मसीह के विश्वास में दृढ़ और अटल
मसीह में विश्वास के लिये दृढ़ और अटल बने रहने के लिये आवश्यक है कि यीशु मसीह का सुसमाचार किसी के हृदय और आत्मा में प्रवेश करे ।
पुराने नियम के इतिहास में, हम निरंतर उन अवधियों के विषय में पढ़ते हैं जब इस्राएल की संतानों ने यहोवा के साथ अपने अनुबंध का पालन किया और उसकी आराधना की और अन्य समय में जब उन्होंने उस अनुबंध का अनदेखा किया और मूर्ति अर्थात बाल पूजा की ।
इस्राएल के उत्तरी राज्य में अहाब का राज उन धर्मत्याग की अवधियों में से एक था । भविष्यवक्ता एलिशा ने एक अवसर पर राजा अहाब से इस्राएल के लोगों के साथ बाल के भविष्यवक्ताओं या याजकों को कार्मेल पर्वत पर एकत्र करने को कहा था । जब लोग एकत्र हुए, एलिशा ने उनसे कहा, “तुम कब तक दो विचारों में लटके रहोगे? [अन्य शब्दों में: “तुम अंतत: कब तय करोगे ?”] यदि यहोवा परमेश्वर है तो उसके पीछे हो जाओ; और यदि बाल है तो उसके पीछे हो जाओ । लोगों ने उसके उत्तर में एक भी बात न कही ।” इसलिये एलिशा ने कहा कि वह और बाल के भविष्यवक्ता दोनों बछड़े लेंगे और अपनी-अपनी वेदी पर रखी लकड़ियों पर रखेंगे, लेकिन “कुछ आग नहीं लगाएंगे ।” फिर, “तुम तो अपने देवता से प्रार्थना करना, और मैं यहोवा से प्रार्थना करूंगा, और जो आग गिराकर उत्तर दे वही परमेश्वर ठहरे । तब सब लोग बोल उठे, अच्छी बात है ।”
आपको पता होगा कि बाल के याजकों ने अपने अवास्तविक ईश्वर को घंटों नीचे आग भेजने के लिये जोर-जोर से पूकारा, लेकिन “कोई शब्द सुनाई नहीं दिया; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया ।” जब एलिशा की बारी आई, उसने यहोवा की टूटी हुई वेदी को ठीक किया, लकड़ियां लगाई और भेंट उन पर रख दी, और फिर आदेश दिया कि इन्हें पानी से भीगा दिया जाए, एक बार नहीं, दो बार नहीं, बल्कि तीन बार । इसमें कोई संदेह नहीं था कि न तो वह और न ही कोई अन्य मानवीय शक्ति इसमें आग जला सकती थी ।
“और फिर भेंट चढ़ाने के समय भविष्यवक्ता एलिशा निकट जाकर कहने लगा, हे इब्राहीम, इसहाक, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! आज यह प्रकट कर कि इस्राएल में आप ही परमेश्वर हैं, और मैं आपका दास हूं, और मैंने ये सब काम आपके वचन पाकर किए हैं । …
“तब यहोवा की आग आकाश से प्रकट हुई और होमबलि की लकड़ी और पत्थरों और धूलि समेत भस्म कर दिया, और वेदी का पानी भी सुखा दिया ।
“यह देख सब लगो मुंह के बल गिरकर बोल उठे, यहोवा ही परमेश्वर है, यहोवा ही परमेश्वर है ।”
आज एलिशा कह सकता है:
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या तो परमेश्वर, हमारे स्वर्गीय पिता का, अस्तिव है, या नहीं है, यदि उसका अस्तिव है, तो उसकी आराधना करो ।
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या तो यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र, मानवजाति का पुनाजीवित मुक्तिदाता है, या वह नहीं है, लेकिन यदि वह है, तो उसका अनुसरण करो ।
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या तो मॉरमन की पुस्तक परमेश्वर का वचन है, या यह नहीं है, लेकिन यदि है, तो फिर “इसका [अध्ययन करो] और इसके उपदेशों का पालन कर परमेश्वर के निकट आएं ।”
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या तो जोसफ स्मिथ ने 1820 के वसंत के दिन पिता और पुत्र को देखा और बातें की थी, या उसने नहीं की थी, लेकिन यदि उसने की थी, तो फिर मुहरबंदी की कुंजियों सहित जो मैं, एलिशा ने, उसे दी थीं, अन्य भविष्यवसूचक बातों का अनुसरण करो ।
