2010–2019
प्रभु की ओर फिरो
अक्टूबर 2017


2:3

प्रभु की ओर फिरो

जो हमारे साथ होता है हम उस पर हमारा नियंत्रण नहीं है, लेकिन हमारा पूरा नियंत्रण है कि अपने जीवन में परिवर्तनों का जवाब कैसे दें ।

1998 की बसंत में, कैरल और मैं व्यवसायिक यात्रा के साथ पारिवारिक छुट्टियों को जोड़ पाए थे और अपने चारों बच्चों, मेरी हाल में विधवा हुआ सास के साथ, कुछ दिनों के लिये हवाई गये ।

हवाई की उड़ान से एक रात पहले, हमारा चार महिने का बेटा, जॉनाथन, के दोनों कानों में संक्रमण का पता चला, और हमें बोला गया कि हम कम से कम तीन से चार दिन के लिये यात्रा नहीं सकते । निर्णय लिया गया कि कैरल घर पर जॉनाथन के साथ रहेगी, जबकि मैं शेष परिवार के साथ यात्रा पर जाऊंगा ।

मेरा पहला संकेत कि यह यात्रा वैसी नहीं होगी जैसे मैंने योजना बनाई थी, हमारे पहुचने के तुरंत बाद पता चल गया था । चांद रात में, पंक्ति से लगे ताड़ वृक्षों के बीच चलते हुए, हमारे सामने सागर दिखाई दे रहा था, द्विप की सुंदरता पर बोलने के लिये मैं पीछे घुमा, और उस रोमांटिक क्षण में, मैं कैरल के स्थान पर मैं अपनी सास की आंखों में देखने लगा--जिसे मैं स्वीकार करूंगा कि मैं बहुत प्यार करता हूं । मैंने इसकी कल्पना नहीं की थी । न ही कैरल ने हमारे बीमार छोटे बेटे के साथ छुट्टियां घर में बीताने का सोचा था ।

हमारे जीवन में ऐसा समय आएंगे जब हम स्वयं को अकल्पनीय मार्ग पर पाते हैं, छुट्टियां खराब होने से अधिक गंभीर परिस्थितियों का सामना करते हुए । हम कैसी प्रतिक्रिया करते हैं जब घटनाएं, अक्सर हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, उस जीवन में बदलाव करते हुए जिसकी हमने योजना बनाई या आशा की थी ?

हायरम स्मिथ शमवे

6 जून 1944 को, हाएरम शमवे, संयुक्त राज्य अमेरिका सेना में एक युवा दूसरे लेफ्टिनेंट, डी-डे के आक्रमण के हिस्से के रूप में ओमाह बीच के तट पर पहुंचा । वह सुरक्षित वहां उतरा, लेकिन 27 जुलाई को, मित्र राष्ट्रों की सेना की अग्रिम पंक्ति के हिस्से के रूप में, वह एंटी-टैंक माइन के फटने से बुरी तरह जख्मी हो गया । उस घटना में, उसका जीवन और उसका मेडिकल कैरियर पर नाटकीयरूप से असर पड़ा था । कई अप्रैशन के बाद, उसके अधिकतर गंभीर घाव ठीक हो गए थे, लेकिन भाई शमवे अपनी दृष्टि दुबारा न पा सका । उसकी प्रतिक्रिया क्या थी ?

पुनर्वास हस्पताल में तीन वर्षों के बाद, वह लोवल, व्योमिंग में अपने घर लौटा । वह जान चुका था कि मेडिकल डॉक्टर बनने का उसका सपना अब बिलकुल भी संभव नहीं था, लेकिन उसने आगे बढ़ने का दृढ़ सकंल्प लिया, विवाह किया और परिवार को सहारा दिया ।

उसको अंतत: बाल्टीमोर, मैरीलैंड में नेत्रहीनों के पुनर्वास सलाहकार और रोजगार विशेषज्ञ के रूप में काम मिल गया । अपने स्वयं के पुनर्वास की प्रक्रिया में, उसने सीखा कि नेत्रहीन उससे कहीं अधिक सक्षम होते हैं जितना वह सोचा करता था, और इस पद अपने आठ वर्षों के दौरान, उसने राष्ट्र में किसी भी अन्य सलाहकार से अधिक नेत्रहीन लोगों को रोजगार दिलाया था ।

