महा सम्मेलन
आत्मिकरूप से परिभाषित करती स्मृतियां
अप्रैल 2020 महा सम्मेलन


16:43

आत्मिकरूप से परिभाषित करती स्मृतियां

जब व्यक्तिगत कठिनाइयां या हमारे नियंत्रण से परे संसार की परिस्थितियां हमारे मार्ग में अंधेरा करती हैं, तो जीवन की हमारी पुस्तक से आत्मिकरूप से परिभाषित समृतियां उन चमकदार पत्थरों के समान हैं जो मार्ग को रोशन में करने में मदद करते हैं ।

प्रथम दिव्यदर्शन के अठ्ठारह साल बाद, भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ ने अपने अनुभव का विस्तृत वर्णन लिखा था । उसने विरोध, अत्याचार, उत्पीड़न, धमकियां, और क्रूर हमलों का सामना किया था ।1 फिर भी उसने अपने दिव्यदर्शन की निडर गवाही देना जारी रखा था: “मैंने सच में प्रकाश देखा था, और उस प्रकाश के बीच मैंने दो व्यक्तियों को देखा था, और उन्होंने मुझ से वास्तव में बातें की थी; और यद्यपि मुझ से इसलिये नफरत और अत्याचार किया गया कि मैंने एक दिव्यदर्शन देखा था, फिर भी यह सच था । … यह मैं जानता था, और मैं जानता था कि यह परमेश्वर जानता था, और मैं इसका इंकार नहीं कर सकता था ।”2

अपने कठिन समय में, जोसफ की याददाश्त लगभग बीस साल पीछे उसके प्रति परमेश्वर के प्रेम की निश्चितता और उन घटनाओं को लौट गई थी जिन्होंने चिर-प्रतीक्षित पुनर्स्थापना के लिए संसार को तैयार किया था । अपनी आत्मिक यात्रा पर विचार करते हुए, जोसफ ने कहा था: “मैं किसी को मेरे वृत्तांत में विश्वास न करने के लिए दोष नहीं लगता ।” यदि मैंने उसका अनुभव स्वयं न किया होता, मैं स्वयं भी इस पर विश्वास न करता ।”3

लेकिन ये अनुभव वास्तविक थे, और वह उन्हें न तो कभी भूला न ही उनका इन्कार किया था, अपनी गवाही की शांति से पुष्टि करते हुए वे कार्थेज गए । “मैं मेमने के समान वध किये जाने के लिये जा रहा हूं; लेकिन में गरमी की सुबह के समान शांत हूं; मेरी अंतरात्मा परमेश्वर के प्रति, और सभी लोगों के प्रति निर्दोष है ।”4

आपकी आत्मिकरूप से परिभाषित समृतियां

भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ के उदाहरण में हमारे लिए एक सबक है । पवित्र आत्मा से जो शांतिपूर्ण निर्देश हमें मिलता है, उसके साथ, समय-समय पर, परमेश्वर शक्तिशाली और बहुत व्यक्तिगत रूप से हम में से प्रत्येक को यह सुनिश्चित करता है कि वह हमें जानता है और हम से प्रेम करता है और वह हमें विशेष रूप से और खुलकर आशीष दे रहा है । फिर, हमारे कठिन क्षणों में, उद्धारकर्ता इन अनुभवों की हमें याद दिलाता है ।

अपने स्वयं के जीवन के बारे में विचार करें । इन वर्षों में, मैंने दुनिया भर के अंतिम-दिन के संतों से हजारों गहन आत्मिक अनुभवों को सुना है, जो मुझे निंसदेह इस बात की पुष्टि करते हैं कि परमेश्वर हम में से प्रत्येक को जानता है और प्रेम करता है और वह उत्सुकतापूर्वक, स्वयं को हमें प्रकट करने की इच्छा रखता है । ये अनुभव हमारे जीवन में निर्णायक समय पर आ सकते हैं, या जो पहली बार में इतने महत्वपूर्ण नहीं लगते हैं, लेकिन वे हमेशा परमेश्वर के प्रेम की अत्याधिक मजबूत आत्मिक पुष्टि के साथ आते हैं ।

