महा सम्मेलन
हमारा संपूर्ण हृदय
अप्रैल 2022 महा सम्मेलन


14:16

हमारा संपूर्ण हृदय

यदि हम चाहते हैं कि उद्धारकर्ता हमें स्वर्ग की ओर ले जाए, तो उसके और उसके सुसमाचार के प्रति हमारी प्रतिबद्धता संयोग से या सामयिक नहीं होनी चाहिए।

उसे एक भेंट

हमारे लिए अपना जीवन देने से कुछ दिन पहले, यीशु मसीह यरूशलेम के मंदिर में था, लोगों को मंदिर के भंडार में दान करते हुए देख रहा था। “और बहुत से धनवानों ने बहुत कुछ डाला,” इतने में एक कंगाल विधवा ने आकर दो दमड़ियां, जो एक अधेले के बराबर होती हैं, डालीं।” यह इतनी कम राशि थी, कि यह शायद ही गिनती करने लायक हो।

विधवा दो दमड़ियां देते हुए

और फिर भी इस महत्वहीन दान ने उद्धारकर्ता का ध्यान आकर्षित किया था। वास्तव में, इसने उसे इतना गहरा प्रभावित किया “और उसने अपने चेलों को पास बुलाकर उन से कहा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि मंदिर के भंडार में डालने वालों में से इस कंगाल विधवा ने सबसे बढ़कर डाला है:

“क्योंकि सबने अपने धन की बढ़ती में से डाला है, परंतु इसने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात अपनी सारी जीविका डाल दी है।”1

इस सरल विचार के साथ, उद्धारकर्ता ने हमें सिखाया कि कैसे उसके राज्य में भेंटों को मापा जाता है—और यह उस तरीके से काफी अलग है जिस तरह से हम आमतौर पर वस्तुओं को मापते हैं। प्रभु के लिए, दान का मूल्य भंडार पर पड़ने वाले प्रभाव से नहीं बल्कि देने वाले के हृदय पर पड़ने वाले प्रभाव से मापा जाता था।

इस विश्वासी विधवा की बात करते हुए, उद्धारकर्ता ने हमें अपने शिष्य होने को उसके सभी अभिव्यक्तियों में मापने के लिए कहा है। यीशु ने सिखाया कि हमारी भेंट बड़ी या छोटी हो सकती है, लेकिन यह हर तरह से, हमारे संपूर्ण ह्रदय से होनी चाहिए।

यह सिद्धांत मॉरमन की पुस्तक के भविष्यवक्ता अमालेकी के अनुरोध में बताया गया है: “और अब मेरे प्रिय भाइयों, मैं चाहता हूं कि तुम मसीह के पास आओ, जो कि इस्राएल का एकमेव पवित्र परमेश्वर है, और उसके उद्धार, और उसकी मुक्ति की शक्ति में भागीदार बनो। हां, उसके पास आओ, और अपनी पूरी आत्मा को उसे भेंट चढ़ा दो”।2

यह कैसे संभव हो सकता है? हम में से बहुत से लोग महसूस करते हैं कि हम अपनी पूरी आत्माओं को उद्धारकर्ता को प्रतिबद्ध करने में सक्षम नहीं हैं। हम पहले से ही अन्य कार्यों में व्यस्त हैं। हम अपनी पूरी आत्मा को प्रभु को अर्पित करने की अपनी इच्छाओं के साथ जीवन की कई अपेक्षाओं को कैसे संतुलित कर सकते हैं?

