महा सम्मेलन
जड़ों को पोषण दो, और शाखाएं बढ़ने लगेंगी
अक्टूबर 2024 महा सम्मेलन


14:31

जड़ों को पोषण दो, और शाखाएं बढ़ने लगेंगी

आपकी गवाही की शाखाएं स्वर्गीय पिता और उसके प्रिय पुत्र में आपके गहरे विश्वास से शक्ति प्राप्त करेंगी।

जविकाउ में पुराना प्रार्थना-घर

2024 का यह साल मेरे लिए एक प्रकार से मील का पत्थर है। यह 75 पहले मुझे मिले बपतिस्मे और पुष्टिकरण के पश्चात जर्मनी के जविकाउ शहर में अंतिम-दिनों के संतों के यीशु मसीह के गिरजे मेरे सदस्य बनने का प्रतीक है।

यीशु मसीह के गिरजे में मेरी सदस्यता अनमोल है। आपके साथ, परमेश्वर के अनुबंधित लोगों में गिना जाना, मेरे भाइयों और बहनों, मेरे जीवन के सबसे बड़े सम्मानों में से एक है।

जब मैं अपनी शिष्यता की व्यक्तिगत यात्रा के बारे में सोचता हूं, तो मेरा मन अक्सर जविकाउ में एक पुराने घर की ओर जाता है, जहां बचपन में यीशु मसीह के गिरजे की प्रभुभोज सभा की यादें मैं अभी भी संजोकर रखता हूं। वहीं पर मेरी गवाही के बीज को सबसे पहले पोषण मिला था।

इस गिरजे में एक हवा से चलने वाला पुराना ऑर्गन था। प्रत्येक रविवार किसी युवक को बेलोज को चलाने के लिए मजबूत लीवर को ऊपर-नीचे धकेलने का काम सौंपा जाता था ताकि ऑर्गन बजता रहे। कभी-कभी मुझे भी इस महत्वपूर्ण काम में मदद करने का महान सौभाग्य मिला।

जब सभा हमारे प्रिय स्तुतिगीत गाती थी, तो मैं अपनी पूरी ताकत से पंप करता था ताकि ऑर्गन की हवा खत्म न हो। बेलोज धकेलने वाले की कुर्सी से, मुझे कुछ बहुत संदुर रंगीन-शीशे की खिड़कियों पर बने अद्भुत दृश्य दिखाई देते थे, जिसमें उद्धारकर्ता यीशु मसीह और दूसरे में पवित्र उपवन में जोसफ स्मिथ का चित्र बना था।

मैं अभी भी उन पावन अनुभूतियों को याद कर सकता हूं जो मुझे उन सूरज के प्रकाश से जगमगाती खिड़कियों को देखते, संतों की गवाही सुनते और सियोन के स्तुति गीत गाते समय होती थी।

उस पवित्र स्थान में, परमेश्वर की आत्मा ने मेरे मन और हृदय को इस सच्चाई की गवाही दी थी: यीशु मसीह दुनिया का उद्धारकर्ता है। यह उसका गिरजा है। भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ ने परमेश्वर पिता और उसके बेटे यीशु मसीह को देखा और उनकी आवाज सुनी थी।

इस साल के आरंभ में, जब मैं यूरोप में कार्य के सिलसिले में गया, तो मुझे जविकाउ जाने का मौका मिला। दुख की बात है, वह प्रिय पुराना प्रार्थना-घर अब वहां नहीं है। यह कई साल पहले एक बड़ा अपार्टमेंट बनाने के लिए इसे गिरा दिया गया था।

क्या अनंत है, और क्या नहीं?

