सात गुणा सत्तर बार
बाधाओं से भरे और अपूर्ण जीवन के मध्य, हम अतिरिक्त मौकों के आभारी हैं ।
गलतियां जीवन की सच्चाई है । कुशलता से पियानो बजाना सीखना बिना हजारों गलतियों---शायद लाखों गलतियों के बिना सीखना बिलकुल असंभव है । विदेशी भाषा सीखने के लिये, व्यक्ति हजारों---शायद लाखों गलतियां करता है । यहां तक कि विश्व के महानत्तम खिलाड़ी भी गलतियां करते रहते हैं ।
“सफलता,” कहा जाता है, “असफलता का न होना नहीं, बल्कि बार-बार असफल होने पर भी उत्साह में कोई कमी न होना है ।”
बिजली के बल्ब की अपनी खोज के साथ, थॉमस एडिसन ने शायद यह कहा, “मैं एक हजार बार असफल नहीं हुआ । अपितु बिजली के बल्ब की खोज एक हजार चरणों में की गई थी ।” चार्ल्स एफ. केत्तेरिंग ने असफलताओं को “कामयाबी के पथ के मार्गदर्शक” कहा था । आशापूर्वक, प्रत्येक गलती जो हम करते हैं, बाधाओं को पदचिन्हों में बदलते हुए, ज्ञान का पाठ सीखाती है ।
नफी के मजबूत विश्वास ने उसे बार बार असफल होते हुए भी अतंत: पीतल की पट्टियां पाने में मदद की थी । मूसा ने भी इस्राएलियों के साथ मिस्र से भागने में सफल होने से पहले दस बार प्रयास किया था ।
हम पूछ सकते हैं---यदि नफी और मूसा दोनों प्रभु का कार्य कर रहे थे, तो प्रभु ने क्यों नहीं उन्हें उनके पहले प्रयास में सफल किया ? क्यों वह उन्हें---और क्यों वह हमें बहुत सी कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करने की अनुमति देता है और हम अपने प्रयासों में असफल होते हैं ? इस प्रश्न के बहुत से महत्वपूर्ण उत्तरों में, कुछ इस प्रकार हैं :
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पहला, प्रभु जानते हैं कि “ये सब बातें [हमें] अनुभव देंगी और [हमारी] भलाई के लिये होंगी ।”
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दूसरा, हमें “कड़वे अनुभव हों, ताकि [हम] भलाई के प्रतिफल को जान सकें ।”
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तीसरा, साबित करने के लिये कि “युद्ध प्रभु का है,” और उसके महान अनुग्रह के द्वारा हम उसके कार्य को कर सकते हैं और उसके समान बन सकते हैं ।
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चौथा, हमें मसीह समान गुणों का विकास करने और प्राप्त करने में मदद के लिये जो बिना “विरोध” और शुद्ध नहीं किये जा सकते हैं बिना “कष्ट की भट्टी में डाले” ।
इसलिये, बाधाओं से भरे और अपूर्ण जीवन के मध्य, हम अतिरिक्त मौकों के आभारी हैं ।
1970 में, बी वाई यू में नये प्रथमवर्ष के छात्र के रूप में, मैंने भौतिकी के आवश्यक पाठ्यक्रम के लिये दाखिला लिया, जो एक उत्कृष्ट प्रोफेसर जाए बैल्लिफ द्वारा पढ़ाए जाता था । पाठ्यक्रम की प्रत्येक ईकाई के बाद, वह परिक्षा लेते थे । यदि छात्र को सी मिला और वह बेहतर ग्रेड चाहता था, तो प्रौफेसर बल्लिफ उस छात्र को उसी विषय की संशोधित परिक्षा देने की अनुमति देते थे । यदि दूसरे प्रयास में छात्र को बी मिलता और वह फिर भी संतुष्ट न हो, तो तीसरी बार और चौथी बार, और आगे परिक्षा दे सकता था । मुझे कई बार अतिरिक्त मौके देकर, उन्होंने मुझे उनके क्लास में बेहतर करने और अंतत: ए लाने में मदद की ।
वह असमान्यरूप से बुद्धिमान प्रौफेसर थे जिन्होंने अपने छात्रों निरंतर प्रयास करने ---असफलता को एक सबक समझना, न कि दुर्भाग्य, और असफलता से भय नहीं परंतु इस से सीखने के लिये प्रेरणा और उत्साह दिया ।
