हम उसके द्वारा कठिन कार्य कर सकते हैं
जब हम कठिन समय में प्रभु में विश्वास करते हैं तो हम अपने शिष्यत्व में आगे बढ़ते हैं।
उद्धारकर्ता की पृथ्वी पर सेवकाई के दौरान, उसने एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो अंधा था। यीशु के शिष्यों ने पूछा, “हे स्वामी, किसने पाप किया,इस आदमी ने, या इसके माता-पिता ने, जो यह अंधा पैदा हुआ?”
उद्धारकर्ता का प्रेम से भरा और ईमानदार उत्तर हमें आश्वस्त करता है कि वह हमारे संघर्षों के बारे में जानता है: “न तो इस मनुष्य ने पाप किया है, और न ही इसके माता-पिता ने; परन्तु इसलिये कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों।”1
जबकि कुछ चुनौतिया जानबूझकर की गई गलती के कारण आ सकती हैं, हम जानते हैं कि जीवन की कई चुनौतिया अन्य कारणों से आती हैं। हमारी चुनौतियों का स्रोत जो भी हो, वे हमारे लिए बढ़ने का एक सुनहरा अवसर हो सकता है।
जीवन की विपत्तियों से हमारा परिवार अछूता नहीं है। बढ़ती उम्र के साथ मैंने देखा कि, बड़े परिवार मुझे अच्छे लगते है। ऐसे परिवारों ने मुझे आकर्षित किया, विशेषकर जब मैंने किशोरावस्था में अपने मामा, सरफो और उनकी पत्नी के माध्यम से घाना के ताकोरदी में गिरजा को अपनाया था।
जब हन्ना और मेरी शादी हुई, तो हमने अपने कुलपति की आशीष को पूरा करने की इच्छा की, जिसने संकेत दिया कि हमें कई बच्चों का आशीर्वाद मिलेगा। हालांकि, हमारे तीसरे लड़के के जन्म से पहले ही, चिकत्स्कों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि हन्ना को दूसरा बच्चा नहीं होगा। हालांकि केनेथ का जन्म उसके लिए और उसकी मां दोनों के लिए एक खतरनाक स्थिति में हुआ था, हम कृतज्ञ थे कि वह सुरक्षित पैदा हुआ, और उसकी मां भी ठीक हो गईं। उसने हमारे पारिवारिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेना शुरू कर दिया था—जिसमें गिरजा जाना, पारिवारिक प्रार्थना, धर्मशास्त्र का अध्ययन, पारिवारिक घरेलु संध्या और अच्छी मनोरंजक बातों में शामिल होना था।
हालाकि हमें एक बड़े परिवार की अपनी अपेक्षाओं को समायोजित करना पड़ा था, लेकिन अपने तीन प्यारे बच्चों के साथ “परिवार: दुनिया के लिए एक घोषणा” की शिक्षाओं को अमल में लाना एक खुशी की बात थी। उन शिक्षाओं का पालन करने से मेरे बढ़ते विश्वास में बहुत बड़ा अर्थ जुड़ गया।
जैसा कि घोषणा में कहा गया है: “परमेश्वर की योजना के लिये पुरुष और स्त्री के बीच विवाह आवश्यक है। बच्चे विवाह के बंधन में ही जन्म लेने के हकदार हैं, और उनका पालन-पोषण एक पिता और एक मा के द्वारा ही किया जाना चाहिए जो पूरी निष्ठा के साथ वैवाहिक प्रतिज्ञाओं का सम्मान करते हैं।”2 जब हमने इन नियमों पर अमल किया, तो हमें आशीष मिली।
हालांकि, स्टेक अध्यक्ष के रूप में मेरी सेवा के दौरान एक सप्ताह के अंत में, हमने माता-पिता के रूप में हमें शायद सबसे खराब परीक्षा का सामना करना पड़ा था। हमारा परिवार एक गिरजा गतिविधि से लौटा और दोपहर के भोजन के लिए बैठा। फिर हमारे तीनों लड़के हमारे आंगन में खेलने चले गए।