मैं स्वीकार करता हूं कि दुख की बात है कि मेरे बचपन के इस प्रिय भवन की अब केवल यादें ही रह गई हैं। यह मेरे के लिए एक पावन भवन था। लेकिन यह बस एक भवन मात्र था।

इसके विपरीत, उन कई सालों पहले पवित्र आत्मा से मुझे जो आत्मिक गवाही मिली, वह समाप्त नहीं हुई है। असल में, वह मजबूत हुई है। यीशु मसीह के सुसमाचार के मूलभूत नियमों के बारे में मैंने अपनी युवावस्था में जो बातें सीखीं, वे जीवन भर मेरा दृढ़ आधार बनी रही हैं। मैंने अपने स्वर्गीय पिता और उसके प्रिय पुत्र के साथ जो अनुबंधित संबंध बनाया था, वह अभी तक मेरे साथ बना हुआ है—जविकाउ गिरजे के गिराए जाने और रंगीन शिशे वाली खिड़कियों के खो जाने के बाद भी।

यीशु ने कहा था, “स्वर्ग और पृथ्वी टल जाएंगे, लेकिन मेरे वचन नहीं टलेंगे।”

“चाहे पहाड़ हट जाएं और पहाडियां टल जाएं, तौभी मेरी करूणा तुझ पर से कभी न हटेगी, और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी, प्रभु कहता है।”

सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक जो हम इस जीवन में सीख सकते हैं वह यह है कि क्या अनंत है और क्या नहीं है के बीच अंतर को समझना। एक बार जब हम यह समझ जाते हैं, तो सब कुछ बदल जाता है—हमारे रिश्ते, हमारे द्वारा बनाए गए चुनाव, लोगों के साथ हमारा व्यवहार करने का तरीका।

यह जानना कि क्या अनंत है और क्या नहीं, यीशु मसीह और उसके गिरजे की गवाही बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।

शाखाओं को जड़ समझने की भूल न करें

यीशु मसीह का पुनर्स्थापित सुसमाचार, जैसा कि भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ ने सिखाया था, “सच्चाई की सब और प्रत्येक बात को गले लगाओ।” लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी सच्चाइयों का महत्व एकसमान है। कुछ मूलभूत सच्चाइयां, महत्वपूर्ण, हमारे विश्वास की जड़ में होती हैं। अन्य इससे जुड़ी हुई या शाखाएं होती हैं—वे मूल्यवान हैं, लेकिन केवल तभी जब वे मूलभूत सिद्धांतों से जुड़ी होती हैं।

भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ ने यह भी कहा था, “यीशु मसीह के विषय में प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं की गवाही, कि वह मर गया, दफनाया गया, और तीसरे दिन फिर से जी उठा, और स्वर्ग में चढ़ गया, हमारे धर्म के मूलभूत नियम हैं; और अन्य सभी बातें जो हमारे धर्म से संबंधित हैं, वे केवल इससे जुड़ी हैं।”

दूसरे शब्दों में, यीशु मसीह और उसका प्रायश्चित बलिदान हमारी गवाही की जड़ है। बाकी सब बातें शाखाएं हैं।

इसका अर्थ यह नहीं है कि शाखाएं महत्वपूर्ण नहीं होती। वृक्ष को शाखाओं की भी आवश्यकता होती है। लेकिन जैसा कि उद्धारकर्ता ने अपने चेलों से कहा था, “शाखा यदि वृक्ष में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती।” उद्धारकर्ता से जुड़े बिना, जोकि हमारी जड़ों को पोषण देता है, हम, शाखा सूख और मर जाते हैं।

जब यीशु मसीह की हमारी गवाही को पोषण देने की बात आती है, तो मैं सोचता हूं कि हम कहीं शाखाओं को जड़ समझने की भूल तो नहीं करते। यह गलती फरीसियों ने थी, जो यीशु ने अपने समय में देखी थी। उन्होंने व्यवस्था की अपेक्षा छोटी-छोटी बातों पर इतना अधिक ध्यान दिया कि उन्होंने, जिसे उद्धारकर्ता ने “गंभीर बातें” कहा था—“न्याय और दया और विश्वास” जैसे मूलभूत नियमों की उपेक्षा की थी।”