हाल ही में उनके भौतिकी के पाठ्यक्रम को लेने के 47 वर्षों बाद मैंने इस महान व्यक्ति को फोन किया । मैंने उनसे पूछा क्यों उन्होंने अपने छात्रों को अच्छे ग्रेड लाने के लिये अनगिनत मौके दिये थे । उनका उत्तर था: “मैं स्वयं को छात्रों के पक्ष में होना चाहता था।”
गलतियों, या मन की असफलता के बाद जब हमें प्रेरणा मिलती है और अतिरिक्त मौकों के लिये आभारी होते हैं, तो पाप या हृदय की असफलताओं पर विजय प्राप्त में अतिरिक्त मौके दिये जाने के लिये उद्धारकर्ता के अनुग्रह पर हम चकित होते हैं ।
उद्धारकर्ता से अधिक हमारे पक्ष में और कोई अन्य नहीं है । वह हमें बार-बार बार बार उनके परीक्षा लेने के मौके देता है । उसके समान बनने के लिये प्राकृतिक मनुष्य के साथ हमारे प्रतिदिन के संघर्षों में अनगिनत अतिरिक्त मौकों की आवश्यकता होगी, जैसे इच्छाओं पर नियंत्रण करना, धैर्य रखना और क्षमा करना सीखना, आलस पर विजय प्राप्त करना, और गलती से पाप करने से बचना, इनमें से कुछ हैं । यदि गलती करना मनुष्य की प्रकृति है, तो हमें कितनी गलतियां करनी होगी ताकि हमारी प्रकृति मनुष्य की न होकर दिव्य हो जाए ? हजारों ? शायद लाखों से अधिक ।
यह जानते हुए कि असफलताइ इस तंग और सकंरे रास्ते की घटनाएं हैं, उद्धारकर्ता ने अनंत कीमत चूकाई है हमारे इस नश्वरता की परीक्षा में सफलता से उतीर्ण होने के लिये । हमारी प्रतिरोध जिसकी वह अनुमति देते हैं कभी लगता है कि दुर्गम और सहन करने के लिए लगभग असंभव हैं, फिर भी वे हमें आशा के बिना नहीं छोड़ते ।
अपनी आशा को सक्रिय रखने के लिये जब हम जीवन की चुनौतियों का सामना करते हैं, उद्धारकर्ता का अनुग्रह हमेशा तैयार और सदैव उपस्थित रहता है । उसका अनुग्रह “मदद या शक्ति का दिव्य माध्यम है, … एक बल देने वाली शक्ति है जिससे पुरूष और महिला उनका स्वयं का सर्वोत्तम करने के बाद अनंत जीवन और उत्कर्ष को थामे रहते हैं ।” उसका अनुग्रह और उसकी प्यार करने वाली आंखें हमारी संपूर्ण यात्रा के दौरान सदा हम पर रहती हैं जब वह प्रेरणा देता, बोझों को हल्का करता, शक्ति देता, मुक्ति देता, सुरक्षा देता, चंगा करता, और अन्य तरह से “अपने लोगों की सहायता करता है,” जब वे तंग और संकरे रास्ते में ठोकर खाते हैं ।
पश्चाताप परमेश्वर का हमेशा उपलब्ध उपहार है जो हमें बिना उत्साह खोए बार-बार असफल होने को सामना करने के लिए और योग्य बनाता है । पश्चाताप हमारे असफल होने की स्थिति में कोई वैकल्पिक योजना नहीं है । पश्चाताप उसकी योजना है, यह जानते हुए की हम गलतियां करेंगे । यह पश्चाताप का सुसमाचार है, और जैसा अध्यक्ष रसल एम. नेलसन ने बताया, “यह हमारा जीवन-भर का पाठ्यक्रम है ।”
पश्चाताप के इस जीवन-भर के पाठ्यक्रम में, प्रभु-भोज उसकी क्षमा तक निरंतर पहुंचने के मार्ग को उपलब्ध कराने का उसका निर्धारित तरीका है । यदि हम इसमें टूटे हृदय और पश्चतापी आत्मा से भाग लेते हैं, तो वह हमें सप्ताहिक क्षमा प्राप्त करने का मौका देता है जब हम अनुबंध के मार्ग पर बार-बार असफल होते हुए आगे बढ़ते हैं । क्योंकि “उनके पापों के होते हुए भी, उनके प्रति मेरा प्याले करूणा से भरे हैं ।”
लेकिन वह हमें कितनी बार माफ करेगा ? कब तक वह धैर्य रखेगा ? एक मौके पर पतरस ने उद्धारकर्ता से पूछा था, “हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं ? क्या सात बार ?”
