महा सम्मेलन
स्थाई समाज
अक्टूबर 2020 महा सम्मेलन


15:11

स्थाई समाज

यदि हम और हमारे अधिकतर पड़ोसी परमेश्वर की सच्चाई द्वारा अपने निर्णय लेते और अपने जीवन का मार्गदर्शन करते हैं तो प्रत्येक समाज में आवश्यक नैतिक गुण प्रचुर मात्रा में होंगे।

सुंदर उद्धारकर्ता के बारे में बहुत सुंदर गायक मंडली द्वारा गाया गीत।

2015 में, संयुक्त राष्ट्र ने एक योजना लागू की थी जिसे “स्थाई विकास के लिए 2030 एजेंडा” कहा गया था। इसकी “लोगों और ग्रह के लिए शांति और समृद्धि के लिए एक साझा योजना, अब और भविष्य में व्याख्या की गई थी।.” स्थाई विकास के एजेंडे में वर्ष 2030 तक प्राप्त किए जाने वाले 17 लक्ष्य शामिल हैं, जैसे गरीबी का अंत, भूख का निवारण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता, स्वच्छ जल और स्वच्छता, और उत्तम कार्य। 1

स्थाई विकास की अवधारणा दिलचस्प और महत्वपूर्ण है। हालांकि, इससे भी अधिक जरूरी व्यापक प्रश्न सुरक्षित और समृद्ध समाजों का है। किसी समृद्ध समाज को बनाए रखने वाले बुनियादी मूलभूत आवश्यकताएं क्या हैं, जो इसके लोगों के बीच खुशी, प्रगति, शांति और भलाई को बढ़ावा देते हैं? हमारे पास इस प्रकार के कम से कम दो संपन्न समाजों का धर्मशास्त्रीय अभिलेख है। उनसे हम क्या सीख सकते हैं?

प्राचीनकाल में, महान कुलपति और भविष्यवक्ता हनोक ने धार्मिकता का प्रचार किया था और “एक शहर का निर्माण किया जिसे पवित्रता का शहर, अर्थात सिय्योन कहा गया।”2 यह लिखा है कि “प्रभु ने अपने लोगों को सिय्योन कहा, वे एक हृदय और एक मन थे, और धार्मिकता में निवास करते थे; और उनके बीच कोई गरीब न था।”3

“और प्रभु ने प्रेदश को आशीषित किया, और वे पर्वतों पर आशीषित हुए, और ऊंचे स्थानों पर, और फले-फूले।”4

पश्चिमी गोलार्द्ध में पहली-और दूसरी-शताब्दी के लोग नफाइयों और लमनाइयों के नाम से जाने जाते हैं जो एक समृद्ध समाज का उत्कृष्ट उदाहरण प्रदान करते हैं। उनके मध्य पुन:जीवित हुए उद्धारकर्ता की अद्वितीय सेवकाई के बाद, “निरंतर उपवास और प्रार्थना करते हुए, और अक्सर प्रार्थना में और प्रभु के वचन को सुनने में एकत्रित होते हुए। …

“और कोई शत्रुता नहीं थी, न ही झगड़ा, न हंगामा, न वेश्यावृत्ति, न झूठ-कपट, न हत्या, और न ही किसी प्रकार की कामुकता थी; और जितने लोग परमेश्वर के हाथों द्वारा रचे गए थे, उन सारे लोगों में निश्चय ही इन लोगों से अधिक कोई भी आनंदमय नहीं था ।”5

इन दो उदाहरणों में समाज दो महान आज्ञाओं के प्रति अपनी अनुकरणीय विश्वनीयता के कारण स्वर्ग की आशीषें प्राप्त करते थे: “उस ने उस से कहा, तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।”6 वे अपने निजी जीवन में परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी थे, और वे एक-दूसरे के संसारिक और आत्मिक कल्याण की देखभाल करते थे। सिद्धांत और अनुबंध के शब्दों में, इस समाज में “प्रत्येक व्यक्ति को अपने पड़ोसी के हित का ध्यान रखना चाहिए, और सब कार्य करने चाहिए दृष्टि को सिर्फ परमेश्वर की महिमा की ओर लगाते हुए।”7