यदि आप वृक्ष का पोषण करना चाहते हैं, तो आप इसकी शाखाओं पर पानी नहीं डालते। आप जड़ों को पानी देते हो। इसी प्रकार, यदि आप चाहते हैं कि आपकी गवाही की शाखाएं बढ़ें और फल दें, तो जड़ों को पोषण दें। यदि आप गिरजे के इतिहास के किसी विशेष सिद्धांत या प्रथा या तत्व के बारे में अनिश्चित हैं, तो यीशु मसीह में विश्वास की स्पष्टता से खोज करें। आपके लिए उसके बलिदान, उसके प्रेम, उसकी इच्छा को समझने का प्रयास करें। विनम्रता में उसका अनुसरण करें। आपकी गवाही की शाखाएं स्वर्गीय पिता और उसके प्रिय पुत्र में आपके गहरे विश्वास से शक्ति प्राप्त करेंगी।

उदाहरण के लिए, यदि आप मॉरमन की पुस्तक की मजबूत गवाही चाहते हैं, तो यीशु मसीह की गवाही पर ध्यान केंद्रित करें। ध्यान दें कि मॉरमन की पुस्तक कैसे उसकी गवाही देती है, यह उसके बारे में क्या सिखाती है, और यह आपको उसके निकट आने के लिए कैसे आमंत्रित और प्रेरित करती है।

यदि आप गिरजे की सभाओं या मंदिर में अधिक प्रभावशाली अनुभव पाना चाहते हैं, तो हमें वहां दी जाने वाली पवित्र विधियों में उद्धारकर्ता को खोजने का प्रयास करें। उसके पवित्र घर में प्रभु को खोजें।

यदि आप कभी भी गिरजे की अपनी नियुक्ति से निराश या परेशान होते हैं, तो अपनी सेवा को यीशु मसीह पर केंद्रित करने का प्रयास करें। इसे उसके प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति बनाएं।

जड़ों को पोषण दें, और शाखाएं बढ़ेंगी। और समय आने पर, उनमें फल निकलेंगे।

उस में जड़ पकड़ो और विकास करो

यीशु मसीह में दृढ़ विश्वास रातों-रात नहीं होता है। नहीं, इस नश्वर संसार में, संदेह के कांटे और झाड़ियां अपने आप उग आती हैं। विश्वास के स्वस्थ, फलदार वृक्ष के लिए इच्छा से प्रयास करना होता है। और उस प्रयास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह सुनिश्चित करना है कि हमारी जड़ मसीह में मजबूत है।

उदाहरण के लिए: सबसे पहले, हम उद्धारकर्ता के सुसमाचार और गिरजे से आकर्षित हो सकते हैं क्योंकि हम मैत्रीपूर्ण सदस्यों या करुणामय धर्माध्यक्ष या गिरजे के साफ-सुधरे वातावरण से प्रभावित होते हैं। गिरजे के विकास के लिए ये बातें निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं।

फिर भी, यदि हमारी गवाही की जड़ें इससे अधिक गहरी नहीं होतीं, तो क्या होगा जब हम एक ऐसे वार्ड में जाते हैं जिसका भवन कम प्रभावशाली है, जिसके सदस्य के उतने मैत्रीपूर्ण नहीं हैं, और धर्माध्यक्ष कुछ ऐसा कहते हैं जो हमें बुरा लगता है?

अन्य उदाहरण लें: क्या यह आशा करना उचित नहीं लगता कि यदि हम आज्ञाओं का पालन करते और मंदिर में मुहरबंद किए जाते हैं, तो हमें एक विशाल, खुशहाल परिवार, उज्ज्वल आज्ञाकारी बच्चों की आशीष मिलेगी, वे सभी गिरजे में सक्रिय रहेंगे, मिशन की सेवा करेंगे, वार्ड गायक मंडली में गाएंगे, और हर शनिवार सुबह सभाघर की सफाई में मदद करने के लिए आएंगे?

मैं दृढ़ता से आशा करता हूं कि हम सभी इसे अपने जीवन में देखेंगे। लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है तो? क्या हम परिस्थितियों की चिंता किए बिना उद्धारकर्ता से बंधे रहेंगे—उस पर और उसके समय पर भरोसा रखते हुए?

