महा सम्मेलन
परमेश्वर के साथ हमारा संबंध
अप्रैल 2022 महा सम्मेलन


13:17

परमेश्वर के साथ हमारा संबंध

इससे कोई अतंर नहीं पड़ता कि हमारे नश्वर अनुभव कुछ भी हों, हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं और उसमें आनन्द पा सकते हैं।

पुराने नियम में अय्यूब के समान, पीड़ा के समय में कुछ लोग महसूस कर सकते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। चूंकि हम जानते हैं कि परमेश्वर के पास किसी भी दुख को रोकने या दूर करने की शक्ति है, इसलिए यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो हम यह शिकायत कर सकते हैं, “यदि परमेश्वर उस सहायता को प्रदान नहीं करता है जिसके लिए मैं प्रार्थना करता हूं, तो मैं उस में विश्वास कैसे करूं? अपनी कड़ी परीक्षाओं के समय में, धर्मी अय्यूब ने कहा:

“तो यह जान लो कि ईश्वर ने मुझे गिरा दिया है, और मुझे अपने जाल में फंसा लिया है।

यद्यपि, “मैं उपद्रव! यों चिल्लाता रहता हूं! परन्तु कोई नहीं सुनता; मैं सहायता के लिये दोहाई देता रहता हूं, परन्तु कोई न्याय नहीं करता।”1

अय्यूब को अपने उत्तर में, परमेश्वर पूछता है, “क्या तू आप निर्दोष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा?”2 या अन्य शब्दों में, “क्या तू मुझे भी गलत में ठहराएगा? क्या तुम मेरी निंदा करोगे कि तुम्हें न्याय मिल सके?”3 यहोवा बलपूर्वक अय्यूब को उसके सर्वशक्तिमान और सर्व-ज्ञानी होने की याद दिलाता है, और अय्यूब विनम्रता से स्वीकार करता है कि उसके पास परमेश्वर के ज्ञान, शक्ति और धार्मिकता के समान कुछ भी नहीं है और वह सर्वशक्तिमान के न्याय के समक्ष खड़ा नहीं हो सकता है:

“मैं जानता हूं कि तू सबकुछ कर सकता है,” उसने कहा, “और तेरी युक्तियों में से कोई रुक नहीं सकती।

“… जो बातें मेरे लिये अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर थीं जिन को मैं जानता भी नहीं था। …

“इसलिए, मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूलि और राख में पश्चाताप करता हूं।”4

अंत में, अय्यूब को प्रभु को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, और “प्रभु ने अय्यूब के पिछले दिनों में उसको अगले दिनों से अधिक आशीष दी।”5

यह वास्तव में हमारे नश्वर दृष्टिदोष के कारण हमारी मूर्खता है कि हम परमेश्वर का न्याय करें, उदाहरण के लिए, “मैं खुश नहीं हूं, इसलिए अवश्य ही परमेश्वर गलत है।” हमारे लिए, एक पतित संसार में उसके नश्वर बच्चे, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में बहुत कम जानते हैं, वह कहता है, “हर वस्तु मेरी उपस्थिति में है, क्योंकि मैं उन सबों को जानता हूं।”6 याकूब बुद्धिमानी से चेतावनी देता है: प्रभु को सलाह देने का प्रयास न करें, लेकिन उसके हाथों से सलाह लें। क्योंकि देखो, तुम स्वयं जानते हो कि वह अपने सब कामों में बुद्धिमता से, और न्याय से, और महान अनुग्रह से सलाह देता है।”7

कुछ लोग परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को गलत समझते हैं कि उसके प्रति आज्ञाकारिता एक निश्चित समय पर ही विशिष्ट परिणाम देती है। वे सोच सकते हैं, “यदि मैं एक पूर्णकालिक मिशन में सेवा करता हूं, तो परमेश्वर मुझे एक सुखी विवाह और बच्चों से आशीषित करेगा,” या “यदि मैं सब्त के दिन स्कूल का काम नहीं करता हूं, तो परमेश्वर मुझे अच्छे ग्रेड से आशीषित करेगा,” या “यदि मैं दशमांश देता हूं, तो परमेश्वर मुझे उस नौकरी की आशीष देगा जिसे मैं चाहता हूं।” यदि जीवन ठीक इसी तरह से या अपेक्षित समय के अनुसार नहीं होता है, तो वे परमेश्वर द्वारा धोखा दिया जाना महसूस कर सकते हैं। लेकिन दिव्य राज्य में व्यवस्था इस तरह स्वचालित नहीं है। हमें परमेश्वर की योजना के बारे में किसी स्वर्गीय बिक्री मशीन की तरह नहीं सोचना चाहिए जहां हम (1) अपनी इच्छा की आशीष चुनते हैं, (2) अच्छे कार्यों का आवश्यक जोड़ डालते हैं, और (3) आशीष तुरंत दे दी जाती है।8