मेरी पत्नी को बार-बार यह आभास हुआ कि कुछ गलत हो सकता है। जब हम बर्तन धो रहे थे तो उसने मुझे बच्चों को देखने के लिए कहा। मुझे लगा कि वे ठीक हैं क्योंकि हम उनके खेलने और उनकी आवाजें सुन सकते थे।
जब हम दोनों अपने बेटों को देखने गए, तो हम घबरा गए, हमने 18 महीने के छोटे केनेथ को पानी की बाल्टी में असहाय पाया, जिसे उसके भाइयों ने नहीं देखा था। हम उसे अस्पताल ले गए, लेकिन उसे बचाने के सभी प्रयास व्यर्थ साबित हुए।
हम पूरी तरह से निराश हो गए थे कि हमें इस जीवन में अपने प्यारे अनमोल बच्चे को पालने का अवसर नहीं मिलेगा। हालांकि हम जानते थे कि केनेथ अनंत जीवन के लिए हमारे परिवार का हिस्सा रहेगा, मैंने खुद से यह सवाल किया कि परमेश्वर मेरे साथ यह त्रासदी क्यों होने देगा जबकि मैं अपनी बुलाहट को करने के लिए जो कर सकता था वह कर रहा था। मैं अभी-अभी संतों की सेवा करके अपने एक कर्तव्य को पूरा करके घर आया था। परमेश्वर मेरी सेवा को क्यों नहीं देख सका और हमारे बेटे और हमारे परिवार को इस त्रासदी से क्यों नहीं बचा सका? मैंने जितना इसके बारे में सोच रहा था, मेरा मन उतना ही कड़वा होता गया।
मेरी पत्नी ने मुझे कभी भी उसकी बात को अनसुना करने के लिए दोषी नहीं ठहराया, लेकिन मैंने जीवन बदलने वाला सबक सीख लिया और हमेशा पालन करने के दो नियम बनाए।
नियम 1: अपनी पत्नी की प्रेरणाओं वाली बातों को सुनें और उन पर ध्यान दें।
नियम 2: यदि आप किसी कारण से सुनिश्चित नहीं हैं, तो नियम संख्या 1 का पालन करे।
हालांकि हम बिखर रहे थे, और हमारा शोक जारी था, अंततः हमारा भारी बोझ कम हो गया था।3 मैंने और मेरी पत्नी ने अपने इस नुकसान से एक खास सबक सीखा। हम अपने मंदिर अनुबधों से एकजुट और एक साथ बंधे हुए महसूस करने लगे; हम जानते हैं कि हम अगली दुनिया में केनेथ को अपना होने का दावा कर सकते हैं क्योंकि वह अनुबंध में पैदा हुआ था। हमें दूसरों की सेवा करने और उनके दर्द के प्रति सहानुभूति रखने के लिए एक आवश्यक अनुभव भी प्राप्त हुआ। मैं गवाही देता हूं कि जब से हमने प्रभु में विश्वास किया है, तब से हमारी कड़वाहट दूर हो गई है। हमारा अनुभव कठिन बना हुआ था, लेकिन हमने प्रेरित पौलुस से सीखा है कि हम “मसीह के द्वारा सब कुछ कर सकते हैं जो [हमें मजबूत करता है]“ यदि हम उस पर ध्यान केंद्रित करते हैं।4
अध्यक्ष रसल एम. नेलसन ने सिखाया है, “जब हमारे जीवन का ध्यान परमेश्वर की मुक्ति की योजना पर है … और यीशु मसीह और उसके सुसमाचार, हम साथ क्या हो रहा है—या नहीं हो रहा है की परवाह किए बिना आनंद महसूस कर सकते हैं-—अपने जीवन में। उन्होंने आगे कहा, “आनंद उससे और उसके कारण आता है।”5
हम ढाढस बांध सकते हैं और अपने कठिन समय में शांति से भरे रह सकते हैं। उद्धारकर्ता और उसके प्रायश्चित के कारण हम जो प्रेम महसूस करते हैं, वह हमारे जीवन में परीक्षा के क्षणों में हमारे लिए एक शक्तिशाली साधन बन जाता है। जीवन के बारे में जो कुछ अनुचित [और मुश्किल] होता है, उसे यीशु मसीह के प्रायश्चित के माध्यम से सही बनाया जा सकता है।”6 उसने आज्ञा दी,“ संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैंने संसार को जीत लिया है”7। नश्वरता में हम जो भी दर्द, बीमारी और परीक्षाओं का सामना करते हैं, उसमे वह हमें उसे सहने में मदद कर सकता है।