मुमकिन है, पतरस ने सोचा था सात एक काफी बड़ी संख्या है बहुत अधिक बार क्षमा करके गलतियों पर जोर डालने के लिये और उदारता की कोई तो सीमा होनी चाहिए । जवाब में, उद्धारकर्ता ने असल में पतरस से गिनती न करने --- क्षमा की सीमा स्थापित न करने, को कहा था ।
“यीशु ने उससे कहा, मैं तुम से यह नहीं कहता, कि सात बार, बरन सात बार का सत्तर गुणा तक ।”
स्पष्ट है कि, उद्धारकर्ता ने 490 की उच्चतम सीमा स्थापित नहीं की थी । अन्यथा इसका अर्थ होगा कि प्रभु-भोज में भाग लेने की सीमा 490 है, और तब 491वीं बार, स्वर्गीय आडिटर बीच में रोक देगा, और कहेगा, “मुझे बहुत खेद है, आपके पश्चाताप-कार्ड की अवधि समाप्त हो गई है --- इसके बाद आप पश्चाताप नहीं कर सकते ।”
प्रभु ने सात बार का सत्तर गुणा के गणित का प्रयोग अपने असीम प्रायश्चित, अपने बंधन-रहित प्रेम, और असीमित अनुग्रह की उपमा के तौर पर किया था । “हां, और जितनी बार मेरे लोग पश्चाताप करेंगे मैं उतनी बार उन्हें मेरे विरूद्ध उनके अपराधों के लिए क्षमा करूंगा ।”
इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रभु-भोज पाप करने का लाइसेंस है । इस कारण मोरोनी की पुस्तक में इस वाक्यांश को शामिल किया था: “परन्तु जैसे-जैसे वे सच्ची निष्ठा से पश्चाताप करते और क्षमा प्राप्त करते, उन्हें क्षमा कर दिया जाता है ।”
सच्ची निष्ठा का अर्थ है वास्तव में प्रयास करना और सच में बदलना । “बदलना” मुख्य शब्द है जिसे धर्माशास्त्रों की निर्देशिका पश्चाताप को परिभाषित करने के लिये उपयोग करती है: “मन और हृदय का बदलना जो मुख्य रूप से परमेश्वर के प्रति, स्वयं के प्रति, और जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण लाता है ।” इस प्रकार का बदलना आत्मिक विकास में परिवर्तित होता है । तब, हमारी सफलता, बार-बार असफल नहीं होती, बल्कि बार-बार असफल होते हुए भी बिना उत्साह में कमी के आगे बढ़ती जाती है ।
बदलना के विषय में, इस सरल दृष्टिकोण पर विचार करें: “बातें जो बदलती नहीं हैं वैसे ही रहती हैं ।” इस प्रत्यक्ष सच्चाई का अर्थ आपको मूर्ख बताना नहीं है लेकिन यह अध्यक्ष बोएड के. पैकर का अथाह ज्ञान, जो आगे कहते हैं, “और जब हम बदल जाते हैं--- हमारा काम खत्म हो जाता है ।”
क्योंकि हम ख़तम नहीं होना चाहते तब तक जब हम मसीह के जैसे बन जाते, इस लिए हमें उठना पड़ेगा हर बार जब हम गिरते हैं, यह इक्चा रखते हुए कि हमारी कमजोरियों के बावजूद बढ़ती और प्रगति करते रहें । हमारी कमजोरी में, वह हमें आश्वासन देता है, “मेरा अनुग्रह ही तुम्हारे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में परिपूर्ण होती है ।”
केवल कालांतर-फोटोग्राफी या विधियों द्वारा ही हम अपने संसारिक विकास को नाप सकते हैं । उसी प्रकार, हमारा आत्मिक विकास अक्सर अतिसूक्ष्म होता है जिसे केवल अतीत में ले जाने वाली आंखों से ही देखा जा सकता है । नियमितरूप से अपने विकास का इन आखों से आत्मविश्लेषण करने और “नयी आशा के साथ आगे बढ़ने के लिये स्वयं को प्रेरणा देने में बुद्धिमानी है ।”
मैं प्रेमपूर्ण दया, धैर्य, और सहनशीलता के लिये स्वर्गीय माता-पिता और उद्धारकर्ता, का आभारी हूं, जो उनकी उपस्थिति में वापस जाने की हमारी यात्रा में हमें अनगिनत अतिरिक्त मौके देते हैं । यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।