शमवे परिवार

अब परिवार को सहारा देने में अपनी क्षमता में निश्चित होते हुए, हाएरम ने अपनी प्रेमिका को विवाह के लिये यह कहते हुए प्रस्तावित किया, “यदि तुम मेल पढ़ोगी, जुराबों का मिलान करोगी, और कार चलाओगी, तो बाकी काम मैं कर सकता हूं ।” जल्द ही वे सॉल्ट लेक मंदिर में मुहरबंद हुए और अतंत: उनके आठ बच्चे हुए ।

1954 में शमवे परिवार व्योमिंग वापस लौटा गया, जहां भाई शमवे ने 32 वर्षों तक बधिरों और नेत्रहीनों के राज्य शिक्षा निदेशक के रूप में कार्य किया । उस समय के दौरान उसने शायेन प्रथम वार्ड के धर्माध्यक्ष के रूप में सात वर्ष सेवा की और बाद में, 17 वर्षों तक स्टेक कुलपति के रूप में सेवा की । सेवानिवृत होने के बाद, भाई और बहन शमवे ने वरिष्ठ दंपत्ति के रूप में लंदन दक्षिण मिशन में भी सेवा की ।

मार्च 2011 में हाएरम का निधन हो गया, कठिन परिस्थितियों में भी प्रयास करते हुए, बच्चों, नाति/पोतों, और पड़- नाति/पोतों के वंश के लिये प्रभु में विश्वास और भरोसे की विरासत पीछे छोड़ते हुए ।

हाएरम शमवे का जीवन बेशक युद्ध द्वारा बदल गया था, लेकिन उसने कभी भी अपनी दिव्य प्रकृति और अनंत संभावना पर संदेह नहीं किया । उसी के समान हम परमेश्वर के आत्मिक बेटे और बेटियां हैं, और हमने “उसकी योजना को स्वीकार किया है जिसके द्वारा हम भौतिक शरीर प्राप्त कर सकें और परिपूर्णता की ओर विकास करने के लिये संसारिक अनुभव को प्राप्त करें और अतंत: अनंत जीवन के उतराधिकारी के रूप में अपनी दिव्य नियति को महसूस करें ।” किसी भी प्रकार का परिवर्तन, परिक्षा, या विरोध उस अनंत मार्ग को बदल नहीं सकता है---केवल हमारे चुनाव, जब हम अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करते हैं ।

परिवर्तन, और परिणामी चुनौतियां, जिनका सामना हम नश्वरता में करते हैं, हम में से प्रत्येक को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करते हैं । आपकी तरह, मैंने मित्रों और परिवार को इनके द्वारा चुनौतियों का सामना करते देखा है:

  • प्रियजन की मृत्यु ।

  • दुखद तलाक ।

  • विवाह करने का कभी अवसर न मिलना ।

  • गंभीर रोग या चोट ।

  • यहां तक कि प्राकृतिक आपदा, जैसा हमने हाल में देखा है ।

और सूची बहुत लंबी है । यद्यपि प्रत्येक “परिवर्तन” हमारे व्यक्तिगत परिस्थितियों में अलग-अलग हो सकते हैं, परिणामी परिक्षा या चुनौती एक सामान्य बात है --- यीशु मसीह के प्रायश्चित बलिदान के द्वारा आशा और शांति हमेशा उपलब्ध है । यीशु मसीह का प्रायश्चित बलिदान प्रत्येक घायल शरीर, क्षतिग्रस्त आत्मा, और टुटे हृदय को असली सुधार और चंगाई के उपायों को उपलब्ध कराता है ।

वह उस तरह से जानता है, जिस तरह अन्य कोई नहीं समझ सकता है, अलग-अलग तरह से, हमारी क्या जरूरत है, परिवर्तन के बीच आगे बढ़ने के लिये । हमारे मित्रों और प्रियजनों से भिन्न, उद्धारकर्ता न केवल हमारे साथ सहानभूति रखता, बल्कि वह परिपूर्णरूप से समानुभूति रख सकता है क्योंकि जहां हम हैं वह वहां से गुजर चुका है । हमारे पापों के मूल्य और कष्टों का भुगतान करने के अतिरिक्त, यीशु मसीह प्रत्येक मार्ग से गुजरा, प्रत्येक चुनौती का सामना किया, प्रत्येक घाव को अनुभव किया--शारीरिक, भावनात्मक या आत्मिक---जिसका नश्वरता में हम कभी सामना करेंगे ।