आत्मिकरूप से परिभाषित करने वाले अनुभवों को याद करना हमें हमारे घुटनों के बल झुकने के लिए मजबूर करते हैं, घोषणा करते हुए जैसा भविष्यवक्ता जोसफ ने किया था: “जो मैंने देखा था वह स्वर्ग से था ।” इसे मैं जानता हूं, और मैं जानता हूं कि परमेश्वर जानता था कि मैं इसे जानता हूं ।”5

चार उदाहरण

अपनी स्वयं की आत्मिकरूप से परिभाषित करने वाली स्मृतियों पर विचार करें जब मैं दूसरों के कुछ उदाहरणों को साझा करता हूं ।

डा. रसल एम. नेलसन

सालों पहले, दो खराब हो रहे हृदय के वाल्वों वाले बुजुर्ग स्टेक कुलपति ने तब के डॉ. रसल एम. नेलसन से इलाज करने अनुरोध किया था, हालांकि उस समय क्षतिग्रस्त दूसरे वाल्व को ठीक करने के लिए कोई शल्य चिकित्सा समाधान उपलब्ध नहीं था । डॉ. नेलसन शल्य चिकित्सा करने को राजी हुए थे । अध्यक्ष नेलसन के शब्द इस प्रकार हैं:

“पहले वाल्व के अवरोध को दूर करने के बाद, हमने दूसरा वाल्व को खोला था । हमने पाया यह बिलकुल ठीक था लेकिन इतनी बुरी तरह से फैल चुका था जिससे यह ठीक से कार्य नहीं कर पा रहा था । इस वाल्व की जांच करते हुए, मेरे मन में एक संदेश स्पष्ट रूप आया था: वाल्व की गोलाई को कम कर दो । मैंने यह संदेश अपने सहायक को बताया । ‘वाल्व टिशू ठीक से कार्य कर सकता है यदि हम किसी प्रकार वाल्व की गोलाई को कम करके इसे सामान्य करते देते हैं ।’

“लेकिन कैसे ? … एक चित्र स्पष्टरूप से मेरे मन में दिखाई दिया कि कैसे मोड़ कर और आगे टांके लगाकर इस छोटा किया जा सकता था । … मैं अभी भी उस मानसिक चित्र को याद कर सकता हूं—जिसमें बिंदूदार रेखाओं से बताया गया था कि टांके कहां पर लगाने थे । मेरे मन के चित्र के अनुसार वाल्व ठीक कर दिया गया था । हमने वाल्व की जांच की और पाया कि इसका रिसाव असाधारण रूप से कम हो गया था । मेरे सहायक ने कहा था, ‘यह’ एक चमत्कार है ।’”6 यह कुलपति कई सालों तक जीवित रहे थे ।

डॉ. नेलसन को निर्देश मिला था । और वह जानते थे कि परमेश्वर जानता था कि वह जानते थे कि उनको निर्देश दिया गया था ।

बीट्राइस मैगरे

कैथी और मैं पहली बार फ्रांस में बीट्राइस मैगरे से 30 साल पहले मिले थे । बीट्राइस ने हाल में मुझे एक अनुभव बताया था जिसने उसके आत्मिक जीवन को एक किशोरी के रूप में उसके बपतिस्मे के बाद शक्तिशाली रूप से प्रभावित किया था । ये उसके शब्द हैं:

“हमारी शाखा के युवाओं ने अपने मार्गदर्शकों के साथ बोर्डो से लाकानेऊ तट की डेढ़ घंटे की यात्रा की थी ।

“घर लौटने से पहले, मार्गदर्शकों में से एक ने अंतिम बार तैरने का निर्णय लिया और अपने चश्मे का साथ लहरों में डूबकी लगा दी । जब वह पानी से बाहर आया, तो उसका चश्मा चेहरे पर नहीं था । … यह लहरों में गिर गया था ।

“बिना चश्मे के उनके लिए अपनी कार चलाना कठीन था । हम घर से दूर फंस चुके थे ।

“विश्वास से भरी एक बहन ने सुझाव दिया कि हम प्रार्थना करते हैं ।

“मैं बड़बड़ायी थी कि प्रार्थना से कोई नहीं लाभ होगा, और मैं न चाहते हुए प्रार्थना करने के लिए समूह में शामिल हो गई थी जब हम कमर तक गहरे धुंधले पानी में खड़े थे ।