हाल के महा सम्मेलन में, अध्यक्ष रसल एम. नेलसन ने घोषित किया था: “आपको आश्चर्य करने की जरूरत नहीं, कि सच क्या है [देखें मोरोनी 10:5] । आपको आश्चर्य करने की जरूरत नहीं, कि आप किस पर भरोसा कर सकते हैं । व्यक्तिगत प्रकटीकरण के माध्यम से, आप अपनी स्वयं की गवाही प्राप्त कर सकते हैं कि मॉरमन की पुस्तक परमेश्वर का वचन है, कि जोसफ स्मिथ भविष्यवक्ता है, और कि यह प्रभु का गिरजा है । चाहे दूसरे कुछ भी कहते रहें या करते रहें, सच्चाई क्या है इसकी गवाही आपके हृदय और मन से कोई मिटा नहीं सकता ।”
जब याकूब ने वादा किया था कि परमेश्वर “सब को उदारता से देता” जो उसके ज्ञान की खोज करता है, उसने सावधान भी किया था:
“पर विश्वास से मांगो, और कुछ संदेह न करो; क्योंकि संदेह करने वाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है ।
“ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा ।
“दुविधा में पड़ा व्यक्ति अपनी सारी बातों में डावांडोल रहता है ।”
हमारा उद्धारकर्ता, दूसरी ओर, स्थिरता का परिपूर्ण उदाहरण था । उसने कहा था, “पिता ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा है; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूं, जिससे वह प्रसन्न होता है ।” धर्मशास्त्रों के इन पुरूषों और स्त्रियों के विवरणों पर विचार करें, जो उद्धारकर्ता के समान, दृढ़ और मजबूत थे:
वे “सच्चे विश्वास में परिवर्तित हुए थे; और वे उससे अलग नहीं हुए क्योंकि प्रभु की आज्ञाओं का पालन करने में वे दृढ़ और अडिग, और अटल, और पूरी निष्ठा से इच्छुक थे ।”
“उनके मन दृढ़ हैं, और उन्होंने परमेश्वर में निरंतर अपना विश्वास बनाए रखा है ।”
“और देखो, इसे तुम स्वयं जानते हो क्योंकि तुमने इसकी साक्षी दी है, कि बहुत से लोगों को सच्चाई के ज्ञान में लाया जाता है, … विश्वास में दृढ़ और अटल हैं, और उन बातों में जिससे उनका उद्धार हुआ है ।”
“और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में प्रार्थना करने में दृढ़ता से जारी रहे ।”
मसीह में विश्वास के लिये दृढ़ और अटल बने रहने के लिये आवश्यक है कि यीशु मसीह का सुसमाचार किसी के हृदय और आत्मा में प्रवेश करे, अर्थात व्यक्ति के जीवन में सुसमाचार बहुत से प्रभावों में से एक नहीं, बल्कि उसके जीवन और चरित्र में एकमात्र अति महत्वपूर्ण प्राथमिकता होनी चाहिए । प्रभु कहता है :
“मैं तुम्हें नया मन दूंगा, और तुम्हारे भीतर नहीं आत्मा उत्पन्न करूंगा; और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम को मांस का हृदय दूंगा ।
“और मैं अपनी आत्मा तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूंगा कि तुम मेरी विधियों पर चलोगे और मेरे नियमों को मानकर उनके अनुसार करोगे ।
“ … और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूंगा ।”
यह अनुबंध हम अपने बपतिस्मे के द्वारा और मंदिर विधियों में बनाते हैं । लेकिन कुछ ने अभी अपने जीवन में यीशु मसीह के सुसमाचार को पूर्णरूप से प्राप्त नहीं किया है । यद्यपि, जैसा पौलुस कहता है, “वे बपतिस्मे द्वारा [मसीह] के साथ गाड़े गए,” उन्होंने अभी वह भाग प्राप्त नहीं किया है कि “जैसे मसीह … , मरे हुओं मं से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें ।” सुसमाचार उन्हें अभी स्पष्ट नहीं करता । वे अभी मसीह में केंद्रित नहीं है । वे सिद्धांतों और आज्ञाओं के प्रति चयनशील हैं वे क्या करेंगे और कहां और कब गिरजे में सेवा करेंगे । इसके विपरीत यह उनके अनुबंधों को सही रूप से पालने करने में है वे जो “अनुबंध के अनुसार चुने गए हैं” धोखे से बचते और मसीह के विश्वास में मजबूत बने रहते हैं ।
