महा सम्मेलन
जिससे बहुत अधिक अंतर पड़ता है उसे करो
अप्रैल 2022 महा सम्मेलन


10:46

जिससे बहुत अधिक अंतर पड़ता है उसे करो

जब हम यीशु मसीह पर अपने जीवन को केंद्रित करते हैं, तो हमें आत्मिक शक्ति, संतोष और खुशी की आशीष दी जाएगी।

कुछ समय पहले, एक प्रिय मित्र को अपने वार्ड में एक महिला से मिलने की प्रेरणा मिली थी। उसने प्रेरणा पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि वह उसे नहीं जानती थी—उसकी समझ में नहीं आया कि उसे क्यों मिलना चाहिए। लेकिन चूंकि विचार बार बार उसके मन में आ रहा था, इसलिए उसने प्रेरणा पर कार्य करने का फैसला किया। जबकि वह पहले से ही इस भेंट को लेकर असहज थी, फिर भी उसने निश्चय किया कि वह उस बहन के लिए कुछ ले जाएगी जिस से शायद उसकी चिंता को कम करने में मदद मिले। अवश्य ही वह खाली हाथ नहीं जा सकती थी! इसलिए उसने आइसक्रीम का एक डिब्बा खरीदा और पेपर बैग में डालकर उसके घर के लिए निकल गई, वह सोच रही थी यह एक अजीब भेंट होने वाली है।

उसने उस महिला के दरवाजे को खटखटाया, और थोड़ी देर बाद उस बहन ने दरवाजा खोला। मेरी मित्र ने पेपर बैग में आईस-क्रीम उसे पकड़ा दी, और बातचीत आरंभ की। कुछ देर में ही मेरी मित्र को समझ में आ गया कि क्यों उससे मिलना आवश्यक था। जब वे आंगन में बैठे बातचीत कर रहे थे, उस महिला ने अपनी चुनौतियों के बारे में बताना आरंभ किया जिनका वह सामना कर रही थी। गर्मी के गरम मौसम में बात करने के एक घंटे के बाद, मेरे मित्र ने पेपर बैग से आइसक्रीम को पिघलते हुए देखा।

उसने कहा, “मुझे बहुत खेद है कि आपकी आइसक्रीम पिघल गई!

उस महिला ने प्रेम से जवाब दिया, “कोई बात नहीं! मुझे दूध की बनी चीजों से एलर्जी है!”

एक सपने में, प्रभु ने भविष्यवक्ता से कहा था: “लेही तुमने जिन कामों को किया है, उनके लिए तुम आशीषित हो।”1

यीशु मसीह का शिष्य होने के नाते सिर्फ आशा या विश्वास करने से अधिक की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रयास, कार्य करने और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम, “वचन पर चलने वाले बनें, और केवल सुनने वाले ही नहीं।”2

पिघली हुई आइसक्रीम के विषय में, सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है? क्या आइसक्रीम महत्वपूर्ण है? या फिर मेरी मित्र ने कुछ किया था वो अधिक महत्वपूर्ण था?

मुझे एक प्यारी युवती के साथ एक मधुर अनुभव हुआ था जिसने एक बहुत ही ईमानदार प्रश्न पूछा था: “बहन करेवन, आप कैसे जानती हैं कि गिरजे के बारे में सबकुछ सच है? क्योंकि मुझे ऐसा कुछ भी महसूस नहीं होता है”।

कोई उत्तर देने से पहले, मैंने पहले उससे कुछ प्रश्न पूछे। “मुझे अपने व्यक्तिगत धर्मशास्त्र के अध्ययन के बारे में बताओ।

उसने जवाब दिया, “मैं धर्मशास्त्रों को नहीं पढ़ती।

मैंने पूछा, “अपने परिवार के बारे में बताओ? क्या आप आओ, मेरा अनुसरण का अध्ययन करती हो?

उसने कहा, “नहीं।”

मैंने उसकी प्रार्थनाओं के बारे में पूछा, “जब आप प्रार्थना करतो हो तो आप क्या महसूस करती हैं?

उसने कहा, “मैं प्रार्थना नहीं करती।”

उसके लिए मेरी प्रतिक्रिया सरल थी, “यदि आप कुछ भी जानना चाहती हैं, तो आपको कुछ करना होगा।”

क्या यह सच नहीं है कि जब कुछ हम सीखना या जानना चाहते हैं तो हमें कुछ करना पड़ता है? मैंने अपने नए मित्र को यीशु मसीह के सुसमाचार पर कार्य करने: प्रार्थना करने, अध्ययन करने, दूसरों की सेवा करने, और प्रभु पर भरोसा करने का निमंत्रण दिया। परिवर्तन कुछ भी नहीं करने से नहीं आएगा। यह पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा प्राप्त होता है जब हम पूछने, मांगने और खटखटा कर जानने के लिए स्वेच्छा से प्रयास करते हैं। यह करने से आता है।3

सिद्धांत और अनुबंध में, प्रभु अक्सर कहता है, “इससे कोई अंतर नहीं पड़ता।”4 यह मुझे मनन करने के लिए मजबूर करता है कि यदि कुछ बातों से अंतर नहीं पड़ता, या कम अंतर पड़ता है, तो ऐसी बातें भी होनी चाहिए जिससे बहुत अधिक अंतर पड़ता है। कुछ करने या कुछ भी करने, के अपने प्रयासों में, हम स्वयं से पूछ सकते हैं, “किस से बहुत अधिक अंतर पड़ता है?