हमें स्वयं से पूछना चाहिए: क्या मेरी गवाही उस पर आधारित है जिसे मैं अपने जीवन में होने की आशा करता हूं? क्या यह दूसरों के किए कार्यों या दृष्टिकोणों पर निर्भर है? या क्या यह यीशु मसीह पर मजबूती से स्थापित है, “उसी में जड़ पकड़ती और बढ़ती जाती है,” जीवन की बदलती परिस्थितियों के बावजूद?

परंपराएं, आदतें और विश्वास

मॉरमन की पुस्तक ऐसे लोगों के बारे में बताती है जो “परमेश्वर की विधियों का पालन करने में दृढ़ थे।” लेकिन तभी कोरिहोर नामक एक बहकाने वाला आया, उसने उद्धारकर्ता के सुसमाचार का उपहास किया, उन्हें “बुद्धिहीन” और “उनके पूर्वजों की मूर्खतापूर्ण परंपराएं” कहा। कोरिहोर ने “कई लोगों के मन को बहकाते हुए, और दुष्टता में उन्हें घमंडी बनाते हुए उनमें प्रचार किया।” लेकिन दूसरों को वह धोखा नहीं दे सका, क्योंकि उनके लिए यीशु मसीह का सुसमाचार उनकी परंपरा से कहीं अधिक था।

विश्वास तब मजबूत होता है जब इसकी जड़ें व्यक्तिगत अनुभव, यीशु मसीह के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा में गहरी होती हैं, और हमारी परंपराएं क्या हैं या दूसरे क्या कहते या करते हैं, से अंतर नहीं पड़ता है।

हमारी गवाही का परीक्षा और जांच की जाएगी। विश्वास, विश्वास नहीं होता यदि कभी इसकी परीक्षा न ली जाए। विश्वास मजबूत नहीं होता यदि कभी इसका विरोध न हो। इसलिए यदि आपके विश्वास की परीक्षा होती है या प्रश्न के उत्तर नहीं मिलते तो निराश न हों।

हमें कार्य करने से पहले हर बात समझने की आशा नहीं करनी चाहिए। यह विश्वास नहीं है। जैसा अलमा ने सिखाया है, “विश्वास किसी भी चीज का पूरा ज्ञान होना नहीं है।” यदि हम कार्य करने के लिए अपने सभी प्रश्नों का उत्तर पाने की प्रतीक्षा करते हैं तो हम, हमें मिलने वाली आशीषों और अपने विश्वास की शक्ति को सीमित कर देते हैं।

विश्वास सुंदर है क्योंकि यह तब भी कायम रहता है जब आशा के अनुसार आशीषें नहीं मिलती हैं। हम भविष्य नहीं देख सकते, हम सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं जानते, लेकिन हम यीशु मसीह पर भरोसा रख सकते हैं जब हम विकास करते हैं क्योंकि वह हमारा उद्धारकर्ता और मुक्तिदाता है।

विश्वास जीवन की परीक्षाओं और अनिश्चितताओं में कायम रहता है क्योंकि इसकी जड़ों को मसीह और उसके सिद्धांत से पोषण मिलता हैं। यीशु मसीह, और स्वर्ग में हमारा पिता जिसने उसे भेजा है, एकसाथ मिलकर हमारे भरोसे के एक अटल, संपूर्णरूप से विश्वासयोग्य व्यक्ति को तैयार करते हैं।