शायद हमारी चुनौती यह है कि हम सोचते हैं कि संतुलन का अर्थ है अपने समय को दो हितों के बीच समान रूप से विभाजित करना है। इस तरह से देखें तो, यीशु मसीह के प्रति हमारी वचनबद्धता उन बहुत से कामों में से एक होगी जो हमें करने हैं और जिसे हम अपने व्यस्त जीवन में से जगह दे सकें। लेकिन शायद इसे देखने का एक अन्य तरीका है।

संतुलन: साइकिल चलाने जैसा है

मेरी पत्नी, हैरियट और मुझे एक-साथ साइकिल चलाना पसंद है। यह समय बिताने के साथ-साथ कुछ व्यायाम करने का एक शानदार तरीका है। जब हम साइकिल चला कर रहे होते हैं, और जब मैं बहुत ज्यादा थकान महसूस नहीं करता हूं, हम अपने आस-पास की खूबसूरत दुनिया का आनंद लेते हैं और अच्छी अच्छी सुखद बातचीत करते हैं। इस दौरान शायद ही कभी हमें साइकिल पर अपना संतुलन बनाए रखने पर अधिक ध्यान देना पड़ता है। हम काफी समय से साइकिल चला रहे हैं और अब हम इसके बारे में सोचते भी नहीं हैं—यह हमारे लिए स्वाभाविक हो गया है।

लेकिन जब भी मैं किसी को पहली बार साइकिल चलाना सीखते हुए देखता हूं, तो मुझे याद आता है कि उन दो संकरे पहियों पर स्वयं को संतुलित करना आसान नहीं है। इसमें समय लगता है। इसका अभ्यास करना होता है। इसमें धैर्य लगता है। यहां तक कि एक या दो बार नीचे गिरना भी पड़ता है।

सबसे बढ़कर, जो लोग साइकिल पर संतुलन बनाने में सफल हो जाते हैं, वे ये महत्वपूर्ण बातें सीखते हैं:

अपने पैरों को मत देखो।

सामने देखो।

अपनी नजर सामने सड़क पर रखो। अपने गंतव्य स्थान पर ध्यान दो। और पैडल करते रहे। संतुलन बनाए रखते हुए ही आगे बढ़ा जाता है।

जब यीशु मसीह के शिष्यों के रूप में हमारे जीवन में संतुलन खोजने की बात आती है तो इसी तरह के नियम लागू होते हैं। अपने कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए अपने समय और ऊर्जा का कैसे उपयोग करते, यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और उनके जीवन में अलग-अलग समय पर भिन्न होगा। लेकिन हमारा उद्देश्य, हमारे गुरु, यीशु मसीह के मार्ग का अनुसरण करना है, और स्वर्ग में अपने प्रिय पिता की उपस्थिति में लौटना है। हम जो भी हैं और हमारे जीवन में कुछ भी हो रहा है, यह उद्देश्य स्थाई और एक समान होना चाहिए।3

उठना: जैसे विमान उड़ाना

अब, जो लोग साइकिल चलाने के शौकीन हैं, उनके लिए शिष्यत्व की तुलना साइकिल की सवारी करना एक सहायक उदहारण हो सकता है। जो शौकीन नहीं हैं, वे चिंता न करें। एक अन्य तुलना मेरे पास है, मुझे यकीन है कि हर पुरुष, महिला और बच्चा इससे संबंधित हो सकेंगे।

जीवन में अधिकांश बातों की तरह शिष्यत्व की भी विमान उड़ाने से तुलना की जा सकती है।

क्या आपने कभी यह सोचा कि यह कितना आश्चर्यजनक है कि एक विशाल यात्री विमान वास्तव में जमीन से ऊपर उड़ सकता है? ऐसा क्या है जो इन उड़ने वाली मशीनों को समुद्रों और महाद्वीपों को पार करते हुए आकाश में सुंदर ढंग से उड़ता रहता है?

सीधे शब्दों में कहें तो कोई विमान तभी उड़ता है जब उसके पंखों के ऊपर की वायु गतिमान होती है। यह गति वायु दबाव में अंतर पैदा करती है जो विमान को ऊपर उठाती है। और ऊपर उठाने के लिए पंखों पर पर्याप्त हवा कैसे गतिमान होती है? जवाब है विमान को आगे की ओर धकेलकर।

विमान को हवाई पट्टी पर खड़े रहकर कोई ऊंचाई नहीं मिलती है। हवादार दिन पर भी, उड़ान तब तक नहीं होती जब तक कि विमान आगे की ओर नहीं बढ़ता, और इसे पीछे खींचने वाले बलों का मुकाबला करने के लिए पर्याप्तरूप से आगे धकेला नहीं जाता है।

