महा सम्मेलन
क्या हम इतने महान कार्य में आगे नहीं बढ़ेंगे ?
अप्रैल 2020 महा सम्मेलन


18:46

क्या हम इतने महान कार्य में आगे नहीं बढ़ेंगे ?

हमें हमेशा उस कीमत को याद रखना चाहिए जो जोसफ और हाएरम स्मिथ, ने अन्य विश्वासी पुरुषों, महिलाओं, और बच्चों के साथ इस गिरजे को स्थापित करने के लिए चुकाई थी ।

इतनी शानदार शुरूआत करने के लिए बहुत धन्यवाद, अध्यक्ष नेलसन । 215 साल पहले, एक छोटे बालक ने पूर्वोत्तर संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यू इंग्लैंड नामक क्षेत्र में वरमोंट में जोसफ और लुसी मैक स्मिथ के यहां जन्म लिया था ।

जोसफ और लुसी मैक यीशु मसीह में विश्वास करते, पवित्र धर्मशास्त्र अध्ययन करते, निष्ठापूर्वक प्रार्थना करते, और परमेश्वर के विश्वास में जीते थे ।

उन्होंने अपने नये पैदा हुए बेटे का नाम जोसफ स्मिथ जु. रखा था ।

स्मिथ परिवार के बारे में, ब्रिगम यंग ने कहा था: “प्रभु उसे [जोसफ स्मिथ को], और उसके पिता, और उसके पिता के पिता को जानता था, और उनके पूर्वजों जोकि इब्राहिम से जाकर मिलती थी, और इब्राहिम से बाढ़, और बाढ़ से इनोक और इनोक से आदम तक । उसने इस परिवार और इस लहू पर निगाह रखी थी जब यह अपने मूल स्रोत से इस व्यक्ति के जन्म तक संचारित होता था । [जोसफ स्मिथ] को अनंतकाल से नियुक्त किया गया था ।”1

अपने परिवार में प्रिय, जोसफ जु. का विशेषरूप से अपने बड़े भाई हाएरम से जुड़ाव था, वह छह वर्ष का था जब जोसफ का जन्म हुआ था ।

पिछली अक्टूबर, मैं उस चूल्हे के स्पाट पत्थर के निकट बैठा था जो स्मिथ के शेरोन, वरमोंट, में छोटे से घर में लगा था, जहां जोसफ का जन्म हुआ था । मैंने जोसफ के प्रति हाएरम के प्यार को महसूस किया और उसके बारे में सोचा जब वह अपनी बाहों में अपने छोटे भाई को हाथ पकड़ कर चलना सिखा रहा था ।

पिता और मां स्मिथ ने व्यक्तिगत असफलताओं को अनुभव किया था, न्यू इंग्लैंड आने से पहले वे बहुत बार अपने परिवार को जगह-जगह लेकर भटकना पड़ा था और अंत में वे मजबूर होकर न्यूयॉर्क राज्य के, सुदूर पश्चिम में आकर बस गए थे ।

क्योंकि परिवार संगठित था, इसलिए वे इन चुनौतियों का सामना कर पाए थे और उन्होंने मिलकर मैनचेस्टर में पलमायरा, न्यूयॉर्क के निकट एक एक-सौ एकड़ में (0.4 किमी. 2) जोकि चारों तरफ से जंगल से घिरा हुआ था फिर से कड़ा परिश्रम करना आरंभ किया था ।

मैं नहीं जानता कि हम में से कितने उस शारीरिक और मानसिक चुनौतियों को महसूस कर सकते हैं जिनका सामना स्मिथ परिवार ने दुबारा से नये स्थान में बसने के लिए किया था—जमीन की सफाई करना, बगीचे लगाना और खेत तैयार करना, लकड़ी का छोटा घर और अन्य ढांचे बनाना, मेहनत मजदूरी करना, और शहर में बेचने के लिए घरेलु सामान बनाना ।

जिस समय यह परिवार पश्चिमी न्यूयॉर्क पहुंचा था, वहां का धार्मिक वातवरण बहुत गर्म था—जिसके कारण वहां के लोग धर्म के प्रति बहुत समर्पित थे ।