गवाही कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आप केवल एक बार बनाएं और वह हमेशा के लिए बनी रहेगी। यह उस वृक्ष के समान है जिसका आप लगातार पोषण करते हैं। परमेश्वर के बीज रूपी वचन का आपके हृदय में रोपा जाना केवल पहला कदम है। एक बार जब आपकी गवाही बढ़ने लगती है, तो असली काम आरंभ होता है! और जब आप “इसकी देखभाल ध्यानपूर्वक करते हैं, ताकि यह जड़ पकड़े और बढे, और फल लाए।” इसके लिए “धैर्य के साथ” “वचन की देखभाल करने” की आवश्यकता होती है। लेकिन प्रभु की प्रतिज्ञाएं निश्चित हैं: “इस बात की प्रतीक्षा करते हुए कि पेड़ तुम्हारे लिए और फल लाएगा, तुम अपने विश्वास, अपनी निष्ठा, और धैर्य और लंबे समय तक के उत्पीड़न का पुरस्कार पाओगे।”

प्रिय भाइयों और बहनों, मेरे जीवन के एक हिस्से में पुराने जविकाउ प्रार्थना-घर और उसकी रंगीन शिशे वाली खिड़कियों की यादें बसी हैं। लेकिन पिछले 75 वर्षों में, यीशु मसीह ने जीवन की यात्रा पर मेरा मार्गदर्शन किया है जो मेरी कल्पना से भी अधिक रोमांचकारी है। उसने मेरे कष्टों में मुझे दिलासा दी है, मेरी कमजोरियों को पहचानने में मेरी मदद की है, मेरे आत्मिक घावों को चंगा किया है, और मेरे बढ़ते विश्वास में मेरा पोषण किया है।

यह मेरी हार्दिक प्रार्थना और आशीष है कि हम उद्धारकर्ता, उसका सिद्धांत और उसके गिरजे में अपने विश्वास की जड़ों को लगातार पोषित करेंगे। मैं इसकी गवाही हमारे उद्धारकर्ता, हमारे मुक्तिदाता, हमारे स्वामी—यीशु मसीह के पवित्र नाम में देता हूं, आमीन।

विवरण

  1. वर्ष 2024 में एक जनरल अधिकारी के रूप में मेरी नियुक्ति के 30 वर्ष और उस नियुक्ति के कारण हमारे परिवार को जर्मनी से संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थानांतरित होने के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं। और लगभग ठीक 20 साल पहले—2 अक्टूबर 2004 को—मुझे बारह प्रेरितों की परिषद का सदस्य और “संसार भर में यीशु के नाम के विशेष गवाह” सिद्धांत और अनुबंध 107:23 के रूप में नियुक्त किया गया था ।

  2. कुछ मायनों में, उस भवन के बारे में मेरी भावनाएं वैसी ही हैं जैसी आलमा के लोगों ने मॉरमन के जल के बारे में महसूस की थीं—यह उनके लिए एक सुंदर जगह थी क्योंकि “वहां पर अपने मुक्तिदाता का ज्ञान मिला था” (मुसायाह 18:30)।

  3. मत्ती 24:35; यह भी देखें जोसफ स्मिथ—मत्ती 1:35

  4. यशायाह 54:10; 3 नफी 22:10 भी देखें।

  5. अध्यक्ष थॉमस एस. मॉनसन ने इस सच्चाई को इन शब्दों से सिखाया था: “मुझे विश्वास है कि हमें पृथ्वी पर इस थोड़े से समय में सीखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पाठ वे हैं, जो हमें महत्वपूर्ण और महत्वहीन बातों के बीच के अतंर को समझने में मदद करते हैं। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप उन महत्वपूर्ण बातों को अपने सामने से न गुजरने दें” (“Finding Joy in the Journey,” Liahona, नवं. 2008, 85)। इसी तरह, जब अध्यक्ष रसल एम. नेल्सन ने हाल ही में हमें “सिलेस्टियल सोचने,” के लिए प्रोत्साहित किया, तो उन्होंने कहा, “नश्वरता अनंत महत्व की बातों का चुनाव करना सीखने के लिए सर्वोत्तम पाठशाला है” (“सिलेस्टियल सोचें!,” लियाहोना, नव. 2023, 118)।

  6. Teachings of Presidents of the Church: Joseph Smith (2007), 264; Teachings of Presidents of the Church: Brigham Young (1997), 16–18 भी देखें।