जिस तरह आगे की तरफ जाने से साइकिल को संतुलित और सीधा रखा जाता है, उसी तरह आगे बढ़ने से विमान को गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव और अवरोध को दूर करने में मदद मिलती है।।

यीशु मसीह का शिष्य होना इसका क्या अर्थ है हमारे लिए? इसका अर्थ यह है कि यदि हम जीवन में संतुलन पाना चाहते हैं, और यदि हम चाहते हैं कि उद्धारकर्ता हमें स्वर्ग की ओर ले जाए, तो उसके और उसके सुसमाचार के प्रति हमारी प्रतिबद्धता संयोग से या सामयिक नहीं होनी चाहिए। यरूशलेम की विधवा की तरह, हमें उसे अपनी पूरी आत्मा को समर्पित करना चाहिए। हमारी भेंट छोटी हो सकती है, लेकिन यह हमारे मन और आत्मा से होनी चाहिए।

यीशु मसीह का शिष्य होना हमारे बहुत से कार्यों की तरह नहीं है जो हम करते हैं। हम जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे उद्धारकर्ता की प्रेरक शक्ति है। वह हमारी यात्रा का विश्राम स्थल नहीं है। वह एक दर्शनीय उपमार्ग या एक प्रमुख मील का पत्थर भी नहीं है। “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना उसके [यीशु मसीह] द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।”4 यही मार्ग है और यही हमारी अंतिम मंजिल है।

संतुलन और उड़ान तब आती है जब हम “मसीह में दृढ़ता से विश्वास करते हुए, आशा की परिपूर्ण चमक, और परमेश्वर व सभी मनुष्यों के प्रति प्रेम रखते हुए आगे बढ़ते है।5

बलिदान और समपर्ण

और उन कार्यों और जिम्मेदारियों के बारे में क्या जो हमारे जीवन को इतना व्यस्त बनाते हैं? प्रियजनों के साथ समय बिताना, स्कूल जाना या व्यवसाय की तैयारी करना, जीविका कमाना, परिवार की देखभाल करना, समुदाय में सेवा करना—इन सभी को पूरा करने के लिए संतुलन कैसे कर सकते हैं? उद्धारकर्ता ने हमें विश्वास दिलाया है:

“तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीजों की आवश्यकता है।

“परन्तु सबसे पहले तुम परमेश्वर के राज्य और उसकी महिमा को खोजो, और ये सारी चीजें तुम्हें दे दी जाएंगी।”6

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह आसान है।7 इसके लिए बलिदान और समपर्ण दोनों की आवश्यकता होती है।

इसके लिए कुछ चीजों को छोड़ना होता है और अन्य चीजों को बढ़ने देना होता है।

बलिदान और समपर्ण दो स्वर्गीय व्यवस्थाएं हैं जिन्हें हम पवित्र मंदिर में पालन करने का अनुबंध बनाते हैं। ये दोनों व्यवस्थाएं समान हैं लेकिन एक जैसी नहीं हैं। बलिदान का अर्थ है किसी अधिक मूल्यवान वस्तु पाने के लिए कुछ त्याग करना। प्राचीन काल में, परमेश्वर के लोगों ने आने वाले मसीहा के सम्मान में अपने भेड़ों के झुंड से पहिलौठे की बलि दी थी। पूरे इतिहास में, विश्वासी संतों ने उद्धारकर्ता के लिए अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं, आराम और यहां तक कि अपने जीवन का बलिदान भी किया था।

हम सभी के पास हर प्रकार की वस्तुएं हैं, बड़ी और छोटी, जिन्हें यीशु मसीह का पूर्णरूप से अनुसरण करने के लिए बलिदान करने आवश्यक है।8 हमारे बलिदान दिखाते हैं कि वास्तव में हमारे लिए क्या महत्वपूर्ण है। बलिदान पवित्र हैं और प्रभु द्वारा सम्मानित होते हैं।9