“जब प्रार्थना समाप्त हुई, तो मैंने सब पर पानी उछालने के लिए अपने हाथ आगे किया । जब मैं हाथ से पानी उछाल रही थी, चश्मा मेरे हाथ से टकराया था । एक शक्तिशाली अनुभूति ने मेरी आत्मा में असर डाला था कि परमेश्वर सच में हमारी प्रार्थनाएं सुनता और जवाब देता है ।”7

पैंतालीस साल बाद, वह इसे इस तरह याद करती है कि मानो यह कल की बात हो । बीट्राइस को आशीषित किया गया था, और वह जानती थी परमेश्वर जानता था कि वह जानती थी वह आशीषित हुई थी ।

अध्यक्ष नेलसन और बहन मैगरे के अनुभव बिलकुल भिन्न थे, फिर भी, दोनों के लिए, परमेश्वर के प्रेम की न भुलाई जाने वाली आत्मिकरूप से परिभाषित स्मृतियां उनके हृदयों में सदा के लिए बस चुकी थी ।

ये परिभाषित करती घटनाएं अक्सर पुनास्थापित सुसमाचार के बारे में सीखने या दूसरों के साथ सुसमाचार साझा करने में आती हैं ।

फ्लोरिप्स लुजिया दमासियो और नील एल. एंडरसन

यह चित्र 2004 में साओ पालो, ब्राजील में लिया गया था । इपेटिंगा ब्राजील स्टेक का फ्लोरिप्स लुज़िया दमासियो 114 साल की थी । अपने परिवर्तन के बारे में बोलते हुए, बहन दमासियो ने मुझे बताया था कि उसके गांव में प्रचारकों ने एक गंभीर रूप से बीमार बच्चे को पौरोहित्य आशीष दी थी जो चमत्कारिक ढंग से ठीक हुआ था । वह और जानना चाहती थी । जब उसने उनके संदेश के बारे में प्रार्थना की थी, तो आत्मा की अखंड गवाही ने उसे पुष्टि की थी कि जोसफ स्मिथ परमेश्वर के भविष्यवक्ता थे । 103 की आयु में, उसका बपतिस्मा हुआ था, और 104 में, उसे वृतिदान मिला था । उसके बाद हर साल, मंदिर में एक सप्ताह बिताने के लिए वह 14 घंटे की बस यात्रा करती थी । बहन दमासियो ने स्वर्गीय पुष्टी प्राप्त की थी, और जानती थी कि परमेश्वर जानता था कि वह जानती थी कि वह गवाही सच्ची थी ।

48 साल पहले फ्रांस में मेरे पहले मिशन से आत्मिक स्मृति इस प्रकार है ।

सुसमाचार सीखते समय, मेरे साथी और मैंने एक वृद्ध महिला के लिए मॉरमन की पुस्तक रखी थी । जब लगभग एक सप्ताह बाद महिला के घर लौटे, तो उसने दरवाजा खोला था । कोई भी शब्द बोलने से पहले, मैंने वास्तविक आत्मिक शक्ति महसूस की थी । प्रभावशाली भावनाएं जारी थीं जब मैडम ऐलिस एडूबर्ट ने हमें आमंत्रित किया और हमें बताया कि उसने मॉरमन की पुस्तक पढ़ी थी और जानती थी कि यह सच्ची थी । उस दिन जब हम उसके घर से निकले, मैंने प्रार्थना की थी, “स्वर्गीय पिता, कृपया मेरी सहायता करना मैं अभी-अभी महसूस किए क्षण को कभी न भूलूं ।” मैं कभी नहीं भूला था ।

एल्डर एंडरसन प्रचारक के रूप में

यह एक मामूली सा क्षण लगता था, एक दरवाजे पर खड़ा होना अन्य सैकड़ों दरवाजों की तरह, मैंने स्वर्ग की शक्ति महसूस की थी । और मैं जानता था कि परमेश्वर जानता था कि मैं जानता था कि स्वर्ग की खिड़की खोली गई थी ।

व्यक्तिगत और अखंडनीय

ये आत्मिक रूप से स्पष्ट क्षण अलग-अलग समय पर और अलग-अलग तरीकों से आते हैं, जो हम में से प्रत्येक के लिए अलग-अलग होते हैं ।