  7. Teachings: Joseph Smith, 49।

  8. यूहन्ना 15:4

  9. मत्ती 23:23, New Revised Standard Version।

  10. क्या प्राचीन अमेरिकी संस्कृतियों और मॉरमन की पुस्तक के लोगों के बीच पुरातात्विक समानताओं पर ध्यान देना दिलचस्प है? हो सकता है। क्या जोसफ स्मिथ ने मॉरमन की पुस्तक का अनुवाद कैसे किया, इसके विवरण के बारे में विद्वानों और अन्य लोगों के लेखों से सीखना उपयोगी है? कुछ के लिए है। लेकिन इनमें से कोई भी इस बात की स्थायी गवाही नहीं देता कि मॉरमन की पुस्तक परमेश्वर का वचन है। इसके लिए, आपको मॉरमन की पुस्तक में उद्धारकर्ता खोजना होगा, ताकि आप उसकी वाणी को आपसे बात करते हुए सुन सकें। एक बार ऐसा होने पर, आपके लिए यह मायने नहीं रखेगा कि जराहेमला का प्राचीन शहर वास्तव में कहां स्थित था या उरीम और तुम्मीम कैसे दिखते थे। वे शाखाएं हैं जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर आपके वृक्ष से छांटा जा सकता है, लेकिन वृक्ष कायम रहेगा।

  11. देखें सिद्धांत और अनुबंध 84:19-20

  12. देखें Joy D. Jones, “For Him,” Liahona, नवं. 2018, 50–52।

  13. देखें उत्पत्ति 3:18

  14. अध्यक्ष नेल्सन ने हम सभी को आमंत्रण दिया है: “यीशु मसीह और उसके सुसमाचार की [हमें] अपनी गवाही का कार्यभार ग्रहण करें। इसके लिए काम करें। इसका पोषण करें ताकि यह बढ़े” (“संसार पर विजय पाना और विश्राम प्राप्त करना,” लियाहोना, नवं. 2022, 97)।

  15. कुलुस्सियों 2:7

  16. अलमा 30:3

  17. देखें आलमा 30:12-16, 31

  18. अलमा 30:18

  19. दिलचस्प है कि, कोरिहोर के तर्क हाल ही में परिवर्तित हुए लमनाइयों, अम्मोन के लोगों के बीच पूरी तरह से अप्रासंगिक थे (देखें अलमा 30:19–20), जो अपने पूर्वजों की परंपरा के कारण मसीह का अनुसरण नहीं कर रहे थे।

    इसके विपरीत, मॉरमन की पुस्तक उन युवा लोगों की एक पीढ़ी के बारे में भी बताती है जिन्होंने स्वयं को प्रभु के गिरजे से अलग कर लिया था क्योंकि “वे अपने पूर्वजों की परंपरा पर विश्वास नहीं करते थे” (देखें मुसायाह 26:1–4)। परिवारों के लिए धार्मिक परंपराएं स्थापित करना अच्छा है। लेकिन परिवारों के लिए उन परंपराओं के पीछे के कारणों को स्पष्ट रूप से समझना उतना ही महत्वपूर्ण है। हम हर सुबह और रात प्रार्थना क्यों करते हैं? हम पारिवारिक पवित्र शास्त्र अध्ययन क्यों करते हैं? हम साप्ताहिक घरेलु संध्या, पारिवारिक गतिविधियां और सेवा परियोजनाएं इत्यादि क्यों आयोजित करते हैं? यदि हमारे बच्चे समझते हैं कि कैसे ये परंपराएं हमें स्वर्गीय पिता और यीशु मसीह के निकट लाती हैं, तो उनके अपने परिवारों में इन्हें जारी रखने और उनमें सुधार करने की अधिक संभावना होगी।

  20. अलमा 32:21। विश्वास इसलिए शक्तिशाली नहीं है कि वह क्या जानता है बल्कि इसलिए कि वह क्या करताहै।

  21. देखें इब्रानियों 10:23

  22. अलमा 32:37, 41-43