इस समय के दौरान धार्मिक दलों के आसपसी वाद-विवाद और संघर्ष के बीच जोसफ ने एक चमत्कारिक दिव्यदर्शन देखा था, जिसे आज प्रथम दिव्यदर्शन के नाम से जानते हैं । हम पास चार प्रमुख वर्णन हैं जिनके बारे में बात करूंगा । 2

जोसफ ने लिखा था: “इस महान उत्तेजना के समय के दौरान मेरा दिमाग गंभीर विचार और बहुत अशांति से भरा हुआ था; और यद्यपि मेरी अनुभूतियां गहरी और अक्सर दुखद थी, फिर भी मैंने स्वयं को इन सभी दलों से दूर रखा था, लेकिन जब मुझे समय मिलता मैं उनकी सभाओं में जाता था । … [फिर भी] विभिन्न संप्रदायों के बीच भ्रम और मतभेद इतने अधिक थे, कि मेरे जैसे युवा के लिये, जोकि लोगों और इन बातों से बहुत ही अनजान था, किसीी निर्णय पर पहुंचना असंभव था कि कौन सही था और कौन गलत ।3

जोसफ ने अपने प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए बाइबिल का अध्ययन किया और याकूब 1:5 पढ़ा था: “यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी ।”4

उसने लिखा था: “धर्मशास्त्र के किसी वाक्य ने कभी भी मनुष्य के हृदय को इतनी गहराई से नहीं छुआ होगा जितना इसने उस समय मुझे छुआ था । ऐसा लगता था कि मानो यह अत्याधिक शक्ति से मेरे संपूर्ण हृदय में प्रवेश कर गया । मैंने इस पर बार बार विचार किया ।”5

जोसफ को एहसासा हुआ कि बाइबिल में जीवन के प्रश्नों के सभी उत्तर नहीं थे; असल में, यह लोगों को सीखाती थी कि वे कैसे प्रार्थना के द्वारा सीधे परमेश्वर से अपने प्रश्नों के उत्तरों को प्राप्त कर सकते हैं ।

उसने आगे लिखा था: “तो, इस के अनुसार, मैं परमेश्वर से पूछने , मैं जंगल में एकांत में गया । यह अठारह सौ बीस की बसंत ऋतु के आगमन की सुंदर सुबह का, साफ दिन था ।6

इसके तुरंत बाद, जोसफ ने लिखा था कि “एक प्रकाश [स्तंभ] मेरे ऊपर आकर ठहरा मैंने दो व्यक्तियों को देखा, जिनकी चमक और महिमा का वर्णन करना कठीन है, मेरे ऊपर हवा में खड़े थे । उन में से एक ने मुझे से मेरा नाम लेकर पुकारा और कहा, दुसरे की ओर इशारा करते हुए—[जोसफ] यह मेरा प्रिय पुत्र है । इसकी सुनो !7

फिर उद्धारकर्ता बोला, “जोसफ, मेरे बेटे, तुम्हारे पापों को क्षमा कर दिया गया है । जाओ, मेरी विधियों पर चलो और मेरी आज्ञाओं का पालन करो । देखो, मैं महिमा का प्रभु हूं । मुझे संसार के कारण क्रूस पर चढ़ाया गया था, ताकि वे सब जो मुझ में विश्वास करते हैं अनंत जीवन पाएं ।”8

जोसफ ने आगे लिखा था: “मैंने, तुरंत ही, स्वयं को संभाला, ताकि मैं बोलने के योग्य हो सकूं, फिर मैंने व्यक्तियों से पूछा जो मेरे ऊपर प्रकाश में खड़े थे, इन सब संप्रदायों में से कौन सही था ।”9

उसने याद किया: “उन्होंने मुझे बताया था कि सभी धार्मिक संप्रदाय गलत सिद्धांतों में विश्वास कर रहे थे, और उनमें से किसी को भी परमेश्वर को उसके गिरजे और राज्य के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था । उसी समय [मैं] ने प्रतिज्ञा प्राप्त की [थी] कि सुसमाचार की परिपूर्णता को भविष्य में मुझे बताया जाएगा ।” 10

जोसफ ने यह भी बताया था, “मैंने इस दिव्यदर्शन में बहुत से स्वर्गीत दूतों को देखा था ।”11

इस महिमापूर्ण दिव्यदर्शन के बाद, जोसफ ने लिखा था: “मेरी आत्मा प्रेम से भर गई थी, और कई दिनों तक महान आनंद से परिपूर्ण था । प्रभु मेरे साथ था ।12