दुर्भाग्य से, जैसा एल्डर क्वेंटिन एल. कुक ने आज सुबह बताया था, मॉरमन की पुस्तक के 4 नफी में बताया आदर्श समाज दूसरी शताब्दी से आगे नहीं कायम न रह सका। स्थिरता की गारंटी नहीं दी जा सकती है, और एक समृद्ध समाज समय आने पर विफल हो सकता है यदि यह उन अत्याधिक महत्वपूर्ण गुणों का त्याग कर देता है जिस पर इसकी शांति और समृद्धि टिकी रहती है। इस मामले में, लोग शैतान के प्रलोभनों के कारण, “वर्गों में विभाजित होने लगे; और वे अपने लाभ के लिए गिरजों का निर्माण करने लगे, और मसीह के सच्चे गिरजाघर को नकारने लगे।”8

“और ऐसा हुआ कि जब तीन सौ वर्ष बीत गए, नफी के लोग और लमनाई, दोनो ही, एक दूसरे के समान अत्याधिक दुष्ट हो गए।”9

एक और सदी के अंत तक, लाखों लोग आपसी कलह में मारे गए थे, और उनका कभी मेल-मिलाप का राष्ट्र युद्धरत जातियों में सिकुड़कर रह गया था ।

इस और उत्कर्ष समाज है के अन्य उदाहरणों पर विचार करते हुए, मुझे लगता है कि यह कहना सही है कि जब लोग परमेश्वर और उसके प्रति जवाबदेही की भावना दूर होते और इसके बजाय “मानव बाहुबल” पर भरोसा कायम करते हैं तो विनाश होता है। मानव बाहुबल पर भरोसा करने का अर्थ मानव अधिकारों और मानव गरिमा के दिव्य रचियता की अनदेखी करना और धन-दौलत, शक्ति और संसारिक प्रशंसा पर अधिक ध्यान देना है (जबकि अक्सर उन लोगों का मजाक उड़ाया और सताया जाता है जो एक भिन्न आदर्श का अनुसरण करते हैं)। इस बीच, स्थाई समाजों में वे चाहते हैं, जैसा राजा बिन्यामीन ने कहा था, कि “जिसने [उन्हें] रचा है, उसके यश के ज्ञान में, या उस ज्ञान में जोकि सत्य और न्याययुक्त, [वे] उन्नति [करें]।”10

परिवार और धार्मिक संस्थाएं व्यक्तियों और समुदायों दोनों को उन गुणों के साथ संपन्न करने के लिए महत्वपूर्ण रही हैं जो एक स्थायी समाज को कायम रखते हैं। धर्मशास्त्र में आधारित इन गुणों में निष्ठा, उत्तरदायित्व और जवाबदेही, करुणा, विवाह और विवाह में निष्ठा, दूसरों के प्रति सम्मान और दूसरों की संपत्ति, सेवा, और कार्य की आवश्यकता और गरिमा शामिल हैं।

स्वतंत्र संपादक जेरार्ड बेकर ने इस साल के आरंभ में अपने पिता, फ्रेडरिक बेकर के 100 वें जन्मदिन के अवसर पर वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक कॉलम लिखा था। बेकर अपने पिता की दीर्घायु के कारणों के बारे में विचार लिखे थे, लेकिन फिर इन विचारों में आगे लिखा था:

“हो सकता हम सब एक लंबे जीवन के लिए रहस्य जानना चाहते हैं, लेकिन मुझे अक्सर लगता है कि बेहतर रहेगा यदि हम यह पता लगाने में अधिक समय समर्पित करें कि अच्छा जीवन कैसे बनाता है, जितनी भी अवधि हमें दी गई है । इस बारे में, मुझे विश्वास है कि मैं अपने पिता के रहस्य को जानता हूं।

“वह उस युग से आते हैं जब जीवन मुख्य रूप से कर्तव्य द्वारा परिभाषित किया जाता था, व्यक्तिगत हक से नहीं; सामाजिक जिम्मेदारियों से, व्यक्तिगत विशेषाधिकारों से नहीं । उनकी सदी के दौरान प्राथमिक प्रेरणादायक सिद्धांत—परिवार, परमेश्वर, और देश के प्रति जिम्मदारी की भावना रही है।

