महा सम्मेलन
हमारा सांसारिक भंडारीपन
अक्टूबर 2022 महा सम्मेलन


12:17

हमारा सांसारिक भंडारीपन

महान आत्मिक आशीषों की उन लोगों से प्रतिज्ञा की जाती है जो इस पृथ्वी और अपने साथी पुरुषों और महिलाओं से प्यार और उनकी देखभाल करते हैं।

अपने देश फ्रांस का दौरा करते समय, मेरी पत्नी और मैंने हाल ही में गिवर्नी के छोटे शहर के शानदार बगीचे में हमारे कुछ नाती-पोतों के साथ घुमने का आनंद उठाया था। हमने सुंदर सुंदर फूलों की क्यारियां, पानी की लिली और बहते तालाबों पर रंगीन प्रकाश देखते हुए इसकी गलियों में घूमने का आनंद लिया।

गिवर्नी गार्डन

यह शानदार स्थान एक व्यक्ति की रचनात्मक शौक का परिणाम है: महान चित्रकार क्लाउड मोनेट, जिन्होंने 40 वर्षों तक, अपने बगीचे को चित्रकारी करने के लिए तैयार किया था। मोनेट अपना अधिकतर समय घर के बाहर सुंदर जगहों में व्यतीत करते, और फिर रंगों और ब्रश के उपयोग से प्रकृति की सुंदरता को अपने चित्रों में व्यक्त करते थे। इन वर्षों में, उन्होंने सैकड़ों चित्रों का एक असाधारण संग्रह बनाया, जो सीधे उनके बगीचे से प्रेरित था।

बगीचे की मोनेट पेंटिंग

Water Lilies and Japanese Bridge, 1899, क्लाउड मोनेट द्वारा

भाइयों और बहनों, हमारे आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता हमारे जीवन के कुछ सबसे प्रेरणादायक और सुखद अनुभवों को उत्पन्न कर सकती है। हम जिन भावनाओं को महसूस करते हैं, वे हमारे स्वर्गीय पिता और उसके पुत्र, यीशु मसीह के प्रति कृतज्ञता की गहरी भावना पैदा करती हैं, जिन्होंने इस शानदार पृथ्वी—इसके पहाड़ों और धाराओं, पौधों और जानवरों के साथ—और हमारे पहले माता-पिता, आदम और हव्वा को बनाया था।1

सृष्टि की रचना एकमात्र सृजन करने के उद्देश्य से नहीं की गई है। यह अपनी संतानों के लिए परमेश्वर की योजना का एक अभिन्न अंग है। इसका उद्देश्य उस वातावरण को प्रदान करना है जिसमें पुरुषों और महिलाओं की परीक्षा ली जा सके, वे अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर पाएं, उन्हें आनंद मिले और वे सीख और प्रगति कर सकें ताकि वे एक दिन अपने सृष्टिकर्ता की उपस्थिति में लौट सकें और अनंत जीवन के वारिस हो सकें।

ये अद्भुत रचनाएं पूरी तरह से हमारे लाभ के लिए बनाई गई थी और सृष्टिकर्ता के अपने बच्चों के लिए प्रेम का जीता-जागता प्रमाण हैं। प्रभु ने घोषणा की, “हां, सभी वस्तुएं जो पृथ्वी से प्राप्त होती हैं, उनके मौसम में, मनुष्य के लाभ और उपयोग के लिये बनी हैं, आंख की संतुष्टि और हृदय की खुशी दोनों के लिये।”2

हालांकि, सृष्टि का दिव्य उपहार कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के बिना प्राप्त नहीं हो सकता है। इन कर्तव्यों को भंडारीपन की अवधारणा द्वारा सबसे अच्छी तरह बताया गया है। सुसमाचार के शब्दों में, भंडारीपन शब्द किसी ऐसी वस्तु का ध्यान रखने के लिए एक आत्मिक या सांसारिक जिम्मेदारी वर्णन करता है जो परमेश्वर से संबंधित है, जिसके प्रति हम जवाबदेह हैं।3

जैसा पवित्र धर्मशास्त्रों में सिखाया गया है, हमारे सांसारिक भंडारीपन में निम्नलिखित नियम शामिल हैं:

पहला सिद्धांत: संपूर्ण पृथ्वी, जिसमें सभी जीवन भी शामिल हैं, परमेश्वर की है।

सृष्टिकर्ता ने पृथ्वी के संसाधनों और जीवन के सभी रूपों को हमारी देखभाल के लिए सौंपा है, परन्तु इसका पूर्ण स्वामित्व उसके पास है। उसने कहा, “मैं, प्रभु, आकाश को तानता हूं, और पृथ्वी का निर्माण करता हूं, यह मेरी हस्त कला है; और इसमें सब वस्तुएं मेरी हैं।”4 पृथ्वी पर जो कुछ भी है वह परमेश्वर का है, जिसमें हमारे परिवार, हमारे भौतिक शरीर और यहां तक कि हमारा जीवन भी शामिल हैं।5

दूसरा नियम: परमेश्वर की रचनाओं का भंडारी होने के नाते, हमारा कर्तव्य है कि हम उनका आदर करें और उनकी देखभाल करें।

परमेश्वर की संतान के रूप में, हमें उसकी दिव्य रचनाओं के भंडारी, देखभाल करने वाले और संरक्षक होने की जिम्मेदारी प्राप्त हुई है। प्रभु ने कहा था कि उसने “प्रत्येक व्यक्ति को जिम्मेदार बनाया, सांसारिक आशीषों पर भंडारी, जो उसने अपनी सृष्टि की हुई वस्तुओं के लिए बनाई और तैयार की हैं।”6

हमारा स्वर्गीय पिता हमें अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार सांसारिक संसाधनों का उपयोग करने की अनुमति देता है। फिर भी हमारी स्वतंत्रता को ज्ञान या संयम के बिना इस संसार की संपदा का उपयोग करने या उपभोग करने के अधिकार के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए। प्रभु ने यह सलाह दी थी: “और यह परमेश्वर को खुशी देता है कि उसने ये वस्तुएं मनुष्य को दी हैं; क्योंकि इसी उपयोग के लिये इन्हें बनाया गया था, समझदारी के साथ, अधिकता से नहीं, न ही जबरदस्ती द्वारा।”7

अध्यक्ष रसल एम. नेलसन ने एक बार टिप्पणी की थी “दिव्य सृष्टि के लाभ लेने वालों के रूप में, हम क्या करेंगे? हमें पृथ्वी की देखभाल करनी चाहिए, उसका बुद्धिमान भंडारीपन बनना चाहिए, और इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभाल कर रखना चाहिए।”8

केवल किसी वैज्ञानिक या राजनीतिक आवश्यकता होने से परे, पृथ्वी और हमारे प्राकृतिक पर्यावरण की देखभाल परमेश्वर द्वारा हमें सौंपी गई एक पवित्र जिम्मेदारी है, जिसे हमें कर्तव्य और विनम्रता की गहरी भावना से निभाया जाना चाहिए । यह हमारे शिष्यत्व का एक अभिन्न अंग भी है। हम स्वर्गीय पिता और यीशु मसीह की सृष्टि का आदर और प्रेम किए बिना उनका आदर और प्रेम कैसे कर सकते हैं?

ऐसी कई बातें हैं जो हम अच्छे भंडारी होने के लिए—सामूहिक रूप और व्यक्तिगत रूप से—कर सकते हैं। हमारी व्यक्तिगत परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हम में से प्रत्येक पृथ्वी के भरपूर संसाधनों का अधिक सम्मानपूर्वक और विवेकपूर्ण उपयोग कर सकता है। हम पृथ्वी की देखभाल के लिए सामुदायिक प्रयासों का समर्थन कर सकते हैं। हम ऐसी व्यक्तिगत जीवन शैली और व्यवहार को अपना सकते हैं जो परमेश्वर की रचनाओं का सम्मान करते हैं और हमारे स्वयं के रहने के स्थानों को सुव्यवस्थित, अधिक सुंदर और अधिक प्रेरणादायक बनाते हैं।9

परमेश्वर की रचनाओं पर हमारे भंडारीपन में, उन सभी मनुष्यों से प्रेम, आदर और देखभाल करने का पवित्र कर्तव्य भी शामिल है, जिनके साथ हम इस पृथ्वी को साझा करते हैं। वे परमेश्वर के बेटे और बेटियां, हमारी बहनें और हमारे भाई हैं, और उनका अनंत सुख इस सृष्टि के कार्य का मुख्य उद्देश्य है।

लेखक एंटोनी डी संत-एक्सुपरी ने यहा वर्णन किया: एक दिन, एक ट्रेन में यात्रा करते समय, उन्होंने स्वयं को शरणार्थियों के समूह के बीच बैठा पाया। एक छोटे बच्चे के चेहरे पर देखी गई निराशा से गहराई से प्रभावित होकर, उन्होंने कहा “जब किसी बगीचे में कोई नया गुलाब पैदा खिलता है, तो सभी माली आनंदित होते हैं। वे इस गुलाब को अलग रखते हैं, इसकी देखभाल करते हैं, इसे पोषण देते हैं। लेकिन मनुष्यों का कोई माली नहीं है।”10

