार्गदर्शन, और मसीह के देह में साथी संतों की संगति और प्रोत्साहन है । पवित्रता आत्म-मूल्य की गहरी भावना उत्पन्न करती है । अधिक आत्म-विश्वास और समानता के प्रति हम दिव्य स्वीकृति को महसूस करते हैं जब हम जीवन की चुनौतियों का सामना करते हैं । हमें जहां हम हैं वहीं पर संतुष्ट नहीं होना चाहिए, और न ही हमें निराश होना चाहिेए ।
मैं यीशु मसीह, “जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी है” की गवाही देता हूं और “जो उसका मांस खाता, और उसका लहू पीता है, अनंत जीवन उसी का है,” यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।