हमें यिर्मयाह, अय्यूब, जोसफ स्मिथ और नफी जैसे महान और भले मार्गदर्शकों की कई धर्मशास्त्रों में कहानियां मिलती हैं, जिन्हें नश्वरता के संघर्षों और चुनौतियों ने भी नहीं छोड़ा था। वे नश्वर जीवन में थे जिन्होंने कठोर परिस्थितियों में भी प्रभु की आज्ञा का पालन करना सीखा8।
लिबर्टी जेल में भयानक दिनों के दौरान, जोसफ स्मिथ ने पुकारा : “हे परमेश्वर, तू कहां है? और कहां है वह मंडप जो आपके छिपने के स्थान को ढकता है?”9 प्रभु ने जोसफ को इसे अच्छी तरह से सहन करना सिखाया10 और वादा किया कि यदि वह ऐसा करता है, तो ये सभी चीजें उसे अनुभव प्रदान करेंगी और उसके भले के लिए होंगी।11
अपने स्वयं के अनुभवों पर विचार करते हुए, मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने सबसे कठिन समय के जीवन के दौरान कुछ बेहतरीन सबक सीखे हैं, जो मुझे मेरे आरामदायक स्थिति से बाहर ले आए थे। एक युवा के रूप में, सेमिनरी के माध्यम से गिरजा के बारे में सीखने के दौरान, नए सदस्य के रूप में, और एक वापस लौटे प्रचारक के रूप में, और अपनी शिक्षा में चुनौतियों का सामना करते हुए, और अपनी बुलाहट को बढ़ाने के प्रयास में, और एक परिवार के पालन-पोषण में मैंने जिन कठिनाइयों का सामना किया, उन्होंने मुझे तैयार किया है भविष्य के लिए। जितना अधिक मैं प्रभु में विश्वास के साथ कठिन परिस्थितियों का खुशी से सामना करता हूं, उतना ही मैं शिष्यत्व में बढ़ता जाता हूं।
एक बार जब हम तंग और संकरे रास्ते में प्रवेश कर लेते हैं तो हमारे जीवन में हमें कठिन चीजों से आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए12। यीशु मसीह ने “दुख उठाकर आज्ञा मानना सीखा”13। जब हम उसका अनुसरण करते हैं, विशेष रूप से हमारे अपने कठिन समय में, तब हम खुद को उसके समान बनाने में और विकसित हो जाते हैं।
मंदिर में प्रभु के साथ हम जो अनुबंध बनाते हैं उनमें से एक अनुबंध बलिदान का है। बलिदान हमेशा से यीशु मसीह के सुसमाचार का हिस्सा रहा है। यह उन सभी के लिए यीशु मसीह के महान प्रायश्चित बलिदान की याद दिलाता है जो पृथ्वी पर रह चुके हैं या रहेंगे।
मुझे पता है कि प्रभु हमेशा हमारी नेक इच्छाओं की भरपाई करता हैं। याद करें मुझे अपने कुलपति आशीष में कितने बच्चों का वादा किया गया था? वह आशीष पूरी हो रही है। मैंने और मेरी पत्नी ने घाना केप कोस्ट मिशन में 25 से अधिक देशों के कई सौ प्रचारकों के साथ सेवा की है। वे हमें उतने ही प्रिय हैं जैसे कि वे सचमुच हमारे अपने बच्चे हों।
मैं गवाही देता हूं कि जब हम कठिन समय में प्रभु में विश्वास करते हैं तो हम अपने शिष्यत्व में आगे बढ़ते हैं। यदि हम ऐसा करते हैं, तो वह हमें दया के साथ मजबूत करेगा और हमारे बोझ को उठाने में हमारी मदद करेगा। यीशु मसीह के नाम में, आमीन।