मेरे भाइयों और बहनों, क्या हमें अपने साथी पुरुषों और महिलाओं का माली नहीं बनना चाहिए? क्या हम अपने भाई के रखवाले नहीं हैं? यीशु ने हमें आज्ञा दी कि हम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखें।11 उसके मुंह से, पड़ोसी शब्द का अर्थ केवल भौगोलिक निकटता नहीं है; यह अर्थ दिल की निकटता भी है। इसमें इस ग्रह के सभी निवासियों को शामिल किया गया है—चाहे वे हमारे पास रहते हों या दूर देश में, उनका जन्म, व्यक्तिगत पृष्ठभूमि या परिस्थितियां कुछ भी हों।

मसीह के शिष्यों के रूप में, पृथ्वी के सभी राष्ट्रों के बीच शांति और सद्भाव के लिए अथक परिश्रम करना हमारा महत्वपूर्ण कर्तव्य है। हमें कमजोर, जरूरतमंदों और पीड़ित या उत्पीड़ित लोगों की रक्षा करने और दिलासा और राहत देने के लिए अपना संपूर्ण प्रयास करना चाहिए। इन सबसे ऊपर, प्रेम का सबसे बड़ा उपहार जो हम अपने साथी लोगों को दे सकते हैं, वह उनके साथ सुसमाचार की खुशी साझा करना और उन्हें पवित्र अनुबंधों और विधियों के माध्यम से उनको उद्धारकर्ता के पास आने के लिए आमंत्रित करना है।

तीसरा नियम: हमें सृष्टि के कार्य में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

सृष्टि की दिव्य प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है। प्रतिदिन, परमेश्वर की रचनाएं बढ़ती, विस्तार और वृद्धि करती रहती हैं। एक सबसे अद्भुत बात यह है कि हमारा स्वर्गीय पिता हमें अपने रचनात्मक कार्य में भाग लेने के लिए निमंत्रण देता है।

जब भी हम पृथ्वी को विकसित करते हैं या इस संसार में अपनी रचनाएं जोड़ते हैं, तब हम सृष्टि के कार्य में भाग लेते हैं—जब तक कि हम परमेश्वर की रचनाओं के प्रति अपना सम्मान दिखाते हैं। हमारे योगदान को कला, वास्तुकला, संगीत, साहित्य और संस्कृति के कार्यों के निर्माण के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है, जो हमारे ग्रह को सुशोभित करते हैं, हमारी इंद्रियों को सजीव, और हमारे जीवन को उज्ज्वल करते हैं। हम वैज्ञानिक और चिकित्सा खोजों के माध्यम से भी योगदान करते हैं जो पृथ्वी को और उस पर जीवन को संरक्षित करते हैं। अध्यक्ष थॉमस एस. मॉनसन ने इन सुंदर शब्दों के साथ इस अवधारणा को संक्षेप में प्रस्तुत किया: “परमेश्वर ने मनुष्य को उसकी प्रतिभा को दिखाने के लिए दुनिया को अधूरा छोड़ दिया … ताकि मनुष्य सृष्टि के आनंद और महिमा को समझ सके।”13

प्रतिभाओं के बारे में यीशु के दृष्टांत में, जब स्वामी अपनी यात्रा से लौटा, तो उसने उन दो सेवकों की प्रशंसा की और उन्हें पुरस्कृत किया जिन्होंने आपनी प्रतिभाओं में वृद्धि की थी। इसके विपरीत, उसने उस सेवक को “निकम्मा” कहा था जिसने मिट्टी में अपनी अनूठी प्रतिभा छिपाई थी, और उसने जो कुछ भी उसके पास था उसे भी ले लिया था।14

इसी प्रकार, सांसारिक रचनाओं के भंडारियों के रूप में हमारी भूमिका केवल उन्हें संरक्षित या सुरक्षित रखने के बारे में नहीं है। प्रभु हमसे यह अपेक्षा करता है कि हम लगन से कार्य करें, जब उसकी पवित्र आत्मा द्वारा उन संसाधनों का विकास करने, बढ़ाने और सुधारने के लिए, हमें प्रेरित किया जाता है जिन्हें उसने हमें सौंपा है—न केवल हमारे लाभ के लिए बल्कि दूसरों को आशीष देने के लिए।