“टूटे परिवारों से प्रभावित युग में, मेरे पिता 46 साल की अपनी पत्नी के प्रति समर्पित पति थे, जो छह बच्चों के कर्तव्यनिष्ठ पिता थे। वह कभी भी इतने अधिक केंद्रित और महत्वपूर्ण नहीं थे जब मेरे माता-पिता को एक बच्चे को खोने का अकल्पनीय दुख सहना पड़ा था। …

“और एक ऐसे युग में जब धर्म तेजी से जिज्ञासा कारण बन रहा है, मेरे पिता मसीह की प्रतिज्ञाओं में अटूट विश्वास के साथ, एक सच्चे, वफादार कैथोलिक के रूप में जीवन जीते हैं । असल में, मुझे लगता है कि वह इतने लंबे समय तक जीवित रहे हैं क्योंकि वह किसी से भी जिनसे मैं मिला हूं अधिक बेहतररूप से मरने के लिए तैयार हैं।

“मैं एक भाग्यवान व्यक्ति रहा हूं—अच्छी शिक्षा, मेरा स्वयं का बढ़िया परिवार की आशीष, कुछ सांसारिक सफलता है जिसके लिए मैं योग्य नहीं था। लेकिन मैं कितना भी गर्व और आभारी महसूस करूं, यह गर्व और कृतज्ञता उस व्यक्ति के समक्ष कम है, जो बिना झमले या नाटक के, प्रतिफल या यहां तक कि धन्यवाद की आशा के बिना—अब एक सदी से—सरल कर्तव्यों, दायित्वों और, अंततः, एक गुणात्मक जीवन जीने के आनंद के साथ जीवन जी रहा है।”11

हाल के वर्षों में कई राष्ट्रों में धर्म और धार्मिक आस्था के महत्व में गिरावट आई है । बढ़ी संख्या में लोग मानते हैं कि आज के संसार में व्यक्तियों या समाजों में नैतिक ईमानदारी के लिए परमेश्वर के प्रति विश्वास और निष्ठा की आवश्यकता नहीं है।12 मुझे लगता है कि हम सब सहमत होंगे कि जो लोग किसी धार्मिक विश्वास नहीं मानते, अक्सर, अच्छे, नैतिक लोग होते हैं। लेकिन हम इस बात से सहमत नहीं होंगे कि यह दिव्य प्रभाव के बिना होता है। मैं मसीह के प्रकाश की बात कर रहा हूं। उद्धारकर्ता ने कहा था, “मैं वह सच्ची ज्योति हूं जो प्रत्येक मनुष्य को प्रकाश देती है जो संसार में आता है।” 13 चाहे इसके बारे में पता है या नहीं, प्रत्येक पुरूष, महिला, और प्रत्येक विश्वास के बच्चे, स्थान, और समय मसीह के प्रकाश से परिपूर्ण है और इसलिए सही और गलत की भावना उनके पास है जिसे हम अक्सर अंतरात्मा कहते हैं। 14

फिर भी, जब धर्मनिरपेक्षता नागरिक गुण को परमेश्वर के प्रति जवाबदेही की भावना से अलग करती है, तो यह पौधे को उसकी जड़ों से काट देती है। केवल संस्कृति और परंपरा पर निर्भर रहने से समाज में सद्गुणों को बनाए रखना पर्याप्त नहीं होगा । जब किसी के पास स्वयं से उच्च कोई परमेश्वर नहीं है और अपनी लालसाओं और वरीयताओं को संतुष्ट करने से अधिक किसी को अच्छा नहीं समझता है, तो इसके दुष्प्रभाव यथासमय प्रकट होगें।

ऐसा समाज, उदाहरण के लिए, जिसमें व्यक्तिगत सहमति यौन गतिविधि पर ही सीमित है उस समाज का पतन होता है । व्यभिचार, संकीर्णता, बिन-विवाह जन्म, 15 और इच्छा से किए जा रहे गर्भपात, कुछ कड़वे फल हैं जो इस वर्तमान यौन क्रांति के कारण उत्पन्न होते हैं। इसके बाद के परिणाम हैं कि जो किसी भी स्वस्थ समाज की स्थिरता के खिलाफ काम करती है इसमें शामिल है बच्चों की बढ़ती संख्या जो गरीबी और पिता के सकारात्मक प्रभाव के बिना पल रही है, कई बार अनेक पीढ़ियों से, महिलाएं अक्सर उन जिम्मेदारियों को अकेले निभा रही हैं जो साझा होनी चाहिए, और गंभीर रूप से रूप में शिक्षा की कमी, क्योंकि विद्यालयों और अन्य संस्थानों को, उन जिम्मेदारियों को पूरा करना पड़ता है जिसे घर करने विफल रहता है। 16 इन सामाजिक विकृतियों को आगे बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत दुख और निराशा के बेहिसाब उदाहरण हैं-मानसिक और भावनात्मक विनाश जो दोषी और निर्दोष दोनों पर समानरूप से प्रभाव डालते हैं।