वह परमेश्वर का भविष्यवक्ता बनने की अपनी तैयारी आरंभ करने के लिए पावन उपवन से प्रकट हुआ था ।

जोसफ ने भी प्राचीन भविष्यवक्ताओं के समान अस्वीकार किया जाना, विरोध, अत्याचार का अनुभव करना आरंभ कर दिया था । जोसफ ने स्मरण करते हुए बताया था कि जो उसने देखा और सुना था उसे धार्मिक रूप से सक्रिय एक व्यक्ति को बताया था:

“मुझे उसके व्यवहार से बहुत आश्चर्य हुआ; उसने मेरी बातचीत को न केवल हलकेपन से लिया, बल्कि बहुत अपमान करते हुए कहा, यह सब शैतान का कार्य था, कि आजकल दिव्यदर्शन या प्रकटीकरण जैसी कोई बात नहीं होती; कि यह सब बातें प्रेरितों के साथ खतम हो गई थी, और कि अब ये कभी नहीं होंगी ।

“मुझे जल्द ही पता चला, कि मेरी बताई हुई कहानी से धर्म के शिक्षक उत्तेजनावश मेरे साथ काफी पक्षपात करने लगे थे, और यह अत्यचार का एक बड़ा कारण बन गया जो लगतार बढ़ता गया; … और यह सभी संप्रदायों में एकसमान था—सब मिलकर मुझ पर अत्याचार करने लगे थे ।”13

तीन साल बाद, 1823 में, अंतिम दिनों में यीशु मसीह के सुसमाचार की इस पुनर्स्थापना के लिए स्वर्ग दुबारा खुला था । जोसफ ने बताया था कि स्वर्गीय दूत, मोरोनी, उसे दिखाई दिया और बोला “कि परमेश्वर के पास है मेरे लिए काम है जिसे मुझे करना है; ; … [और कि] एक पुस्तक कहीं पर रखी गई है, सोने की पट्टियों पर लिखी हुई” कि इसमें “अनंत सुसमाचार की संपूर्णता इसमें शामिल है, जिसे उद्धारकर्ता ने [अमेरिका के] प्राचीन निवासियों को दिया था ।” 14

अतंत:, जोसफ ने प्राचीन अभिलेख को प्राप्त किया, अनुवाद किया, और प्रकाशित किया था आज जिसे मॉरमन की पुस्तक के रूप में जाना जाता है ।

उसका बड़ा भाई हाएरम, जो कि उसका लगातार समर्थक रहा था, विशेषकर 1813 में उसके पांव के दर्दनाक और भंयकर अप्रेशन के बाद, वह सोने की पट्टियों के गवाहों में से एक था । वह भी यीशु मसीह के गिरजे के छह सदस्यों में से एक था जब इसे 1830 में सगंठित किया गया था ।

अपने जीवन के दौरान, जोसफ और हाएरम ने मिलकर उपद्रवी भीड़ और अत्याचार का सामना किया था । उदाहरण के लिए, उन्होंने 1838-39 की सर्दियों के दौरान पांच महीने के लिए लिबर्टी जेल मिसूरी में बहुत बुरी परिस्थितियों में कष्ट सहे थे ।

अप्रैल 1839 में, जोसफ ने अपनी पत्नी एम्मा को लिबर्टी जेल में अपने स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा था: “मैं सोचता हूं कि रात और दिन, मुंह लटकाए गार्ड की उपस्थिति, और एक सुनसान अंधेरी गंदी जेल की दीवारों, और चरमराते लोहे के दरवाजों के बीच लगभग पांच महीने और छह दिन बीत चुके हैं । … हमें किसी भी कीमत पर इस [स्थान] से ले जाया जाएगा, और हम इस से खुश हैं । हमारा साथ कुछ भी हो, लेकिन हम इससे भी बदतर परिस्थिति में नहीं हो सकते । हम कभी भी लिबर्टी क्ले कॉऊंटी मिसूरी में वापस नहीं लौटना चाहेंगे । हम यहां बहुत कष्ट सह चुके हैं ।”15