अध्यक्ष बोएड के. पैकर ने सीखाया: “यीशु मसीह की दया और अनुग्रह केवल उनके लिये सीमित नहीं है जो पाप करते हैं … , लेकिन वे उन सबों के लिये अनंत शांति की प्रतिज्ञा को सम्मलित करती है जो उसे स्वीकार और उसका अनुसरण करते हैं । … उसकी दया शक्तिशाली चंगाई देने वाली है, घायल निर्दोष को भी ।”

इस नश्वर अनुभव में, जो हमारे साथ होता है हम उस पर हमारा नियंत्रण नहीं है, लेकिन हमारा पूरा नियंत्रण है कि अपने जीवन में परिवर्तनों का जवाब कैसे दें । यह समझना गलत है कि जिन चुनौतियों और परिक्षाओं का हम सामना करते हैं उनके कोई परिणाम नहीं होते और इनसे सरलता निपटा या संभाला जा सकता है । यह समझना गलत है कि हम दर्द या पीड़ा से मुक्त होंगे । इसका मतलब है कि आशा के लिये कारण है और कि यीशु मसीह के प्रायश्चित के कारण, हम आगे बढ़ सकते और बेहतर दिनों को पा सकते हैं --- यहां तक आनंद, प्रकाश, और सुख से भरे हुए दिन भी ।

मुसायाह में हम अलमा, राजा नूह का पूर्व-याजक, और उसके लोग, का वर्णन पढ़ते हैं, जिन्हें “प्रभु द्वारा चेतावनी दी गई थी … राजा नूह की सेना के आने से पहले ही निर्जन प्रदेश में चले गए” । आठ दिनों के बाद, “वे अति सुंदर और आनंदमय प्रदेश पहुंचे” जहां “उन्होंने अपने तंबूओं को लगाया, और भूमि में हल चलाने, और भवन बनाने लगे ।”

उनकी स्थिति अब आशाजनक दिखती थी । उन्होंने यीशु मसीह के सुसमाचार को स्वीकार किया था । वे अनुबंध के साथ बपतिस्मे लेते थे कि वे प्रभु की सेवा करेंगे और उसके आज्ञाओं का पालन करेंगे । और “उनकी जनसंख्या में बहुत वृद्धि हुई और उन्होंने बहुत उन्नति की ।”

फिर भी, उनकी परिस्थितियां जल्द ही बदलने वाली थी । “लमनाइयों की एक सेना प्रदेश की सीमा पर थी ।” अलमा और उसके लोगों को जल्द ही गुलाम बना दिया गया था, और “उनके कष्ट इतने अधिक थे कि वे परमेश्वर को पूरी शक्ति से पुकारने लगे ।” इसके अतिरिक्त, उन्हें कैद करने वालों ने उनसे प्रार्थना बंद करने का आदेश दिया था, वरना, “जो कोई परमेश्वर को पुकारता हुआ पाया जाएगा वह मार डाला जाएगा ।” अलमा और उसके लोगों ने अपनी नयी दशा को पाने के लिये कुछ नहीं किया था । उन्हें कैसे जवाब देना चाहिए था ?

परमेश्वर को दोष देने के बजाए, वे उसकी ओर फिरे और “अपने हृदयों को उसके सामने खोल दिया ।” उनके विश्वास और प्रार्थना के जवाब में, प्रभु ने जवाब दिया: “दिलासा ग्रहण करो । … मैं उस बोझ को हल्का करूंगा जो तुम्हारे कांधों पर लादा जाता है, तुम इन्हें अपनी पीछ पर महसूस नहीं करोगे ।” इसके बाद तुरंत, “प्रभु ने उन्हें शक्ति दी कि वे अपने बोझों को सरलता के साथ ढो सकें, और वे आनंदपूर्वक और धैर्य के साथ प्रभु की सभी इच्छाओं के अधीन हो गए ।” यद्यपि गुलामी से अभी मुक्त नहीं किए गए थे, प्रभु की ओर फिरने के द्वारा, और न की प्रभु की ओर से, वे अपनी जरूरतों के अनुसार और प्रभु की विवेक के अनुसार आशीषित हुए थे ।

एल्डर डालिन एच. ओक्स ने सीखाया कि “चंगाई की आशीषें कई तरह से आती हैं, प्रत्येक के लिये उसकी जरूरत के अनुसार, जिन्हें वह जानता है जो हमसे प्रेम करता है । कई बार “चंगाई” हमारे रोग का इलाज करता या हमारे बोझ उठाता है । लेकिन कई बार हम पर रखे गए बोझ को सहन करने को दी गई शक्ति या समझ या धैर्य के द्वारा हम चंगे होते हैं ।”