धर्मशास्त्रों में अपने पसंदीदा उदाहरणों का विचार करें । प्रेरित पौलुस को सुनने वालों के “हृदय छिद गए ।”8 लमनाई स्त्री अबिश ने “अपने पिता के असाधारण दिव्यदर्शन” पर विश्वास किया था ।9 और इनोस के मन में एक वाणी आई थी ।10

मेरे मित्र क्लेटन क्रिस्टनसन ने मॉरमन की पुस्तक के प्रार्थनापूर्वक अध्ययन करने के दौरान हुए अनुभव को इस प्रकार बताया था: “एक सुंदर, गर्म, प्रेम-भरी आत्मा … मेरे चारों ओर थी और यह मेरी आत्मा प्रभावित कर चुकी थी, मुझे प्रेम की ऐसी भावना ने घेर लिया था जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी कि मैं इसे महसूस कर सकता था, [और ये भावनाएं रात प्रति रात आती रही थी] । 11

कई बार आत्मिक भावनाएं आग के समान हमारे हृदय में नीचे उतर जाती हैं, हमारी आत्मा को रोशन करती हैं । जोसफ स्मिथ ने बताया था कि हमें कभी-कभी “विचारों के अचानक प्रभाव” और “समझ के शुद्ध बहाव” मिलते हैं ।12

एक सच्चे आदमी का जवाब देते हुए जिसने जो दावा किया था कि उसे इस तरह का अनुभव कभी नहीं हुआ था अध्यक्ष डलिन एच ओक्स, ने जवाब देते हुए, सलाह दी थी, “हो सकता हो कि आपकी प्रार्थनाओं का जवाब बार-बार दिया गया हो, लेकिन यह उतना भव्य न हो या वाणी उतनी प्रबल न हो जितनी आप आशा करते हैं और आप सोचते हैं कि आपको उत्तर नहीं मिला है ।”13 उद्धारकर्ता ने स्वयं उन महान विश्वास के लोगों के विषय में बोला था जो “आग और पवित्र आत्मा से [आशीषित] हुए थे, और [लेकिन] वे इसे नहीं जानते थे ।”14

हम उसे कैसे सुनते हैं ?

हमने हाल ही अध्यक्ष रसल एम. नेलसन को कहते सुना था: “मैं आपको इस महत्वपूर्ण प्रश्न के बारे में गहराई से और अक्सर सोचने का निमंत्रण देता हूं: आप उसे कैसे सुनते हैं ? मैं आपको उसे बेहतर और बहुत बार सुनने के लिए कदम उठाने का निमंत्रण भी देता हूं ।”15 उसने इस निमंत्रण को आज सुबह दोहराया था ।

हम उसे अपनी प्रार्थनाओं में, अपने घरों में, धर्मशास्त्रों में, अपने स्तुतिगीतों में सुनते हैं, जब हम योग्यता से प्रभु-भोज में भाग लेते हैं, जब हम अपने विश्वास की घोषणा करते हैं, जब हम दूसरों की सेवा करते हैं, और जब हम साथी विश्वासियों के साथ मंदिर जाते हैं । आत्मिक रूप से स्पष्ट क्षण आते हैं जब हम प्रार्थनापूर्वक महा सम्मेलन को सुनने आते हैं और जब हम आज्ञाओं का पालन करते हैं । और बच्चों, ये अनुभव आपके लिए भी हैं । याद रखें, यीशु ने “उन्हें उसने सिखाया और उपदेश दिया, और … जबानों को खोला और उन्होंने अपने पिताओं को महान और अदभुत बातों के विषय में बताया ।”16 प्रभु ने कहा था:

“[यह ज्ञान] मेरी आत्मा के द्वारा तुम्हें दिया गया है, और मेरी शक्ति के द्वारा तुम इन्हें एक दूसरे से पढ़ सकते हो; सिवाय मेरी शक्ति के द्वारा तुम इन्हें प्राप्त नहीं कर सकते;

“इसलिये, तुम गवाही दे सकते हो कि तुमने मेरी वाणी सुनी है, और मेरे वचनों को जानते हो ।”17