नफी कहता है:

“उस पर हाय जो मनुष्यों के उपदेशों पर ध्यान देते हैं, और परमेश्वर की शक्ति, और पवित्र आत्मा के उपहार को अस्वीकार करते हैं! …

“… हाय उन सभी पर जो परमेश्वर की सच्चाई से कांपते, और क्रोधित होते हैं!”17

इसके विपरीत, हमारे बच्चों और पूरी मानवता के लिए हमारा आनंद का संदेश यह है कि “परमेश्वर की सच्चाई” एक बेहतर मार्ग है, या जैसा पौलुस ने कहा था, “सब से उत्तम मार्ग,” 18 व्यक्तिगत सुख और समुदाय के कल्याण के लिए अब और सदा के लिए अनंत शांति और खुशी का मार्ग है।

परमेश्वर का वचन उन मूल सच्चाइयों को संदर्भ करता है जो उसके बच्चों के लिए उसकी सुख की योजना को स्थापित करती हैं। ये सच्चाइयां कि परमेश्वर जीवित है; कि वह हमारी आत्माओं का स्वर्गीय पिता है; कि अपने प्रेम की अभिव्यक्ति के रूप में, उसने हमें आज्ञाएं दी हैं जो उसके साथ आनंद की परिपूर्णता का कारण बनती हैं; कि यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र है और हमारा मुक्तिदाता है; कि वह उसने कष्ट सहे और हमारे द्वारा पश्चाताप किए जाने की करने की शर्त पर मर गया; कि संपूर्ण मानवजाति को पुनरुत्थान प्रदान करने के लिए वह मरे हुओं में से जी उठा; और कि हम सब न्याय किए जाने के लिए सब उसके समक्ष खड़े किए जाएंगे, अर्थात, हमारे जीवन का लेखा-जोखा देने के लिए। 19

नौ वर्षों के दौरान जिसे “मॉरमन की पुस्तक में न्यायाधीशों के शासनकाल” कहा जाता था भविष्यवक्ता अलमा ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था ताकि गिरजे के अपने मार्गदर्शन को पूरा समय दे सके। उसका उद्देश्य लोगों के बीच और विशेष रूप से गिरजे के सदस्यों के बीच बढ़ रहे घमंड, अत्याचार और प्रलोभन के बारे में बात करना था।20 जैसा एल्डर स्टीफन डी नाडल्ड ने एक बार कहा था, “[अलमा का] प्रेरित निर्णय अपने लोगों के व्यवहार को सही करने के लिए और अधिक नियम बनाने और लागू करने की कोशिश करने में अधिक समय बिताना नहीं था, बल्कि उनसे परमेश्वर के वचन की बात करने, सिद्धांत सिखाने और उद्धार की योजना की उनकी समझ उन्हें उनके व्यवहार को बदलने के लिए प्रेरित करने के लिए था।21

हम जिन समाजों में रहते हैं, उनकी स्थिरता और सफलता में योगदान देने के लिए हम पड़ोसियों और साथी नागरिकों के रूप में बहुत कुछ कर सकते हैं, और अवश्य ही हमारी सबसे मूलभूत और स्थायी सेवा परमेश्वर की महान मुक्ति की योजना से जुड़ी सच्चाइयों को सिखाने और जीने के लिए होगी। जैसा इस स्तुतिगीत के शब्दों में व्यक्त किया गया है:

अपने पूर्वजों के धर्म से, हम प्रेम करेंगे

हमारे सभी संघर्ष में मित्र और शत्रु दोनों से,

और उस विश्वास को प्रेम से सीखाएंगे,

दया के शब्दों और धार्मिक जीवन जीने के द्वारा।22

यदि हम और हमारे अधिकतर पड़ोसी परमेश्वर की सच्चाई द्वारा अपने निर्णय लेते और अपने जीवन का मार्गदर्शन करते हैं, तो प्रत्येक समाज में आवश्यक नैतिक गुण प्रचुर मात्रा में होंगे।

उसके प्रेम में, जिसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया ताकि हम अनन्त जीवन प्राप्त कर सकें।23

“[यीशु मसीह] ऐसा कोई भी कार्य नहीं करता जो संसार के लाभ के लिए न हो; क्योंकि वह संसार से प्रेम करता है, वह इतना प्रेम करता है कि उसने अपना स्वयं का जीवन दे दिया ताकि वह संसार के मनुष्यों को अपने पास बुला सके ।। इसलिए, उसने किसी को भी उसके उद्धार में भाग न लेने की आज्ञा नहीं दी है ।

“सुनो, क्या उसने चिल्ला कर किसी से कहा है: मुझ से दूर हट जा? सुनो, मैं तुम से कहता हूं, नहीं; लेकिन वह कहता है: पृथ्वी के दूर दूर प्रदेशों के सब लोगों तुम मेरे पास आओ, बिना धन और बिना मूल्य के दूध और मधु खरीदो।” 24

यह हम हृदय की गंभीरता में, विनम्रता की आत्मा में, 25 और यीशु मसीह के नाम में कहते हैं, आमीन।

विवरण

  1. See “The 17 Goals,” United Nations Department of Economic and Social Affairs website, sdgs.un.org/goals.

  2. मूसा 7:19

  3. मूसा 7:18

  4. मूसा 7:17

  5. 4 नफी 1:12, 16

  6. मत्ती 22:37, 39

  7. सिद्धांत और अनुबंध 82:19

  8. 4 नफी 1:26

  9. 4 नफी 1:45

  10. मुसायाह 4:12

  11. Gerard Baker, “A Man for All Seasons at 100,” Wall Street Journal, Feb. 21, 2020, wsj.com.

  12. See Ronald F. Inglehart, “Giving Up on God: The Global Decline of Religion,” Foreign Affairs, Sept./Oct. 2020, foreignaffairs.com; see also Christine Tamir, Aidan Connaughton, and Ariana Monique Salazar, “The Global God Divide,” Pew Research Center, July 20, 2020, especially infographic “Majorities in Emerging Economies Connect Belief in God and Morality,” pewresearch.org.

  13. सिद्धांत और अनुबंध 93:2; और मोरोनी 7:16, 19 भी देखें।

  14. See Boyd K. Packer, “The Light of Christ,” Liahona, Apr. 2005, 10; see also D. Todd Christofferson, “Truth Endures,” Religious Educator, vol. 19, no. 3 (2018), 6.

  15. यह उदाहरण देकर, मैं बच्चों के लिए “कड़वे फल” के रूप में संभावित प्रतिकूल परिणामों के विषय में बोल रहा हूं न कि बच्चों के बारे में। परमेश्वर का प्रत्येक बच्चा अनमोल है, और बेशक जन्म की परिस्थितियां कुछ भी हों प्रत्येक जीवन बहुमूल्य होता है।

  16. See, for example, Pew Research Center, “The Changing Profile of Unmarried Parents,” Apr. 25, 2018, pewsocialtrends.org; Mindy E. Scott and others, “5 Ways Fathers Matter,” June 15, 2016, childtrends.org; and Robert Crosnoe and Elizabeth Wildsmith, “Nonmarital Fertility, Family Structure, and the Early School Achievement of Young Children from Different Race/Ethnic and Immigration Groups,” Applied Developmental Science, vol. 15, no. 3 (July–Sept. 2011), 156–70.

  17. 2 नफी 28:2628

  18. 1 कुरिंन्थियों 12:31

  19. देखें अलमा 33:22

  20. देखें अलमा 4:6-19

  21. Stephen D. Nadauld, Principles of Priesthood Leadership (1999), 13; see also Alma 31:5.

  22. “Faith of Our Fathers,” Hymns, no. 84.

  23. देखें यूहन्ना 3:16

  24. 2 नफी26:24–25; 2 Nephi 26:33 भी देखें।

  25. सिद्धांत और अनुबंध 100:7