मनुष्य की सभी उपलब्धियों में से कोई भी, जीवन देने या बच्चे को सीखने, बढ़ने और फलने-फूलने में मदद करने में परमेश्वर के साथ सह-निर्माता बनने के अनुभव की बराबरी नहीं कर सकती है—चाहे यह माता-पिता, शिक्षक, मार्गदर्शक, या किसी अन्य भूमिका में हो। हमारे सृष्टिकर्ता के साथ उसकी आत्मिक संतानों के लिए भौतिक शरीर प्रदान करने और फिर उनकी दिव्य क्षमता तक पहुंचने में मदद करने की तुलना से अधिक पवित्र, अधिक संतोषजनक, बल्कि अधिक चूनौतीपूर्ण भंडारीपन कोई नहीं है।

सह-निर्माण की जिम्मेदारी एक निरंतर यादगार के रूप में कार्य करती है कि जीवन और प्रत्येक व्यक्ति का शरीर पवित्र है, कि वे परमेश्वर के अलावा किसी और के नहीं हैं, और यह कि उसने हमें उनका सम्मान, रक्षा और देखभाल करने के लिए संरक्षक बनाया है। परमेश्वर की आज्ञाएं, जो प्रजनन की शक्तियों और अनंत परिवारों की स्थापना को नियंत्रित करती हैं, इस पवित्र भंडारीपन में हमारा मार्गदर्शन करती हैं, जो उसकी योजना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

मेरे भाइयों और बहनों, हमें यह पहचनना चाहिए कि सब कुछ प्रभु के लिए आत्मिक है —जिसमें हमारे जीवन के सबसे सांसारिक पहलू भी शामिल हैं। मैं गवाही देता हूं कि महान आत्मिक आशीषों की उन लोगों से प्रतिज्ञा की जाती है जो इस पृथ्वी और अपने साथी पुरुषों और महिलाओं से प्यार और उनकी देखभाल करते हैं। जब आप इस पवित्र भंडारीपन में विश्वासी रहोगे और अपने अनंत अनुबंधों का सम्मान करोगे, आप परमेश्वर और उसके पुत्र, यीशु मसीह के ज्ञान में वृद्धि करोगे, और आप अपने जीवन में उनके प्रेम और उनके प्रभाव को अधिकता से महसूस करोगे। यह सब आपको उनके साथ रहने और आने वाले जीवन में अतिरिक्त रचनात्मक शक्ति15 प्राप्त करने के लिए तैयार करेगा।

इस नश्वर अस्तित्व के अंत में, स्वामी हमें हमारे पवित्र भंडारीपन का हिसाब देने के लिए कहेगा, जिसमें यह भी शामिल है कि हमने उसकी रचनाओं की देखभाल कैसे की है। मैं प्रार्थना करता हूं कि तब हम उसके प्रेमपूर्ण वचनों को अपने हृदयों में प्रेरणा देते हुए सुनेंगे: “धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊंगा अपने स्वामी के आनंद में सम्भागी हो।”15 यीशु मसीह के नाम में, आमीन।

विवरण

  1. पृथ्वी और उस पर सभी वस्तुएं (आदम और हव्वा को छोड़कर) यीशु मसीह द्वारा पिता के निर्देशन में बनाई गई थीं; आदम और हव्वा, हमारे पहले माता-पिता, परमेश्वर पिता द्वारा बनाए गए थे (देखें यूहन्ना 1:1–3; मूसा 2:1, 26–27)।

  2. सिद्धांत और अनुबंध 59:18

  3. देखें स्पेंसर डब्ल्यू. किंबल, “Welfare Services: The Gospel in Action,” Ensign, नवंबर 1977, 76-79।

  4. सिद्धांत और अनुबंध 104:14

  5. देखें स्पेंसर डब्ल्यू. किंबल, “Welfare Services,” 76–79.

  6. सिद्धांत और अनुबंध 104:13

  7. सिद्धांत और अनुबंध 59:20

  8. रसल एम. नेलसन, “The Creation,” Liahona, जुलाई 2000, 104।

  9. देखें सुसमाचार विषय, “Environmental Stewardship and Conservation,” topics.ChurchofJesusChrist.org.

  10. Antoine de Saint-Exupéry, Terre des Hommes (1939), 214; see also Wind, Sand and Stars (1939) in Airman’s Odyssey (1984), 206.

  11. देखें मरकुस 12:31

  12. थॉमस एस. मॉनसन, “In Search of an Abundant Life,” Tambuli, अगस्त 1988, 3।

  13. देखें मत्ती 25:14–30

  14. देखें डेविड ए. बेडनार और सुसान के. बेडनार, “Moral Purity” (Brigham Young University–Idaho devotional, Jan. 7, 2003), byui.edu.

  15. मत्ती 25:21