महा सम्मेलन
अंतिम दिनों में साहसी शिष्यता
अप्रैल 2022 महा सम्मेलन


10:18

अंतिम दिनों में साहसी शिष्यता

हमें आत्मविश्वास से भरा होना चाहिए, शर्मिंदा नहीं, साहसी होना चाहिए, डरपोक नहीं, विश्वसनीय होना चाहिए, भयभीत नहीं, जब हम इन अंतिम दिनों में प्रभु की ज्योति को थामते हैं।

स्वतंत्रता का अधिकार परमेश्वर के प्रत्येक बच्चे के लिए एक अनमोल उपहार है।1 हम “सभी मनुष्य उस महान मध्यस्थ के माध्यम से स्वतंत्रता और अनंत जीवन को चुनने लिए स्वतंत्र हैं, या शैतान की शक्ति के माध्यम से कैद और मृत्यु को भी चुन सकते हैं।”2 परमेश्वर हमें भलाई करने के लिए मजबूर नहीं करेगा, और न ही शैतान हमें बुराई करने के लिए मजबूर कर सकता है।3 हालांकि कुछ लोग सोच सकते हैं कि हमारा जीवन परमेश्वर और शैतान के बीच एक प्रतियोगिता है, उद्धारकर्ता के वचन से “शैतान चुप हो जाता और दूर भागता है। … यह [हमारी] शक्ति है जिसकी परीक्षा हो रही है—परमेश्वर की नहीं।”4

इसलिए अंत में हम वही काटेंगे जो हमने जीवन-भर अपने अनुसार बोया है।5 तो हमारे विचार, इच्छाएं, शब्द और कार्य का कुल योग हमारे उद्धारकर्ता, और उसके चुने हुए सेवकों, और उसके पुन: स्थापित गिरजे के प्रेम के बारे में क्या बताता है? क्या हमारे लिए बपतिस्मा, पौरोहित्य, और मंदिर के अनुबंध ज्यादा महत्पूर्ण है या दुनिया की प्रशंसा और सोशल मीडिया पर की गई “लाइक” की संख्या अधिक मायने रखती हैं? क्या प्रभु और उसकी आज्ञाओं के प्रति हमारा प्रेम इस जीवन में अन्य किसी वस्तु या किसी व्यक्ति के प्रति प्रेम से अधिक मजबूत है?

शैतान और उसके अनुयायियों ने हमेशा मसीह और उसके भविष्यवक्ताओं के कार्यों को नष्ट करने की कोशिश की है। उद्धारकर्ता की आज्ञाओं को, यद्यपि अनदेखा नहीं किया जाता है, लेकिन आज की दुनिया में कई लोगों द्वारा अर्थहीन बातों से तर्कसंगत बनाया गया है। “असुविधाजनक” सच्चाई सिखाने वाले परमेश्वर के दूतों को अक्सर अस्वीकार कर दिया जाता है। यहां तक कि स्वयं उद्धारकर्ता को भी “एक पेटू, और शराब पीने वाला” कहा जाता था,6 और जनता की भावना को भंग करने वाला और विभाजनकारी होने का भी आरोप लगाया गया था। कमजोर और धूर्त लोगों ने “सांठगांठ की कि वे उसे उसकी बातों में कैसे फंसाएं,”7 और उसके आरंभिक मसीही लोगों के संप्रदाय के खिलाफ औरों को कैसे भड़काएं।”8

उद्धारकर्ता और उसके शुरुआती अनुयायियों ने गंभीर आंतरिक और बाहरी विरोध का सामना किया, और हम उसी का अनुभव कर रहे हैं। आज सांसारिक लोगों द्वारा तिरस्कार की कुछ वास्तविक और आभासी उंगलियां उठाए बिना साहसपूर्वक हमारे विश्वास को जीना लगभग असंभव है। आत्मविश्वास से उद्धारकर्ता का अनुसरण करना एक उपहार है, लेकिन कभी-कभी हम उन लोगों के कहने में फंस सकते हैं जो कहते हैं “खाओ, पियो, और मौज करो”9 मसीह में विश्वास, आज्ञाकारिता और पश्चाताप यदि कम भी हो जाए तो भी परमेश्वर इसे एक छोटे से पाप की तरह क्षमा कर देगा क्योंकि वह हमसे बहुत प्यार करता है।

उद्धारकर्ता और उसके सेवकों ने क्या हमारे दिन के बारे में यह नहीं कहा था कि10 “क्योंकि ऐसा समय आएगा जब लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे, पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुत से उपदेशक बटोर लेंगे, और अपने कान सत्य से फेरकर कथा–कहानियों पर लगाएंगे”?11 क्या उसने इस बात पर शोक नहीं किया कि “और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं,क्योंकि मनुष्यों की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।”?12 क्या उसने यह चेतावनी नहीं दी कि “तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे–ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी–मेढ़ी बातें कहेंगे”?13 हाय उन पर जो बुरे को भला और भले को बुरा कहते”14 और यह कि “मनुष्य के बैरी उसके ही घराने के होंगे”?15