अत्याचार सहते हुए, हाएरम ने प्रभु के वादे में विश्वास प्रकट किया था, यहां तक कि अपने शत्रुओं को क्षमा करना भी यदि वह ऐसा कर पाता । 1835 में हाएरम को मिली आशीष में जोसफ स्मिथ के हाथों, प्रभु ने उससे वादा किया था, “तुम्हारे पास तुम्हारे शत्रुओं के प्रभाव से बचने की शक्ति होगी । तुम्हारा जीवन लेने का कठोर प्रयास किया जाएगा, परंतु तुम बच जाओगे ।ययदि यह तुम्हें खुश करता है, और तुम चाहते हो, तो तुम अपनी इच्छा से परमेश्वर की महिमा के लिए अपना जीवन बलिदान करोगे ।”16

1844 में, हाएरम के सामने बाहर निकलने या अपने जीवन को परमेश्वर की महिमा के जीवन देने और “अपने लहू से अपने से अपनी गवाही को मुहरबंद करने का विकल्प रखा गया था”—अपने प्रिय भाई जोसफ के साथ ।17

कार्थेज की दुर्भाग्यपूर्ण यात्रा से एक हफ्ता पहले जहां उनकी हथियारबंध कायर उपद्रवी भीड़ द्वारा सुनियोजित तरीके से हत्या कर दी गई थी जिन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए चेहरे रंगे हुए थे, जोसफ ने लिखा था कि “मैंने अपने भाई हाएरम को अगले जहाज से अपने परिवार के साथ सिनसिनाटी निकल जाने को कहा था” ।

मैं अभी भी उस महान अनुभूति को महसूस कर सकता हूं जब मैं हाएरम के जवाब को याद करता हूं: “जोसफ, मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकता ।18

तो जोसफ और हाएरम कार्थेज पहुंचे, जहां दोनों मसीह के लिए और उसके नाम में शहीद हो गए थे ।

उनके शहीद होने की आधिकारिक घोषणा में ये बताया गया था : “जोसफ स्मिथ, प्रभु का भविष्यवक्ता और दूर्शी, ने बहुत अधिक कार्य किए हैं, केवल यीशु को छोड़कर, इस संसार में लोगों के उद्धार के लिए, किसी भी अन्य व्यक्ति के जो कभी इसमें रहा है । बीस वर्ष के थोड़े से समय में, उसने मॉरमन की पुस्तक को प्रकट किया, जिसका अनुवाद उसने परमेश्वर के उपहार और शक्ति से किया था, और इसे दो महाद्विपों में छापे जाने का माध्यम रहा है; अनंत सुसमाचार की परिपूर्णता, जो इसमें शामिल है, को पृथ्वी की चारों दिशाओं में पहुंचाया है; प्रकटीकरणों और आज्ञाओं को प्रकट किया है जो इस पुस्तक सिद्धांत और अनुबंध में शामिल हैं, और बहुत से अन्य दस्तावेज और निर्देश मानव संतान के लाभ के लिये; कई हजार अंतिम-दिनों के संतों को एकत्रित किया, एक महान शहर को स्थापित किया, और ऐसी लोकप्रियता और नाम को कायम किया जिसे मारा नहीं जा सकता है । … अतीत में प्रभु के बहुत से नियुक्त लोगों के समान, [जोसफ ने] अपने मिशन और अपने कार्यों को अपने स्वयं के लहू से मुहरबंद किया है; और ऐसा ही उसके भाई हाएरम ने भी किया है । जीवन में वे अलग नहीं थे, और मृत्यु में भी वे अलग नहीं हुए थे !19

इस शाहदत के बाद, जोसफ और हाएरम के शवों को वापस नावू लाया गया, नहलाया गया, और वस्त्र पहनाए गए थे ताकि स्मिथ परिवार अपने प्रियजनों के अंतिम दर्शन कर सकें । उनकी प्रिय मां ने याद किया था: “मैंने स्वयं को बहुत पहले से शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार कर लिया था, और मैंने परमेश्वर से मुझे शक्ति देने के लिए प्रार्थना की थी; लेकिन जब मैं कमरे में गई, और मैंने अपने मारे गए दोनों बेटों को लेटे हुए देखा था, और मैंने अपने परिवार को सिसकते और कहराते हुए और उनकी पत्नियों, बच्चों, भाइयों और बहनों का रोना सुना था, यह बहुत ही असहनीय था । । मैंने अपनी आत्मा की पीड़ा में प्रभु से रोते हुए कहा, ‘हे मेरे परमेश्वर ! हे मेरे परमेश्वर ! आपने, हमारे परिवार को क्यों छोड़ दिया है ?20