उद्धारकर्ता के अतुलनीय प्रायश्चित की आशीष के कारण हम “उसे सुन” सकते हैं ।

जबकि हम इन निर्णायक क्षणों को प्राप्त करने के समय का चयन नहीं कर सकते हैं, अध्यक्ष हेनरी बी. आएरिंग ने हमारी तैयारी के लिये यह सलाह दी थी: “आज रात, और कल रात, आप प्रार्थना और विचार कर सकते हो, यह प्रश्न पूछते हुए: परमेश्वर ने जो संदेश दिया था क्या केवल मेरे लिए था ? क्या मैंने अपने जीवन में या अपने [परिवार] के जीवनों में उसका हाथ देखा था ?”18 विश्वास, आज्ञाकारिता, विनम्रता, और सच्ची इच्छा स्वर्ग की खिड़कियां खोलते हैं ।19

उदाहरण

1:19
जीवन का मार्गनिर्देशन
आत्मिक स्मृतियां प्रकाश देती हैं
दूसरों को आत्मिक प्रकाश को फिर से खोजने में मदद करना

आप इस तरह से अपनी आत्मिक स्मृतियों के विषय में सोच सकते हो । निरंतर प्रार्थना, अपने अनुबंधों का पालन करने के दृढ़ निश्चय, और पवित्र आत्मा का उपहार के साथ, हमारे जीवन का मार्गनिर्देशन होता है । जब व्यक्तिगत कठिनाई, संदेह, या निराशा हमारे मार्ग में अंधकार करते हैं, या जब हमारे नियंत्रण से बाहर दुनिया की परिस्थितियां हमें भविष्य के विषय में संदेह करने के लिए मजबूर करती हैं, तो जीवन की हमारी पुस्तक से आत्मिकरूप से परिभाषित करने वाली स्मृतियां चमकदार पत्थरों के समान आगे के मार्ग को रोशन करने में मदद करती हैं, हमें आश्वस्त करते हुए कि परमेश्वर हमें जानता है, हमें प्रेम करता है, और अपने पुत्र, यीशु मसीह को हमें घर लौटने में मदद करने के लिए भेजा है । और जब कोई अपनी परिभाषित करने वाली स्मृतियों को अलग करता है और खो या भ्रमित हो जाता है, तो हम उन्हें उद्धारकर्ता की ओर मोड़ देते हैं जब हम उनके साथ अपने विश्वास और स्मृतियों को साझा करते हैं, जिससे उन्हें उन बहुमूल्य आत्मिक क्षणों को फिर से खोजने में मदद मिलती है जो कभी उनके लिए अनमोल हुआ करते थे ।

कुछ अनुभव इतने पवित्र होते हैं जिनकी हम अपनी आत्मिक स्मृति में रक्षा करते हैं और उन्हें साझा नहीं करते हैं ।20

“स्वर्गदूत पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा बोलते हैं; इसलिए, वे मसीह के वचनों को बोलते हैं ।”21

“स्वर्गदूतों ने मानव संतानों को उपदेश देना बंद [नहीं] किया है ।

“क्योंकि देखो, उसकी आज्ञा के शब्द के अनुसार उपदेश देने के लिए वे उसके अधीन हैं, स्वयं पर मजबूत विश्वास प्रकट करते हुए और हर प्रकार की धार्मिकता में दृढ़ विचार करते हुए ।”22

और “सहायक अर्थात् पवित्र … , वह तुम्हें सब बातें सिखाएगी, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगी ।23

अपनी पवित्र स्मृतियों को अक्सर याद करते रहें । उन पर विश्वास करें । उन्हें लिखें । उन्हें अपने परिवार के साथ बांटें । भरोसा करें कि वे आपके स्वर्गीय पिता और उसके पुत्र की ओर से आपको मिलती हैं ।24 उन्हें आपके संदेहों में धैर्य और कठिनाइयों में समझ लाने दें ।25 मैं आप से वादा करता हूं कि जब आप स्वेच्छा से आत्मिकरूप से परिभाषित करने वाली स्मृतियों को स्वीकार करते और ध्यानपूर्वक संजोकर रखते हैं, तो ये अधिक से अधिक आपको मिलेंगी । स्वर्गीय पिता आपको जानता और आपसे प्रेम करता है !

यीशु ही मसीह है, उसका सुसमाचार पुनास्थापित किया गया है, और जब हम विश्वासी रहते हैं, मैं गवाही देता हूं हम हमेशा उसके रहेंगे, यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।

विवरण

  1. देखें संतों: अंतिम दिनों के यीशु मसीह के गिरजे की कहानी , vol. 1, The Standard of Truth, 1815–1846 (2018), 150–53; देखें भी जोसफ स्मिथ,“इतिहास, 1838–1856, volume A-1 [23 December 1805–30 August 1834],” 205–9, josephsmithpapers.org; संतों, 1:365–66.