हम में से बहुत से इस क्षण स्वयं को एक तरफ सामाजिक विचारों से प्रेरित सुसमाचार रीतियों में भागीदारी और दूसरी ओर पूर्णरूप से विकसित, पिता की इच्छा के प्रति मसीह समान कटिबद्धता के बीच की सीमा में पाते हैं । उस सीमा के साथ कहीं पर, यीशु मसीह के सुसमाचार की खुशखबरी हमारे हृदयों में प्रवेश करती है और हमारी आत्मा को प्रेरणा देती है । शायद यह तुरंत नहीं होता, लेकिन हम सब उस आशीषित अवस्था की ओर चलने लगते हैं ।
यह चुनौती भरा है लेकिन दृढ़ और अटल रहने के लिये आवश्यक है जब हम स्वयं को “दुख की भट्टी” में परिष्कृत होते हुए पाते हैं, यह हम सब के नश्वर जीवन में कभी न कभी आता है । बिना परमेश्वर, ये अंधकारमय अनुभव निराश, दुखी, और क्रोधित भी करते हैं । परमेश्वर के साथ, दर्द दिलासा में, चिंता शांति में, और दुख आशा में बदल जाता है । मसीह के विश्वास में दृढ़ रहने से उसके समर्थन का अनुग्रह और सहारा लाएगा । वह परिक्षा को आशीष में परिवर्तित कर देगा और, यशायाह के शब्दों में, “सुंदर पगड़ी… देगा ।”
मैं तीन उदाहरण देना चाहता हूं जिनका मुझे व्यक्तिगत ज्ञान है:
एक स्त्री है जो दुर्बल करने वाले रोग से पीड़ित है जोकि इलाज, पौरोहित्य आशीषों, और उपवास और प्रार्थनाओं के बावजूद निरंतर बना हुआ है । फिर भी, प्रार्थना की शक्ति और उसके लिये परमेश्वर के प्रेम की सच्चाई में विश्वास अभी भी कायम है । वह दिन प्रतिदिन (कभी-कभी प्रतिघंटे) गिरजे की नियुक्ति के अनुसार सेवा करने में और, अपने पति के साथ, अपने परिवार की देख-भाल करने में दृढ़ रहती है, मुस्काराते हुए जितना वह मुस्कारा सकती है । दूसरों के लिये उसकी दया बहुत गहरी है, जो कि उसकी स्वयं की कष्ट से परिष्कृत हुई है, और वह अक्सर दुसरों की सेवा करते हुए स्वयं का दर्द भूल जाती है । वह अटल रहती है, और उसके आस-पास होने में लोग खुशी महसूस करते हैं ।
एक पुरूष जो गिरजे में बड़ा हुआ, पूरे समय की प्रचारक सेवा की, और एक सुंदर स्त्री से विवाह किया आश्चर्यचकित हुआ जब उसके कुछ भाई-बहनों ने गिरजे और भविष्यवक्ता के बारे में नाकारात्मक बातें बोलना आरंभ किया । कुछ समय बाद उन्होंने गिरजा छोड़ दिया और उसे भी ऐसा करने को राजी कराने का प्रयास किया । जैसा अक्सर इन परिस्थितियों में होता है, उन्होंने उसे निरंतर बहुत से लेख, और विडियो भेजे जो विरधियों द्वारा बनाए गए थे, उनमें से बहुत से स्वयं हमारे गिरजे के असंतुष्ट पूर्व सदस्य थे । उसके भाई-बहनों ने उसके विश्वास का उपहास किया, कहा कि उसे मूर्ख बनाया और गुमराह किया था । उस के पास उनके सारे आरोपों का जवाब नहीं था, और निरंतर विरोध के कारण उसका विश्वास डगमगाने लगा । उसने सोचा क्या वह गिरजा जाने छोड़ दे । उसने अपनी पत्नी से बात की । जिस पर उन्हें भरोसा था उसने उनसे बात की । उसने प्रार्थना की । जब उसने इस कठिन भावनात्मक अवस्था पर मनन किया, उसने उन अवसरों को याद किया जब उसने पवित्र आत्मा को महसूस किया था और पवित्र आत्मा के द्वारा सच्चाई की गवाही प्राप्त की । उसने कहा था, “सच में, मैं स्वीकार करता हूं कि आत्मा ने मुझे अनेक बार स्पर्श किया था और आत्मा की गवाही सच्ची है ।” उसके पास खुशी की नवीन अनुभूति और शांति है जो उसकी पत्नी और बच्चों द्वारा साझा की गई है ।