निस्संदेह परमेश्वर हम में से प्रत्येक के लिए उसके अनुबंधों और प्रतिज्ञाओं का सम्मान करेगा। हमें इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।9 यीशु मसीह की प्रायश्चित करने वाली शक्ति— जो सब बातों में नीचे भी उतरा और फिर ऊपर स्वर्ग में उठाया गया10 स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार उसे दिया गया11—यह सुनिश्चित करती है कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा कर सकता है और करेगा। आवश्यक है कि हम उसकी व्यवस्था का सम्मान और आज्ञा पालन करें, लेकिन प्रत्येक आशीष व्यवस्था12 के प्रति आज्ञाकारिता के आकार, डिजाइन, और हमारी आशाओं, समयबद्धता के अनुसार नहीं दी जाती है। हम अपनी पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन नश्वरता और आत्मिक दोनों तरह की आशीषों के काम को उस पर छोड़ देना चाहिए।

अध्यक्ष ब्रिघम यंग ने समझाया कि उनके विश्वास की निर्माण कुछ परिणामों या आशीषों से नहीं बना था, बल्कि यीशु मसीह के साथ उनकी गवाही और रिश्ते पर बना था। उन्होंने कहा था: “मेरा विश्वास प्रभु का समुद्र के द्वीपों पर काम करने से नहीं बढ़ा है, न ही उसके द्वारा लोगों को यहां लाने से नहीं बढ़ा है, … और न ही उन उपकारों से जो वह इन लोगों या उन लोगों को देता है, न तो इस से कि हम आशीषित हैं या नहीं, लेकिन मेरा विश्वास प्रभु यीशु मसीह और मेरे उस ज्ञान से बढ़ा है जो मुझे उससे प्राप्त हुआ है।”13

हमारा पश्चाताप और आज्ञाकारिता, हमारी सेवा, और हमारे बलिदानों से अवश्य अंतर पड़ता है। हम ईथर के बताए लोगों के समान होना चाहते हैं जब हम “सदा अच्छे कार्य करने के लिए दृढ़ और अटल” रहते हैं।14 लेकिन यह उस तरह नहीं होता है जैसा सिलेस्टियल खाता पुस्तकों में हिसाब रखा जाता है। इन बातों से अंतर पड़ता है क्योंकि ये हमें परमेश्वर के कार्य में व्यस्त रखती हैं और इन के द्वारा हम प्राकृतिक मनुष्य से संत बनकर स्वयं के रूपांतरण में उसका सहयोग करते हैं।15 हमारा स्वर्गीय पिता स्वयं को, अपने पुत्र, यीशु मसीह, हमारे मुक्तिदाता के अनुग्रह और मध्यस्थता के द्वारा उसके साथ एक घनिष्ठ और स्थायी संबंध बनाने के लिए प्रदान करता है।

हम परमेश्वर की सन्तान हैं, जो अमरता और अनन्त जीवन के लिए अलग रखे गए हैं। हमारी नियति उसके वारिस होना है, “मसीह के संगी वारिस।”16 हमारा पिता हम में से प्रत्येक की उसके अनुबंध के मार्ग में हमारी व्यक्तिगत आवश्यकता और उसके साथ हमारे सर्वोत्तम सुख के लिए उसकी योजना के अनुरूप बनाए गए कदमों से मार्गदर्शन करना चाहता है। हम पिता और पुत्र में बढ़ते भरोसे और विश्वास, उनके प्रेम की बढ़ती भावना, और पवित्र आत्मा की निंरतर दिलासा और मार्गदर्शन की आशा कर सकते हैं।

फिर भी, यह मार्ग हम में से किसी के लिए भी सरल नहीं हो सकता है। इसे सरल बनाने के लिए बहुत अधिक शुद्धिकरण की आवश्यकता है। यीशु ने कहा था:

“सच्ची दाखलता मैं हूं; और मेरा पिता किसान है।

“जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह [पिता] काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले।”17