  2. जोसफ स्मिथ - इतिहास 1:25.

  3. गिरजे के अध्यक्षों के शिक्षा: जोसफ स्मिथ (2007), 525 ।

  4. सिद्धांत और अनुबंध 135:4

  5. मैं जोसफ स्मिथ—इतिहास में शब्दों से हमेशा प्रभावित रहा हूं: “मैंने एक दिव्यदर्शन देखा था; मैं यह जानता था, और मैं जानता था कि परमेश्वर यह जानता था“ (Joseph Smith—History 1:25) । उसे परमेश्वर के सामने खड़े होकर यह स्वीकार करना होगा कि पवित्र उपवन में ये घटनाएं वास्तव में उसके जीवन में हुई थीं और इसकी वजह से उसका जीवन कभी भी ऐसा नहीं रहा था । लगभग 25 साल पहले, मैंने पहली बार एल्डर नील ए. मैक्सवेल द्वारा इस वाक्यांश का एक भिन्नता सुनी थी । उसने यह उदाहरण दिया था: “बहुत पहले मई 1945 में अठारह साल की उम्र में ओकिनावा द्वीप पर मेरे लिए ऐसा क्षण था । मेरी ओर से निश्चित रूप से कोई वीरता नहीं थी बल्कि जापानी तोपखाने द्वारा हमारी स्थिति की गोलाबारी के दौरान मेरे और दूसरों के लिए एक आशीष थी । बार-बार गोलाबारी के बाद, जो हमारी स्थिति को निशाना नहीं लगा पा रही थी, दुश्मन के तोपखाने ने अंततः इसे खोज लिया था । वे प्रभावशाली ढंग से निशाना लगा सकते थे, लेकिन एक भयभीत, स्वार्थी प्रार्थना का दिव्य जवाब दिया गया था । गोलीबारी रूक गई थी । … मैं आशीषित हो गया था, और मैं जानता था कि परमेश्वर जानता था कि मैं जानता था“ (“Becoming a Disciple,” Ensign, June 1996, 19).

    एल्डर मैक्सवेल ने न केवल यह जोड़ा कि वह जानते थे, और न केवल परमेश्वर जानता था, बल्कि यह कि परमेश्वर जानता था कि वह जानता था कि वह जानता था कि वह आशीषित हो गया था । प्रतीकात्मक रूप से मेरे लिए यह जवाबदेही एक कदम अधिक उठाती है । कभी-कभी, हमारे स्वर्गीय पिता हमें एक गहन आत्मिक पुष्टि के साथ दिए गए आशीष देता है कि स्वर्ग ने हमारी ओर से हस्तक्षेप किया । इससे कोई इनकार नहीं कर रहा है। यह हमारे साथ रहता है और अगर हम ईमानदार और वफादार हैं, तो यह आने वाले वर्षों में हमारे जीवन को आकार देगा । “मैं आशीषित हो गया था, और मैं जानता था कि परमेश्वर जानता था कि मैं जानता था कि मैं आशीषित हो गया था ।”

  6. Russell M. Nelson, “Sweet Power of Prayer,” Liahona, May 2003, 8.

  7. एल्डर एंडरसन को 24 अक्टू. 2019 को बीट्राइस मैगरे से साझा की गई व्यक्ति कहानी; 24 जन. 2020 को बाद का ईमेल ।

  8. प्रेरितों के काम 2:37 |

  9. अलमा 19:16

  10. देखें अलमा 1:5

  11. Clayton M. Christensen, “The Most Useful Piece of Knowledge,” Liahona, Jan. 2009, 23.

  12. देखें शिक्षा: जोसफ स्मिथ, 132.

  13. डैलिन एच. ओक्स, जीवन के सबक सीखे: व्यक्तिगत प्रतिबिंब (2011), 116.

  14. 3 नफी 9:20

  15. रसेल एम. नेल्सन, “तुम कैसे #HearHim?” A Special Invitation,” Feb. 26, 2020, blog.ChurchofJesusChrist.org.