एक पति और पत्नी जिन्होंने अपने जीवनों में निरंतरता और खुशी से गिरजे के मार्गदर्शकों की सलाह का अनुसरण किया है वे बच्चों के होने में हुई कठिनाई के अनुभव द्वारा दुखी हुए थे । उन्होंन योग्य चिकित्सकों पर काफी पैसा खर्च कर दिया था, और कुछ समय बाद, वे एक बेटे से आशीषित हुए । हालांकि, दुर्भाग्यवश, केवल एक वर्ष के बाद वह बच्चा एक दुर्घटना का शिकार हो गया जिसमें किसी की गलती नहीं थी लेकिन अत्याधिकरूप से दिमाग में चोट लगने से वह लगभग पूर्णरूप से बेहोश हो गया । उसका उत्तम ईलाज किया गया, लेकिन डॉक्टर बता नहीं सकते थे कि भविष्य में उसकी अवस्था कैसी होगी । वह बच्चा जिसे संसार में लाने के लिये इस दंपत्ति ने इतनी मेहनत और प्रार्थना की थी एक तरह से वापस ले लिया गया, और वे नहीं जानते थे कि वह उन्हें वापस भी मिलगा । अब वे उनके बच्चे की अति महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की देखभाल करने के साथ अपनी जिम्मदारियों को पूरा करने के लिये संघर्ष करते हैं । इस अत्यंत कठिन क्षण में, वे प्रभु के पास लौटे । वे उससे मिलने वाली “प्रतिदिन की रोटी” पर निर्भर हैं । उन्हें करूणामय मित्रों और परिवार सहायता और पौरोहित्य आशीषों द्वारा बल मिलता है । वे एक दूसरे के निकट आएं हैं, उनकी एकता पहले से शायद अब अधिक गहरी और अधिक पूर्ण हुई है ।
23 जुलाई ,1837 को, प्रभु ने उस समय के बारह प्रेरितों की परिषद के अध्यक्ष, थॉमस बी. मार्श को प्रकटीकरण में निर्देश दिया था । जो इस प्रकार है:
“और बारह के अपने भाइयों के लिये प्रार्थना करो । मेरे नाम से उन्हें कठोरता से सावधान करना, और वे अपने सारे पापों के लिये सावधान हो जाएं, और तुम मेरे सम्मुख मेरे नाम में विश्वासी रहो ।
“और उनके प्रलोभनों, और अधिक कष्टों के बाद, देखो, मैं, प्रभु, उनकी जांच करूंगा, और यदि वे अपने हृदयों को कठोर नहीं करते हैं, और मेरे विरूद्ध हठी नहीं होते, तो परिवर्तित होंगे, और मैं उन्हें चंगा करूंगा ।”
मैं विश्वास करता हूं इन आयतों में व्यक्त किए गए नियम हम सब पर लागू होते हैं । प्रलोभन और कष्ट जिनका हम अनुभव करते हैं, साथ कोई परिक्षा जिसे प्रभु हमें अनुभव कराना चाहता है, हमारे पूर्ण परिवर्तन और चंगाई को ले जा सकती हैं । लेकिन यह केवल तभी होता है और केवल तभी, जब हम उसके विरूद्ध अपने हृदयों को कठोर या अपनी गर्दनों को कड़ा नहीं करते हैं । यदि हम दृढ़ और अटल रहते हैं, कुछ भी हो जाए, हम उद्धारकर्ता द्वारा निर्धारित परिवर्तन को प्राप्त करते हैं जब उसने पतरस से कहा था, “जब तब परिवर्तित होते हो, तो अपने भाइयों को मजबूत करना,” इस प्रकार के पूर्ण परविर्तन को हटाया नहीं जा सकता । प्रतिज्ञा की गई चंगाई हमारी पाप-पीड़ित आत्मा की शुद्धिकरण और पवित्रीकरण है, जो हमें पवित्र करती है ।
मुझे हमारी मांओं की सलाह याद आती है: “सब्जियां खाओ; यह तुम्हें फायदा देगी ।” हमारी मांएं सही है, और विश्वास में दृढ़ता के संदर्भ में, “अपनी सब्जियां खाना” निरंतर प्रार्थना करना, प्रतिदिन धर्मशास्त्रों में आनंदित रहना, गिरजे में सेवा और आराधना करना, प्रत्येक सप्ताह योग्यता से प्रभु-भोज लेना, अपने पड़ोसी से प्रेम करना, और प्रतिदिन परमेश्वर की आज्ञाकारिता में अपनी सलीब उठाना है ।
हमेशा आने वाली अच्छी अच्छी वस्तुओँ की प्रतिज्ञा को याद रखें, अब और यहां के बाद, वे मसीह में जो दृढ़ और अटल हैं । याद रखें “अनंत जीवन, और संतों का आनंद,” “ओह तुम सब जो हृदय से शुद्ध हो, अपने सिरों को उठाओ और परमेश्वर के प्रिय वचन को प्राप्त करो, और उसके प्रेम में आनंदित रहो; यदि तुम दृढ़ संकल्प रहते हो तो हमेशा आनंदित रहोगे ।” यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।