तो हमारे बारे में क्या? क्या हम भी धमकाये और डराये जाएंगे? क्या हमें अपने धर्म को इस प्रकार जीना चाहिए ताकि दूसरों को इसका पता न चले? बिलकुल नहीं। मसीह में विश्वास करके, हमें मनुष्यों की निंदा से डरने की आवश्यकता नहीं है।16 उद्धारकर्ता की अगुवाई और जीवित भविष्यवक्ताओं के मार्गदर्शन के साथ, “हमारा विरोधी कौन हो सकता है?”17 हमें आत्मविश्वास से भरा होना चाहिए, शर्मिंदा नहीं, साहसी होना चाहिए, डरपोक नहीं, विश्वसनीय होना चाहिए, भयभीत नहीं, जब हम इन अंतिम दिनों में प्रभु की ज्योति को थामते हैं।18

उद्धारकर्ता ने स्पष्ट किया कि “जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूंगा। … पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा, उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूंगा।”19

नतीजतन, जबकि कुछ ऐसे ईश्वर को पसंद करेंगे जो आज्ञाएं नहीं देता है, आइए हम एल्डर डी. टॉड क्रिस्टोफरसन के शब्दों में साहसपूर्वक गवाही दें कि “ऐसा ईश्वर जो कोई मांग नहीं करता है, उस ईश्वर के अस्तित्व में होने या नहीं होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।”20

जबकि कुछ लोग उन आज्ञाओं का चयन करते हैं जिनका वे पालन कर सकते हैं, आइए हम उद्धारकर्ता के निमंत्रण को स्वीकार करें “ताकि तुम उस प्रत्येक वचन का पालन करो जो परमेश्वर के मुंह से निकलता है।”21

जबकि बहुत से लोग मानते हैं कि प्रभु और उसके गिरजे में सब माफ है “और वही करो जो तुम्हारे हृदय में कहता है,”22 आइए हम बहादुरी से घोषणा करें कि “बुराई करने के लिए भीड़ का अनुसरण करना” गलत है, ”23 क्योंकि “बुराई करने के लिये न तो बहुतों के पीछे हो लेना; क्योंकि “भीड़ उसे सही नहीं कर सकती जिसे परमेश्वर ने गलत घोषित किया है।”24

“ओह याद रखो … परमेश्वर की आज्ञाएं कितनी कड़ी हैं [फिर भी स्वतंत्र करती हैं]।”25 उन्हें स्पष्ट रूप से सिखना कभी-कभी असहनशील कार्य के रूप में देखा जा सकता है। इसलिए आइए हम सम्मानपूर्वक प्रदर्शन करें कि परमेश्वर के किसी बच्चे से प्यार करना न केवल संभव है, बल्कि आवश्यक भी है, जो हमारे से भिन्न आस्था को अपनाता है।

हम दूसरों को उनकी आस्थाओं या कार्यों का समर्थन किए बिना स्वीकार और सम्मान कर सकते हैं जो प्रभु की इच्छा के अनुरूप नहीं हैं। सहमति और सामाजिक इच्छा की वेदी पर सच्चाई की बलि देने की आवश्यकता नहीं है।

सिय्योन और बाबुल की तुलना नहीं की जा सकती है। “कोई भी मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता है;”26 आइए हम सभी उद्धारकर्ता के चुभने-वाला प्रश्न को याद करें, “जब तुम मेरा कहना नहीं मानते तो क्यों मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ कहते हो?”27

आइए हम पूरे ह्रदय से, स्वैच्छिक आज्ञाकारिता के माध्यम से प्रभु के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन करें।

यदि आप अपने शिष्यत्व और संसार के बीच फंसे हुए महसूस करते हैं, तो कृपया याद रखें कि आपका प्रिय उद्धारकर्ता, निमंत्रण देता है … , क्योंकि दया का हाथ [आपकी] ओर फैलाया गया है, और वह कहता हैः पश्चाताप करो, और मैं तुम्हें स्वीकार करूंगा।”28

अध्यक्ष रसल एम. नेलसन ने सिखाया था: कि “यीशु मसीह, अब और जब वह फिर से आएगा, उसके बीच अपने सबसे शक्तिशाली कार्य करेगा।”29 लेकिन उन्होंने यह भी सिखाया कि “जो लोग प्रभु का मार्ग चुनते हैं, वे अत्याचार सहेंगे।”30 जब “हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे”31 तो कभी-कभी हम ऐसी परिस्थिति का सामना करते हैं जब हम “उसकी वाणी को किसी भी अन्य से अधिक प्राथमिकता देते हैं।”32

“धन्य है वह,” उद्धारकर्ता ने कहा, “जो मेरे कारण ठोकर खाए।”33 हम सीखते हैं कि “तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों कोबड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती।”34 कुछ नहीं! तो आइए हम अपने आप से पूछें, “क्या मैं कुछ समय से सहन कर रहा हूं, लेकिन जब क्लेश या उपद्रव वचन के कारण उत्पन्न होता है, तो धीरे-धीरे मैं उसके द्वारा अपमानित महसूस करता हूं??35 क्या मैं यीशु मसीह और उसके सेवकों की चट्टान पर दृढ़ हुआ हूं?”