  16. 3 नफी 26:14

  17. सिद्धांत और अनुबंध 18:35-36. भावनाएं हमेशा आत्मिक ज्ञान का साथ देती हैं । “तुम अधर्म करने के लिए तेजी से कर रहे हो, लेकिन प्रभु अपने परमेश्वर को याद करने में धीमे हो । तुमने स्वर्गदूत को देखा है, और उसने तुम से बात की हैं; हां, तुम ने समय-समय पर उसकी आवाज सुनी है; और वह एक अभी भी शांत हल्की वाणी में आप से बातें करता है, लेकिन तुम उसे नहीं सुन सकते, क्योंकि तुम उसके शब्दों को महसूस नहीं कर सकते हो” (1 नफी 17:45) ।

  18. Henry B. Eyring, “O Remember, Remember,” Liahona, Nov. 2007, 69.

  19. देखें 2 नफी 31:13; 10:4 । President Dallin H. Oaks visited our mission in Bordeaux, France, in 1991. उन्होंने हमारे प्रचारकों को समझाया था कि असली इच्छा का मतलब था कि प्रार्थना करने वाला व्यक्ति प्रभु से कुछ इस तरह कह रहा था: “मैं जिज्ञासा से नहीं बल्कि अपनी प्रार्थना के जवाब पर कार्रवाई करने के लिए पूरी ईमानदारी के साथ पूछता हूं । अगर तुम मुझे यह जवाब दोगे, तो मैं अपनी जिंदगी बदलने के लिए काम करूंगा । मैं जवाब दूंगा ।”

  20. “और अब अलमा ने उसे इन बातों को समझाना आरंभ किया, यह कहते हुए: बहुतों को परमेश्वर के रहस्यों की जानकारी दी गई है; फिर भी, उन्हें कड़ी आज्ञा दी गई है कि वे उस भेद को न खोलें, उसके वचन के केवल उस भेद को खोलें जिसे वह मानव संतान को उसके प्रति दिखाए गए ध्यान और निष्ठा के आधार पर देता है” (अलमा 12:9) ।

    एल्डर नील ए मैक्सवेल ने कहा: “यह जानने के लिए प्रेरणा की जरूरत होती है कि [आत्मिक अनुभवों] को कब साझा करना है । मुझे याद है कि अध्यक्ष मैरियन जी रोमनी, जिन्होंने बुद्धि और ज्ञान को जोडा था, कहते हैं, ‘यदि हम उनके बारे में बहुत बात नहीं करते तो हमारे पास अधिक आत्मिक अनुभव होते हैं ।’” (“Called to Serve” [Brigham Young University devotional, Mar. 27, 1994], 9, speeches.byu.edu) ।

  21. 2 नफी 32:3

  22. देखें मोरोनी 7:29-30

  23. यूहन्ना 14:26

  24. सुसमाचार की सच्चाइयां सबके लिए उपलब्ध हैं । सम्मेलन से पहले सप्ताह में, मेरी वार्ता पूरी होने के बाद, मैं , जेराल्ड एन. लुंड द्वारा लिखी पुस्तक Divine Signatures:The Confirming Hand of God(2010)की ओर आत्मिक रूप से आकर्षिक हुआ, जिन्होंने 2002 से 2008 तक जनरल अधिकारी सत्तर के रूप में सेवा की थी । मुझे खुशी हुई थी, कि भाई लुंड के शब्द इस सम्मेलन वार्ता में साझा किए गए सिद्धांतों की सुंदर गवाही देते थे और प्रत्येक के द्वारा इनका आनंद लिया जाएगा जो आत्मिकरूप से परिभाषित करने वाली स्मृतियों का अध्ययन करना चाहते हैं ।

  25. अध्यक्ष थॉमस एस, मॉनसन के पसंदीदा उद्धरणों में से एक स्कॉटिश कवि जेम्स एम. बैरी से है: “परमेश्वर ने हमें यादें दी, ताकि हम अपने जीवन के दिसंबर में जून के गुलाबों को याद कर सकें” Think to Thank,” Liahona, Jan. 1999, 22) । यह बात आत्मिक स्मृतियों के लिए सच है । वे हमारे जीवन के ठंडे कठिन समयों में, सबसे उपयोगी हो सकते हैं जब हमें “जून” की उन आत्मिक स्मृतियों की जरूरत होती है ।