समपर्ण कम से कम एक महत्वपूर्ण तरीके से बलिदान से अलग है। जब हम किसी वस्तु को पवित्र करते हैं, तो हम उसे वेदी पर भस्म करने के लिए नहीं छोड़ते हैं। बजाय इसके, हम इसे प्रभु की सेवा में उपयोग करते है। और इसे हम उसे और उसके पवित्र उद्देश्यों के प्रति समर्पित करते हैं।10 हम उन प्रतिभाओं को प्राप्त करते हैं जो प्रभु ने हमें देता हैं और उन्हें कई गुना बढ़ाने का प्रयास करते हैं, साथ ही प्रभु के राज्य के निर्माण के लिए इसका उपयोग भी करते हैं।11

लगता नहीं की हम में से किसी को कभी भी उद्धारकर्ता के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए कहा जाएगा। लेकिन हम सभी को अपना जीवन उसे समर्पित करने के लिए कहा गया है।

एक काम, एक खुशी, एक उद्देश्य

जब हम अपने जीवन को शुद्ध करने की कोशिश करते हैं और हर विचार में मसीह को देखते हैं,12 बाकी सब कुछ अपने आप होना शुरू हो जाता है। जीवन अब कमजोर/नाजुक संतुलन में थामे रखने के लिए विभिन्न प्रयासों की एक लंबी सूची की तरह नहीं है।

समय बीतने के साथ, यह सब एक ही कार्य बन जाता है।

एक उत्साह।

एक पवित्र उद्देश्य।

यह परमेश्वर से प्रेम और उसकी सेवा करने का कार्य है। यह परमेश्वर के बच्चों से प्रेम करना और उनकी सेवा करना है।13

जब हम अपने जीवन में दृष्टि डालते और सौ कार्यों को देखते हैं, तो हम परेशान हो जाते हैं। जब हम एक कार्य को देखते हैं—परमेश्वर और उसके बच्चों से प्रेम करना और उनकी सेवा करना, सौ भिन्न तरीकों से—तब हम आनंद के साथ उन कार्यों को करने लगते हैं।

इस तरह से हम अपनी पूरी आत्मा को समर्पित करते हैं—जो कुछ भी हमें रोकता है उसे त्याग कर और बाकी सब प्रभु और उसके उद्देश्यों के लिए समर्पित करके।

प्रोत्साहन और गवाही के शब्द

ऐसा समय भी होगा जब आप चाहेंगे कि आप अधिक कर सकें। स्वर्ग में आपका प्यारा पिता आपके हृदय को जानता है। वह जानता है कि आप वह सब नहीं कर सकते जो आपका हृदय करना चाहता है। लेकिन आप परमेश्वर से प्रेम और उसकी सेवा कर सकते हैं। आप उसकी आज्ञाओं को मानने के लिए अपना भरपूर प्रयास कर सकते हैं। आप उसके बच्चों से प्यार और उसकी सेवा कर सकते हैं। और आपके प्रयास आपके हृदय को शुद्ध करते हैं और आपको एक शानदार भविष्य के लिए तैयार करेंगे।

लगता है कि मन्दिर के भंडार में विधवा को यही समझ में आया था। वह निश्चित रूप से जानती थी कि उसकी भेंट इस्राएल के भाग्य को नहीं बदल सकती, लेकिन यह उसे बदल सकती है और आशीषें दे सकती है—छोटा ही सही, पर उसने अपना सबकुछ दे दिया था।

तो, मेरे प्यारे दोस्तों और यीशु मसीह के प्यारे साथी शिष्यों, “भलाई करने में थको मत, क्योंकि [हम] एक महान कार्य की नींव रख रहे हो। और छोटी छोटी बातों से उसकी प्राप्ति होती है जो महान है।”14

मैं गवाही देता हूं कि यह सच है, मैं यह भी गवाही देता हूं कि यीशु मसीह हमारा गुरु है, हमारा मुक्तिदाता है, और स्वर्ग में हमारे प्यारे पिता के पास जाने का एकमात्र मार्ग है। यीशु मसीह के पवित्र नाम में, आमीन।