परमेश्वर द्वारा निर्देशित परिष्करण और शुद्धिकरण की प्रक्रिया, आवश्यकतानुसार, कई बार अत्यंत कष्टदायी और दर्दनाक होगी। पौलुस के वर्णन को याद करते हुए, हम “मसीह के संगी वारिस हैं; यदि ऐसा है तो हम उसके साथ दुख उठाएं, ताकि उसके साथ महिमा भी पाएं।”18

इसलिए, इस परिष्करण की आग के बीच में, परमेश्वर पर क्रोध करने के बजाय, परमेश्वर के पास जाओ। पुत्र के नाम से पिता से प्रार्थना करो। आत्मा के द्वारा उनके संग चलें, दिन-प्रतिदिन। उन्हें समय के साथ आप पर उनकी निष्ठा प्रकट करने की अनुमति दें। वास्तव में उन्हें और स्वयं को पहचानने के लिए।19 परमेश्वर को प्रबल होने दो।20 उद्धारकर्ता हमें आश्वासन देता है:

“उसे सुनो जो पिता के पास मध्यस्थ है, जो उसके समक्ष तुम्हारे लिये याचना कर रहा है—

“कहते हुए: पिता, देखो उसके कष्टों और मृत्यु को जिसने पाप नहीं किया, जिससे आप अत्यंत प्रसन्न थे; देखो अपने पुत्र के लहू को जो बहाया गया था, उसका लहू जिसे आपने दिया था कि आपकी महिमा हो;

इसलिये, पिता, मेरे इन लोगों को दंड न देना जो मेरे नाम पर विश्वास करते हैं, कि वे मेरे निकट आ सकें और अनंत जीवन प्राप्त करें।”21

उन विश्वसनीय पुरुषों और महिलाओं के कुछ उदाहरणों पर ध्यान दें जिन्होंने परमेश्वर पर भरोसा किया, उन्हें विश्वास था कि उसकी प्रतिज्ञा की गई आशीषें इस जीवन में या इसके उपरांत प्राप्त होंगी। उनका विश्वास इस बात पर आधारित नहीं था कि परमेश्वर ने किसी विशेष परिस्थिति या समय में क्या किया या नहीं किया, बल्कि उसे अपने परोपकारी पिता के रूप में और यीशु मसीह को अपने विश्वसनीय उद्धारकर्ता के रूप में जानने पर आधारित था।

जब इब्राहीम की एलकेना के मिस्री याजक के द्वारा बलि दी जाने वाली थी तो, उसने उसे बचाने के लिए परमेश्वर को पुकारा, और उसने उसे बचाया।22 इब्राहीम ने उन विश्वासियों का पिता बनने के लिए जीवन जिया था जिसके वंश के माध्यम से पृथ्वी के सभी परिवार आशीषित होंगे।23 इससे पहले, इसी वेदी पर एक समय में तीन कुवांरियों की भेंट चढ़ाई गई थी “उनके चरित्र के कारण; वे लकड़ी या पत्थर की मूर्तियों की आराधना करने के लिये नहीं झुकी थी।”24 वे शहीद के रूप में मरे।

अतीत के यूसुफ को, युवास्था में अपने भाइयों द्वारा मिस्र में दास के रूप में बेच दिया गया, वह अपनी पीड़ा में परमेश्वर के समक्ष गया था। धीरे-धीरे, वह मिस्र में अपने मालिक के घर में प्रभावशाली बना, लेकिन फिर पोतीपर की पत्नी के झूठे आरोपों के कारण उस की सारी प्रगति छिन गई थी। यूसुफ सोच सकता था. “मुझे पवित्रता की व्यवस्था का पालन करने से मुझे जेल मिली है।” लेकिन इसके बजाय वह फिर से परमेश्वर के समक्ष गया और जेल में भी आशीषित हुआ यूसुफ को फिर से निराशा का सामना करना पड़ा जब उसका कैदी मित्र, यूसुफ की मदद करने वादे के बावजूद, फिरौन के दरबार में भरोसे का पद फिर से प्राप्त करने के बाद उसके बारे में सब कुछ भूल गया था। अंत में, जैसा कि आप जानते हैं, प्रभु ने यूसुफ को फिरौन के दरबार में विश्वास और शक्ति के दूसरे सर्वोच्च पद पर पहुंचाया था, जिसने यूसुफ को इस्राएल के घराने और कई अन्य लोगों को बचाने में सक्षम बनाया था। अवश्य ही यूसुफ गवाही दे सकता है “कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है।”25