विज्ञापनदाता अक्सर “आवश्यक” या “जरूर होना चाहिए” जैसे वाक्यों का उपयोग करते हुए हमें लुभाने की कोशिश करते हैं कि वे जिस वस्तु को बेच रहे हैं वह हमारे सुख या भलाई के लिए आवश्यक है। लेकिन क्या वे जो बेच रहे हैं वह वास्तव में आवश्यक है? क्या हमें वास्तव में उसे लेना चाहिए? क्या वास्तव में इससे कोई अंतर पड़ता है?

यहां कुछ विचार दिए गए हैं। किस से बहुत अधिक अंतर पड़ता है?

  • हमारे सोशल मीडिया पोस्ट कितने लोग “पंसद” करते हैं? या हमारे स्वर्गीय पिता द्वारा हमें कितना प्रेम और मूल्यवान माना जाता है?

  • नवीनतम फैशन के कपड़े पहनना? या शालिनता से कपड़े पहनकर अपने शरीर के प्रति सम्मान दिखाना?

  • किसी इंटरनेट खोज के द्वारा उत्तर खोजना? या पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर से उत्तर प्राप्त करना?

  • अधिक चाहना? या जो हमें दिया गया है, उससे संतुष्ट होना?

अध्यक्ष रसल एम. नेलसन सीखाते हैं:

“अपने साथी के रूप में पवित्र आत्मा के साथ, आप उस सेलिब्रिटी संस्कृति को देख सकते हैं जिसने हमारे समाज को प्रभावित कर रखा है। आप पिछली पीढ़ियों की तुलना में अधिक समझदार हो सकते हैं। …

“संपूर्ण संसार के लिए एक आदर्श बनाओ!”5

स्थाई आनंद के लिए जो वास्तव में आवश्यक है, उस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। शैतान को हमारे अनंत मूल्यों को खोने से अधिक कुछ भी पसंद नहीं है, ताकि हम उन बातों पर अमूल्य समय, प्रतिभा, या आत्मिक शक्ति नष्ट करें जो आवश्यक या मूल्यवान नहीं हैं। मैं हम में से प्रत्येक को उन बातों पर प्रार्थनापूर्वक विचार करने का निमंत्रण देती हूं जो हमें उसे करने से भटकाती हैं जिससे बहुत अधिक अंतर पड़ता है ।

हमारे बड़े बेटे की तीसरे ग्रेड की शिक्षिका ने अपनी कक्षा को “अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण” करना सिखाया। यह उनके नन्हें छात्रों को याद दिलाना था कि उनके विचार उनके नियंत्रण में थे और इसलिए वे जो करते हैं उसे नियंत्रित कर सकते थे। मैंने स्वयं को “अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण” करने की याद दिलाती हूं जब मुझे लगता है मैं स्वयं उन बातों की ओर जा रही हूं जिससे कम अंतर पड़ता है।

एक हाई स्कूल के छात्र ने हाल ही में मुझे बताया कि यह गिरजे के कुछ युवाओं के बीच लोकप्रिय हो गया है कि बाद में पश्चाताप करने की योजना के अनुसार जानबूझकर आज्ञाओं की अवहेलना करें। “यह सम्मान का एक पदक है,” मुझे बताया गया था। निश्चित रूप से, प्रभु उन लोगों को क्षमा करना जारी रखेगा जो नम्रतापूर्वक “सच्ची निष्ठा से पश्चाताप करते हैं।”6 लेकिन उद्धारकर्ता के अनुग्राही प्रायश्चित्त का उपयोग कभी भी इस तरह के उपहासपूर्ण तरीके से नहीं किया जाना चाहिए। हम एक खोई हुई भेड़ के दृष्टांत को जानते हैं। बेशक, चरवाहा अन्य 99 भेड़ों को छोड़ कर उसे खोजने जाएगा जो भटक गई है। लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अच्छा चरवाहा उनके लिए कितनी खुशी महसूस करता है जो 99 होना चुनते हैं? जो लोग एक साथ रहते हैं और एक-दूसरे को उनके अनुबंधों का पालन करने में मदद करते हैं? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि संसार, या आपका स्कूल, या आपका काम, या आपका घर कैसा होगा यदि आज्ञाकारी होना लोकप्रिय बात होती? यह जीवन में परिपूर्ण रूप से करने के बारे में नहीं है—यह आनंद खोजने के बारे में है, जबकि हम प्रभु के साथ बनाए अनुबंधों का पालन करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते हैं।