नैतिक सापेक्षवादी इस बात की वकालत करते हैं कि सच्चाई केवल एक सामाजिक निर्माण है, कोई नैतिक निरपेक्षता नहीं है। वे वास्तव में जो कह रहे हैं वह यह है कि कोई पाप नहीं है,36 “और कोई मनुष्य जो कुछ भी [करता है] वह अपराध नहीं है।”37 एक ऐसी धारणा जिसका शैतान लेखक होने का दावा कर रहा है! इसलिए आइए हम भेड़ों की खाल में भेड़ियों से सावधान रहें जो हमेशा “अपने व्यवहार संबंधी कमियों को छिपाने के लिए अपने बौद्धिक विचारों का [अक्सर उपयोग] करते हैं।”38

यदि हम वास्तव में मसीह के साहसी शिष्य बनना चाहते हैं, तो हम मार्ग खोज लेंगे। अन्यथा, शैतान आकर्षक विकल्प दिखता है। लेकिन विश्वासी शिष्यों के रूप में, “हमें अपने आस्थाओं के लिए क्षमा मांगने की आवश्यकता नहीं है और न ही पीछे हटने की आवश्यकता है जिसे हम सच्चाई मानते हैं।”39

अंत में, मेरे पीछे बैठे परमेश्वर के 15 सेवकों के बारे में कुछ शब्द। जबकि सांसारिक लोग “दिव्यादर्शियों से कहते हैं, देखो नहीं; और भविष्यवक्ताओं से भविष्यवाणी मत करो,”40 विश्वसनीय लोगों को “स्वर्ग से आशीषों का मुकुट भी पहनाया जाएगा, हां, और थोड़ी बहुत आज्ञाओं से नहीं, और प्रकटीकरणों से इनके उचित समय में।”41

यह आश्चर्य की बात नहीं, कि अक्सर ये लोग परमेश्वर के वचन से नाखुश लोगों के लिए तड़ित-चालक बन जाते हैं, जब भविष्यवक्ता इनकी घोषणा करते हैं। जो भविष्यक्ताओं को अस्वीकार करते हैं वे यह महसूस नहीं करते हैं कि “पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यवाणी किसी [की अपनी] विचारधारा नहीं होती” या मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं होती, “पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा … परमेश्वर की ओर से बोलते” [हैं]।42

पौलुस की तरह, परमेश्वर के ये लोग “हमारे प्रभु की गवाही से लज्जित नहीं थे” और उसके कैदी हैं”43 क्योंकि जो सिद्धांत वे सिखाते हैं वह उनका नहीं है, बल्कि उसका है जिसने उन्हें नियुक्त किया है। पतरस की तरह, वे “जो कुछ [उन्होंने] देखा और सुना, वही कहा और कुछ नहीं।”44 मैं गवाही देता हूं कि प्रथम अध्यक्षता और बारह की परिषद भले और ईमानदार व्यक्ति हैं जो परमेश्वर और उसके बच्चों से प्रेम करते हैं और यह उसके द्वारा भी प्रेम किए जाते हैं। उनके वचन हमें ऐसे ग्रहण करने चाहिए मानो प्रभु के अपने मुंह से बोले गए हो “धैर्य और विश्वास के साथ। इन बातों को करने के द्वारा नरक के फाटक [हम] पर प्रबल न होंगे; … और प्रभु परमेश्वर अंधकार की शक्तियों को तुम्हारे सामने से तितर-बितर कर देगा,”45

“कोई भी अपवित्र हाथ इस काम को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता”;46 यह आपके या मेरे साथ या बिना हमारे भी विजयी रूप से आगे बढ़ेगा, इसलिए “आज आप चुनें कि आप को किसकी सेवा करनी है।”47 इसलिए उस महान और विशाल भवन से निकलने वाले जोरदार प्रतिकूल शोर से धोखा न खांए या भयभीत न हों। उनके हताशा के आगे टुटा हुआ ह्रदय और पश्चातापी आत्मा और धीमी अवाज के शांत प्रभाव का कोई मुकाबला नहीं कर सकता।

मैं गवाही देता हूं कि मसीह जीवित है, वह हमारा उद्धारकर्ता और मुक्तिदाता है, और यह कि वह प्रथम अध्यक्षता और बारह प्रेरितों की परिषद के माध्यम से अपने गिरजे की अगुवाई करता है, इस प्रकार यह आश्वस्त करता है कि हम “[सिद्धांत की हर हवा] से उछाले, और इधर-उधर नहीं घुमाए जाएंगे।”48

“यीशु मसीह के सच्चे शिष्य,” अध्यक्ष नेलसन ने कहा, “हमेशा तैयार रहते है, और दुनिया के लोगों से अलग दिखाई देते हैं। वे निडर, समर्पित और साहसी हैं।”49

भाइयों और बहनों, भला होने का यह एक अच्छा दिन है! यीशु मसीह के पवित्र नाम में, आमीन।