संपूर्ण हृदय से
हमें यीशु के ऐसे अनुयायी होना चाहिए जो शिष्यत्व की अपनी व्यक्तिगत यात्रा में आनंदित और संपूर्ण हृदय से चलते हैं।
कभी-कभी, यह जानना मदद करता है कि किस बात की आशा करनी है।
अपनी सेवकाई के अंत के निकट, यीशु ने अपने प्रेरितों से कहा कि कठिन समय आएगा। परन्तु उसने यह भी कहा, “देखो घबरा न जाना।1 हां, वह चला जाएगा, लेकिन वह उन्हें अकेला नहीं छोड़ेगा।2 वह अपनी आत्मा को उन्हें स्मरण रखने, स्थिर रहने और शांति पाने में मदद करने के लिए भेजेगा। उद्धारकर्ता हमारे साथ, अपने शिष्यों के साथ रहने के अपने वादे को पूरा करता है, लेकिन हमें उसकी उपस्थिति को पहचानने और उसका आनंद लेने में मदद करने के लिए लगातार उसकी ओर देखना चाहिए।
मसीह के शिष्यों ने हमेशा कठिन समय का सामना किया है।
मेरे एक प्रिय मित्र ने मुझे 9 जुलाई 1857 का एक Midwestern United States के समाचार पत्र Nebraska Advertiser से एक पुराना लेख भेजा। इसमें लिखा था: “आज सुबह मॉरमन का एक समूह साल्ट लेक की यात्रा के दौरान वहां से निकला। महिलाएं (अवश्य ही बहुत नाजुक नहीं थी) जानवरों की तरह ठेले को खींच रही थी, एक [महिला] इस कीचड़ में गिर गई, जिससे उन्हें थोड़ा रूकना पड़ा, छोटे बच्चे अपनी [अजीब] अलग सी पोशाक में अपनी मां के समान दृढ़ संकल्प दिख रहे थे।”3
मैंने इस कीचड़ से भीगी हुई महिला के बारे में बहुत सोचा है। वह अकेले ठेला क्यों खींच रही थी? क्या वह एकल मां थी? कीचड़ में इस तरह की कष्टदायक यात्रा करने की आंतरिक शक्ति, धैर्य, दृढ़ता उसे कहां से मिली थी, जो उसे सारी संपत्ति को ठेले में डालकर अज्ञात निर्जन घर की ओर ले जा रही था—जिसका कभी-कभी देखने वाले मजाक उड़ाते थे?4
अध्यक्ष जोसफ एफ. स्मिथ ने इन पथप्रदर्शक महिलाओं की आंतरिक शक्ति के बारे में बात करते हुए कहा था: “क्या आप इन महिलाओं में से किसी एक को अंतिम-दिनों के यीशु मसीह के गिरजे में उनके दृढ़ विश्वास से अलग कर सकते हैं? क्या आप भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ के मिशन को उनके मन से हटा कर सकते हैं? क्या आप उन्हें परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के दिव्य मिशन के विषय में अंधा कर सकते हैं? नहीं, दुनिया में आप ऐसा कभी नहीं कर सकते। क्यों? क्योंकि वे इसे जानते थे। परमेश्वर ने उन पर इसे प्रकट किया, और वे इसे समझ चुके थे, और पृथ्वी पर कोई भी शक्ति उन्हें उस सच्चाई से अलग नहीं कर सकती थी जिसे वे जानते थे।5
भाइयों और बहनों, ऐसे स्त्री-पुरुष बनना हमारे समय की मांग है—शिष्य जो निर्जन स्थान में चलने के लिए कहे जाने पर आगे बढ़ने की शक्ति पाने के लिए कठोर परिश्रम करते हैं, परमेश्वर द्वारा हमें प्रकट की बातों के प्रति निष्ठावान शिष्य, यीशु के अनुयायी जो शिष्यत्व की अपनी व्यक्तिगत यात्रा में हम आनंदित और संपूर्ण हृदय से चलते हैं। यीशु मसीह के शिष्यों के रूप में, हम विश्वास करते हैं और तीन महत्वपूर्ण सच्चाइयों में विकास कर सकते हैं।
पहला, हम अपने अनुबंधों को पालन कर सकते हैं, भले ही यह आसान न हो।
जब आपके विश्वास, आपके परिवार, या आपके भविष्य को चुनौती दी जाती है—जब आप सोचते हो कि जब आप सुसमाचार जीने की पूरी कोशिश कर रहे हो तो जीवन इतना कठिन क्यों है—याद रखो कि प्रभु ने हमें परेशानियों की अपेक्षा करने के लिए कहा था। परेशानियां योजना का हिस्सा हैं और इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अकेले छोड़ दिया गया है; वे उसका होने का हिस्सा हैं।6 आखिरकार, “वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था।”7
मैं सीख रही हूं कि स्वर्गीय पिता यीशु मसीह के शिष्य के रूप में मेरे विकास में मेरे आराम से अधिक रुचि रखता है। हो सकता है मैं हमेशा ऐसा नहीं चाहती हूं—लेकिन यह सच है!