दुख और सकंट की उस घड़ी में, उन्होंने स्मरण किया कि उनके बेटे मानो कह रहे थे, “मां, हमारे लिए रो मत, हमने प्रेम से संसार को जीत लिया है ।” 21

उन्होंने सच में संसार को जीत लिया था । जोसफ और हाएरम स्मिथ, उन संतों के समान जिनकी व्याख्या प्रकाशितवाक्य में की गई है, “वे उस महाक्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपने-अपने वस्त्र मेमने के लहू में धोकर श्‍वेत किए हैं [और] … वे परमेश्‍वर के सिंहासन के सामने हैं, और उसके मन्दिर पवित्रस्थान में दिन-रात उसकी सेवा करते हैं, और जो सिंहासन पर बैठा है, वह उनके ऊपर अपना तम्बू तानेगा ।

“वे फिर भूखे और प्यासे न होंगे; और न उन पर धूप, न कोई तपन पड़ेगी ।

“क्योंकि मेमना जो सिंहासन के बीच में है उनकी रखवाली करेगा, और उन्हें जीवन रूपी जल के सोतों के पास ले जाया करेगा; और परमेश्‍वर उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा ।”22

जब हम प्रथम दिव्यदर्शन की 200वीं सालगिरह का यह आनंददायक समारोह मनाते हैं, तो हमें हमेशा उस कीमत को याद रखना चाहिए जो जोसफ और हाएरम स्मिथ, ने अन्य विश्वासी पुरुषों, महिलाओं, और बच्चों के साथ इस गिरजे को स्थापित करने के लिए चुकाई थी ताकि आप और मैं आज बहुत सी आशीषों और प्रकट की गई सच्चाई का आनंद ले सकें । उनकी विश्वसनीयता को कभी भूला नहीं जाना चाहिए !

मुझे कई बार आश्चर्य होता है क्यों जोसफ और हाएरम और उनके परिवारों को इतना कष्ट सहना पड़ा था । हो सकता है कि वे अपने दुखों के माध्यम से परमेश्वर को उन तरीकों को समझ पाए थे जो इसके बिना नहीं हो सकते थे । इसके माध्यम से, उन्होंने गतस्मनी और क्रूस पर उद्धारकर्ता का मनन किया था । जैसा पौलुस ने कहा था, “क्योंकि मसीह के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्‍वास करो पर उसके लिये दु:ख भी उठाओ ।”23

1844 में अपनी मृत्यु से पहले, जोसफ ने संतों को एक उत्साहजनक पत्र लिखा था । यह ऐसा उपदेश था, जो गिरजे में आज भी लागू होता है:

“भाइयों [और बहनों], क्या हम इतने महान कार्य में आगे नहीं बढ़ेंगे ? आगे की ओर बढ़ें और पीछे नहीं । हिम्मत रखें, भाइयों; और निरंतर विजय की ओर आगे बढ़ते रहें ! …

“इसलिये, हम, गिरजे और लोगों के रूप में, और अंतिम-दिनों के संतों के रूप में, प्रभु को धार्मिकता में भेंट चढ़ाएं ।” 24

जब हम इस सप्ताहांत इस 200 वीं वर्षगांठ समारोह के दौरान आत्मा को सुनते हैं, तो विचार करें कि आप आने वाले दिनों में धार्मिकता में परमेश्वर को क्या भेंट करेंगे । साहसी बनें- इसे किसी ऐसे व्यक्ति के साथ साझा करें जिस पर आप भरोसा करते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कृपया ऐसा करने के लिए समय निकालें !

मैं जानता हूं कि उद्धारकर्ता प्रसन्न होता है जब हम उसे धार्मिकता में अपने हृदयों से भेंट प्रदान करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे वह उन असाधारण भाइयों, जोसफ और हाएरम स्मिथ और अन्य सभी विश्वासी संतों की विश्वासपूर्ण भेंट से प्रसन्न हुआ था । मैं इन सब बातों की हमारे प्रभु यीशु मसीह के पवित्र नाम में गवाही देता हूं, आमीन ।