अतंत:, “उनका विश्वास और उनका धैर्य इतना अधिक था,” अलमा और उसके लोगों को प्रभु द्वारा मुक्त किया गया, “और उन्होंने अपना धन्यवाद प्रकट किया … क्योंकि वे गुलामी में थे, और सिवाय प्रभु उनके परमेश्वर के उन्हें कोई दूसरा मुक्त न कर सका था ।”

दुखद विडंबना कि, बहुत बार, वे जिन्हें जरूरत होती है अपनी सहायता के परिपूर्ण स्रोत--हमारे उद्धारकर्ता, यीशु मसीह से दूर हो जाते हैं । एक परिचित धर्माशास्त्र के वर्णन में “पीतल का सांप” हमें सीखाता है कि हमारे पास विकल्प होता है जब हम चुनौतियों का सामना करते हैं । बहुत से इस्राएल की संतानों को “उड़ते हुए सांपों” द्वारा काटे जाने के बाद “एक प्रारूप खड़ा किया गया था, ताकि जो भी उसकी तरफ देखे वे जीवित रहें । और कई लोगों ने देखा और जीवित रहे । …

“बहुत से थे जिनके हृदय इतने कठोर हो गए थे कि वे नहीं देखना चाहते थे, इसलिये उनका विनाश हुआ ।”

प्राचीन इस्राएलियों की तरह, हमें भी उद्धारकर्ता की ओर देखने और जीवित रहने के लिये निमंत्रित और उत्साहित किया जाता है ---उसकी जुआ सहज है और उसका बोझ हल्का है, जबकि हमारा भारी है ।

कनिष्ठ अलमा ने इस सच्चाई को सीखाया जब उसने कहा, “जो कोई भी परमेश्वर में अपना विश्वास दिखाएगा, तो वह उनकी सहायता उनकी परेशानियों, और अनके दुखों, और उनके कष्टों में करेगा, और अंतिम दिन में वे उत्कर्षित किये जाएंगे ।”

इन अंतिम दिनों में, प्रभु ने हमें अनगिनत स्रोतों उपलब्ध कराया है, हमारे “पीतल के सांप,” वे सब हमें मसीह की ओर देखने और उस में अपना भरोसा रखने में सहायता के लिये बनाए गए । जीवन की चुनौतियों का सामना करना वास्तविकता को अनदेखा करने के विषय में नहीं है, बल्कि हमें कहां ध्यान केंद्रित करना को और किस आधार को चुनना है जिस पर हम निर्माण करना है ।

इन स्रोतों में शामिल हो सकते हैं, लेकिन ये इन तक सीमित नहीं हैं:

  • निरंतर धर्मशास्त्रों और जीवित भविष्यवक्ताओं की शिक्षाओं का अध्ययन ।

  • निरंतर, निष्ठापूर्ण प्रार्थना और उपवास ।

  • योग्यता से प्रभु-भोज में भाग लेना ।

  • नियमित मंदिर उपस्थिति ।

  • पौरोहित्य आशीषें ।

  • प्रशिक्षित व्यवसायिकों द्वारा समझदार सलाह लेना ।

  • और दवा भी, जब उचितरूप से निर्धारित और अधिकृतरूप से उपयोग की जाए ।

जीवन की परिस्थितियों में कुछ भी बदलाव हमारे मार्ग में आएं, और किसी भी अप्रत्याशित मार्ग पर हमें यात्रा करनी पड़े, हम कैसे प्रतिक्रिया करते हैं यह एक चुनाव है । उद्धारकर्ता की ओर फिरना और उसकी फैली हुई बाहों को थामना हमेशा हमारा सर्वोत्तम विकल्प है ।

एल्डर रिचर्ड जी. स्कॉट ने यह अनंत सच्चाई सीखाई: “सच्ची स्थाई प्रसन्नता के साथ आने वाला सामर्थ, साहस, और अत्याधिक चुनौतिपूर्ण कठिनाइयों को जीतने की क्षमता यीशु मसीह में केंद्रित जीवन से आती है । … रातों रात परिणाम मिलने की गारंटी नहीं है, लेकिन पूर्ण आश्वासन है कि, प्रभु के समय में, उपाय आएंगे, शांति प्रबल होगी, और खालीपन भरा जाएगा ।”

इन सच्चाइयों की मैं अपनी गवाही देता हूं । यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।