सुविधा में रहने से शक्ति नहीं मिलती। जिस सामर्थ्य की हमें हमारे समय की गर्मी का सामना करने की आवश्यकता होती है वह प्रभु की सामर्थ्य है, और उसकी सामर्थ्य उसके साथ हमारी अनुबंधों के माध्यम से मिलती है।8 बहुत कठिन चुनौतियों का सामना करते समय अपने विश्वास में दृढ़ रहना—ईमानदारी से प्रतिदिन उन कार्यों को करने का प्रयास करना है जिसे करने का अनुबंध हमने उद्धारकर्ता के साथ बनाया है, यहां तक कि और विशेष रूप से जब हम थके हुए, परेशान होते, और चिंताजनक प्रश्नों और मुद्दों से जूझते हैं—धीरे-धीरे उसकी रोशनी, उसकी शक्ति, उसका प्यार, उसकी आत्मा, उसकी शांति को प्राप्त करना है।
अनुबंध मार्ग पर चलने का उद्देश्य उद्धारकर्ता के निकट जाना है। वह उद्देश्य है, हमारी संपूर्ण प्रगति नहीं। यह कोई दौड़ नहीं है, और न ही हमें अपनी यात्रा की तुलना दूसरों से करनी चाहिए। यहां तक कि जब हम ठोकर खाते हैं, तो वह वहां होता है।
दूसरा, हम विश्वास में कार्य कर सकते हैं।
यीशु मसीह के शिष्यों के रूप में, हम समझते हैं कि उस में विश्वास करने के लिए कार्य करने की आवश्यकता होती है—विशेषकर कठिन समय में।9
कई साल पहले, मेरे माता-पिता ने घर में नया कालीन बिछाने का फैसला किया। नया कालीन आने से पहले की रात, मेरी मां ने मेरे भाइयों को फर्नीचर हटाने और बेडरूम के कालीनों को हटाने के लिए कहा ताकि नया कालीन बिछाया जा सके। मेरी 7 साल की बहन, एमिली सो रही थी। इसलिए, जब वह सो रही थी, तो उन्होंने चुपचाप बिस्तर को छोड़कर उसके कमरे से सभी फर्नीचर हटा दिए, और फिर कालीन हटा दिया। खैर, जैसे बड़े भाई कभी-कभी करते हैं, उन्होंने एक शरारत करने का फैसला किया। उन्होंने अलमारी से और दीवारों से उसका बाकी सामान हटा दिया, जिससे कमरा खाली हो गया। फिर उन्होंने एक नोट लिखा और इसे दीवार पर चिपका दिया: “प्रिय एमिली, हम घर छोड़कर चले गए हैं। हम कुछ दिनों बाद बताएंगे कि हम कहां गए हैं। “प्रेम सहित, तुम्हारा परिवार।”
अगली सुबह जब एमिली नाश्ते के लिए नहीं आई, तो मेरे भाई उसे खोजने गए—वह कमरे में बंद दरवाजे के पीछे उदास और अकेली थी। एमिली बाद में इस अनुभव को याद करते हुए कहती है: “मैं बहुत घबरा गई थी। लेकिन यदि मैंने मात्र दरवाजा खोला होता तो क्या हुआ होता? मैंने क्या सुना होता? मैं क्या सूंघ पाती? मुझे पता होता कि मैं अकेला नहीं हूं। मुझे पता होता कि मुझे वास्तव में प्यार किया जाता था। अपनी परिस्थिति के बारे में कुछ करने का विचार भी मेरे मन में नहीं आया। मैंने बस हार मान ली और अपनी कमरे में बैठी रोती रही। और फिर भी यदि मैंने केवल दरवाजा खोला दिया होता।10
मेरी बहन ने जो देखा था उसके आधार पर धारणा बनाई, लेकिन इसने परिस्थिति को वैसे नहीं दिखाया था जैसे वे वास्तव में थी। क्या यह दिलचस्प नहीं है कि हम, एमिली की तरह, उदासी या चोट या निराशा या चिंता या अकेलापन या क्रोध या हताशा में इतने मायूस हो सकते हैं कि हमारे मन में कुछ करने, मात्र दरवाजा खोलने, यीशु मसीह में विश्वास से कार्य करने का विचार नहीं आ पाता है?