उस संसार में जिसमें परमेश्वर के बारे में अधिक संदेह व्यक्त किया जा रहा है, और भ्रम और दबाव बढ़ रहे हैं, यह वह समय है जब हमें भविष्यवक्ता के सबसे निकट रहना चाहिए। क्योंकि वे प्रभु के प्रवक्ता हैं, तो हम इस बात पर भरोसा कर सकते हैं कि वे जो आग्रह करते, सलाह देते, और जिसे करने के लिए हमसे अनुरोध करते हैं, वे ऐसी बातें हैं जिससे बहुत अधिक अंतर पड़ता है।

यद्यपि हो सकता है यह सरल न हो, लेकिन सही काम करने का सदैव एक तरीका होता है। स्कूल में दोस्तों के एक समूह के साथ बात करते समय, एक युवती बहुत दुखी हुई जब उनकी आपस की बातचीत गिरजे की आलोचना करने में बदल गई। और उसने महसूस किया कि वह चुप नहीं रह सकती थी—उसे कुछ करना था। आदरपूर्वक, उसने स्वर्गीय पिता के प्रेम के बारे में बात की और बताया कि कैसे उसने अपने बच्चों को आशीष देने और उसकी रक्षा करने के लिए आज्ञाएं दी हैं। उसके लिए चुप रहकर कुछ भी नहीं करना बहुत आसान होता। लेकिन किस बात से बहुत अधिक अंतर पड़ता है? भीड़ के साथ शामिल होना? या “हर स्थान पर और बातों में और हर समय परमेश्वर के गवाह के रूप” में खड़े होना ?7

यदि यीशु मसीह का पुन:स्थापित गिरजा अंधकार से बाहर आ रहा है, तो हमें भी अंधकार से बाहर आना चाहिए। अनुबंध-पालन करने वाली महिलाओं के रूप में, हमें कदम उठाकर और संसार भर में अपने सुसमाचार की ज्योति को चमकाना चाहिए। हम इसे परमेश्वर की बेटियों के रूप में एक साथ करती हैं—11 वर्ष और उससे अधिक आयु की 82 लाख महिलाओं की ऐसी शक्ति जिसका कार्य बिल्कुल एकसमान है। हम इस्राएल को एकत्रित कर रही हैं जब हम उद्धार और उत्कर्ष के कार्य में भाग लेती हैं: यीशु मसीह के सुसमाचार को जीने का प्रयास करना, दूसरों की देखभाल करना, सभी को सुसमाचार प्राप्त करने के लिए आमंत्रित करना, और अनंत काल के लिए परिवारों को एकजुट करना।8 यीशु मसीह का सुसमाचार कार्य करने का सुसमाचार और खुशी का एक सुसमाचार है! हमें उन कार्यों को करने की हमारी क्षमता को कम करके नहीं आंकना चाहिए जिससे बहुत अधिक अंतर पड़ता है। हमारी दिव्य विरासत हमें वह सब कुछ करने और बनने का साहस और आत्मविश्वास देती है और जो हमारा प्यारा स्वर्गीय पिता जानता है कि हम हो सकती हैं।

इस वर्ष के लिए युवा थीम नीतिवचन 3: 5-6से है:

“तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन संपूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना ।

“उसको तू अपने सब कामों में याद रख और वही तेरी सब राहों को सीधी करेगा।”

प्रभु पर भरोसा करने का एक प्रमुख कार्य आगे बढ़ते रहना है, यह विश्वास करते हुए कि वह हमारा मार्गदर्शन करेगा, भले ही हमें सभी बातों का कारण न मालूम हो।

बहनों, यह आइसक्रीम के बारे में नहीं है। और यह अधिक करने के बारे में नहीं है। यह वह करने के बारे में है जिससे अंतर पड़ता है। यह हमारे जीवन में मसीह के सिद्धांत को लागू करता है जब हम उसके समान बनने का प्रयास करती हैं।

जितना अधिक हम अनुबंध के मार्ग पर दृढ़ता से बने रहने का प्रयास करती हैं, उतना ही यीशु मसीह में हमारा विश्वास बढ़ेगा। जितना अधिक हमारा विश्वास बढ़ता है, उतना ही अधिक हम पश्चाताप करने की इच्छा करेंगी। और जितना अधिक हम पश्चाताप करेंगी, उतना ही अधिक हम परमेश्वर के साथ अपने अनुबंध के रिश्ते को मजबूत बनाएंगी। यह अनुबंध संबंध हमें मंदिर की ओर खींचता है क्योंकि मंदिर के अनुबंधों को बनाए रखना यह है कि हम अंत तक कैसे धीरज रखती हैं।

जब हम यीशु मसीह पर अपने जीवन को केंद्रित करते हैं, तो हमें वह करने के लिए निर्देशित किया जाएगा जिससे बहुत अधिक अंतर पड़ता है। और हम आत्मिक शक्ति, संतुष्टि, और आनंद, से आशीषित होंगी! यीशु मसीह के नाम में, आमीन।