विवरण

  1. मरकुस 12:41-44

  2. ओमनी 1:26

  3. हम बच्चों और युवाओं को यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए संतुलित तरीके से बढ़ने के लिए आमंत्रित करते है, जो युवक के रूप में “बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ रहे हैं” (लूका 2:52)।

  4. यूहन्ना 14:6

  5. 2 नफी 31:20

  6. 3 नफी 13:32–33; मत्ती 6:32–33भी देखें। जोसफ स्मिथ अनुवाद, मत्ती 6:38 अतिरिक्त ज्ञान प्रदान करता है: “इस संसार की वस्तुओं की खोज न करो, बल्कि पहले तुम परमेश्वर के राज्य का निर्माण करने और उसकी धार्मिकता को स्थापित करने की खोज करो” ( Matthew 6:33, footnote a)।

  7. एक उदाहरण हमारे भविष्यवक्ता, अध्यक्ष रसल एम. नेलसन से मिलता है। जब वे हृदय शल्य चिकित्सक के रूप में बहुत चर्चित थे, तब उन्हें स्टेक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। एल्डर स्पेंसर डब्ल्यू. किंबल और लेग्रैंड रिचर्ड्स ने उन्हें नियुक्त किया था। उनके व्यावसायिक व्यस्त जीवन को देखते हुए, उन्होंने उनसे कहा, “यदि आपको लगता है कि आप बहुत व्यस्त हैं और नियुक्ति को स्वीकार नहीं करना चाहिए, तो यह आपका सौभाग्य है।” उन्होंने उत्तर दिया था कि इस नियुक्ति और सेवा करने के बारे में उन्होंने निर्णय बहुत पहले ले लिया था, जब उन्होंने और उसकी पत्नी ने प्रभु के साथ मंदिर अनुबंध बनाए थे। “तब हमने फैसला कर लिया था,” उन्होंने कहा, “… पहिले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता को खोजो” [मत्ती 6:33], यह विश्वास करते हुए कि बाकी सब कुछ हमें मिल जाएगा, जैसा प्रभु ने प्रतिज्ञा की है” (Russell Marion Nelson, From Heart to Heart: An Autobiography [1979], 114)।

  8. अध्यक्ष नेलसन ने हाल ही में कहा था “हम में से प्रत्येक को उद्धारकर्ता की मदद से, हमारे जीवन में पुराने मलबे को हटाने की आवश्यकता है। … मैं आपको प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित करता हूं, “उन्होंने कहा,” उस मलबे को पहचानो जिसे आपको अपने जीवन से हटाना चाहिए ताकि आप अधिक योग्य बन सकें। (“Welcome Message,” Liahona, मई 2021, 7)।

  9. धर्मशास्त्र कहते हैं कि, परमेश्वर के लिए, हमारे बलिदान हमारी उपलब्धियों से अधिक पवित्र हैं (देखें सिद्धांत और अनुबंध 117:13)। यही एक कारण हो सकता है कि प्रभु ने धनवानों के योगदान से अधिक विधवा की दमड़ियों को महत्व दिया था। उसकी दमड़ियां एक ऐसा बलिदान था, जिसका शुद्धिकरण प्रभाव देने वाले पर पड़ा था। धनवानों का दान, जबकि इसे आर्थिक के रूप से पूरा कर किया जा सकता है, बलिदान नहीं था और इसका देने वाले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था।

  10. लगता नहीं की हम में से किसी को कभी भी उद्धारकर्ता के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए कहा जाएगा। लेकिन हम सभी को अपना जीवन उसे समर्पित करने के लिए कहा गया है।

  11. देखें मत्ती 25:14–30

  12. देखें सिद्धांत और अनुबंध 6:36

  13. इस तरह, हम अपने जीवन में प्रेरित पौलुस की भविष्यवाणी को पूरा होते देखते हैं: “कि समयों के पूरे होने का ऐसा प्रबन्ध हो कि जो कुछ स्वर्ग में है और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ वह मसीह में एकत्र करे”(इफिसियों 1:10)।

  14. सिद्धांत और अनुबंध 64:33