धर्मशास्त्र ऐसे पुरुषों और महिलाओं, मसीह के शिष्यों के उदाहरणों से भरे हुए हैं, जिन्होंने असंभव का सामना करते समय, बस कार्य किया—जो विश्वास में फिर से खड़े हुए और आगे बढ़ गए।11
चंगाई की मांग करने वाले कोढ़ियों से मसीह ने कहा: “जाओ अपने आप को याजकों के पास दिखाओ। और ऐसा हुआ कि, जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए।”12
वे स्वयं को याजकों को दिखाने गए मानो वे पहले से ही चंगे थे, और विश्वास में कार्य करते हुए, वे चंगे हो गए थे।
मैं यह भी कहना चाहती हूं कि यदि आपको अपने कष्टों दूर करना असंभव लगता है, तो कृपया अपनी सहायता करने के लिए किसी को कहें—कोई दोस्त, परिवार का कोई सदस्य, गिरजे का कोई मार्गदर्शक, कोई डॉक्टर। यह आशा की ओर पहला कदम हो सकता है।
तीसरा, हमारी निष्ठा संपूर्ण हृदय और आनंदपूर्वक होनी चाहिए13
जब कठिन समय आता है, तो मैं याद रखने की कोशिश करती हूं कि मैंने पृथ्वी पर आने से पहले मसीह का अनुसरण करना चुना था और मेरे विश्वास, मेरे स्वास्थ्य और मेरे धैर्य के लिए चुनौतियां उन सबका का हिस्सा हैं कि मैं यहां हूं। और मुझे निश्चित रूप से यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि आज का कष्ट मेरे मन में परमेश्वर के प्रेम पर सवाल उठाता है या यह उसके प्रति मेरे विश्वास को संदेह में बदल देता है। कष्ट का अर्थ यह नहीं है कि योजना विफल हो रही है; यह सब उस योजना का हिस्सा हैं जो मुझे परमेश्वर को पाने में मदद करने के लिए हैं। जब मैं धैर्यपूर्वक सहन करती हूं और आशा करती हूं कि उसकी तरह, कष्ट होने पर, मैं उसके समान हो जाती हूं, मैं अधिक मन लगाकर से प्रार्थना करती हूं।14
यीशु मसीह हमारे पिता को संपूर्ण हृदय से प्यार करने का आदर्श उदाहरण था—मूल्य की परवाह किए बिना, उसकी इच्छा को पूरा करने का।.15 मैं भी ऐसा ही करके उसके उदाहरण का अनुसरण करना चाहती हूं।
मैं विधवा के संपूर्ण हृदय से, संपूर्ण आत्मा वाले शिष्यत्व से प्रेरित हूं, जिसने अपनी दो दमड़ियों को मंदिर के खजाने में डाल दिया था। उसने अपना सब कुछ दे दिया।16
यीशु मसीह ने उसकी बहुतायत को पहचाना जहां दूसरों ने केवल उसकी कमी देखी थी। हम में से प्रत्येक के साथ भी यही ऐसा होता है। वह हमारी कमी को विफलता के रूप में नहीं देखता है, बल्कि विश्वास का उपयोग करने और बढ़ने के अवसर के रूप में देखता है।
निष्कर्ष
यीशु मसीह के मेरे साथी शिष्यों, अपने संपूर्ण हृदय से, मैं प्रभु के प्रति निष्ठावान होना चुनती हूं। मैं उसके चुने हुए सेवकों—अध्यक्ष रसल एम. नेलसन और उसके साथी प्रेरितों के प्रति निष्ठावान होना चुनती हूं—क्योंकि वे उसके लिए बोलते हैं और उन विधियों और अनुबंधों के प्रबंधक हैं जो मेरा संबंध उद्धारकर्ता से जोड़ते हैं।
जब भी मैं ठोकर खाऊंगी, तो मैं खड़ी होती रहूंगी, यीशु मसीह के अनुग्रह और सामर्थ्य पर भरोसा करूंगी। मैं उसके साथ अपने अनुबंध में दृढ़ रहूंगी और परमेश्वर के वचन का अध्ययन करके, विश्वास के द्वारा, और पवित्र आत्मा की सहायता से, जिसके मार्गदर्शन पर मैं भरोसा करती हूं, अपने प्रश्नों का हल खोजूंगी। मैं छोटी और सरल कार्य करके प्रतिदिन उसकी आत्मा की खोज करूंगी।
यह शिष्यत्व का मेरा मार्ग है।
और जब तक नश्वरता के प्रतिदिन के घाव चंगे नहीं हो जाते, तब तक मैं प्रभु की प्रतीक्षा करूंगी और उसके समय, उसकी बुद्धि, उसकी योजना—पर भरोसा करूंगी।17
आपके साथ, मैं उसके प्रति सदैव निष्ठावान रहना चाहती हूं। संपूर्ण हृदय से यह जानते हुए कि जब हम यीशु मसीह से अपने संपूर्ण हृदय से प्रेम करते हैं, तो वह बदले में हमें सबकुछ देता है।18 यीशु मसीह के नाम में, आमीन।