अबिनादी अपने दिव्य कर्तव्य को पूरा करने का इरादा रखता था। “मैं अपने संदेश को समाप्त करता हूं,” उसने कहा था, “और फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि [मेरा क्या होगा], शायद मैं बचा लिया जाऊं।”26 वह शहीद हो गया, लेकिन निश्चित रूप से वह परमेश्वर के राज्य में बचाया गया था, और उसके एक अनमोल परिवर्तित, अलमा ने, नफाई के इतिहास को बदल डाला और मसीह के आगमन के लिए तैयार किया था।

अलमा और अमूलेक को उनकी याचिका के जवाब में अम्मोनिहा की जेल से रिहा किया गया था, और उनके सताने वाले मार डाले गए थे।27 इससे पहले, हालांकि, इन ही अत्यचारियों ने विश्वासी महिलाओं और बच्चों को धधकती आग में डाल दिया था। अलमा, इस भयानक दृश्य को देख रहा था आत्मा से प्रभावित होकर परमेश्वर के सार्मथ्य का उपयोग करते हुए कहा “उन्हें आग की लपटों से बचाओ,”28 ताकि वे ऊपर परमेश्वर की महिमा में स्वीकार किए जाएं।29

भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ लिबर्टी, मिसौरी में जेल में कैद, संतों की मदद करने के लिए शक्तिहीन थे जब उन्हें सर्दियों की कड़कती ठंड में लूटपाट कर उनके घरों खदेड़ दिया गया था। “ओ परमेश्वर, आप कहां हैं?” जोसफ कराह उठे थे। “कब तक आप अपना हाथ रोके रहोगे?”30 जवाब में, प्रभु ने प्रतिज्ञा की थी: “तुम्हारी परिक्षा और तुम्हारे कष्ट होंगे लेकिन कुछ समय के लिये; और फिर, यदि तुम इसे अच्छी तरह सहते हो, परमेश्वर ऊंचे में तुम्हारा सम्मान करेगा। … तुम अभी अय्यूब के समान नहीं हुए हो।”31

अंत में, जोसफ अय्यूब के साथ कह सकता था, “[परमेश्वर] मुझे घात करेगा, तौभी मैं उसका पक्ष लूंगा।”32

एल्डर ब्रुक पी. हेल्स ने बहन पेट्रीसिया पार्किंसंस की कहानी का वर्णन किया था, जो सामान्य दृष्टि के साथ पैदा हुई थी, लेकिन 11 वर्ष की आयु तक अंधी हो गई थी।

एल्डर हेल्स ने याद किया: “मैं पैट को कई वर्षों से जानता हूं और हाल ही में मैंने उसे बताया कि मैं इस सच्चाई की प्रशंसा करता हूं कि वह हमेशा सकारात्मक और प्रसन्न रहती है । उसने जवाब दिया, “ठीक है, आप मेरे साथ घर पर नहीं रहते हो, आप रहते हो क्या? मेरे पास मेरे स्वयं के क्षण होते हैं। मैंने उदासी के गंभीर प्रभावों को झेला है, और मैं बहुत रोयी हूं। यद्यपि, उसने आगे कहा, “जब से मैंने अपनी दृष्टि खोनी शुरू की, यह अजीब था, लेकिन मैं जानती थी कि स्वर्गीय पिता और उद्धारकर्ता मेरे परिवार और मेरे साथ थे। जो मुझसे पूछते हैं कि क्या मैं इसलिये नाराज हूं क्योंकि मैं अंधी हूं, मैं उन लोगों जवाब देना चाहती हूं: ‘मैं किससे नाराज होऊंगी? इस अवस्था में भी स्वर्गीय पिता मेरे साथ है; मैं अकेली नहीं हूं। हर समय वह मेरे साथ है।’”33

अंत में, यह पिता और पुत्र के साथ एक करीबी और स्थायी संबंध की आशीष है जिसे हम चाहते हैं। इससे बहुत अंतर पड़ता है और इसके लिए कोई भी कीमत चुकाई जा सकती है। हम पौलुस के साथ गवाही देगें “कि इस समय के दुख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होने वाली है, कुछ भी नहीं हैं।”34 मैं गवाही देता हूं कि इससे कोई अतंर नहीं पड़ता कि हमारे नश्वर अनुभव कुछ भी हों, हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं और उसमें आनन्द पा सकते हैं।

“तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन संपूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना ।

“उसको तू अपने सब कामों में याद रख, वही तेरी सब राहों को सीधी करेगा।”35

यीशु मसीह के नाम में, आमीन।